Essay on Lord Mahavir Swami
धर्म प्रधान भारत की भूमि पर समय-समय पर अनेक धर्म गुरुओं ने जन्म लिया। इसकी वजह देश में प्रचलित धर्मों के कर्मकाण्डों का विकृत होना था। देश में पशुओं सहित नर-बलि की प्रथा कई धर्मों में विद्यमान थी। यह सब धर्म के नाम पर ढोंग था। ऐसी स्थिति में देश की धरा पर कई महात्माओं ने जन्म लिया।
समाज में ब्राह्मण अपने को अन्य जातियों से उच्च समझते थे। अन्य जातियां ब्राह्मणों के समक्ष अपने को हीन व मलीन समझती थीं।
कुछ समय बाद समाज में ब्राह्मणों को दबदबा कायम हो गया। वे अपने से इतर जातियों का उत्पीड़न करने लगे। इसी समय महावीर स्वामी धर्म के सच्चे स्वरूप को समझने के लिए और परस्पर भेदभाव को मिटाने के लिए भारत भूमि पर प्रकट हुए।
पुत्र को जन्म देने से पूर्व त्रिशला देवी ने कई
शुभ स्वप्न देखे थे। इन सपनों को देख उन्हें विश्वास था कि जिस पुत्र को उन्होंने
अपनी कोख से जन्म दिया है वह महान गुणों से युक्त पुत्र होगा और उसकी कीर्ति
विश्वभर में फैलेगी। महावीर स्वामी के कार्यों ने उनके इस विश्वास को सच भी कर
दिखाया। राजा सिद्धार्थ ने पुत्र प्राप्ति पर बहुत उल्लास प्रकट किया।
इस अवसर पर उन्होंने धूम-धाम से उत्सव आयोजित किया
और प्रजा को अनेक प्रकार की सुविधाएं दीं। लिच्छवी वंश उस समय काफी प्रसिद्ध था।
पुत्र प्राप्ति के बाद राजा सिद्धार्थ का प्रभाव और बढ़ गया। इस कारण उनका नाम
वर्धमान रखा गया।
ज्येष्ठ भाई नन्दिवर्धन के आग्रह पर उसने दो
वर्ष किसी तरह और गृहस्थ जीवन के काट दिए। इन दो वर्षों के दौरान उन्होंने खुलकर
दान-दक्षिणा दी। तीस वर्ष की आयु के बाद उन्होंने परिवार तथा सम्बन्धियों का मोह
छोड़ साधु बन गये। एकांत व शान्त स्थानों में आत्मशुद्धि के लिए उन्होंने तपस्या
में लीन हो गये। बारह वर्ष तक तपस्या करने के बाद उनको सच्चे ज्ञान की प्राप्ति
हुई।
इस धर्म के पांच मुख्य सिद्धान्त हैं-सत्य, अहिंसा, चोरी न करना, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना और जीवन में शुद्धिकरण। उनका कहना था कि इन पांचों सिद्धांतों पर चलकर ही मनुष्य मोक्ष या निर्वाण प्राप्त कर सकता है। उन्होंने सभी से इस पथ पर चलने का ज्ञानोपदेश दिया।
सबकी आत्मा को अपनी आत्मा के ही समान समझना चाहिए, यही मनुष्यता है। भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थकर के रूप में आज भी सश्रद्धा और ससम्मान पूज्य और आराध्य हैं।
यद्यपि उनकी मृत्यु 72
वर्ष की आयु में कार्तिक मास की आमावस्या को पापापुर नामक स्थान बिहार राज्य में
हुई।
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