Introduction
महात्मा गाँधी का परिचय देना सूर्य को
दीया दिखाना है। वे हमारे के उन महापुरुषों में एक थे, जिनसे
राष्ट्रीय जीवन का नया इतिहास तैयार हुआ है। भारत की स्वंत्रता उनकी ही अथक सेवाओं
का शुभफल है। हम उन्हें कैसे भूल सकते है ?वे हमारे रोम-रोम में बसे हैं। भारत की मिट्टी
से उनकी आवाज आ रही है, सारा आकाश उनकी अमर वाणियों से गूँज रहा है। वे
राम, कृष्ण, बुद्ध, शंकर और तुलसी-जैसे दिव्य पुरुषों की तरह घर-घर
में बसे है।
Childhood and Education Of
Mahatma Gandhi
महात्मा गाँधी का जन्म 2
अक्टूबर, 1869 ई० को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ
था। उनके पिता करमचंद गाँधी राजकोट रियासत के दीवान थे। उनकी माता ने उनका
लालन-पालन बड़े ही अच्छे ढंग से किया था। बालक गाँधी पर, जिनका
असली नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था, उनकी धार्मिक माता का बड़ा गहरा प्रभाव था। वे
आगे चलकर गाँधीजी नाम से प्रसिद्ध हुए।
उन्होंने स्वयं लिखा है कि मैं बहुत झेंपू लड़का था, मेरी किसी से मित्रता नहीं थी। स्कूल में अपने काम से काम रखता।घंटी बजते ही स् कूल पहुँच जाता और बंद होते ही घर चल देता।
किसी अन्य लड़के से बातें करना मुझे अच्छा नहीं
लगता था, क्योंकि मुझे डर लगा रहता कि कहीं कोई मुझसे
दिल्लगी न कर बैठे।
बीड़ा पीना,
चोरी करना, जेब
से पैसे चुराना, मांस खाना इत्यादि बुरी आदतों के वे शिकार हो
गये थे। लेकिन आगे चलकर गाँधीजी ने इन सारी बुराइयों को एक-एक कर छोड़ दिया। सन् 1891 ई०
में बैरिस्टरी पास कर वे इंगलैंड से भारत लौटे। बंबई में वे बैरिस्टर हुए, लेकिन
उनकी बैरिस्टर नहीं चली।
गांधीजी सन् 1914 में भारत लौटे।
उन्होंने देश की गरीबी और गुलामी देखी, अँगरेजों
के अत्याचार देखे और उनका मनमाना शासन देखा। उनकी आँखें खुलीं और उन्होंने देशसेवा
का व्रत लिया। देश को अँगरेजों से आजाद कराने की प्रतिज्ञा की और तब जुट गये इस
महायज्ञ में। सन् 1917 से वे अँगरेजों के अत्याचारों का खुलकर विरोध
करने लगे। चंपारण में उन्होंने अँगरेजोंके विरुद्ध पहला सत्याग्रह-आंदोलन छेड़ा।
वे किसानों के नेता बने। देश के कोने-कोने में
गये। जनता ने उनका स्वागत किया। सन् 1942 की महान क्रांति हुई। 'करो
या मरो' के नारे से सारा देश जाग पड़ा। गाँधीजी के साथ
बहुत-से नेता जेलों में बंद कर दिये गये। लेकिन, जनता रुकी नहीं, झुकी
नहीं।
अंत में,
अँगरेजों को लाचार होकर 15
अगस्त, 1947 ई० को भारत को आजाद करना पड़ा। लेकिन जाते-जाते
वे देश को दो टुकड़ों- भारत और पाकिस्तान- में बाँट गये। इससे गांधीजी बड़े दुःखी
हुए।
आज बापू की कहानी युग-युग की कहानी बनकर रह गयी
है। वे मरकर भी अमर हैं।
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