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वर्ण की परिभाषा, भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download

 

Defination of Phonology

No.-1. वर्ण (Phonology)- वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते।

इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं- वह सबसे छोटी ध्वनि जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते, वर्ण कहलाती है।

दूसरे शब्दों में- भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि है। और इस ध्वनि को वर्ण कहते है।

जैसे- अ, , , , , ख् इत्यादि।

वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है, इसके और खंड नहीं किये जा सकते।

उदाहरण द्वारा मूल ध्वनियों को यहाँ स्पष्ट किया जा सकता है। 'राम' और 'गया' में चार-चार मूल ध्वनियाँ हैं, जिनके खंड नहीं किये जा सकते- र + आ + म + अ = राम, ग + अ + य + आ = गया। इन्हीं अखंड मूल ध्वनियों को वर्ण कहते हैं। हर वर्ण की अपनी लिपि होती है। लिपि को वर्ण-संकेत भी कहते हैं। हिन्दी में 52 वर्ण हैं।

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 वर्णमाला(Alphabet)-

No.-2. वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं।

इसे हम ऐसे भी कह सकते है, किसी भाषा के समस्त वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते हैै।

प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला होती है।

हिंदी- अ, , , , ग.....

अंग्रेजी- A, B, C, D, E....

 वर्ण के भेद

No.-3. हिंदी भाषा में वर्ण दो प्रकार के होते है-

No.-1.स्वर (vowel)

No.-2. व्यंजन (Consonant)

 No.-1. स्वर (vowel) :- वे वर्ण जिनके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती, स्वर कहलाता है।

दूसरे शब्दों में- जिन वर्णों के उच्चारण में फेफ़ड़ों की वायु बिना रुके (अबाध गति से) मुख से निकल जाए, उन्हें स्वर कहते हैं।

इसके उच्चारण में कंठ, तालु का उपयोग होता है, जीभ, होठ का नहीं।

हिंदी वर्णमाला में 16 स्वर है

जैसे- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः ऋ ॠ ऌ ॡ।

 स्वर के भेद

No.-4. स्वर के दो भेद होते है-

No.-1. मूल स्वर

No.-2. संयुक्त स्वर

 No.-1. मूल स्वर:- अ, , , , , , ,

No.-2. संयुक्त स्वर:- ऐ (अ + ए) और औ (अ + ओ)

मूल स्वर के भेद

No.-5. मूल स्वर के तीन भेद होते है-

No.-1. ह्स्व स्वर

No.-2. दीर्घ स्वर

No.-3.प्लुत स्वर

 No.-1.ह्रस्व स्वर(Short Vowels):- जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है उन्हें ह्स्व स्वर कहते है।

ह्स्व स्वर चार होते है- अ आ उ ऋ।

'' की मात्रा (ृ) के रूप में लगाई जाती है तथा उच्चारण 'रि' की तरह होता है।

No.-2.दीर्घ स्वर(Long Vowels):- वे स्वर जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दोगुना समय लगता है, वे दीर्घ स्वर कहलाते हैं।

सरल शब्दों में- स्वरों उच्चारण में अधिक समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है।

दीर्घ स्वर सात होते है- आ, , , , , , औ।

दीर्घ स्वर दो शब्दों के योग से बनते है।

जैसे- आ= (अ + अ)

ई= (इ + इ)

ऊ= (उ + उ)

ए= (अ + इ)

ऐ= (अ + ए)

ओ= (अ + उ)

औ= (अ + ओ)

 No.-3. प्लुत स्वर:- वे स्वर जिनके उच्चारण में दीर्घ स्वर से भी अधिक समय यानी तीन मात्राओं का समय लगता है, प्लुत स्वर कहलाते हैं।

सरल शब्दों में- जिस स्वर के उच्चारण में तिगुना समय लगे, उसे 'प्लुत' कहते हैं।

इसका चिह्न (ऽ) है। इसका प्रयोग अकसर पुकारते समय किया जाता है। जैसे- सुनोऽऽ, राऽऽम, ओऽऽम्।

हिन्दी में साधारणतः प्लुत का प्रयोग नहीं होता। वैदिक भाषा में प्लुत स्वर का प्रयोग अधिक हुआ है। इसे 'त्रिमात्रिक' स्वर भी कहते हैं।

 अयोगवाह

No.-6. हिंदी वर्णमाला में ऐसे वर्ण जिनकी गणना न तो स्वरों में और न ही व्यंजनों में की जाती हैं। उन्हें अयोगवाह कहते हैं।

अं, अः अयोगवाह कहलाते हैं। वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले होता है। अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है।

अयोगवाह चार प्रकार के होते हैं-

No.-1. अनुनासिक (ँ)

No.-2. अनुस्वार (ं)

No.-3. विसर्ग (ः)

No.-4. निरनुनासिक

No.-1.अनुनासिक (ँ)- जिस ध्वनि के उच्चारण में हवा नाक और मुख दोनों से निकलती है उसे अनुनासिक कहते हैं।

जैसे- गाँव, दाँत, आँगन, साँचा इत्यादि।

No.-2. अनुस्वार (ं)- जिस वर्ण के उच्चारण में हवा केवल नाक से निकलती है। उसे अनुस्वार कहते हैं।

जैसे- अंगूर, अंगद, कंकन।

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No.-3. विसर्ग (ः)- जिस ध्वनि के उच्चारण में '' की तरह होता है। उसे विसर्ग कहते हैं।

जैसे- मनःकामना, पयःपान, अतः, स्वतः, दुःख इत्यादि।

No.-4. निरनुनासिक- केवल मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं।

जैसे- इधर, उधर, आप, अपना, घर इत्यादि।

टिप्पणी- अनुस्वार और विसर्ग न तो स्वर हैं, न व्यंजन; किन्तु ये स्वरों के सहारे चलते हैं। स्वर और व्यंजन दोनों में इनका उपयोग होता है। जैसे- अंगद, रंग। इस सम्बन्ध में आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का कथन है कि ''ये स्वर नहीं हैं और व्यंजनों की तरह ये स्वरों के पूर्व नहीं पश्र्चात आते हैं, ''इसलिए व्यंजन नहीं। इसलिए इन दोनों ध्वनियों को 'अयोगवाह' कहते हैं।'' अयोगवाह का अर्थ है- योग न होने पर भी जो साथ रहे।

अनुस्वार और अनुनासिक में अन्तर

No.-7. अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम साँस निकलती है और मुँह से अधिक, जैसे- आँसू, आँत, गाँव, चिड़ियाँ इत्यादि।पर अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक साँस निकलती है और मुख से कम, जैसे- अंक, अंश, पंच, अंग इत्यादि।

No.-8. अनुनासिक स्वर की विशेषता है, अर्थात अनुनासिक स्वरों पर चन्द्रबिन्दु लगता है। लेकिन, अनुस्वार एक व्यंजन ध्वनि है।

No.-9. अनुस्वार की ध्वनि प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिन्दु लगाया जाता है। तत्सम शब्दों में अनुस्वार लगता है और उनके तद्भव रूपों में चन्द्रबिन्दु लगता है; जैसे- अंगुष्ठ से अँगूठा, दन्त से दाँत, अन्त्र से आँत।

स्वरों की मात्राएँ (Vowel Signs)

No.-10. '' के अतिरिक्त शेष स्वर जब व्यंजनों के साथ प्रयुक्त किए जाते हैं तो उनकी मात्राएँ ही लगती हैं। '' की मात्रा नहीं होती। अ से रहित व्यंजनों को हलंत लगाकर दिखाया जाता है। यथा- क्, ख्, ग् आदि। '' लगने पर हलंत का चिह्न हट जाता है। क् + अ=क, ख् + अ=ख आदि।

 विभिन्न स्वरों की मात्राएँ और शब्दों में उनका प्रयोग देखिए-

स्वर

मात्रा

शब्द-प्रयोग

-

-

राम

ि

दिन

तीर

कृषक

गुलाब

फूल

केला

मैना

कोमल

सौरभ

अं को बिन्दु ( ं ) तथा अः को विसर्ग ( ः) के रूप में लिखा जाता है।

  व्यंजन (Consonant):-

No.-11. जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहते है।

दूसरे शब्दो में- व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है।

जैसे- क, , , , , , , , , म इत्यादि।

'' से विसर्ग ( : ) तक सभी वर्ण व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में '' की ध्वनि छिपी रहती है। '' के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं। जैसे- ख्+अ=ख, प्+अ =प। व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में, बाधित होती है। स्वरवर्ण स्वतंत्र और व्यंजनवर्ण स्वर पर आश्रित है। क् से ह् तक हिन्दी वर्णमाला में कुल 33 व्यंजन हैं।

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व्यंजन के प्रकार

व्यंजन तीन प्रकार के होते है-

No.-1. स्पर्श व्यंजन(Mutes)

No.-2. अन्तःस्थ व्यंजन(Semivowels)

No.-3. उष्म या संघर्षी व्यंजन(Sibilants)

 No.-1. स्पर्श व्यंजन(Mutes) :- स्पर्श का अर्थ होता है -छूना। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे- कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होठ का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।

सरल शब्दों में- जिन व्यंजन वर्णो का उच्चारण करते समय वायु की टकराहट, कण्ठ, तालु, मूर्धा, दन्त, ओष्ठ को छूती हुई निकले वो स्पर्श व्यंजन कहलाते है।

दूसरे शब्दो में- ये कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं। इसी से इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।

इन्हें हम 'वर्गीय व्यंजन' भी कहते है; क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त हैं।

ये 25 व्यंजन होते है-

 No.-1.कवर्ग- क ख ग घ ङ ये कण्ठ का स्पर्श करते है।

No.-2.चवर्ग- च छ ज झ ञ ये तालु का स्पर्श करते है।

No.-3.टवर्ग- ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) ये मूर्धा का स्पर्श करते है।

No.-4. तवर्ग- त थ द ध न ये दाँतो का स्पर्श करते है।

No.-5. पवर्ग- प फ ब भ म ये होठों का स्पर्श करते है।

No.-2. अन्तःस्थ व्यंजन(Semivowels) :- 'अन्तः' का अर्थ होता है- 'भीतर'। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है।

सरल शब्दों में- जिन वर्गो का उच्चारण वर्णमाला के बीच अर्थात (स्वरों और व्यंजनों) के बीच होता हो, वे अंतस्थ: व्यंजन कहलाते है।

अन्तः = मध्य/बीच, स्थ = स्थित। इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का-सा होता है। उच्चारण के समय जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती।

ये व्यंजन चार होते है- य, , , व। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन 'अर्द्धस्वर' कहलाते हैं।

No.-3. उष्म या संघर्षी व्यंजन(Sibilants) :- उष्म का अर्थ होता है- गर्म। जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।

दूसरे शब्दो में- जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय वायु किसी स्थान विशेष पर घर्षण करती हुई या रगड़ती हुई बाहर निकले जिससे गर्मी पैदा हो। उसे उष्म व्यंजन कहते हैं।

ऊष्म = गर्म। इन व्यंजनों के उच्चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है यानी उच्चारण के समय मुख से गर्म हवा निकलती है।

उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पत्र उष्म वायु से होता हैं।

ये भी चार व्यंजन होते है- श, , , ह।

उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुख के अलग-अलग भागों से टकराती है। उच्चारण के अंगों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है :

 No.-1. कंठ्य (गले से) - क, , , ,

No.-2. तालव्य (कठोर तालु से) - च, , , , , ,

No.-3. मूर्धन्य (कठोर तालु के अगले भाग से) - ट, , , , , , ,

No.-4. दंत्य (दाँतों से) - त, , , ,

No.-5. वर्त्सय (दाँतों के मूल से) - स, , ,

No.-6. ओष्ठय (दोनों होंठों से) - प, , , ,

No.-7. दंतौष्ठय (निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से) - व,

No.-8. स्वर यंत्र से - ह

 श्वास (प्राण-वायु) की मात्रा के आधार पर वर्ण-भेद

No.-12. प्राण का अर्थ है वायु। व्यंजनों का उच्चारण करते समय बाहर आने वाली श्वास-वायु की मात्रा

के आधार पर व्यंजनों के दो भेद हैं-

 No.-1. अल्पप्राण

No.-2.  महाप्राण

 No.-1. अल्पप्राण व्यंजन:- जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की सामान्य मात्रा रहती है और हकार जैसी ध्वनि बहुत ही कम होती है। वे अल्पप्राण कहलाते हैं।

सरल शब्दों में- जिन व्यंजनों के उच्चारण से मुख से कम हवा निकलती है, वे अल्प प्राण कहलाते हैं

प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं।

जैसे- क, , ; , ; , , ; , , ; , , ,

अन्तःस्थ (य, , , व ) भी अल्पप्राण ही हैं।

No-2. महाप्राण व्यंजन :-जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास-वायु अल्पप्राण की तुलना में कुछ अधिक निकलती है और '' जैसी ध्वनि होती है, उन्हें महाप्राण कहते हैं।

सरल शब्दों में- जिन व्यंजनों के उच्चारण में अधिक वायु मुख से निकलती है, वे महाप्राण कहलाते हैं।

No.-13. प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।

जैसे- ख, ; , ; , ; , ; , भ और श, , , ह।

संक्षेप में अल्पप्राण वर्णों की अपेक्षा महाप्राणों में प्राणवायु का उपयोग अधिक श्रमपूर्वक करना पड़ता हैं।

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घोष और अघोष व्यंजन

No.-14. घोष का अर्थ है नाद या गूँज। वर्णों के उच्चारण में होने वाली ध्वनि की गूँज के आधार पर वर्णों के दो भेद हैं- घोष और अघोष।

No.-1. घोष या सघोष व्यंजन:- नाद की दृष्टि से जिन व्यंजनवर्णों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियाँ झंकृत होती हैं, वे घोष कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में- जिन वर्णों के उच्चारण में गले के कम्पन से गूँज-सी होती है, उन्हें घोष या सघोष कहते हैं।

जैसे- ग, , , , , , , , , , , , , , , , , , व (वर्गों के अंतिम तीन वर्ण और अंतस्थ व्यंजन) तथा सभी स्वर घोष हैं।

घोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियाँ आपस में मिल जाती हैं और वायु धक्का देते बाहर निकलती है। फलतः झंकृति पैदा होती है।

No.-2. अघोष व्यंजन:- नाद की दृष्टि से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियाँ झंकृत नहीं होती हैं, वे अघोष कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में- जिन वर्णों के उच्चारण में गले में कम्पन नहीं होता, उन्हें अघोष कहते हैं।

जैसे- क, , , , , , , , , फ (वर्गों के पहले दो वर्ण) तथा श, , स अघोष हैं।

No.-15. अघोष वर्णों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियाँ परस्पर नहीं मिलतीं। फलतः, वायु, आसानी से निकल जाती है।

 संयुक्त व्यंजन, द्वित्व व्यंजन, संयुक्ताक्षर

संयुक्त व्यंजन:-

No.-16.  जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में- वर्णमाला में ऐसे व्यंजन वर्ण जो दो अक्षरों को मिलाकर बनाए गए है, वो संयुक्त व्यंजन कहलाते है।

ये संख्या में चार हैं :

क्ष = क् + ष + अ = क्ष (रक्षक, भक्षक, क्षोभ, क्षय)

 

त्र = त् + र् + अ = त्र (पत्रिका, त्राण, सर्वत्र, त्रिकोण)

 

ज्ञ = ज् + ञ + अ = ज्ञ (सर्वज्ञ, ज्ञाता, विज्ञान, विज्ञापन)

 

श्र = श् + र् + अ = श्र (श्रीमती, श्रम, परिश्रम, श्रवण)

 

कुछ लोग ज् + ञ = ज्ञ का उच्चारण 'ग्य' करते हैं।

No.-17. संयुक्त व्यंजन में पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

 द्वित्व व्यंजन:-

No.-18. जब शब्द में एक ही वर्ण दो बार मिलकर प्रयुक्त हो तब उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं।

जैसे- बिल्ली में '' और पक्का में '' का द्वित्व प्रयोग है।

द्वित्व व्यंजन में भी पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

संयुक्ताक्षर:-

No.-19. जब एक स्वर रहित व्यंजन अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तब वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं।

जैसे- क् + त = क्त = संयुक्त

स् + थ = स्थ = स्थान

स् + व = स्व = स्वाद

द् + ध = द्ध = शुद्ध

यहाँ दो अलग-अलग व्यंजन मिलकर कोई नया व्यंजन नहीं बनाते।

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 वर्णों की मात्राएँ

No.-20. व्यंजन वर्णों के उच्चारण में जिन स्वरमूलक चिह्नों का व्यवहार होता है, उन्हें 'मात्राएँ' कहते हैं।

दूसरे शब्दो में- स्वरों के व्यंजन में मिलने के इन रूपों को भी 'मात्रा' कहते हैं, क्योंकि मात्राएँ तो स्वरों की होती हैं।

ये मात्राएँ दस है; जैसे- ा े, ै ो ू इत्यादि। ये मात्राएँ केवल व्यंजनों में लगती हैं; जैसे- का, कि, की, कु, कू, कृ, के, कै, को, कौ इत्यादि। स्वर वर्णों की ही हस्व-दीर्घ (छंद में लघु-गुरु) मात्राएँ होती हैं, जो व्यंजनों में लगने पर उनकी मात्राएँ हो जाती हैं। हाँ, व्यंजनों में लगने पर स्वर उपयुक्त दस रूपों के हो जाते हैं।

 हलंत

No.-21. हलंत- व्यंजनों के नीचे जब एक तिरछी रेखा ( ् ) लगाई जाय, तब उसे हलंत कहते हैं।

दूसरे शब्दों में- कोई व्यंजन स्वर से रहित है, यह संकेतित करने के लिए उसके नीचे एक तिरछी रेखा ( ् ) खींच देते हैं। इसे हलंत कहते हैं।

प्रायः इसका उपयोग उसी स्थिति में किया जाता है जब ऐसा वर्ण शब्द के अंत में आए। जैसे- अर्थात् । यों शब्द के बीच में प्रयुक्त वर्ण को भी हलंत किया जा सकता है। जैसे- 'विद्या' को 'विद्‍या' भी लिखा जा सकता हैं।

'हलंत' लगाने का अर्थ है कि व्यंजन में स्वरवर्ण का बिलकुल अभाव है या व्यंजन आधा हैं।

No.-22. हिन्दी के नये वर्ण:हिन्दी वर्णमाला में पाँच नये व्यंजन- क्ष, त्र, ज्ञ, ड़ और ढ़ - जोड़े गये हैं। किन्तु, इनमें प्रथम तीन स्वतंत्र न होकर संयुक्त व्यंजन हैं, जिनका खण्ड किया जा सकता हैं। जैसे- क्+ष =क्ष; त्+र=त्र; ज्+ञ=ज्ञ।

अतः क्ष, त्र और ज्ञ की गिनती स्वतंत्र वर्णों में नहीं होती। ड और ढ के नीचे बिन्दु लगाकर दो नये अक्षर ड़ और ढ़ बनाये गये हैं। ये संयुक्त व्यंजन हैं।

No.-23. यहाँ ड़-ढ़ में '' की ध्वनि मिली हैं। इनका उच्चारण साधारणतया मूर्द्धा से होता हैं। किन्तु कभी-कभी जीभ का अगला भाग उलटकर मूर्द्धा में लगाने से भी वे उच्चरित होते हैं।

No.-24. हिन्दी में अरबी-फारसी की ध्वनियों को भी अपनाने की चेष्टा हैं। व्यंजनों के नीचे बिन्दु लगाकर इन नयी विदेशी ध्वनियों को बनाये रखने की चेष्टा की गयी हैं। जैसे- कलम, खैर, जरूरत। किन्तु हिन्दी के विद्वानों (पं० किशोरीदास वाजपेयी, पराड़करजी, टण्डनजी), काशी नागरी प्रचारिणी सभा और हिन्दी साहित्य सम्मेलन को यह स्वीकार नहीं हैं। इनका कहना है कि फारसी-अरबी से आये शब्दों के नीचे बिन्दी लगाये बिना इन शब्दों को अपनी भाषा की प्रकृति के अनुरूप लिखा जाना चाहिए। बँगला और मराठी में भी ऐसा ही होता हैं।

  वर्णों का उच्चारण-स्थान

No.-25. कोई भी वर्ण मुँह के भित्र-भित्र भागों से बोला जाता हैं। इन्हें उच्चारण-स्थान कहते हैं।

दूसरे शब्दों में- भिन्न-भिन्न वर्णों का उच्चारण करते समय मुख के जिस भाग पर विशेष बल पड़ता है, उसे उस वर्ण का उच्चारण-स्थान कहते हैं।

जैसे- च्, छ्, ज् के उच्चारण में तालु पर अधिक बल पड़ता है, अतः ये वर्ण तालव्य कहलाते हैं।

मुख के छह भाग हैं- कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दाँत, ओठ और नाक। हिन्दी के सभी वर्ण इन्हीं से अनुशासित और उच्चरित होते हैं। चूँकि उच्चारणस्थान भित्र हैं, इसलिए वर्णों की निम्नलिखित श्रेणियाँ बन गई हैं-

No.-1. कण्ठ्य- कण्ठ और निचली जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- अ, , कवर्ग, ह और विसर्ग।

No.-2. तालव्य- तालु और जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- इ, , चवर्ग, य और श।

No.-3. मूर्द्धन्य- मूर्द्धा और जीभ के स्पर्शवाले वर्ण- टवर्ग, , ष।

No.-4. दन्त्य- दाँत और जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- तवर्ग, , स।

No.-5. ओष्ठ्य- दोनों ओठों के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- उ, , पवर्ग।

No.-6. कण्ठतालव्य- कण्ठ और तालु में जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- ए, ऐ।

No.-7. कण्ठोष्ठय- कण्ठ द्वारा जीभ और ओठों के कुछ स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- ओ और औ।

No.-8. दन्तोष्ठय- दाँत से जीभ और ओठों के कुछ योग से बोला जानेवाला वर्ण- व।

No.-9. नासिक्य-, , , , म।

अलीजिह्न- ह।

 स्वरवर्णो का उच्चारण

No.-26. '' का उच्चारण- यह कण्ठ्य ध्वनि हैं। इसमें व्यंजन मिला रहता हैं। जैसे- क्+अ=क। जब यह किसी व्यंजन में नहीं रहता, तब उस व्यंजन के नीचे हल् का चिह्न लगा दिया जाता हैं।

हिन्दी के प्रत्येक शब्द के अन्तिम '' लगे वर्ण का उच्चारण हलन्त-सा होता हैं। जैसे- नमक्, रात्, दिन्, मन्, रूप्, पुस्तक्, किस्मत् इत्यादि ।

No.-27. इसके अतिरिक्त, यदि अकारान्त शब्द का अन्तिम वर्ण संयुक्त हो, तो अन्त्य '' का उच्चारण पूरा होता हैं। जैसे- सत्य, ब्रह्म, खण्ड, धर्म इत्यादि।

इतना ही नहीं, यदि इ, ई या ऊ के बाद '' आए, तो अन्त्य '' का उच्चारण पूरा होता हैं। जैसे- प्रिय, आत्मीय, राजसूय आदि।

No.-11. CTET Hindi Grammar

No.-12. PGT TGT PRT Hindi Grammar

No.-13. Hindi Grammar RO ARO Special

No.-14. सामान्य हिंदी By Jagdish Sir

No.-15. Niband By S kumar sir

 No.-28. '' और '' का उच्चारण- '' का उच्चारण कण्ठ और तालु से और '' का उच्चारण कण्ठ और ओठ के स्पर्श से होता हैं। संस्कृत की अपेक्षा हिन्दी में इनका उच्चारण भित्र होता हैं। जहाँ संस्कृत में '' का उच्चारण 'अइ' और '' का उच्चारण 'अउ' की तरह होता हैं, वहाँ हिन्दी में इनका उच्चारण क्रमशः 'अय' और 'अव' के समान होता हैं। अतएव, इन दो स्वरों की ध्वनियाँ संस्कृत से भित्र हैं। जैसे-

संस्कृत में

हिन्दी में

श्अइल- शैल (अइ)

ऐसा- अयसा (अय)

क्अउतुक- कौतुक (अउ)

कौन-क्अवन (अव)

व्यंजनों का उच्चारण

No.-29. '' और '' का उच्चारण- '' का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ हैं, अर्थात दाँत और ओठ के संयोग से '' का उच्चारण होता है और '' का उच्चारण दो ओठों के मेल से होता हैं। हिन्दी में इनके उच्चारण और लिखावट पर पूरा ध्यान नहीं दिया जाता। नतीजा यह होता हैं कि लिखने और बोलने में भद्दी भूलें हो जाया करती हैं। 'वेद' को 'बेद' और 'वायु' को 'बायु' कहना भद्दा लगता हैं।

 No.-30. संस्कृत में '' का प्रयोग बहुत कम होता हैं, हिन्दी में बहुत अधिक। यही कारण है कि संस्कृत के तत्सम शब्दों में प्रयुक्त '' वर्ण को हिन्दी में '' लिख दिया जाता हैं। बात यह है कि हिन्दीभाषी बोलचाल में भी '' और '' का उच्चारण एक ही तरह करते हैं। इसलिए लिखने में भूल हो जाया करती हैं। इसके फलस्वरूप शब्दों का अशुद्ध प्रयोग हो जाता हैं। इससे अर्थ का अनर्थ भी होता हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

 No.-1. वास- रहने का स्थान, निवास। बास- सुगन्ध, गुजर।

No.-2. वंशी- मुरली। बंशी- मछली फँसाने का यन्त्र।

No.-3. वेग- गति। बेग- थैला (अँगरेजी), कपड़ा (अरबी), तुर्की की एक पदवी।

No.-4. वाद- मत। बाद- उपरान्त, पश्रात।

No.-5. वाह्य- वहन करने (ढोय) योग्य। बाह्य- बाहरी।

 No.-31. सामान्यतः हिन्दी की प्रवृत्ति '' लिखने की ओर हैं। यही कारण है कि हिन्दी शब्दकोशों में एक ही शब्द के दोनों रूप दिये गये हैं। बँगला में तो एक ही '' (व) है, '' नहीं। लेकिन, हिन्दी में यह स्थिति नहीं हैं। यहाँ तो 'वहन' और 'बहन' का अन्तर बतलाने के लिए '' और '' के अस्तित्व को बनाये रखने की आवश्यकता हैं।

No.-32. '' और '' का उच्चारण- हिन्दी वर्णमाला के ये दो नये वर्ण हैं, जिनका संस्कृत में अभाव हैं। हिन्दी में '' और '' के नीचे बिन्दु लगाने से इनकी रचना हुई हैं। वास्तव में ये वैदिक वर्णों क और क्ह के विकसित रूप हैं। इनका प्रयोग शब्द के मध्य या अन्त में होता हैं। इनका उच्चारण करते समय जीभ झटके से ऊपर जाती है, इन्हें उश्रिप्प (ऊपर फेंका हुआ) व्यंजन कहते हैं।

जैसे- सड़क, हाड़, गाड़ी, पकड़ना, चढ़ाना, गढ़।

श-ष-स का उच्चारण- ये तीनों उष्म व्यंजन हैं, क्योंकि इन्हें बोलने से साँस की ऊष्मा चलती हैं। ये संघर्षी व्यंजन हैं।

'' के उच्चारण में जिह्ना तालु को स्पर्श करती है और हवा दोनों बगलों में स्पर्श करती हुई निकल जाती है, पर '' के उच्चारण में जिह्ना मूर्द्धा को स्पर्श करती हैं। अतएव '' तालव्य वर्ण है और '' मूर्धन्य वर्ण। हिन्दी में अब '' का उच्चारण '' के समान होता हैं। '' वर्ण उच्चारण में नहीं है, पर लेखन में हैं। सामान्य रूप से '' का प्रयोग तत्सम शब्दों में होता है; जैसे- अनुष्ठान, विषाद, निष्ठा, विषम, कषाय इत्यादि।

No.-33. '' और '' के उच्चारण में भेद स्पष्ट हैं। जहाँ '' के उच्चारण में जिह्ना तालु को स्पर्श करती है, वहाँ '' के उच्चारण में जिह्ना दाँत को स्पर्श करती है। '' वर्ण सामान्यतया संस्कृत, फारसी, अरबी और अँगरेजी के शब्दों में पाया जाता है; जैसे- पशु, अंश, शराब, शीशा, लाश, स्टेशन, कमीशन इत्यादि। हिन्दी की बोलियों में श, ष का स्थान '' ने ले लिया है। '' और '' के अशुद्ध उच्चारण से गलत शब्द बन जाते है और उनका अर्थ ही बदल जाता है। अर्थ और उच्चारण के अन्तर को दिखलानेवाले कुछ उदाहरण इस प्रकार है-

 No.-34. अंश (भाग)- अंस (कन्धा) । शकल (खण्ड)- सकल (सारा) । शर (बाण)- सर (तालाब) । शंकर (महादेव)- संकर (मिश्रित) । श्र्व (कुत्ता)- स्व (अपना) । शान्त (धैर्ययुक्त)- सान्त (अन्तसहित)।

'' और '' का उच्चारण- इसका उच्चारण शब्द के आरम्भ में, द्वित्व में और हस्व स्वर के बाद अनुनासिक व्यंजन के संयोग से होता है।

No.-16. सामान्य हिंदी By सबधाणी

No.-17. Complete Hindi Grammar

No.-18. Hindi Grammar By Diwakar Gupta

No.-19. Haldighati Hindi Grammer

No.-20. Hindi Grammar handwritten Part 1

जैसे- डाका, डमरू, ढाका, ढकना, ढोल- शब्द के आरम्भ में।

गड्ढा, खड्ढा- द्वित्व में।

डंड, पिंड, चंडू, मंडप- हस्व स्वर के पश्रात, अनुनासिक व्यंजन के संयोग पर।

प्रयत्न

No.-35. वर्णों का उच्चारण करते समय विभिन्न उच्चारण-अव्यय किस स्थिति और गति में हैं, इसका अध्ययन 'प्रयत्न' के अंतर्गत किया जाता है। प्रयत्न के आधार पर हिन्दी वर्णों का वर्गीकरण प्रायः निम्नलिखित रूप में किया गया है।

स्वर:-

No.-1 जिह्रा का कौन-सा अंश उच्चारण में उठता है, इस आधार पर स्वरों के भेद निम्नलिखित हैं-

अग्र : इ, , ,

मध्य : अ

पश्च : आ, , , ,

No.-2. होठों की स्थिति गोलाकार होती है या नहीं, इस आधार पर स्वरों के भेद निम्नलिखित हैं-

वृत्तमुखी : उ, , ,

अवृत्तमुखी : अ, , , , ,

  व्यंजन:-

No-36. प्रयत्न के आधार पर हिन्दी व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है-

No.-1. स्पर्शी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफ़ड़ों से आई वायु किसी अवयव को स्पर्श करके निकले, उन्हें स्पर्शी कहते हैं।

, , , , , , , , , , , , , , , भ स्पर्शी व्यंजन हैं।

No.-2. संघर्षी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु संघर्षपूर्वक निकले, उन्हें संघर्षी कहते हैं।

, , , ह आदि व्यंजन संघर्षी हैं।

No.-3. स्पर्श-संघर्षी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्षाकृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग संघर्षी हो जाता है, वे स्पर्श संघर्षी कहलाते हैं।

, , , झ स्पर्श-संघर्षी व्यंजन हैं।

No.-4. नासिक्य : जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु मुख्यतः नाक से निकले, उन्हें नासिक्य कहते हैं।

, , , , म व्यंजन नासिक्य हैं।

No.-5. पार्श्विक : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ तालु को छुए किन्तु पार्श्व (बगल) में से हवा निकल जाए, उन्हें पार्श्विक व्यंजन कहते हैं।

दूसरे शब्दों में- जिनके उच्चारण में जिह्वा का अगला भाग मसूड़े को छूता है और वायु पाश्र्व आस पास से निकल जाती है, वे पार्श्विक कहलाते हैं। हिन्दी में केवल '' व्यंजन पार्श्विक है।

No-6. प्रकंपी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कंपन करना पड़ता है, वे प्रकंपी कहलाते हैं।

हिन्दी में '' व्यंजन प्रकंपी है।

No.-7. उत्क्षिप्त : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ के अगले भाग को थोड़ा ऊपर उठाकर झटके से नीचे फेंकते हैं, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते हैं।

, , व्यंजन उत्क्षिप्त हैं।

No.-8.  संघर्षहीन या अर्ध-स्वर : जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा बिना किसी संघर्ष के बाहर निकल जाती है वे संघर्षहीन ध्वनियाँ कहलाती हैं।

, व व्यंजन संघर्षहीन या अर्ध-स्वर हैं।

No.-21. Hindi Grammar handwritten Part 2

No.-22. Hindi Grammar handwritten Part 4

No.-23. Hindi Grammar handwritten Part 5

No.-24. Hindi Grammar handwritten Part 6

No.-25. Hindi Grammar handwritten Part 7

 अक्षर

No.-37. सामान्यतः 'अक्षर' शब्द का प्रयोग स्वरों और व्यंजनों के लिपि-चिह्नों के लिए होता है। जैसे- उसके अक्षर बहुत सुन्दर हैं। व्याकरण में ध्वनि की उस छोटी-से-छोटी इकाई को अक्षर कहते हैं जिसका उच्चारण एक झटके से होता है। अक्षर में व्यंजन एकाधिक हो सकते हैं किन्तु स्वर प्रायः एक ही होता है। हिन्दी में एक अक्षर वाले शब्द भी हैं और अनेक अक्षरों वाले भी। उदाहरण देखिए-

 , खा, जो, तो (एक अक्षर वाले शब्द)

मित्र, गति, काला, मान (दो अक्षरों वाले शब्द)

कविता, बिजली, कमान (तीन अक्षरों वाले शब्द)

अजगर, पकवान, समवेत (चार अक्षरों वाले शब्द)

मनमोहन, जगमगाना (पाँच अक्षरों वाले शब्द)

छः या उससे अधिक अक्षरों वाले शब्दों का प्रयोग बहुत कम होता है।

 बलाघात

No.-38. शब्द का उच्चारण करते समय किसी एक अक्षर पर दूसरे अक्षरों की तुलना में कुछ अधिक बल दिया जाता है। जैसे- 'जगत' में ज और त की तुलना में '' पर अधिक बल है। इसी प्रकार 'समान' में 'मा' पर अधिक बल है। इसे बलाघात कहा जाता है।

 No.-39. शब्द में बलाघात का अर्थ पर प्रभाव नहीं पड़ता। वाक्य में बलाघात से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। उदाहरण के लिए एक वाक्य देखिए-

 राम मोहन के साथ मुम्बई जाएगा।

इस वाक्य में भिन्न-भिन्न शब्दों पर बलाघात से निकलने वाला अर्थ कोष्ठक में दिया गया है-

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (राम जाएगा, कोई और नहीं)

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (सोहन के साथ जाएगा किसी और के साथ नहीं)

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (मुम्बई जाएगा, कहीं और नहीं)

राम सोहन के साथ मुम्बई जाएगा। (निश्चय ही जाएगा)

यह अर्थ केवल उच्चारण की दृष्टि से है, लिखने में यह अंतर लक्षित नहीं हो सकता।

 बलाघात दो प्रकार का होता है

No.-1. शब्द बलाघात

No.-2. वाक्य बलाघात।

No.-1. शब्द बलाघातप्रत्येक शब्द का उच्चारण करते समय किसी एक अक्षर पर अधिक बल दिया जाता है।

जैसेगिरा मेँ रापर।

हिन्दी भाषा में किसी भी अक्षर पर यदि बल दिया जाए तो इससे अर्थ भेद नहीं होता तथा अर्थ अपने मूल रूप जैसा बना रहता है।

No.-2. वाक्य बलाघातहिन्दी में वाक्य बलाघात सार्थक है। एक ही वाक्य मेँ शब्द विशेष पर बल देने से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। जिस शब्द पर बल दिया जाता है वह शब्द विशेषण शब्दों के समान दूसरों का निवारण करता है। जैसे– 'रोहित ने बाजार से आकर खाना खाया।'

उपर्युक्त वाक्य मेँ जिस शब्द पर भी जोर दिया जाएगा, उसी प्रकार का अर्थ निकलेगा। जैसे– 'रोहितशब्द पर जोर देते ही अर्थ निकलता है कि रोहित ने ही बाजार से आकर खाना खाया। 'बाजार' पर जोर देने से अर्थ निकलता है कि रोहित ने बाजार से ही वापस आकर खाना खाया। इसी प्रकार प्रत्येक शब्द पर बल देने से उसका अलग अर्थ निकल आता है। शब्द विशेष के बलाघात से वाक्य के अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। शब्द बलाघात का स्थान निश्चित है किन्तु वाक्य बलाघात का स्थान वक्ता पर निर्भर करता है, वह अपनी जिस बात पर बल देना चाहता है, उसे उसी रूप मेँ प्रस्तुत कर सकता है।

 अनुतान

No.-40. जब हम किसी ध्वनि का उच्चारण करते हैं तो उसका एक 'सुर' होता है। जब एकाधिक ध्वनियों से बने शब्द, वाक्यांश या वाक्य का प्रयोग करते हैं तो सुर के उतार-चढ़ाव से एक सुरलहर बन जाती है। इसे अनुतान कहते हैं। एक ही शब्द को विभिन्न अनुतानों में उच्चरित करने से उसका अर्थ बदल जाता है। उदाहरण के लिए 'सुनो' शब्द लें। विभिन्न अनुतानों में इसका अर्थ अलग-अलग होगा।

 No.-41. सामान्य कथन (नेताजी का भाषण ध्यान से सुनो।)

आग्रह या मनुहार के अर्थ में (मेरी बात तो सुनो!)

क्रोध के अर्थ में (अपनी ही हाँके जाते हो, कुछ दूसरों की भी सुनो।)

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