No.-1. जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक आदि के कारण कोई परिवर्तन नही होता है उन्हें अव्यय (अ + व्यय) या अविकारी शब्द कहते है ।
इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'अव्यय' ऐसे
शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक
इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पत्र नही होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप
में बने रहते है। चूँकि अव्यय का रूपान्तर नहीं होता, इसलिए
ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होता, अतः ये अव्यय हैं।
जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य, अर्थात इत्यादि।
No.-11. CTET
Hindi Grammar
No.-12. PGT
TGT PRT Hindi Grammar
No.-13. Hindi
Grammar RO ARO Special
No.-14. सामान्य हिंदी By
Jagdish Sir
No.-15. Niband
By S kumar sir
No.-16. सामान्य हिंदी By
सबधाणी
अव्यय और क्रियाविशेषण
No.-2.
पण्डित किशोरीदास बाजपेयी के मतानुसार, अँगरेजी
के आधार पर सभी अव्ययों को क्रियाविशेषण मान लेना उचित नही; क्योंकि
कुछ अव्यय ऐसे हैं, जिनसे क्रिया की विशेषता लक्षित नहीं होती।
जैसे- जब मैं भोजन करता हूँ, तब वह पढ़ने जाता हैं। इस वाक्य में 'जब' और 'तब' अव्यय
क्रिया की विशेषता नहीं बताते। अतः, इन्हें क्रियाविशेषण नहीं माना जा सकता।
निम्नलिखित अव्यय क्रिया की विशेषता नहीं बताते-
No.-1. कालवाचक
अव्यय- इनमें समय का बोध होता है। जैसे- आज, कल, तुरन्त, पीछे, पहले, अब, जब, तब, कभी-कभी, कब, अब
से, नित्य, जब से, सदा से,
अभी, तभी, आजकल और कभी। उदाहरणार्थ-
No.-1.
अब से ऐसी बात नहीं होगी।
No.-2.
ऐसी बात सदा से होती रही है।
No.-3.
वह कब आया, मुझे
पता नहीं।
No.-2. स्थानवाचक अव्यय- इससे स्थान का बोध होता है। जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, यहाँ
से, वहाँ से,
इधर-उधर। उदाहरणार्थ-
No.-1.
वह यहाँ नहीं है।
No.-2.
वह कहाँ जायेगा ?
No.-3.
वहाँ कोई नहीं है।
No.-4.
जहाँ तुम हो, वहाँ
मैं हूँ।
No.-3. दिशावाचक अव्यय- इससे दिशा का बोध होता है। जैसे- इधर, उधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आरपार।
No.-4. स्थितिवाचक अव्यय- नीचे, ऊपर तले, सामने, बाहर, भीतर इत्यादि।
अव्यय के भेद
No.-3.
अव्यय निम्नलिखित चार प्रकार के होते
है -
No.-1. क्रियाविशेषण (Adverb)
No.-2. संबंधबोधक (Preposition)
No.-3. समुच्चयबोधक (Conjunction)
No.-4. विस्मयादिबोधक (Interjection)
No.-1. क्रियाविशेषण :- जिन शब्दों से क्रिया, विशेषण
या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट हो,
उन्हें 'क्रियाविशेषण' कहते
है।
दूसरे शब्दो में- जो शब्द क्रिया की विशेषता
बतलाते है, उन्हें क्रिया विशेषण कहा जाता है।
जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम
वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है।
इन वाक्यों में 'धीरे-धीरे', 'वहाँ' और 'अभी' राम
के 'टहलने'
(क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये
क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्रियाविशेषण
दूसरे क्रियाविशेषण की भी विशेषता बताता हैं।
वह बहुत धीरे चलता है। इस वाक्य में 'बहुत' क्रियाविशेषण है; क्योंकि यह दूसरे क्रियाविशेषण 'धीरे' की विशेषता बतलाता है।
क्रिया विशेषण के प्रकार
No.-1. प्रयोग के अनुसार-
No.-1. साधारण
No.-2. संयोजक
No.-3. अनुबद्ध
No.-2. रूप के अनुसार-
No.-1. मूल
क्रियाविशेषण
No.-2. यौगिक
क्रियाविशेषण
No.-3. स्थानीय
क्रियाविशेषण
No.-3. अर्थ के अनुसार-
No.-1. परिमाणवाचक
No.-2. रीतिवाचक
प्रयोग के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद हैं-
No.-1. साधारण क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में
स्वतन्त्र होता हैं, उन्हें 'साधारण क्रियाविशेषण' कहा
जाता हैं।
जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ? बेटा, जल्दी
आओ। अरे ! साँप कहाँ गया ?
No.-2. संयोजक क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों का सम्बन्ध किसी उपवाक्य
से रहता है, उन्हें '
संयोजक क्रियाविशेषण' कहा
जाता हैं।
जैसे- जब रोहिताश्र्व ही नहीं, तो
मैं ही जीकर क्या करूँगी ! जहाँ अभी समुद्र हैं, वहाँ किसी समय जंगल था।
No.-3. अनुबद्ध क्रियाविशेषण- जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण
(निश्र्चय) के लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता हो, उन्हें 'अनुबद्ध क्रियाविशेषण' कहा
जाता है।
जैसे- यह तो किसी ने धोखा ही दिया है।
मैंने उसे देखा तक नहीं।
No.-2. रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद
संधि की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
अव्यय की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
काल की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
विशेषण की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद हैं-
No.-1. मूल क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण, जो
किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, 'मूल क्रियाविशेषण' कहलाते
हैं।
जैसे- ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं।
No.-2. यौगिक क्रियाविशेषण- ऐसे क्रियाविशेषण, जो
किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं, 'यौगिक
क्रियाविशेषण' कहलाते हैं।
जैसे- मन से, जिससे, चुपके
से, भूल से,
देखते हुए, यहाँ
तक, झट से, वहाँ पर। यौगिक क्रियाविशेषण संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, धातु
और अव्यय के मेल से बनते हैं।
यौगिक क्रियाविशेषण नीचे लिखे शब्दों
के मेल से बनते हैं-
No.-1. संज्ञाओं की द्विरुक्ति से- घर-घर, घड़ी-घड़ी, बीच-बीच, हाथों-हाथ।
No.-2. दो भित्र संज्ञाओं के मेल से- दिन-रात, साँझ-सबेरे, घर-बाहर, देश-विदेश।
No.-3. विशेषणों की द्विरुक्ति से- एक-एक, ठीक-ठीक, साफ-साफ।
No.-4. क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति से- धीरे-धीरे, जहाँ-तहाँ, कब-कब, कहाँ-कहाँ।
No.-5. दो क्रियाविशेषणों के मेल से- जहाँ-तहाँ, जहाँ-कहीं, जब-तब, जब-कभी, कल-परसों, आस-पास।
No.-6. दो भित्र या समान क्रियाविशेषणों के बीच 'न' लगाने
से- कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ।
No.-7. अनुकरण वाचक शब्दों की द्विरुक्ति से- पटपट, तड़तड़, सटासट, धड़ाधड़।
No.-8. संज्ञा और विशेषण के योग से- एक साथ, एक
बार, दो बार।
No.-9. अव्य य और दूसरे शब्दों के मेल से- प्रतिदिन, यथाक्रम, अनजाने, आजन्म।
No.-10. पूर्वकालिक कृदन्त और विशेषण के मेल से-
विशेषकर, बहुतकर,
मुख़्यकर, एक-एककर।
जैसे- वह अपना सिर पढ़ेगा।
वह दौड़कर चलते हैं।
No.-3. 'अर्थ' के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद
अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के नौ भेद हैं-
No.-1. कालवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Time)
No.-2.स्थानवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Place)
No.-3. दिशावाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Direction)
No.-4.परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Quantity)
No.-5. रीतिवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Manner)
No.-6. निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Definiteness)
No.-7. अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Indefiniteness)
No.-8.निषेधवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Negation)
No.-9.कारणवाचक क्रिया-विशेषण (Adverb of Cause)
No.-1. कालवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के समय से सम्बद्ध विशेषता
बताएँ, उन्हें कालवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
जैसे- वह तुरन्त चला गया।
मैं वहाँ कभी-कभी जाता हूँ।
उक्त वाक्यों में 'तुरन्त' और 'कभी-कभी' शब्द
कालवाचक क्रिया-विशेषण हैं, क्योंकि ये क्रमशः 'चला
गया' तथा 'जाता हूँ'
क्रियाओं की समय-संबंधी विशेषता बताते हैं।
कुछ अन्य कालवाचक क्रिया-विशेषण शब्द-
अभी-अभी, आज, कल, परसों, प्रतिदिन,
अब,
जब,
कब,
तब,
लगातार, बार-बार, पहले, बाद में, निरन्तर, नित्य, दोपहर, सायं आदि।
No.-2. स्थानवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के स्थान से सम्बद्ध विशेषता
बताते हैं, उन्हें स्थानवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
जैसे- कृपया ऊपर चले जाइए।
रोहित यहाँ नहीं रहता।
उपर्युक्त वाक्यों में 'ऊपर' और 'यहाँ' शब्द
स्थानवाचक क्रिया-विशेषण हैं, क्योंकि वे 'चले जाइए' और 'रहता' क्रियाओं
की स्थान-संबंधी विशेषता बताते हैं।
कुछ अन्य स्थानवाचक क्रिया-विशेषण
शब्द- वहाँ, कहाँ, पास, दूर, अन्यत्र,
आसपास आदि।
No.-3. दिशावाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया की दिशा से सम्बद्ध विशेषता
बताएँ, उन्हें दिशावाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
जैसे- मेरी ओर देखो।
वह उधर मुड़ गया।
इन वाक्यों में 'ओर' तथा
'उधर' दिशावाचक
क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'देखो' और 'मुड़ गया'
क्रियाओं की दिशा-संबंधी विशेषता बताते
हैं।
कुछ अन्य दिशावाचक क्रिया-विशेषण- इधर, जिधर, किधर, सामने
आदि।
No.-4. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण- जो शब्द क्रिया के परिमाण (मात्रा) से
सम्बद्ध विशेषता प्रकट करें, उन्हें 'परिमाणवाचक क्रियाविशेषण' कहते
है।
जैसे- वह कम बोलता है।
बहुत अधिक खाओगे, तो
बीमार पड़ जाओगे।
यहाँ 'कम'
और 'अधिक' शब्द परिमाणबोधक क्रिया-विशेषण हैं जो 'बोलता' और 'खाओगे' क्रियाओं
की परिमाण या मात्रा संबंधी विशेषता बताते हैं।
कुछ अन्य परिमाणबोधक क्रिया-विशेषण
शब्द- थोड़ा, पर्याप्त,
जरा, खूब, अत्यन्त, तनिक, बिलकुल, स्वल्प, केवल, सर्वथा, अल्प आदि।
यह भी कई प्रकार का हैं-
No.-1. अधिकताबोधक- बहुत, अति, बड़ा, बिलकुल, सर्वथा, खूब, निपट, अत्यन्त, अतिशय।
No.-2. न्यूनताबोधक- कुछ, लगभग, थोड़ा, टुक, प्रायः, जरा, किंचित्।
No.-3. पर्याप्तिवाचक- केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु।
No.-4. तुलनावाचक- अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर।
No.-5. श्रेणिवाचक- थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम
से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एककर, यथाक्रम।
जैसे- सुनील मधुर बोलता है।
हरिण तेज दौड़ता है।
उपर्युक्त वाक्यों में 'मधुर' तथा
'तेज' शब्द
रीतिवाचक क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि ये क्रमशः 'बोलता' तथा 'दौड़ता' क्रियाओं की रीति या ढंग संबंधी
विशेषता बतलाते हैं।
कुछ अन्य रीतिवाचक क्रिया-विशेषण शब्द-
धीरे, जल्दी, ऐसे, वैसे, कैसे, ध्यानपूर्वक, सुखपूर्वक, शांतिपूर्वक
आदि।
इस क्रियाविशेषण की संख्या गुणवाचक
विशेषण की तरह बहुत अधिक है। ऐसे क्रियाविशेषण प्रायः निम्नलिखित अर्थों में आते
हैं-
No.-1. प्रकार- ऐसे, वैसे, कैसे, मानो, धीरे, अचानक, स्वयं, स्वतः, परस्पर, यथाशक्ति, प्रत्युत, फटाफट।
No.-2. निश्र्चय- अवश्य, सही, सचमुच, निःसन्देह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, यथार्थ
में, वस्तुतः,
दरअसल।
No.-3. अनिश्र्चय- कदाचित्, शायद, बहुतकर, यथासम्भव।
No.-4. स्वीकार- हाँ, जी,
ठीक, सच।
No.-5. कारण- इसलिए, क्यों, काहे को।
No.-6. निषेध- न,
नहीं, मत।
No.-7. अवधारण- तो, ही,
भी,
मात्र, भर,
तक,
सा।
No.-6. निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया में निश्चय संबंधी विशेषता को
प्रकट करें, उन्हें निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
जैसे- मैं वहाँ अवश्य जाऊँगा।
वह निःसंदेह सफल होगा।
इन वाक्यों में 'अवश्य' और 'निःसंदेह' निश्चयवाचक
क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'जाऊँगा'
और 'सफल होगा' क्रियाओं
के संबंध में निश्चय का बोध कराते हैं।
कुछ अन्य निश्चयवाचक क्रिया-विशेषण-
अलबत्ता, जरूर, बेशक आदि।
No.-7. अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण- जो क्रिया विशेषण शब्द क्रिया में अनिश्चय
संबंधी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
जैसे- वह शायद चला जाए।
राम संभवतः न पहुँच पाए।
इन वाक्यों में 'शायद' और 'संभवतः' अनिश्चयवाचक
क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'चला जाए'
और 'पहुँच पाए' क्रियाओं
में अनिश्चय का बोध कराते हैं।
कुछ अन्य अनिश्चयवाचक क्रिया-विशेषण-
कदाचित्, संभव है,
मुमकिन है आदि।
No.-8. निषेधवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के करने या होने का निषेध
प्रकट करें, उन्हें निषेधवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
जैसे- यहाँ मत बैठो।
मैं कुछ नहीं कहूँगा।
इन वाक्यों में 'मत' और 'नहीं' निषेधवाचक
क्रिया-विशेषण हैं क्योंकि वे क्रमशः 'बैठो' और 'कहूँगा'
क्रियाओं के निषेध का बोध कराते हैं।
कुछ अन्य निषेधवाचक क्रिया-विशेषण न, ना।
No.-9. कारणवाचक क्रिया-विशेषण- जो शब्द क्रिया के होने या करने का कारण
बताएँ, उन्हें कारणवाचक क्रिया-विशेषण कहते हैं।
जैसे- दुर्बलता के कारण वह चल नहीं
सकता।
ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी, इसलिए
वह सो गया।
इन वाक्यों में 'कारण' और 'इसलिए' क्रमशः
'न
चल सकने' और 'सोने' का कारण बताते हैं।
कुछ अन्य कारणवाचक क्रिया-विशेषण- के
मारे, अतः, अतएव, उद्देश्य से, किसलिए आदि।
कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अन्तर
No.-1. अब-अभी 'अब' में वर्तमान समय का अनिश्र्चय है और 'अभी' का
अर्थ तुरन्त से है; जैसे-
अब- अब आप जा सकते हैं।
अब आप क्या करेंगे ?
अभी- अभी-अभी आया हूँ।
अभी पाँच बजे हैं।
No.-2. तब-फिर- अन्तर यह है कि 'तब' बीते
हुए हमय का बोधक है और 'फिर' भविष्य की ओर संकेत करता है। जैसे-
तब- तब उसने कहा।
तब की बात कुछ और थी।
फिर- फिर आप भी क्या कहेंगे।
फिर ऐसा होगा।
'तब' का अर्थ 'उस समय'
है और 'फिर' का अर्थ 'दुबारा' है।
'केवल' सदा उस शब्द के पहले आता है, जिसपर
जोर देना होता है; लेकिन 'मात्र'
'ही',
उस शब्द के बाद आता है।
No.-3. कहाँ-कहीं- 'कहाँ' किसी निश्र्चित स्थान का बोधक है और 'कही' किसी
अनिश्र्चित स्थान का परिचायक। कभी-कभी 'कही' निषेध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है; जैसे-
कहाँ- वह कहाँ गया ?
मैं कहाँ आ गया ?
कहाँ राजा भोज, कहाँ
गंगू तेली!
कहीं- वह कहीं भी जा सकता है।
अन्य अर्थों में भी 'कही' का प्रयोग होता है-
No.-1. बहुत अधिक- यह पुस्तक उससे कहीं अच्छी है।
No.-2.
कदाचित्- कहीं बाघ न आ जाय।
No.-3. विरोध- राम की माया, कहीं
धूप कहीं छाया।
No.-4. न-नहीं-मत- इनका प्रयोग निषेध के अर्थ में होता
है। 'न' से साधारण-निषेध और 'नहीं' से
निषेध का निश्र्चय सूचित होता है। 'न' की अपेक्षा 'नहीं' अधिक जोरदार है। 'मत' का
प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे-
'न'- इनके विभित्र प्रयोग इस प्रकार हैं-
No.-1. क्या तुम न आओगे ?
No.-2.तुम न करोगे, तो वह कर देगा।
No.-3. 'न' तुम सोओगे,
न वह।
No.-4. जाओ न,
रुक क्यों गये ?
नहीं- No.-1. तुम नहीं जा सकते।
No.-2. मैं नहीं जाऊँगा।
No.-3. मैं काम नहीं करता।
No.-4. मैंने पत्र नहीं लिखा।
मत- No.-1. भीतर मत जाओ।
No.-2. तुम यह काम मत करो।
No.-3. तुम मत गाओ।
No.-5. ही-भी-
बात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है। अन्तर यह है कि 'ही' का
अर्थ एकमात्र और 'भी' का अर्थ 'अतिरिक्त'
सूचित करता है। जैसे-
भी- इस काम को तुम भी कर सकते हो।
ही- यह काम तुम ही कर सकते हो।
No.-6. केवल-मात्र- 'केवल' अकेला का अर्थ और 'मात्र' सम्पूर्णता
का अर्थ सूचित करता है; जैसे-
केवल- आज हम केवल दूध पीकर रहेंगे। यह
काम केवल वह कर सकता है।
मात्र- मुझे पाँच रूपये मात्र मिले।
No.-7. भला-अच्छा- 'भला' अधिकतर विशेषण के रूप में प्रयुक्त
होता है, पर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता है; जैसे-
भला का भला फल मिलता है।
'अच्छा' स्वीकृतिमूलक अव्यय है। यह कभी अवधारण के लिए
और कभी विस्मयबोधक के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे-
अच्छा, कल चला जाऊँगा।
अच्छा, आप आ गये !
No.-8. प्रायः-बहुधा- दोनों का अर्थ 'अधिकतर' है, किन्तु
'प्रायः' से 'बहुधा
की मात्रा अधिक होती है।
प्रायः- बच्चे प्रायः खिलाड़ी होते हैं।
बहुधा- बच्चे बहुधा हठी होते हैं।
कारक की परिभाषा, भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
संधि विच्छेद की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
लिंग की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
उपसर्ग की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
No.-9. बाद-पीछे- 'बाद' काल का और 'पीछे' समय का सूचक है। जैसे-
बाद- वह एक सप्ताह बाद आया।
पीछे- वह पढ़ने में मुझसे पीछे है।
No.-2. सम्बन्धबोधक अव्यय :- जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम
के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक
अव्यय' कहलाते ।
दूसरे शब्दों में- जो अव्यय किसी
संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाते है, उसे
'सम्बन्धबोधक
अव्यय' कहते हैं।
यदि यह संज्ञा न हो, तो
वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलायेगा।
जैसे- दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे
आदि।
उदाहरण- वृक्ष के 'ऊपर' पक्षी
बैठे है।
धन के 'बिना' कोई काम नही होता।
मकान के 'पीछे' गली
है।
उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द
'वृक्ष
और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है।
दूसरे वाक्य में 'बिना' शब्द
'धन' और 'काम' में
सम्बन्ध दर्शता है।
तीसरे वाक्य में 'पीछे' शब्द
'मकान' और 'गली' में
सम्बन्ध दर्शाता है।
अतः 'ऊपर' 'बिना' 'पीछे' शब्द सम्बन्धबोधक है।
विशेष- यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी
चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध न
जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस
प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-
सम्बन्धबोधक |
क्रिया-विशेषण |
दुकान 'पर' ग्राहक खड़ा है। |
दुकान 'पर' खड़ा है। |
मेज के 'ऊपर' किताबें है। |
मेज के 'ऊपर' है। |
सम्बन्धबोधक के भेद
प्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार
सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है ।
No.-1. प्रयोग के अनुसार-
No.-1. सम्बद्ध
No.-2. अनुबद्ध
No.-1. कालवाचक
No.-2. स्थानवाचक
No.-3. दिशावाचक
No.-4. साधनवाचक
No.-5. हेतुवाचक
No.-6. विषयवाचक
No.-7. व्यतिरेकवाचक
No.-8. विनिमयवाचक
No.-9. सादृश्यवाचक
No.-10. विरोधवाचक
No.-11. सहचरवाचक
No.-12. संग्रहवाचक
No.-13. तुलनावाचक
No.-3. व्युत्पत्ति के अनुसार-
No.-1. मूल
सम्बन्धबोधक
No.-2. यौगिक
सम्बन्धबोधक
प्रयोग के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
No.-1. सम्बद्ध सम्बन्धबोधक - ऐसे सम्बन्धबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों
के पीछे आते हैं। जैसे- धन के बिना, नर की नाई।
No.-2. अनुबद्ध सम्बन्धबोधक- ऐसे सम्बन्धबोधकअव्यय संज्ञा के विकृत रूप के
बाद आते हैं। जैसे- किनारे तक, सखियों सहित, कटोरे भर , पुत्रों
समेत।
अर्थ के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
No.-1. कालवाचक- आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अनन्तर, पश्र्चात्, उपरान्त, लगभग।
No.-2. स्थानवाचक- आगे, पीछे, नीचे, तले, सामने, पास, निकट, भीतर, समीप, नजदीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर।
No.-3. दिशावाचक- ओर, तरफ, पार, आरपार, आसपास, प्रति।
No.-4. साधनवाचक- द्वारा, जरिए, हाथ, मारफत, बल, कर, जबानी, सहारे।
No.-5. हेतुवाचक- लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, मारे, चलते।
No.-6. विषयवाचक- बाबत, निस्बत, विषय, नाम, लेखे, जान, भरोसे।
No.-7. व्यतिरेकवाचक- सिवा, अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित।
No.-8. विनिमयवाचक- पलटे, बदले, जगह, एवज।
No.-9. सादृश्यवाचक- समान, तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखादेखी, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक।
No.-10. विरोधवाचक- विरुद्ध, खिलाप, उलटे, विपरीत।
No.-11. सहचरवाचक- संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश।
No.-12. संग्रहवाचक- तक, लौं, पर्यन्त, भर,
मात्र।
No.-13. तुलनावाचक-
अपेक्षा, बनिस्बत,
आगे, सामने।
व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद
No.-1. मूल सम्बन्धबोधक- बिना, पर्यन्त, नाई, पूर्वक
इत्यादि।
No.-2.यौगिक सम्बन्धबोधक- संज्ञा से- पलटे, लेखे, अपेक्षा, मारफत।
विशेषण से- तुल्य, समान, उलटा, ऐसा, योग्य।
क्रियाविशेषण से- ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, परे, पीछे।
क्रिया से- लिए, मारे, चलते, कर, जाने।
क्रिया-विशेषण और सम्बन्धबोधक में अंतर
No.-4.
अनेक शब्द क्रिया-विशेषण भी हैं तथा
सम्बन्धबोधक भी। प्रयोग में जब ये क्रिया की विशेषता प्रकट करें, तब
क्रिया-विशेषण कहलाते हैं तथा जब संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ आकर उनका वाक्य के
शेष शब्दों के साथ संबंध बताएँ तब सम्बन्धबोधक।
जैसे-
आप पीछे चलिए। (क्रिया-विशेषण)
आप उसके पीछे चलिए। (सम्बन्धबोधक)
No.-3. समुच्चयबोधक अव्यय :-- जो अविकारी शब्द दो शब्दों, वाक्यों
या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते है, उन्हें समुच्चयबोधक कहते है।
दूसरे शब्दों में- ऐसा पद (अव्यय) जो
क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर एक वाक्य या पद का सम्बन्ध दूसरे वाक्य या पद
से जोड़ता है, 'समुच्चयबोधक' कहलाता है।
सरल शब्दो में- दो वाक्यों को परस्पर
जोड़ने वाले शब्द समुच्चयबोधक अव्यय कहे जाते है।
जैसे- यद्यपि, चूँकि, परन्तु, और
किन्तु आदि।
उदाहरण- आँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ 'और' अव्यय
समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- 'आँधी
आयी', 'पानी बरसा'-
को जोड़ता है।
समुच्चयबोधक अव्यय पूर्ववाक्य का
सम्बन्ध उत्तरवाक्य से जोड़ता है।
इसी तरह समुच्चयबोधक अव्यय दो पदों को
भी जोड़ता है। जैसे- दो और दो चार होते हैं।
राम 'और'
लक्ष्मण दोनों भाई थे।
मोहन ने बहुत परिश्रम किया परन्तु 'सफल' न
सका।
उपयुक्त पहले वाक्य में 'और' शब्दों
को जोड़ रहा है तथा दूसरे वाक्य में 'परन्तु'
दो वाक्यांशों को जोड़ रहा है। अतः ये
दोनों शब्द समुच्चयबोधक है।
समुच्चयबोधक के भेद
No.-5.
समुच्चयबोधक के दो मुख्य भेद हैं-
No.-1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक (Co-ordinative Conjunction)
No.-2. व्यधिकरण
समुच्चयबोधक (Subordinative Conjunction)
No.-1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक- जिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े
जाते है, उन्हें 'समानाधिकरण समुच्चयबोधक' कहते
है।
दूसरे शब्दों में- समान स्थिति वाले दो
या दो से अधिक शब्दों, पदबंधों या उपवाक्यों को जोड़ने वाले शब्दों को
समानाधिकरण समुच्चयबोधक कहते हैं।
इसके चार उपभेद हैं-
No.-1. संयोजक- जो शब्द, शब्दों या वाक्यों को जोड़ने का काम
करते है, उन्हें संयोजक कहते है।
दूसरे शब्दों में- दो शब्दों, पदबंधों
या उपवाक्यों को आपस में जोड़ने वाले अव्यय को संयोजक कहते हैं।
जैसे- जोकि, कि, तथा, व, एवं, और
आदि।
उदाहरण- मैंने उसका तथा उसके भाई का
संदेश दे दिया था।
सीता और गीता चली गई।
No.-2. विभाजक- जो शब्द, विभिन्नता प्रकट करने के लिए प्रयुक्त होते
है, उन्हें विभाजक कहते है।
दूसरे शब्दों में- दो या दो से अधिक
बातों में से एक की स्वीकृति अथवा दोनों की अस्वीकृति बताने वाले अव्यय को विभाजक
कहते हैं।
जैसे- या, वा, अथवा, किंवा, कि, चाहे, न....
न, न
कि, नहीं तो,
ताकि, मगर, तथापि, किन्तु, लेकिन आदि।
उदाहरण- कॉपी मिल गयी किन्तु किताब नही
मिली।
No.-3. विकल्पसूचक- जो शब्द विकल्प का ज्ञान करायें, उन्हें
'विकल्पसूचक' शब्द
कहते है।
जैसे- तो, न, अथवा, या
आदि।
उदाहरण - मेरी किताब रमेश ने चुराई या
राकेश ने। इस वाक्य में 'रमेश' और 'राकेश' के चुराने की क्रिया करने में विकल्प है।
No.-4. विरोधदर्शक- दो वाक्यों में परस्पर विरोध प्रकट
करके उन्हें जोड़ने वाले अथवा प्रथम वाक्य में कही गयी बात का निषेध दूसरे वाक्य
में करने वाले अव्यय को विरोधदर्शक कहते हैं।
जैसे- किन्तु, परन्तु, पर, लेकिन, मगर, वरन, बल्कि।
उदाहरण- मोहन की बुद्धि तीव्र है
किन्तु वह आलसी है।
मेरा मित्र इस गाड़ी से आने वाला था, परन्तु
वह नहीं आया।
No.-5. परिणामदर्शक- प्रथम वाक्य का परिणाम या फल
दूसरे वाक्य में बताने वाले अव्यय को परिणामदर्शक कहते हैं।
जैसे- इसलिए, अतः, सो, अतएव।
उदाहरण- वह बीमार था इसलिए पाठशाला
नहीं गया।
वर्षा हो रही थी अतः मैं घर से नहीं
निकला।
इन वाक्यों में 'इसलिए' और 'अतः' अव्यय
प्रथम वाक्य का परिणाम दूसरे वाक्य में बताते हैं, अतः ये परिणामदर्शक समुच्ययबोधक हैं।
No.-2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक- जिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य
में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है,
उन्हें 'व्यधिकरण समुच्चयबोधक' कहते
हैं।
सरल शब्दों में- एक या एक से अधिक
उपवाक्यों को मुख्य उपवाक्य से जोड़ने वाले अव्यय को व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते
हैं।
इसके चार उपभेद है।-
No.-1. कारणवाचक
No.-2. उद्देश्यवाचक
No.-3. संकेतवाचक
No.-4. स्वरूपवाचक
जैसे- क्योंकि, जोकि, इसलिए
कि।
उदाहरण- मैं वहाँ नहीं आ सका क्योंकि
वर्षा हो रही थी।
No.-2. उद्देश्यवाचक-जिस अव्यय से एक वाक्य का
उद्देश्य या फल दूसरे वाक्य द्वारा प्रकट हो,
उसे उद्देश्यवाचक कहते हैं।
जैसे- ताकि, कि, जो, इसलिए
कि।
उदाहरण- मैं वहाँ इसलिए गया था ताकि
पुस्तक ले आऊँ।
राम इसलिए नहीं आया कि कहीं उसका अपमान
न हो।
No.-3. संकेतवाचक-जो अव्यय संकेत या शर्त एक वाक्य में
बताकर दूसरे वाक्य में उसका फल संकेतित करें,
उन्हें संकेतवाचक कहते हैं।
जैसे- यदि.....तो, यद्यपि.....तथापि, जो.....तो, चाहे.....परन्तु, कि।
उदाहरण- यदि समय मिला तो मैं अवश्य
जाऊँगा।
यद्यपि मैंने उनसे निवेदन किया तथापि
वे नहीं माने।
No.-4. स्वरूपवाचक- जो अव्यय दो उपवाक्यों को इस
प्रकार जोड़े कि पहले वाक्य का स्वरूप दूसरे वाक्य से ही स्पष्ट हो, उसे
स्वरूपवाचक कहते हैं।
जैसे- कि, जो, अर्थात, मानो।
उदाहरण- कृष्ण ने कहा कि मैं आज खाना
नहीं खाऊँगा।
उसने ठीक किया जो यहाँ चला आया।
No.-4. विस्मयादिबोधक अव्यय :- जो शब्द आश्चर्य, हर्ष, शोक, घृणा, आशीर्वाद, क्रोध, उल्लास, भय
आदि भावों को प्रकट करें, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिन अव्ययों से
हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका सम्बन्ध वाक्य या उसके किसी विशेष पद
से न हो, उन्हें 'विस्मयादिबोधक' कहते है।
इन अविकारी शब्दों का प्रयोग वाक्य के
प्रारम्भ में होता है तथा इनका वाक्य की रचना से सीधा संबंध नहीं होता। इन शब्दों
के बाद विशेष चिह्न (!) लगता है।
जैसे- हाय! अब मैं क्या करूँ ?
हैं! तुम क्या कर रहे हो ? यहाँ
'हाय!' और 'है
!'
अरे! पीछे हो जाओ, गिर
जाओगे।
इस वाक्य में अरे! शब्द से भय प्रकट हो
रहा है।
विस्मयादिबोधक अव्यय है, जिनका
अपने वाक्य या किसी पद से कोई सम्बन्ध नहीं।
व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। 'अब मैं क्या करूँ ? इस वाक्य के पहले 'हाय!' जोड़ा जा सकता है।
विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं-
No.-1. हर्षबोधक- अहा!, वाह-वाह!,धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब
आदि।
No.-2. शोकबोधक- अहा!, उफ,
हा-हा!, आह,
हाय, त्राहि-त्राहि आदि।
No.-3. आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!, ऐ!, क्या!, ओहो, अरे, आदि
No.-4. क्रोधबोधक- हट, दूर हो, चुप आदि।
No.-5. स्वीकारबोधक- हाँ!, जी
हाँ, जी, अच्छा, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा! आदि।
No.-6. सम्बोधनबोधक- अरे!, अजी!, लो, रे, हे
आदि।
No.-7. भयबोधक- अरे, बचाओ-बचाओ आदि।
निपात और उसके कार्य
No.-6.
यास्क के अनुसार 'निपात' शब्द
के अनेक अर्थ है, इसलिए ये निपात कहे जाते हैं- उच्चावच्चेषु
अर्थेषु निपतन्तीति निपाताः। यह पाद का पूरण करनेवाला होता है- 'निपाताः
पादपूरणाः । कभी-कभी अर्थ के अनुसार प्रयुक्त होने से अनर्थक निपातों से अन्य
सार्थक निपात भी होते हैं। निपात का कोई लिंग,
वचन नहीं होता। मूलतः इसका प्रयोग
अव्ययों के लिए होता है। जैसे अव्ययों में आकारगत अपरिवर्त्तनीयता होती है, वैसे
ही निपातों में भी।
निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समूह या पूरे वाक्य को अन्य (अतिरिक्त) भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नही होते। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ प्रभावित होता है।
निपात के भेद यास्क ने निपात के तीन भेद माने है-
No.-1. उपमार्थक निपात : यथा- इव, न, चित्, नुः
No.-2. कर्मोपसंग्रहार्थक निपात : यथा- न, आ, वा, ह;
No.-3.पदपूरणार्थक निपात : यथा- नूनम्, खलु, हि, अथ।
यद्यपि निपातों में सार्थकता नहीं होती, तथापि
उन्हें सर्वथा निरर्थक भी नहीं कहा जा सकता। निपात शुद्ध अव्यय नहीं है; क्योंकि
संज्ञाओं, विशेषणों,
सर्वनामों आदि में जब अव्ययों का
प्रयोग होता है, तब उनका अपना अर्थ होता है, पर
निपातों में ऐसा नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्र्चित शब्द, शब्द-समुदाय
या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। इसके अतिरिक्त, निपात
सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं। पर वाक्य में इनके प्रयोग से उस
वाक्य का सम्रग अर्थ व्यक्त होता है। साधारणतः निपात अव्यय ही है। हिन्दी में
अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं।
निपात के कार्यनिपात के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
No.-1. पश्र- जैसे : क्या वह जा रहा है ?
No.-2. अस्वीकृति- जैसे : मेरा छोटा भाई आज वहाँ नहीं
जायेगा।
No.-3. विस्मयादिबोधक- जैसे : क्या अच्छी पुस्तक है !
No.-4. वाक्य में किसी शब्द पर बल देना- बच्चा भी
जानता है।
निपात के प्रकार
निपात के नौ प्रकार या वर्ग हैं-
No.-1. स्वीकार्य
निपात- जैसे : हाँ, जी, जी हाँ।
No.-2. नकरार्थक निपात- जैसे : नहीं, जी
नहीं।
No.-3. निषेधात्मक निपात- जैसे : मत।
No.-4. पश्रबोधक- जैसे : क्या ? न।
No.-5. विस्मयादिबोधक निपात- जैसे : क्या, काश, काश
कि।
No.-6. बलदायक या सीमाबोधक निपात- जैसे : तो, ही, तक, पर
सिर्फ, केवल।
No.-7. तुलनबोधक निपात- जैसे : सा।
No.-8. अवधारणबोधक निपात- जैसे : ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन।
No.-9. आदरबोधक निपात- जैसे : जी।
सर्वनाम की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
क्रिया की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
शब्द की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
संज्ञा की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
अव्यय का पद परिचय
No.-7.
इसमें अव्यय, अव्यय
का भेद और उससे सम्बन्ध रखनेवाला पद- इतनी बातें लिखनी चाहिए।
उदाहरण- वह अभी आया है।
इसमें 'अभी' अव्यय है। इसका पदान्वय होगा-
अभी- कालवाचक अव्यय, 'आना' क्रिया
का काल सूचित करता है, अतः 'आना' क्रिया का विशेषण।
उदाहरण- अहा ! आप आ गये।
अहा- हर्षबोधक अव्यय।
पद-परिचय के कुछ अन्य उदाहरण
उदाहरण
No.-1. अच्छा
लड़का कक्षा में शान्तिपूर्वक बैठता है।
अच्छा- गुणवाचक विशेषण, पुंलिंग, एकवचन, इसका
विशेष्य 'लड़का' है।
लड़का- जातिवाचक संज्ञा, पुंलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष, कर्ताकारक, 'बैठता
है' क्रिया का कर्ता।
कक्षा में- जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, अधिकरणकारक।
शान्तिपूर्वक- रीतिवाचक क्रियाविशेषण, 'बैठता
है' क्रिया का विशेषण।
बैठता है- अकर्मक क्रिया, कर्तृवाच्य, सामान्य
वर्तमानकाल, पुंलिंग,
एकवचन, अन्यपुरुष, इसका
कर्ता लड़का है।
उदाहरण
No.-2. मोहन
अपने भाई सोहन को छड़ी से मारता है।
मोहन- व्यक्तिवाचक संज्ञा, अन्यपुरुष, पुंलिंग, एकवचन, कर्ताकारक, इसकी
क्रिया है 'मारता है'
।
अपने- निजवाचक सर्वनाम, पुंलिंग, एकवचन, सम्बन्धकारक, 'भाई' से
सम्बन्ध रखता है, सार्वनामिक विशेषण, इसका
विशेष्य 'भाई' है।
भाई- जातिवाचक संज्ञा, पुंलिंग, एकवचन, कर्मकारक, 'सोहन' (कर्म)
का विशेषण, 'मारता है'
क्रिया का कर्म।
सोहन को- व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुंलिंग, एकवचन, कर्मकारक, 'भाई' के
अर्थ को प्रकट करता है अतः 'समानाधिकरण संज्ञा' ।
छड़ी से- जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, करणकारक।
मारता है- सकर्मक क्रिया, इसका
कर्म 'भाई सोहन',
सामान्य वर्तमानकाल, पुंलिंग, कर्तृवाच्य, अन्यपुरुष, इसका
कर्ता 'मोहन' है।
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