No.-1. दो वर्णों (स्वर या व्यंजन) के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं।
दूसरे अर्थ में- संधि का सामान्य अर्थ
है मेल। इसमें दो अक्षर मिलने से तीसरे शब्द की रचना होती है, इसी
को संधि कहते हैै।
सरल शब्दों में- दो शब्दों या
शब्दांशों के मिलने से नया शब्द बनने पर उनके निकटवर्ती वर्णों में होने वाले
परिवर्तन या विकार को संधि कहते हैं।
No.-2.
संधि का शाब्दिक अर्थ है- मेल या
समझौता। जब दो वर्णों का मिलन अत्यन्त निकटता के कारण होता है तब उनमें कोई-न-कोई
परिवर्तन होता है और वही परिवर्तन संधि के नाम से जाना जाता है।
No.-17. Complete
Hindi Grammar
No.-18. Hindi
Grammar By Diwakar Gupta
No.-19. Haldighati
Hindi Grammer
No.-20. Hindi
Grammar handwritten Part 1
No.-21. Hindi
Grammar handwritten Part 2
No.-22. Hindi
Grammar handwritten Part 4
No.-23. Hindi
Grammar handwritten Part 5
No.-24. Hindi
Grammar handwritten Part 6
No.-25. Hindi
Grammar handwritten Part 7
संधि विच्छेद- उन पदों को मूल रूप में
पृथक कर देना संधि विच्छेद हैै।
जैसे- हिम + आलय= हिमालय (यह संधि है), अत्यधिक=
अति + अधिक (यह संधि विच्छेद है)
यथा + उचित= यथोचित
यशः + इच्छा= यशइच्छ
अखि + ईश्वर= अखिलेश्वर
आत्मा + उत्सर्ग= आत्मोत्सर्ग
महा + ऋषि= महर्षि
लोक + उक्ति= लोकोक्ति
No.-3. संधि निरथर्क अक्षरों मिलकर सार्थक शब्द बनती है। संधि में प्रायः शब्द का रूप छोटा हो जाता है। संधि संस्कृत का शब्द है।
संधि के भेदNo.-3.
वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद है-
No.-1.स्वर संधि (vowel sandhi)
No.-2.व्यंजन संधि (Combination of Consonants)
No.-3.विसर्ग संधि (Combination Of Visarga)
No.-1. स्वर संधि (vowel sandhi) :- दो
स्वरों से उत्पत्र विकार अथवा रूप-परिवर्तन को स्वर संधि कहते है।
दूसरे शब्दों में- ''स्वर
वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से जो विकार उत्पत्र होता है, उसे
'स्वर
संधि' कहते हैं।''
जैसे- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, सूर्य
+ उदय = सूर्योदय, मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र, कवि
+ ईश्वर = कवीश्वर,
महा + ईश = महेश
इनके पाँच भेद होते है -
No.-1.दीर्घ संधि
No.-2.गुण संधि
No.-3.वृद्धि संधि
No.-4.यण संधि
No.-5.अयादी संधि
No.-1.दीर्घ संधि- जब दो सवर्ण, ह्रस्व
या दीर्घ, स्वरों का मेल होता है तो वे दीर्घ सवर्ण स्वर
बन जाते हैं। इसे दीर्घ स्वर-संधि कहते हैं।
नियम- दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो
जाते है। यदि 'अ'',' 'आ', 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ' और 'ऋ'के बाद वे ही ह्स्व या दीर्घ स्वर आये, तो
दोनों मिलकर क्रमशः 'आ', 'ई', 'ऊ', 'ऋ' हो जाते है। जैसे-
अ + अ= आ |
अत्र + अभाव= अत्राभाव |
अ + आ= आ |
शिव + आलय= शिवालय |
आ + अ= आ |
विद्या + अर्थी= विद्यार्थी |
आ + आ= आ |
विद्या + आलय= विद्यालय |
इ + इ= ई |
गिरि + इन्द्र= गिरीन्द्र |
इ + ई= ई |
गिरि + ईश= गिरीश |
ई + इ= ई |
मही + इन्द्र= महीन्द्र |
ई + ई= ई |
पृथ्वी + ईश= पृथ्वीश |
उ + उ= ऊ |
भानु + उदय= भानूदय |
ऊ + उ= ऊ |
स्वयम्भू + उदय= स्वयम्भूदय |
ऋ + ऋ= ऋ |
पितृ + ऋण= पितृण |
जैसे-
अ + इ= ए |
देव + इन्द्र= देवन्द्र |
अ + ई= ए |
देव + ईश= देवेश |
आ + इ= ए |
महा + इन्द्र= महेन्द्र |
अ + उ= ओ |
चन्द्र + उदय= चन्द्रोदय |
अ + ऊ= ओ |
समुद्र + ऊर्मि= समुद्रोर्मि |
आ + उ= ओ |
महा + उत्स्व= महोत्स्व |
आ + ऊ= ओ |
गंगा + ऊर्मि= गंगोर्मि |
अ + ऋ= अर् |
देव + ऋषि= देवर्षि |
आ + ऋ= अर् |
महा + ऋषि= महर्षि |
जैसे-
अ + ए =ऐ |
एक + एक =एकैक |
अ + ऐ =ऐ |
नव + ऐश्र्वर्य =नवैश्र्वर्य |
आ + ए=ऐ |
महा + ऐश्र्वर्य=महैश्र्वर्य |
अ + ओ =औ |
परम + ओजस्वी =परमौजस्वी |
अ + औ =औ |
परम + औषध =परमौषध |
आ + ओ =औ |
महा + ओजस्वी =महौजस्वी |
आ + औ =औ |
महा + औषध =महौषध |
No.-4. यण
संधि- इ, ई, उ, ऊ या ऋ का मेल यदि असमान स्वर से होता है तो इ, ई
को 'य'; उ, ऊ को 'व' और ऋ को 'र' हो जाता है। इसे यण संधि कहते हैं।
जैसे-
क) इ + अ= य |
यदि + अपि= यद्यपि |
इ + आ= या |
अति + आवश्यक= अत्यावश्यक |
इ + उ= यु |
अति + उत्तम= अत्युत्तम |
इ + ऊ = यू |
अति + उष्म= अत्यूष्म |
(ख) उ + अ= व |
अनु + आय= अन्वय |
उ + आ= वा |
मधु + आलय= मध्वालय |
उ + ओ = वो |
गुरु + ओदन= गुवौंदन |
उ + औ= वौ |
गुरु + औदार्य= गुवौंदार्य |
उ + इ= वि |
अनु + इत= अन्वित |
उ + ए= वे |
अनु + एषण= अन्वेषण |
(ग) ऋ + आ= रा |
पितृ + आदेश= पित्रादेश |
No.-5. अयादि स्वर संधि- ए, ऐ
तथा ओ, औ का मेल किसी अन्य स्वर के साथ होने से क्रमशः
अय्, आय् तथा अव्, आव् होने को अयादि संधि कहते हैं।
जैसे-
ए + अ= य |
ने + अन= नयन |
ऐ + अ= य |
गै + अक= गायक |
ओ + अ= व |
भो + अन= भवन |
औ + उ= वु |
भौ + उक= भावुक |
No.-2. व्यंजन संधि ( Combination of Consonants ) :- व्यंजन
से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पत्र विकार को व्यंजन संधि कहते है।
दूसरे शब्दों में- एक व्यंजन के दूसरे
व्यंजन या स्वर से मेल को व्यंजन-संधि कहते हैं।
कुछ नियम इस प्रकार हैं-
No.-1. यदि 'म्' के बाद कोई व्यंजन वर्ण आये तो 'म्' का
अनुस्वार हो जाता है या वह बादवाले वर्ग के पंचम वर्ण में भी बदल सकता है।
जैसे- अहम् + कार =अहंकार
पम् + चम =पंचम
सम् + गम =संगम
No.-2. यदि 'त्-द्' के बाद 'ल' रहे तो 'त्-द्'
'ल्'
में बदल जाते है और 'न्' के
बाद 'ल' रहे तो 'न्' का अनुनासिक के बाद 'ल्' हो
जाता है।
जैसे- उत् + लास =उल्लास
महान् + लाभ =महांल्लाभ
No.-3.किसी वर्ग के पहले वर्ण ('क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प') का
मेल किसी स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे वर्ण या र ल व में से किसी वर्ण से हो तो
वर्ण का पहला वर्ण स्वयं ही तीसरे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है। यथा-
दिक् + गज =दिग्गज (वर्ग के तीसरे वर्ण
से संधि)
षट् + आनन =षडानन (किसी स्वर से संधि)
षट् + रिपु =षड्रिपु (र से संधि)
अन्य उदाहरण
जगत् + ईश =जगतदीश
तत् + अनुसार =तदनुसार
वाक् + दान =वाग्दान
दिक् + दर्शन =दिग्दर्शन
वाक् + जाल =वगजाल
अप् + इन्धन =अबिन्धन
तत् + रूप =तद्रूप
No.-4. यदि 'क्', 'च्', 'ट्', 'त्', 'प', के बाद 'न' या 'म' आये, तो क्, च्, ट्, त्, प, अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं।
जैसे-
वाक्+मय =वाड्मय
अप् +मय =अम्मय
षट्+मार्ग =षणमार्ग
जगत् +नाथ=जगत्राथ
उत् +नति =उत्रति
षट् +मास =षण्मास
No.-5. सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के योग में
शकार और चवर्ग तथा षकार और टवर्ग के योग में षकार और टवर्ग हो जाता है। जैसे-
स्+श |
रामस् +शेते =रामश्शेते |
त्+च |
सत् +चित् =सच्चित् |
त्+छ |
महत् +छात्र =महच्छत्र |
त् +ण |
महत् +णकार =महण्णकार |
ष्+त |
द्रष् +ता =द्रष्टा |
त्+ट |
बृहत् +टिट्टिभ=बृहटिट्टिभ |
No.-6. यदि वर्गों के अन्तिम वर्णों को छोड़ शेष वर्णों
के बाद 'ह' आये, तो 'ह' पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है
और 'ह्' के पूर्ववाला वर्ण अपने वर्ग का तृतीय वर्ण।
जैसे-
उत्+हत =उद्धत
उत्+हार =उद्धार
वाक् +हरि =वाग्घरि
No.-7. स्वर के साथ छ का मेल होने पर छ के स्थान पर 'च्छ' हो
जाता है।
जैसे-
परि + छेद= परिच्छेद
शाला + छादन= शालाच्छादन
आ + छादन= आच्छादन
उदाहरण-
जगत् + छाया =जगच्छाया
उत् + चारण =उच्चारण
सत् + जन =सज्जन
तत् + लीन =तल्लीन
No.-9. त् का मेल किसी स्वर, ग, घ, द, ध, ब, भ, र
से होने पर त् के स्थान पर द् हो जाता है।
जैसे-
सत् + इच्छा =सदिच्छा
जगत् + ईश =जगदीश
तत् + रूप =तद्रूप
भगवत् + भक्ति =भगवद् भक्ति
No.-10. त् या द् का मेल श से होने पर त् या द् के
स्थान पर च् और श के स्थान पर छ हो जाता है।
जैसे-
उत् + श्वास =उच्छवास
सत् + शास्त्र =सच्छास्त्र
No.-11. त् या द् का मेल ह से होने पर त् या द् के
स्थान पर द् और ह से स्थान पर ध हो जाता है।
जैसे-
पद् + हति =पद्धति
उत् + हार =उद्धार
Hindi Language सम्पूर्ण हिंदी
व्याकरण पीडीऍफ़ डाउनलोड
व्याकरण की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
वाक्य की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
वर्ण की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
सर्वनाम की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
क्रिया की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
शब्द की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
No.-12. म् का क से म तक किसी वर्ण से मेल होने पर म्
के स्थान पर उस वर्ण वाले वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाएगा।
जैसे-
सम् + तुष्ट =सन्तुष्ट
सम् + योग =संयोग
दूसरे शब्दों में- स्वर और व्यंजन के
मेल से विसर्ग में जो विसर्ग होता है, उसे 'विसर्ग संधि' कहते है।
इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं- विसर्ग ( :
) के साथ जब किसी स्वर अथवा व्यंजन का मेल होता है, तो उसे विसर्ग-संधि कहते हैं।
कुछ नियम इस प्रकार हैं-
No.-1. यदि विसर्ग के पहले 'अ' आये
और उसके बाद वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण आये या य, र, ल, व, ह
रहे तो विसर्ग का 'उ' हो जाता है और यह 'उ' पूर्ववर्ती
'अ' से
मिलकर गुणसन्धि द्वारा 'ओ' हो जाता है।
जैसे-
मनः + रथ =मनोरथ
सरः + ज =सरोज
मनः + भाव =मनोभाव
पयः + द =पयोद
मनः + विकार = मनोविकार
पयः + धर =पयोधर
मनः + हर =मनोहर
वयः + वृद्ध =वयोवृद्ध
यशः + धरा =यशोधरा
सरः + वर =सरोवर
तेजः + मय =तेजोमय
यशः + दा =यशोदा
पुरः + हित =पुरोहित
मनः + योग =मनोयोग
No.-2. यदि विसर्ग के पहले इ या उ आये और विसर्ग के
बाद का वर्ण क, ख, प, फ हो, तो विसर्ग 'ष्' में बदल जाता है।
जैसे-
निः + कपट =निष्कपट
निः + फल =निष्फल
निः + पाप =निष्पाप
दुः + कर =दुष्कर
No.-3. विसर्ग से पूर्व अ, आ
तथा बाद में क, ख या प,
फ हो तो कोई परिवर्तन नहीं होता।
जैसे-
प्रातः + काल= प्रातःकाल
पयः + पान= पयःपान
अन्तः + करण= अन्तःकरण
अंतः + पुर= अंतःपुर
No.-4. यदि 'इ' - 'उ' के बाद विसर्ग हो और इसके बाद 'र' आये, तो 'इ' - 'उ' का 'ई' - 'ऊ' हो
जाता है और विसर्ग लुप्त हो जाता है।
जैसे-
निः + रव =नीरव
निः + रस =नीरस
निः + रोग =नीरोग
दुः + राज =दूराज
No.-5. यदि विसर्ग के पहले 'अ' और 'आ' को
छोड़कर कोई दूसरा स्वर आये और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ
या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान में 'र्' हो
जाता है। जैसे-
निः + उपाय =निरुपाय
निः + झर =निर्झर
निः + जल =निर्जल
निः + धन =निर्धन
दुः + गन्ध =दुर्गन्ध
निः + गुण =निर्गुण
निः + विकार =निर्विकार
दुः + आत्मा =दुरात्मा
दुः + नीति =दुर्नीति
निः + मल =निर्मल
No.-6. यदि विसर्ग के बाद 'च-छ-श' हो
तो विसर्ग का 'श्', 'ट-ठ-ष' हो तो 'ष्' और 'त-थ-स' हो तो 'स्' हो जाता है।
जैसे-
निः + चय=निश्रय
निः + छल =निश्छल
निः + तार =निस्तार
निः + सार =निस्सार
निः + शेष =निश्शेष
निः + ष्ठीव =निष्ष्ठीव
No.-7. यदि विसर्ग के आगे-पीछे 'अ' हो
तो पहला 'अ' और विसर्ग मिलकर 'ओ' हो
जाता है और विसर्ग के बादवाले 'अ' का लोप होता है तथा उसके स्थान पर लुप्ताकार का
चिह्न (ऽ) लगा दिया जाता है।
जैसे-
प्रथमः + अध्याय =प्रथमोऽध्याय
मनः + अभिलषित =मनोऽभिलषित
यशः + अभिलाषी= यशोऽभिलाषी
No.-8. विसर्ग से पहले आ को छोड़कर किसी अन्य स्वर के
होने पर और विसर्ग के बाद र रहने पर विसर्ग लुप्त हो जाता है और यदि उससे पहले
ह्रस्व स्वर हो तो वह दीर्घ हो जाता है।
जैसे-
नि: + रस =नीरस
नि: + रोग =नीरोग
No.-9. विसर्ग के बाद श, ष,
स होने पर या तो विसर्ग यथावत् रहता है
या अपने से आगे वाला वर्ण हो जाता है।
जैसे-
नि: + संदेह =निःसंदेह अथवा निस्संदेह
नि: + सहाय =निःसहाय अथवा निस्सहाय
हिन्दीकी स्वतंत्र संधियाँउपर्युक्त तीनों संधियाँ संस्कृत से
हिन्दी में आई हैं। हिन्दी की निम्नलिखित छः प्रवृत्तियोंवाली संधियाँ होती हैं-
No.-2. घोषीकरण
No.-3. ह्रस्वीकरण
No.-4. आगम
No.-5. व्यंजन-लोपीकरण
और
No.-6. स्वर-व्यंजन
लोपीकरण
संज्ञा की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
कारक की परिभाषा, भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
संधि विच्छेद की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
लिंग की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
उपसर्ग की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
संधि की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
अव्यय की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
काल की परिभाषा,
भेद एवं उसके उदाहरण PDF Free Download
इसे विस्तार से इस प्रकार समझा जा सकता
है-
No.-1. पूर्व स्वर लोप : दो स्वरों के मिलने पर पूर्व
स्वर का लोप हो जाता है। इसके भी दो प्रकार हैं-
No.-1. अविकारी पूर्वस्वर-लोप : जैसे- मिल + अन =मिलन
छल + आवा =छलावा
No.-2. विकारी पूर्वस्वर-लोप : जैसे- भूल + आवा
=भुलावा
लूट + एरा =लुटेरा
No.-2. ह्रस्वकारी स्वर संधि : दो स्वरों के मिलने पर
प्रथम खंड का अंतिम स्वर ह्रस्व हो जाता है। इसकी भी दो स्थितियाँ होती हैं-
No.-1. अविकारी ह्रस्वकारी : जैसे- साधु + ओं= साधुओं
डाकू + ओं= डाकुओं
No.-2. विकारी ह्रस्वकारी :
जैसे- साधु + अक्कड़ी= सधुक्कड़ी
बाबू + आ= बबुआ
No.-3. आगम स्वर संधि : इसकी भी दो स्थितियाँ हैं-
No.-1. अविकारी आगम स्वर : इसमें अंतिम स्वर में कोई
विकार नहीं होता।
जैसे- तिथि + आँ= तिथियाँ
शक्ति + ओं= शक्तियों
No.-2. विकारी आगम स्वर: इसका अंतिम स्वर विकृत हो
जाता है।
जैसे- नदी + आँ= नदियाँ
लड़की + आँ= लड़कियाँ
No.-4. पूर्वस्वर लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड
के अंतिम स्वर का लोप हो जाया करता है।
जैसे- तुम + ही= तुम्हीं
उन + ही= उन्हीं
No.-5. स्वर व्यंजन लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम
खंड के स्वर तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है।
जैसे- कुछ + ही= कुछी
इस + ही= इसी
No.-6. मध्यवर्ण लोपी व्यंजन संधि:- इसमें प्रथम खंड
के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है।
जैसे- वह + ही= वही
यह + ही= यही
No.-7. पूर्व स्वर ह्रस्वकारी व्यंजन संधि:- इसमें
प्रथम खंड का प्रथम वर्ण ह्रस्व हो जाता है।
जैसे- कान + कटा= कनकटा
पानी + घाट= पनघट या पनिघट
No.-8. महाप्राणीकरण व्यंजन संधि:- यदि प्रथम खंड का
अंतिम वर्ण 'ब' हो तथा द्वितीय खंड का प्रथम वर्ण 'ह' हो
तो 'ह' का 'भ' हो जाता है और 'ब'
का लोप हो जाता है।
जैसे- अब + ही= अभी
कब + ही= कभी
सब + ही= सभी
No.-9. सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि:- इसमें
प्रथम खंड के अनुनासिक स्वरयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है, उसकी
केवल अनुनासिकता बची रहती है।
जैसे- जहाँ + ही= जहीं
कहाँ + ही= कहीं
वहाँ + ही= वहीं
No.-10. आकारागम व्यंजन संधि:- इसमें संधि करने पर बीच
में 'आकार' का आगम हो जाया करता है।
जैसे- सत्य + नाश= सत्यानाश
मूसल + धार= मूसलाधार
स्वर संधि के उदाहरण
(अ,
आ)
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
अभ्युदय |
अभि +उदय |
इ + उ= यु (यण) |
अत्याचार |
अति+आचार |
इ + आ= या (यण) |
अन्वेषण |
अनु +एषण |
उ + ए= वे (यण) |
अभ्यागत |
अभि +आगत |
इ + आ= या (यण) |
अभीष्ट |
अभि + इष्ट |
इ + इ= ई (दीर्घ) |
अत्यन्त |
अति + अन्त |
इ + अ= य (यण) |
अधीश्र्वर |
अधि + ईश्र्वर |
इ + ई= ई (दीर्घ) |
आद्यन्त |
आदि+अन्त |
इ + अ= य (यण) |
अत्युत्तम |
अति+उत्तम |
इ +उ= यु (यण) |
अतीव |
अति + इव |
इ + इ= ई (दीर्घ) |
अन्यान्य |
अन्य + अन्य |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
असुरालय |
असुर + आलय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
आनन्दोत्सव |
आनंद + उत्सव |
अ + उ= ओ (गुण) |
आशातीत |
आशा + अतीत |
आ + अ= आ (दीर्घ) |
अन्वीक्षण |
अनु + ईक्षण |
उ + ई= वी (यण) |
अन्नाभाव |
अन्न + अभाव |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
अक्षौहिणी |
अक्ष + ऊहिणी |
अ + ऊ= औ (यण) |
अल्पायु |
अल्प + आयु |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
अनावृष्टि |
अन + आवृष्टि |
अ + इ= य (दीर्घ) |
अत्यावश्यक |
अति + आवश्यक |
इ + अ= य (यण) |
अत्युष्म |
अति +उष्म |
इ + अ= य (यण) |
अनुपमेय |
अन् + उपमेय |
अ + इ= य (दीर्घ) |
अन्योक्ति |
अन्य + उक्ति |
अ + इ= य (दीर्घ) |
अधीश्वर |
अधि + ईश्वर |
इ + ई= ई (दीर्घ) |
(इ,
उ, ए)
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
इत्यादि |
इति + आदि |
इ + आ= या (यण) |
ईश्वरेच्छा |
ईश्वर + इच्छा |
अ + इ= ए (गुण) |
उपेक्षा |
उप + ईक्षा |
अ + ई= ए (गुण) |
उर्मिलेश |
उर्मिला + ईश |
आ + ई= ए (गुण) |
ऊहापोह |
ऊह + अपोह |
ऊ + अ= आ (दीर्घ) |
उत्तरायण |
उत्तर + अयन |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
उपर्युक्त |
उपरि + उक्त |
इ + उ= यु (यण) |
उमेश |
उमा + ईश |
आ + ई= ए (गुण) |
एकैक |
एक + एक |
अ + ए= ऐ (वृद्धि) |
एकांकी |
एक + अंकी |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
एकानन |
एक + आनन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
एकेश्वर |
एक + ईश्वर |
अ + ई= ए (गुण) |
ऐतयारण्यक |
ऐतरेय + आरण्यक |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
क, ख
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
कमलेश |
कमल + ईश |
अ + ई= ए (गुण) |
कपीश |
कपि + ईश |
इ + ई= ई (दीर्घ) |
करुणामृत |
करुण + अमृत |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
कामान्ध |
काम + अन्ध |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
कामारि |
काम + अरि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
कृपाचार्य |
कृपा + आचार्य |
आ + आ= आ (दीर्घ) |
कृपाकांक्षी |
कृपा + आकांक्षी |
आ + आ= आ (दीर्घ) |
कृष्णानन्द |
कृष्ण + आनंद |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
केशवारि |
केशव + अरि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
कोमलांगी |
कोमल + अंगी |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
कंसारि |
कंस + अरि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
कवीन्द्र |
कवि + इन्द्र |
इ + इ= ई (दीर्घ) |
कवीश |
कवि + ईश |
इ + ई= ई (दीर्घ) |
कल्पान्त |
कल्प + अन्त |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
कुशासन |
कुश + आसन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
कुलटा |
कुल + अटा |
निपात से संधि |
कर्णोद्धार |
कर्ण + उद्धार |
अ + उ= ओ (गुण) |
कौरवारि |
कौरव + अरि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
केशान्त |
केश + अन्त |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
खगेश्वर |
खग + ईश्वर |
अ + ई ए (गुण) |
खगेश |
खग + ईश |
अ + अ= ए (गुण) |
खगेन्द्र |
खग + इन्द्र |
अ + इ= ए (गुण) |
ग, घ
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
गंगोदक |
गंगा + उदक |
आ + उ= ओ (गुण) |
गजेन्द्र |
गज + इन्द्र |
अ + इ= ए (गुण) |
गत्यवरोध |
गति + अवरोध |
इ + अ= य (यण) |
गायक |
गै + अक |
ऐ + अ= आय (अयादि) |
गायिका |
गै + इका |
ऐ + इ= आयि (अयादि) |
ग्रामोद्धार |
ग्राम + उद्धार |
अ + उ= ओ (गुण) |
गिरीश |
गिरि + ईश |
इ + ई= ई (दीर्घ) |
गजानन |
गज + आनन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
गणेश |
गण + ईश |
अ + ई= ए (गुण) |
गिरीन्द्र |
गिरि + इन्द्र |
इ + इ= ई (दीर्घ) |
ग्रामोद्योग |
ग्राम + उद्योग |
अ + उ= ओ (गुण) |
गुरूपदेश |
गुरु + उपदेश |
उ + उ= ऊ (दीर्घ) |
गायन |
गै + अन |
ऐ + अ= आय (अयादि) |
गत्यात्मकता |
गति + आत्मकता |
इ + आ= या (यण) |
गंगौघ |
गंगा + ओघ |
आ + ओ= औ (वृद्धि) |
गंगोर्मि |
गंगा + ऊर्मि |
आ + ऊ= ओ (गुण) |
गीतांजलि |
गीत + अंजलि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
गंगैश्वर्य |
गंगा + ऐश्वर्य |
आ + ऐ= ऐ (वृद्धि) |
गवाक्ष |
गो + अक्ष |
ओ + अ= व |
गीत्युपदेश |
गीति + उपदेश |
इ + उ=यु (यण) |
गेयात्मकता |
गेय + आत्मकता |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
गोत्राध्याय |
गोत्र + अध्याय |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
गौर्यादेश |
गौरी + आदेश |
ई + आ= या (यण) |
गंगेश |
गंगा + ईश |
आ + ई= ए (गुण) |
गुरवे |
गुरो + ए |
|
गृहौत्सुक्य |
गृह + औत्सुक्य |
अ + औ= औ (वृद्धि) |
गव्यम |
गो + यम् |
ओ + य= व |
घनानंद |
घन + आनंद |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
घनान्धकार |
घन + अन्धकार |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
च, छ
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
चतुरानन |
चतुर + आनन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
चन्द्राकार |
चन्द्र + आकार |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
चतुरानन |
चतुर + आनन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
चन्द्राकार |
चन्द्र + आकार |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
चन्द्रोदय |
चन्द्र + उदय |
अ + उ= ओ (गुण) |
चरणायुध |
चरण + आयुध |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
चरणामृत |
चरण + अमृत |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
चरणारविंद |
चरण + अरविंद |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
चमूत्साह |
चमू + उत्साह |
ऊ + उ= ऊ (दीर्घ) |
चयन |
चे + अन |
ए + अ= अय (अयादि) |
चरित्रांकन |
चरित्र + अंकन |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
चिरायु |
चिर + आयु |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
चिन्तोन्मुक्त |
चिन्ता + उन्मुक्त |
आ + उ= ओ (गुण) |
छात्रावस्था |
छात्र + अवस्था |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
छात्रावास |
छात्र + आवास |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
ज,
झ
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
जलौघ |
जल + ओघ |
अ + ओ= औ (वृद्धि) |
जलाशय |
जल + आशय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
जन्मान्तर |
जन्म + अन्तर |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
जनाश्रय |
जन + आश्रय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
जनकांगजा |
जनक + अंगजा |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
जलोर्मि |
जल + उर्मि |
अ + ऊ= ओ (गुण) |
जन्मोत्सव |
जन्म + उत्सव |
अ + उ= ओ (गुण) |
जानकोश |
जानकी + ईश |
ई + ई= ई (दीर्घ) |
जितेन्द्रिय |
जित + इन्द्रिय |
अ + इ= ए (गुण) |
जीर्णांचल |
जीर्ण + अंचल |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
जिह्वाग्र |
जिह्वा + अग्र |
आ + अ= आ (दीर्घ) |
झंझानिल |
झंझा + अनिल |
आ + अ= आ (दीर्घ) |
झण्डोत्तोलन |
झंडा + उत्तोलन |
आ + उ= ओ (गुण) |
टिकैत |
टिक + ऐत |
अ + ऐ=ऐ (वृद्धि) |
डिम्बोद्घोष |
डिम्ब + उद्घोष |
अ + उ= ओ (गुण) |
त, थ
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
तथागत |
तथा + आगत |
आ + आ= आ (दीर्घ) |
तथापि |
तथा + अपि |
आ + अ= आ (दीर्घ) |
तथैव |
तथा + एव |
आ + ए= ऐ (वृद्धि) |
तिमिराच्छादित |
तिमिर + आच्छादित |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
तारकेश्वर |
तारक + ईश्वर |
अ + ई= ए (गुण) |
तारकेश |
तारक + ईश |
अ + ई= ए (गुण) |
तपेश्वर |
तप + ईश्वर |
अ + ई= ए (गुण) |
तमसाच्छन्न |
तमस + आच्छन्न |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
तिमिरारि |
तिमिर + अरि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
तुरीयावस्था |
तुरीय + अवस्था |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
तुषारावृत्त |
तुषार + आवृत्त |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
त्रिगुणातीत |
त्रिगुण + अतीत |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
थानेश्वर |
थाना + ईश्वर |
आ + ई= ए (गुण) |
द
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
दर्शनार्थ |
दर्शन + अर्थ |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
दावाग्नि |
दाव + अग्नि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
दावानल |
दाव + अनल |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
देवर्षि |
देव + ऋषि |
अ + ऋ= अर् (गुण) |
देवेश |
देव + ईश |
अ + ई= ए (गुण) |
देवेन्द्र |
देव + इन्द्र |
अ + इ= ए (गुण) |
देवागमन |
देव + आगमन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
देव्यागम |
देवी + आगम |
ई + आ= या (यण) |
दूतावास |
दूत + आवास |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
देशाटन |
देश + अटन |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
दीपावली |
दीप + अवली |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
द्रोणाचार्य |
द्रोण + आचार्य |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
दंडकारण्य |
दंडक + अरण्य |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
दक्षिणायन |
दक्षिण + अयन |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
दध्योदन |
दधि + ओदन |
इ + ओ= यो (यण) |
दर्शनेच्छा |
दर्शन + इच्छा |
अ + इ= ए (गुण) |
दशानन |
दश + आनन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
दयानंद |
दया+ आनंद |
आ + आ= आ (दीर्घ) |
दानवारि |
दानव + अरि |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
दासानुदास |
दास + अनुदास |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
दिनांक |
दिन + अंक |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
दिनांत |
दिन + अन्त |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
दिव्यास्त्र |
दिव्य + अस्त्र |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
दीक्षान्त |
दीक्षा + अन्त |
आ + अ= आ (दीर्घ) |
दीपोत्सव |
दीप + उत्सव |
अ + उ= ओ (गुण) |
दूरागत |
दूर + आगत |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
देवालय |
देव + आलय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
देवांगना |
देव + अंगना |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
देवोत्थान |
देव + उत्थान |
अ + उ= ओ (गुण) |
देशांतर |
देश + अन्तर |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
दैत्यारि |
दैत्य + अरि |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
द्वाराकाधीश |
द्वारका + अधीश |
आ + अ= आ (दीर्घ) |
दर्शनाचार्य |
दर्शन + आचार्य |
अ + आ= (दीर्घ) |
दुग्धाहार |
दुग्ध + आहार |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
देवांशु |
देव + अंशु |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
ध
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
धर्माधिकारी |
धर्म + अधिकारी |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
धर्मांध |
धर्म + अन्ध |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
धर्मात्मा |
धर्म + आत्मा |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
धर्मोपदेश |
धर्म + उपदेश |
अ + उ= ओ (गुण) |
धर्मार्थ |
धर्म + अर्थ |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
धनेश |
धन + ईश |
अ + इ=ए (गुण) |
धनाधीश |
धन + अधीश |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
धनादेश |
धन + आदेश |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
घनानंद |
घन + आनंद |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
धर्माधर्म |
धर्म + अधर्म |
अ + अ=आ (दीर्घ) |
धर्माचार्य |
धर्म + आचार्य |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
धर्मावतार |
धर्म + अवतार |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
धारोष्ण |
धारा + ऊष्ण |
आ + ऊ= ओ (गुण) |
धीरोदात्त |
धीर + उदात्त |
अ + उ= ओ (गुण) |
धीरोद्धत |
धीर + उद्धत |
अ + उ= ओ (गुण) |
धूमाच्छन्न |
धूम + आच्छन्न |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
ध्वजोत्तोलन |
ध्वजा + उत्तोलन |
आ + उ= ओ (गुण) |
ध्वन्यर्थ |
ध्वनि + अर्थ |
इ + अ= य (यण) |
ध्वन्यात्मक |
ध्वनि + आत्मक |
इ + आ= या (यण) |
धावक |
धौ + अक |
औ + अ= आव (अयादि) |
न
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
नागेन्द्र |
नाग + इन्द्र |
अ + इ= ए (गुण) |
नागेश |
नाग + ईश |
अ + ई= ए (गुण) |
नरेश |
नर + ईश |
अ + ई= ए (गुण) |
नरेन्द्र |
नर + इन्द्र |
अ + इ= ए (गुण) |
नदीश |
नदी + ईश |
ई + ई= ई (दीर्घ) |
नयन |
ने + अन |
ए + अ= अय (अयादि) |
नायक |
नै + अक |
ऐ + अ= आय (अयादि) |
नायिका |
नै + इका |
ऐ + इ= आयि (अयादि) |
नवोदय |
नव + उदय |
अ + उ= ओ (गुण) |
नारायण |
नर + अयन |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
नारीश्वर |
नारी + ईश्वर |
ई + ई= ई (दीर्घ) |
निरानंद |
निरा + आनंद |
आ + आ= आ (दीर्घ) |
नीचाशय |
नीच + आशय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
नीलांबर |
नील + अम्बर |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
नीलांजल |
नील + अंजल |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
नीलोत्पल |
नील + उत्पल |
अ + उ= ओ (गुण) |
न्यून |
नि + ऊन |
इ + ऊ= यू (यण) |
नयनाम्बु |
नयन + अम्बु |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
नयनाभिराम |
नयन + अभिराम |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
नवोढ़ा |
नव + ऊढ़ा |
अ + ऊ= ओ (गुण) |
नाविक |
नौ + इक |
औ + इ आवि (अयादि) |
न्यायालय |
न्याय + आलय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
न्यायाधीश |
न्याय + अधीश |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
नक्षत्रेश |
नक्षत्र + ईश |
अ + ई= ए (गुण) |
नृत्यालय |
नृत्य + आलय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
निम्नांकित |
निम्न + अंकित |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
निम्नानुसार |
निम्न + अनुसार |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
प
संधिपद |
विच्छेद |
जिन स्वरों में संधि हुई |
पंचानन |
पंच + आनन |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
पंचामृत |
पंच + अमृत |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पंचाग्नि |
पंच + अग्नि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पत्राचार |
पत्र + आचार |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
पदोन्नति |
पद + उन्नति |
अ + उ= ओ (गुण) |
परमार्थ |
परम + अर्थ |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
परमौषध |
परम + औषध |
अ + औ= औ (वृद्धि) |
परमौषधि |
परम + ओषधि |
अ + ओ= औ (वृद्धि) |
परीक्षा |
परि + ईक्षा |
इ + ई= ई (दीर्घ) |
परोपकार |
पर+ उपकार |
अ + उ= ओ (गुण) |
परीक्षार्थी |
परीक्षा + अर्थी |
आ + अ= आ (दीर्घ) |
पवन |
पो + अन |
ओ + अ=अव (अयादि) |
पावन |
पौ + अन |
औ + अ= आव (अयादि) |
पावक |
पौ + अक |
औ + अ= आव (अयादि) |
पवित्र |
पो + इत्र |
ओ + इ= अवि (अयादि) |
पदाक्रांत |
पद + आक्रांत |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
पदाधिकारी |
पद + अधिकारी |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पदावलि |
पद + अवलि |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पद्माकर |
पद्म + आकर |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
परार्थ |
पर + अर्थ |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
परमेश्वर |
परम + ईश्वर |
अ + ई= ए (गुण) |
पराधीन |
पर + अधीन |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
परमात्मा |
परम + आत्मा |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
पर्वतेश्वर |
पर्वत + ईश्वर |
अ + ई= ए (गुण) |
पश्चिमोत्तर |
पश्चिम + उत्तर |
अ + उ= ओ (गुण) |
पाठान्तर |
पाठ + अन्तर |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पित्रादेश |
पितृ + आदेश |
ऋ + आ= रा (यण) |
पीताम्बर |
पीत + अम्बर |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पुंडरीकाक्ष |
पुंडरीक + अक्ष |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पुण्यात्मा |
पुण्य + आत्मा |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
पुस्तकालय |
पुस्तक + आलय |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
पुरुषोत्तम |
पुरुष + उत्तम |
अ + उ= ओ (गुण) |
पूर्वानुराग |
पूर्व + अनुराग |
अ + अ= आ (दीर्घ) |
पूर्वोदय |
पूर्व + उदय |
अ + उ= ओ (गुण) |
प्रांगण |
प्र + आंगण |
अ + आ= आ (दीर्घ) |
प्रत्यय |
प्रति + अय |
इ + अ= य ( |