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Essay on Teacher’s day

 

 समाज को सही दिशा देने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है। वह देश के भावी नागरिकों अर्थात बच्चों के व्यक्तित्व संवारने के साथ-साथ उन्हें शिक्षित भी करता है। इसलिए शिक्षकों द्वारा किये गये श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन ही शिक्षक दिवस कहलाता है।

 हालांकि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जो कि 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे। उनके जन्म दिवस के अवसर पर ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे संस्कृतज्ञ, दार्शनिक होने के साथ-साथ शिक्षा शास्त्री भी थे।

 राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे शिक्षा क्षेत्र से ही सम्बद्ध थे। 1920 से 1921 तक उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के किंग जार्ज पंचम पद को सुशोभित किया। 1939 से 1948 तक वे विश्वविख्यात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर रहे।

 राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनका जन्म दिवस सार्वजनिक रूप से आयोजित करना चाहा तो उन्होंने जीवन का अधिकतर समय शिक्षक रहने के नाते इस दिवस को शिक्षकों का सम्मान करने हेतु शिक्षक दिवस मनाने की बात कही। उसी समय से प्रतिवर्ष यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 शिक्षकों द्वारा किये गये श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का भी यही दिन है। इस दिन स्कूलों कालेजों में शिक्षक का कार्य छात्र खुद ही संभालते हैं। इस दिन राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर शिक्षण के प्रति समर्पित और छात्र-छात्राओं के प्रति अनुराग रखने वाले शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।

 शिक्षक राष्ट्रनिर्माण में मददगार साबित होते हैं वहीं वे राष्ट्रीय संस्कृति के संरक्षक भी हैं। वे बालकों में सुसंस्कार तो डालते ही हैं उनके अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर कर उन्हें देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाने का दायित्व भी वहन करते हैं।

 शिक्षक राष्ट्र के बालकों को न केवल साक्षर ही बनाते हैं बल्कि अपने उपदेश द्वारा उनके ज्ञान का तीसरा चक्षु भी खोलते हैं। वे बालकों में हित-अहित, भला-बुरा सोचने की शक्ति उत्पन्न करते हैं। इस तरह वे राष्ट्र के समग्र विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 शिक्षक उस दीपक के समान हैं जो अपनी ज्ञान ज्योति से बालकों को प्रकाशमान करते हैं। महर्षि अरविन्द ने अपनी एक पुस्तक जिसका शीर्षक 'महर्षि अरविन्द के विचार' में शिक्षक के संबंध में लिखा है अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के माली होते हैं वे संस्कार की जड़ों में खाद देते हैं।

 और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं। इटली के एक उपन्यासकार ने शिक्षक के बारे में कहा है कि शिक्षक उस मोमबत्ती के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देती है। संत कबीर ने तो गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना है। उन्होंने गुरु को ईश्वर से बड़ा मानते हुए कहा है कि

 गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय।

बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाय।।

 शिक्षक को आदर देना समाज और राष्ट्र में उनकी कीर्ति को फैलाना केन्द्र व राज्य सरकारों का कर्तव्य ही नहीं दायित्व भी है। इस दायित्व को पूरा करने का शिक्षक दिवस एक अच्छा दिन है।

 गुरु से आशीर्वाद लेने की भारत की अत्यंत प्राचीन परिपाटी है। आषाढ़ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा नाम इसी के निर्मित्त दिया गया है। स्कूलों-कालेजों के अतिरिक्त सरकार की ओर से भी इस दिन समारोह आयोजित किये जाते हैं।

 दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित एक बड़े समारोह में राजधानी के स्कूलों से चयनित श्रेष्ठ शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। इसके अलावा स्थानीय निकायों मसलन दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद, दिल्ली छावनी परिषद द्वारा भी समारोह आयोजित कर अपने अधीन आने वाले स्कूलों के श्रेष्ठ शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।

 

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