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Defination of Reading Comprehension

 

No.-1.किसी दिए गए पाठ को पढ़कर अध्येता द्वारा प्रतिपाद्य विषय तथा गद्यांश में निहित मूल अर्थ को हृदयंगम करना ही पाठ-बोधन कहलाता है।

इस प्रकार का अभ्यास परीक्षार्थी की योग्यता को जाँचने का सर्वाधिक मापदण्ड होता है। इससे परीक्षार्थी की सही सूझ-बूझ तथा ग्रहण करने की सही क्षमता की परख की जा सकती हैं।

 पाठ-बोधन संबंधी सामान्य बातें

 No.-1. दिए गए पाठ का स्तर, विचार, भाषा, शैली आदि प्रत्येक दृष्टि से परीक्षा के स्तर के अनुरूप होता है।

पाठ-बोधन (Reading Comprehension) की परिभाषा

किसी दिए गए पाठ को पढ़कर अध्येता द्वारा प्रतिपाद्य विषय तथा गद्यांश में निहित मूल अर्थ को हृदयंगम करना ही पाठ-बोधन कहलाता है।

 इस प्रकार का अभ्यास परीक्षार्थी की योग्यता को जाँचने का सर्वाधिक मापदण्ड होता है। इससे परीक्षार्थी की सही सूझ-बूझ तथा ग्रहण करने की सही क्षमता की परख की जा सकती हैं।

 पाठ-बोधन संबंधी सामान्य बातें

 No.-1 दिए गए पाठ का स्तर, विचार, भाषा, शैली आदि प्रत्येक दृष्टि से परीक्षा के स्तर के अनुरूप होता है।

No.-2. पाठ का स्वरूप साहित्यिक (अधिकांशतः), वैज्ञानिक, विवरणात्मक आदि होता है।

No.-3. दिया गया पाठ अपठित (अर्थात जो पढ़ा न गया हो) होता है।

No.-4. अपठित पाठ प्रायः गद्यांश होते हैं, किसी-किसी परीक्षा में पद्यांश भी।

No.-5. पाठ से ही संबंधित कुछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न नीचे दिए गए होते है तथा प्रत्येक के चार/पाँच वैकल्पिक उत्तर सुझाए गए होते हैं। परीक्षार्थी को इनमें से सही उत्तर चुनकर उसे निर्देशानुसार चिन्हित करना होता है।

 पाठ-बोधन पर आधारित प्रश्नों को हल करने की विधि

 No.-1. प्रथम चरण में पाठ को शीघ्रता से किन्तु ध्यानपूर्वक पढ़कर विषय-वस्तु तथा केन्द्रीय भाव को जानने का प्रयास करें।

No.-2. दूसरे चरण में पाठ को धीरे-धीरे एवं पूरे मनोयोग से नीचे दिए गए प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए पढ़ें। संभावित उत्तरों को साथ-साथ रेखांकित करें।

No.-3. तीसरे चरण में प्रश्नों के सही उत्तरों को सावधानीपूर्वक चिन्हांकित करें।

नोट :

No.-1. उत्तर पाठ पर ही आधारित होने चाहिए। कल्पना पर आधारित उत्तर से बचना चाहिए।

No.-2. उत्तर प्रसंगानुकूल एवं सीधा होना चाहिए।

No.-3. प्रत्येक विकल्प पर विचार करके देखें कि उनमें से किसके अर्थ की संगति संबंधित वाक्य के साथ सही बैठती है।

पाठ-बोधन पर आधारित प्रश्न

नीचे कुछ पाठ-बोधन पर आधारित प्रश्न दिया जा रहा है-

 No.-1. वैज्ञानिक प्रयोग की सफलता ने मनुष्य की बुद्धि का अपूर्व विकास कर दिया है। द्वितीय महायुद्ध में एटम बम की शक्ति ने कुछ क्षणों में ही जापान की अजेय शक्ति को पराजित कर दिया। इस शक्ति की युद्धकालीन सफलता ने अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रान्स आदि सभी देशों को ऐसे शस्त्रास्त्रों के निर्माण की प्रेरणा दी की सभी भयंकर और सर्वविनाशकारी शस्त्र बनाने लगे। अब सेना को पराजित करने तथा शत्रु-देश पर पैदल सेना द्वारा आक्रमण करने के लिए शस्त्र-निर्माण के स्थान पर देश के विनाश करने की दिशा में शस्त्रास्त्र बनने लगे है। इन हथियारों का प्रयोग होने पर शत्रु-देशों की अधिकांश जनता और संपत्ति थोड़े समय में ही नष्ट की जा सकेगी। चूँकि ऐसे शस्त्रास्त्र प्रायः सभी स्वतन्त्र देशों के संग्रहालयों में कुछ न कुछ आ गये है, अतः युद्ध की स्थिति में उनका प्रयोग भी अनिवार्य हो जायेगा।

अतः दुनिया का सर्वनाश या अधिकांश नाश तो अवश्य ही हो जायेगा। इसलिए निः शस्त्रीकरण की योजनाएँ बन रही हैं। शस्त्रास्त्रों के निर्माण में जो दिशा अपनाई गई, उसी के अनुसार आज इतने उत्रत शस्त्रास्त्र बन गये हैं, जिनके प्रयोग से व्यापक विनाश आसन्न दिखाई पड़ता है। अब भी परीक्षणों की रोकथाम तथा बने शस्त्रों के प्रयोग के रोकने के मार्ग खोजे जा रहे हैं। इन प्रयासों के मूल में एक भयंकर आतंक और विश्व विनाश का भय कार्य कर रहा है।

 No.-1. इस गद्यांश का मूल कथ्य क्या है ?

No.-1. आतंक और सर्वनाश का भय

No.-2. विश्व में शस्त्रास्त्रों की होड़

No.-3. द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका

No.-4. निःशस्त्रीकरण और विश्व शान्ति

उत्तर- No.-4.

 No.-2.भयंकर विनाशकारी आधुनिक शस्त्रास्त्रों के बनाने की प्रेरणा किसने दी ?

No.-1. अमेरिका ने

No.-2. अमेरिका की विजय ने

No.-3. जापान के विनाश ने

No.-4. बड़े देशों की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने

उत्तर- No.-3.

 No.-3.एटम बम की अपार शक्ति का प्रथम अनुभव कैसे हुआ ?

No.-1. जापान में हुई भयंकर विनाशलीला से

No.-2.जापान की अजेय शक्ति की पराजय से

No.-3. अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस की प्रतिस्पर्धा से

No.-4. अमेरिका की विजय से

उत्तर- No.-2.

 No.-4. बड़े-बड़े देश आधुनिक विनाशकारी शस्त्रास्त्र क्यों बना रहे हैं ?

No.-1. अपनी-अपनी सेनाओं में कमी करने के उद्देश्य से

No.-2. अपने संसाधनों का प्रयोग करने के उद्देश्य से

No.-3. अपना-अपना सामरिक व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से

No.-4. पारस्परिक भय के कारण

उत्तर- No.-3.

 No.-5. आधुनिक युद्ध भयंकर व विनाशकारी होते हैं क्योंकि-

No.-1. दोनों देशों के शस्त्रास्त्र इन युद्धों में समाप्त हो जाते हैं।

No.-2. अधिकांश जनता और उसकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है।

No.-3. दोनों देशों में महामारी और भुखमरी फैल जाती है।

No.-4. दोनों देशों की सेनाएँ इन युद्धों में मारी जाती हैं।

उत्तर- No.-2.

  No.-6. इस गद्यांश का सर्वाधिक उपर्युक्त शीर्षक है-

No.-1. निःशस्त्रीकरण

No.-2.आधुनिक शस्त्रास्त्रों का विनाशकारी प्रभाव

No.-3. एटम बम की शक्ति

No.-4. आतंक और विश्व-विनाश का भय

उत्तर- No.-1.

 No.-7. 'व्यापक विनाश आसन्न दिखाई पड़ता है।' इस वाक्य में 'आसन्न' का अर्थ क्या है ?

No.-1. अवश्य घटित होने वाला

No.-2. कुछ समय बाद घटित होने वाला

No.-3. किसी क्षेत्र विशेष में घटित होने वाला

No.-4. कभी घटित नहीं होने वाला

उत्तर- No.-1.

 No.-8.'निःशस्त्रीकरण' से क्या तात्पर्य है ?

No.-1. आधुनिक शस्त्रास्त्रों का मुक्त व्यापार

No.-2. आधुनिक शस्त्रास्त्रों के परीक्षण, प्रयोग एवं भंडारण पर प्रतिबंध

No.-3. एटम की शक्ति का रचनात्मक कार्यों में प्रयोग

No.-4. एटम बम का जनता पर प्रयोग न करने का संकल्प

उत्तर- No.-2.

 No.-9. निःशस्त्रीकरण की योजनाएँ क्यों बनाई जा रही हैं ?

No.-1. क्योंकि आतंक और विश्व के सर्वनाश का भय बढ़ता जा रहा है।

No.-2. क्योंकि बड़े देशों के संसाधन समाप्त होते जा रहे हैं।

No.-3. क्योंकि तृतीय विश्व युद्ध की अभी कोई सम्भावना नहीं है।

No.-4. क्योंकि ये योजनाएँ संयुक्त राष्ट्र संघ ने बनाई हैं।

उत्तर- No.-1.

 No.-10. विश्व को सर्वनाश से बचाने के लिए कौन सी योजना सर्वाधिक प्रभावी हो सकती है ?

No.-1. एटम शक्ति का नियोजन

No.-2. निःशस्त्रीकरण की योजना

No.-3.प्रत्येक देश को आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित करने की योजना

No.-4. रूस अमेरिका की मित्रता की योजना

उत्तर- No.-2.

No.-2. स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नये वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छूट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नयी पीढ़ी जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है।

जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज यह मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखावे जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है ,बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाये और सुनाये जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर लचकाने लगे हैं। ऐसे कार्यक्रम न शिव हैं, न समाज को शिव बनाने की शक्ति है इनमें। फिर जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है।

 No.-1. उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक होगा-

No.-1. पाश्चात्य उपभोक्तावाद और भरतीय दूरदर्शन

No.-2. पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का प्रचारक भारतीय दूरदर्शन

No.-3. भारतीय दूरदर्शन की अनर्थकारी भूमिका

No.-4. भारतीय जीवन-मूल्य और दूरदर्शन

उत्तर- No.-3.

 No.-2. नयी आर्थिक व्यवस्था से भारतीय दूरदर्शन किस तरह प्रभावित है ?

No.-1. हिंसा, यौनाचार, बलात्कार, अपहरण आदि मानव की हीन वृत्तियों से सन्बन्धित कार्यक्रमों का बाहुल्य हो चला है और यह सब पाश्चात्य मीडिया का ही असर हैं।

No.-2. पाश्चात्य मीडिया के प्रभाव के चलते भारतीय दूरदर्शन नये और स्वतन्त्र जीवन-मूल्यों की स्थापना में पूरे जोर से लग गया है।

No.-3. पाश्चात्य मीडिया के अनुकरण पर भारतीय दूरदर्शन भी स्त्री-स्वातंन्त्रय का प्रचार करने लगा है।

No.-4. भारतीय दूरदर्शन के कार्यक्रमों पर पाश्चात्य जीवन शैली का गहरा असर दिखाई देने लगा है।

उत्तर- No.-1.

 No.-3. नई आर्थिक नीति का प्रत्यक्ष प्रभाव क्या हो रहा है ?

No.-1. विकासशील देश अपनी राष्ट्रीय अस्मिता खोते जा रहे हैं।

No.-2. पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का विश्व के विकासशील देशों में व्यापक प्रचार हो रहा है।

No.-3.उपभोक्तावाद को खुला प्रोत्साहन मिल रहा है।

No.-4. विकासशील देश विकसित देशों की आर्थिक गुलामी में फँसते जा रहे हैं।

उत्तर- No.-2.

 No.-4. अर्थनीति के नये वैश्विक वातावरण से लेखक का क्या तात्पर्य है ?

No.-1. विकासशील देशों का विकसित देशों की आर्थिक गुलामी में फँसना

No.-2. अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सारे विश्व का एक सूत्र में जुड़ जाना

No.-3. आर्थिक नीति में राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाकर उसका उदारीकरण जिससे कोई देश अन्य किसी देश में व्यवसाय करने, उद्योग लगाने आदि आर्थिक कार्यक्रमों में स्वतंत्र हो

No.-4. विकसित देशों के पूँजीपतियों को विकासशील देशों में पूँजी-निवेश की स्वतन्त्रता

उत्तर- No.-3.

 No.-5.'समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही'- इस वाक्य से लेखक का क्या तात्पर्य है ?

No.-1. भारतीय दूरदर्शन अपना दायित्व ईमानदारी से नहीं निभा रहा है।

No.-2. वह भारतीय समाज को कल्याण के मार्ग पर न चलाकर श्मशान के मार्ग पर ले जा रहा है।

No.-3. वह समाज को नए जीवन मूल्यों से अनुप्राणित करने के स्थान पर उसे मुर्दा बनाने में लगा है।

No.-4. भारतीय दूरदर्शन अपने 'सत्यम, शिवम, सुन्दरम' के आदर्श को भूल कर सामाजिक जीवन को विकृत कर रहा है।

उत्तर- No.-4.

 No.-3. हमारे इतिहास के अध्ययन ने हमें यह दर्शाया है कि जीवन प्रायः बहुत क्रूर तथा कठोर है। इसके लिए उत्तेजित होना या लोगों को पूरी तरह दोषी ठहरना मूर्खता है और उसका कोई लाभ नहीं। गरीबी, दुःख और शोषण के कारणों को समझने और उनको दूर करने के प्रयत्नों में ही समझदारी है। यदि हम ऐसा करने में असफल हो जाते है और घटनाओं की दौड़ में पीछे रह जाते है, तो हम अवश्य कष्ट पाते हैं। भारत इस तरह से पीछे रह गया। यह कुछ प्राचीन रह गया। इसके समाज ने पुरातन परम्परा को धारण कर लिया, इसके सामाजिक ढाँचे ने अपने जीवन और शक्ति को खो दिया और यह निष्क्रिय होने लगा। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत ने कष्ट पाया। अंग्रेज इसका कारण रहे हैं। यदि अंग्रेज ऐसा न करते, तो शायद कोई और लोग ऐसा ही करते।

परन्तु अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित किया। उनके नए और ह्रष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुःखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परन्तु जिसके भाग्य में नए राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब अनिश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परन्तु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतन्त्रता दे देगा।

भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिन्दू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परन्तु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परन्तु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमे सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग थे, प्रभावित हो गए थे। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में पश्चिमी तरीकों से हिन्दू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिन्दू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। इनमें से कुछ का उल्लेख मैं तुम्हें अपने इन पत्रों में कर चुका हूँ, परन्तु नया प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान व्यक्ति और एक महान विद्वान जिसका नाम हम पहले ही सती प्रथा की समाप्ति के सम्बन्ध में ले चुके हैं। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था, वे धर्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्मो समाज कहलाया।

 No.-1.इस अवतरण से लेखक के विषय में यह पता चलता है कि

No.-1. भारत की समस्याओं के लिए वह विदेशी शासकों को दोषी ठहराता है।

No.-2.वह भारत पर ब्रिटिश प्रभाव का परीक्षण निष्पक्षता से करता है।

No.-3.लेखक ने बहुत से वर्ष इंग्लैण्ड में बिताये हैं और भारत की तरफ उसकी अरुचि विकसित हो गई है।

No.-4. वह हिन्दू धर्म का सच्चा अनुयायी है।

उत्तर- No.-2.

 No.-2. लेखक कहता है कि पश्चिमी विचारों ने मार्ग प्रशस्त किया है-

No.-1. जनसमूह में निराशा का

No.-2. भारतीयों में अधिक निरक्षता का

No.-3. मध्यम वर्ग के लोगों की ओर से विद्रोह का

No.-4. हिन्दू धर्म में सुधार का

उत्तर- No.-4.

 No.-3. यह अंग्रेजों द्वारा भारत को दिए गए महान लाभों में से एक नहीं है।

No.-1. यह राजनीतिक एकता की भावना लाया।

No.-2. अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों की तत्कालीन पश्चिमी विचारधारा के सम्पर्क में लायी।

No.-3. एक नए शिक्षित मध्यम वर्ग का जन्म हुआ।

No.-4. इसने रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास को बढ़ावा दिया।

उत्तर- No.-4.

 No.-4. राजा राममोहन राय के व्यक्तित्व की पहचान की जाती थी-

No.-1. संस्कृत और अरबी की एक छात्रवृत्ति से

No.-2. विभिन्न धर्मों के समीकरण से

No.-3. पश्चिमी विचार के प्रकारों की एक निष्ठावान नकल से

No.-4. ईसाई धर्म के अधिकतम प्रभाव से

उत्तर- No.-2.

 No.-4. संस्कृत और सभ्यता- ये दो शब्द हैं और उनके अर्थ भी अलगअलग हैं। सभ्यता मनुष्य का वह गुण है जिससे वह अपनी बाहरी तरक्की करता है। संस्कृति वह गुण है जिससे वह अपनी भीतरी उन्नति करता है, करुणा, प्रेम और परोपकार सीखता है। आज रेलगाड़ी, मोटर और हवाई जहाज, लम्बी-चौड़ी सड़कें और बड़े-बड़े मकान, अच्छा भोजन और अच्छी पोशाक, ये सभ्यता की पहचान हैं और जिस देश में इनकी जितनी ही अधिकता है उस देश को हम उतना ही सभ्य मानते हैं। मगर संस्कृति उन सबसे कहीं बारीक़ चीज है। वह मोटर नहीं, मोटर बनाने की कला है; मकान नहीं, मकान बनाने की रूचि है। संस्कृति धन नहीं, गुण है। संस्कृति ठाठ-बाट नहीं, विनय और विनम्रता है। एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है, लेकिन संस्कृति वह गुण है जो हममें छिपा हुआ है। हमारे पास घर होता है, कपड़े-लत्ते होते हैं, मगर ये सारी चीजें हमारी सभ्यता के सबूत हैं, जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखलाई नहीं देती, वह बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है और वह हमारी हर पसंद, हर आदत में छिपी रहती है। मकान बनाना सभ्यता का काम है, लेकिन हम मकान का कौन-सा नक्शा पसंद करते हैं- यह हमारी संस्कृति बतलाती है।

आदमी के भीतर काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मत्सर ये छः विकार प्रकृति के दिए हुए हैं। मगर ये विकार अगर बेरोक छोड़ दिए जायें, तो आदमी इतना गिर जाए कि उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाये। इसलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब दो देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते है तब उन दोनों की संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। इसलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा-से-ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियाँ से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।

 No.-1. 'सभ्यता' का अभिप्राय है-

No.-1. मानव को कलाकार बना देने वाली विशेषता

No.-2. मानव के भौतिक विकास का विधायक गुण

No.-3. मनुष्य के स्वाधीन चिंतन की गाथा

No.-4. युग-युग की ऐश्वर्यपूर्ण कहानी

उत्तर- No.-2.

 No.-2.'संस्कृति' का अभिप्राय है-

No.-1. हर युग में प्रासंगिक विशिष्टता

No.-2. विशिष्ट जीवन-दर्शन से सन्तुलित जीवन

No.-3. आनन्द मनाने का एक विशेष विधान

No.-4. मानव की आत्मिक उन्नति का संवर्धक आन्तरिक गुण

उत्तर- No.-4.

 No.-3. संस्कृति सभ्यता से इस रूप में भी भिन्न है कि संस्कृति-

No.-1. सभ्यता की अपेक्षा स्थूल और विशद होती है।

No.-2. एक आदर्श विधान है और सभ्यता यथार्थ होती है।

No.-3. सभ्यता की अपेक्षा अत्यन्त सूक्ष्म होती है।

No.-4. समन्वयमूलक है और सभ्यता नितान्त मौलिक होती है।

उत्तर- No.-3.

 No.-4.संस्कृति का मूल स्वभाव है कि वह-

No.-1. मानव-मानव में भेदभाव नहीं रखती।

No.-2. मनुष्य की आत्मा में विश्वास रखती है।

No.-3. आदान-प्रदान से बढ़ती है।

No.-4. एक समुदाय की जीवन में ही जीवित रह सकती है।

उत्तर- No.-3.

 No.-5. मानव की मानवीयता इसी बात में निहित है कि वह-

No.-1. अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रचार करे।

No.-2. अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के लिए कटिबद्ध रहे।

No.-3. सभ्यता की ऊँचाइयों को पाने का प्रयास करे।

No.-4. अपने मन से विधमान विकारों पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करे।

उत्तर- No.-4.

 No.-5. जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं है जो फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं, बल्कि फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं, बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का कोई स्वाद छिपा है, तो वह भी उन्हीं के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं जिनका कंठ सूखा हुआ है, ओठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है। पानी में जो अमृतवाला तत्व है, उसे वह जानता है जो धूप में खूब सूख चुका है, वह नहीं जो रेगिस्तान में कभी पड़ा ही नहीं है।

 No.-1. यह गद्यांश किसका लिखा हुआ है ?

No.-1. रामधारी सिंह 'दिनकर'

No.-2. रामचन्द्र शुक्ल

No.-3. गुलाब राय

No.-4. बालमुकुन्द गुप्त

उत्तर- No.-1.

 No.-2. जिन्दगी के असली मजे किनके लिए है ?

No.-1. जो आराम करते है

No.-2. जो परिश्रम करते है

No.-3. जो शहर में रहते हैं

No.-4. जो पैसे वाले है

उत्तर- No.-2.

 No.-3.उपर्युक्त गद्यांश में किस बात के महत्व को बताया गया है ?

No.-1. प्रकृति

No.-2. जीवन

No.-3. श्रम

No.-4. भाग्य

उत्तर- No.-3.

 No.-4. जो धूप में खूब सूख चुका है, से अभिप्राय है-

No.-1. कड़ा परिश्रम करना

No.-2. धूप सेंकना

No.-3. बीमार होना

No.-4.रेगिस्तान में रहना

उत्तर- No.-1.

 No.-5. 'अमृतवाला तत्व' का तात्पर्य है-

No.-1. जीवन का सार

No.-2. अमृत

No.-3. जीवन का रहस्य

No.-4. समुद्र से निकलता हुआ अमृत

उत्तर- No.-1.

 No.-6. वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओतप्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है, चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नही होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या समय पक्षी अपने नीड़ की ओर उड़े चले जाते हैं। देशप्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृ भूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन-भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते, लेकिन परीक्षा की घड़ी आने पर भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्या करेंगे ? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है।

 No.-1. देश-प्रेम का अंकुर विधमान है-

No.-1. सभी मानवों में

No.-2. सभी प्राणियों में

No.-3. सभी पक्षियों में

No.-4. सभी पशुओं में

उत्तर- No.-2.

 No.-2. सच्चा देश-प्रेमी-

No.-1. वीर सपूतों की कहानियाँ सुनाता है।

No.-2. मातृभूमि का जयघोष करता है।

No.-3. परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरता है।

No.-4. अपनी भूमि देश के लिए दान कर देता है।

उत्तर- No.-3.

 No.-3.देश-प्रेम का अभिप्राय है-

No.-1. देश के प्रति कोमल भावों का उदय

No.-2. अनथक प्रयत्न करके देश का निर्माण करना

No.-3. देशहित के लिए शत्रु से संघर्ष करना

No.-4. देश के प्रति व्यक्ति का स्वाभाविक ममत्व

उत्तर- No.-4.

 No.-4. संध्या समय पक्षी अपने घोंसलों में वापस चले जाते हैं, क्योंकि-

No.-1. दिन-भर घूमकर वे थक जाते है।

No.-2. उन्हें रात को आराम करना है।

No.-3. जानवर भी अपने निवास-स्थान को चले जाते हैं।

No.-4. उन्हें अपना नीड़ प्यारा होता है।

उत्तर- No.-4.

 No.-5. वही देश महान है जहाँ के लोग-

No.-1. शिक्षित और प्रशिक्षित हैं।

No.-2. बेरोजगार तथा निरूद्यमी नहीं है।

No.-3. कृषि और व्यापार से धनार्जन करते हैं।

No.-4. त्याग और उत्सर्ग में सदा आगे रहते हैं।

उत्तर- No.-4.

No.-7. आवश्यकता इस बात की है कि हमारी शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा हो, जिससे राष्ट्र के हृदय-मन-प्राण के सूक्ष्मतम और गम्भीरतम संवेदन मुखरित हों और हमारा पाठ्यक्रम यूरोप तथा अमेरिका के पाठ्यक्रम पर आधरित न होकर हमारी अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं एवं आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करे। भारतीय भाषाओं, भारतीय इतिहास, भारतीय दर्शन, भारतीय धर्म और भारतीय समाजशास्त्र को हम सर्वोपरि स्थान दें। उन्हें अपने शिक्षाक्रम में गौण स्थान देकर या शिक्षित जन को उनसे वंचित रखकर हमने राष्ट्रीय संस्कृति में एक महान रिक्ति को जन्म दिया है, जो नयी पीढ़ी को भीतर से खोखला कर रहा है। हम राष्ट्रीय परम्परा से ही नहीं, सामयिक जीवन प्रवाह से भी दूर जा पड़े हैं। विदेशी पश्चिमी चश्मों के भीतर से देखने पर अपने घर के प्राणी भी बे-पहचाने और अजीब से लगने लगे हैं। शिक्षित जन और सामान्य जनता के बीच खाई बढ़ती गई है और विश्व संस्कृति के दावेदार होने का दम्भ करते हुए भी हम घर में वामन ही बने रह गए हैं। इस स्थिति को हास्यास्पद ही कहा जा सकता है।

 No.-1.उपर्युक्त गद्यांश का सर्वाधिक उपर्युक्त शीर्षक है-

No.-1. हमारा शिक्षा-माध्यम और पाठ्यक्रम

No.-2. शिक्षित जन और सामान्य जनता

No.-3.हमारी सांस्कृतिक परम्परा

No.-4. शिक्षा का माध्यम

उत्तर- No.-1.

 No.-2. हमारी शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा इसलिए होना चाहिए क्योंकि उसमें-

No.-1. विदेशी पाठ्यक्रम का अभाव होता है।

No.-2. भारतीय इतिहास और भारतीय दर्शन का ज्ञान निहित होता है।

No.-3. सामयिक जीवन निरन्तर प्रवाहित होता रहता है।

No.-4. भारतीय मानस का स्पन्दन ध्वनित होता है।

उत्तर- No.-4.

 No.-3. हमारी शिक्षा में ऐसे पाठ्यक्रम की आवश्यकता है जिसमें

No.-1. सामयिक जन-संस्कृति का समावेश हो।

No.-2. भारतीय सांस्कृतिक परम्परा का प्रतिनिधित्व हो।

No.-3. पाश्चात्य संस्कृति का पूर्ण ज्ञान कराने की क्षमता हो।

No.-4.आधुनिक वैज्ञानिक विचारधाराओं का सन्निवेश हो।

उत्तर- No.-2.

 No.-4.हमें राष्ट्रीय सांस्कृतिक परम्परा के साथ-साथ जुड़ना चाहिए-

No.-1. सामयिक जीवन-प्रवाह से

No.-2. समसामयिक वैज्ञानिक विचारधारा से

No.-3. अद्यतन साहित्यिक परम्परा से

No.-4. भारतीय नव्य समाजशास्त्र से

उत्तर- No.-4.

 No.-5. शिक्षित जन और सामान्य जनता में निरन्तर अन्तर बढ़ने का कारण है कि हम-

No.-1. भारतीय समाजशास्त्र को सर्वोपरि स्थान नहीं देते।

No.-2. विदेशी चश्मे लगाकर अपने लोगों को देखते हैं।

No.-3. भारतीय भाषाओं का अध्ययन नहीं करते।

No.-4. नई पीढ़ी को भीतर से खोखला कर रहे हैं।

उत्तर- No.-2.

 No.-8. सच्चे वीर अपने प्रेम के जोर से लोगों को सदा के लिए बाँध देते हैं। वीरता की अभिव्यक्ति कई प्रकार से होती है, कभी लड़ने-मरने से, खूब बहाने से, तोप तलवार के सामने बलिदान करने से होती है, तो कभी जीवन के गूढ़ तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध जैसे राजा विरक्त होकर वीर हो जाते है। वीरता एक प्रकार की अन्तः प्रेरणा है जब कभी उसका विकास हुआ तभी एक रौनक, एक रंग, एक बहार संसार में छा गई। वीरता हमेशा निराली और नई होती है। वीरों को बनाने के कारखाने नहीं होते। वे तो देवदार के वृक्ष की भाँति जीवन रूपी वन में स्वयं पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिये, बिना किसी के दूध पिलाये बढ़ते हैं। ''जीवन के केन्द्र में निवास करो और सत्य की चट्टान पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ। बाहर की सतह छोड़कर जीवन के अन्दर की तहों में पहुँचें तब नये रंग खिलेंगे।' यही वीरता का सन्देश है।

 No.-1. इस गद्यांश के लिए उपर्युक्त शीर्षक होगा-

No.-1. वीरता संस्मरण

No.-2. सच्ची वीरता

No.-3. वीरों का उत्पन्न होना

No.-4. देवदार और वीर

उत्तर- No.-2.

 No.-2. वीरता का संदेश क्या है ?

No.-1. यह संकल्प कि किसी भी हालत में युद्ध जीतना है

No.-2. बुद्ध जैसे राजा की भाँति विरक्त होना

No.-3. उद्देश्य के लिए सच्चाई पर चट्टान की तरह अटल रहना

No.-4.हमेशा नया और निराला रहना

उत्तर- No.-3.

 No.-3. वीरों की देवदार वृक्ष से तुलना की गई, क्योंकि दोनों-

No.-1. खाना-पीना मिलने पर ही बढ़ते हैं

No.-2. का दिल उदार होता है

No.-3. सत्य का हमेशा पालन करते है

No.-4. स्वयं पैदा होते है और बिना किसी के दूध पिलाये बढ़ते हैं

उत्तर- No.-4.

 No.-4. निम्नलिखित में से कौन-सा रूप वीरता का नहीं है ?

No.-1. क्रोध

No.-2. युद्ध

No.-3. त्याग

No.-4. दान

उत्तर- No.-1

 No.-5. वीरता का एक विशेष लक्षण है-

No.-1. नयापन

No.-2. नकल

No.-3. हास्य

No.-4. करुणा

उत्तर- No.-1.

 No.-9. राज भाषा का अर्थ राजा या राज्य की भाषा है। वह भाषा जिसमें शासक या शासन का काम होता है। राष्ट्र भाषा वह है जिसका व्यवहार राष्ट्र के सामान्य जन करते है। राजभाषा का क्षेत्र सीमित होता है। राष्ट्र भाषा सारे देश की संपर्क भाषा है। राष्ट्र भाषा के साथ जनता का भावात्मक लगाव रहता है क्योंकि उसके साथ जनसाधारण की सांस्कृतिक परंपरायें जुड़ी रहती हैं। राजभाषा के प्रति वैसा सम्मान हो तो सकता है, लेकिन नहीं भी हो सकता है, क्योंकि वह अपने देश की भी हो सकती है। किसी गैर देश से आये शासक की भी हो सकती है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आज हिन्दी राजभाषा के रूप में ही विराजित है। 14 सितंबर, 1949 ई. को भारत के संविधान में हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई है। संविधान की धारा 120 के अनुसार संसद का कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाता है। धारा 210 के अंतर्गत राज्यों के विधानमंडलों का कार्य अपने-अपने राज्य की राजभाषा या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है। 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। इस भाषा का प्रसार तथा प्रचार के लिए महात्मा गाँधी का योगदान रहा है। धारा 344 में राष्ट्रपति को शासकीय कार्य में हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिक करने के लिए कहा गया है।

 No.-1. राष्ट्रभाषा के प्रमुख लक्षणों में से इनमें से कौन-सा व्यवहार नहीं है ?

No.-1. क्षेत्र सीमित होता है

No.-2. सामान्य जन भाषा है

No.-3.सारे देश की संपर्क भाषा है

No.-4. जनता की भावनात्मक तथा सांस्कृतिक भाषा है

उत्तर- No.-1.

 No.-2. हिन्दी भाषा को भारतीय संविधान में किस साल मान्यता प्राप्त हुई है ?

No.-1. 1947

No.-2.1948

No.-3. 1949

No.-4.1950

उत्तर- No.-3.

 No.-3. इस अनुच्छेद का निम्न में से उचित शीर्षक चुनिए।

No.-1. राजभाषा और राष्ट्रभाषा

No.-2.भावनात्मक भाषा

No.-3. जनभाषा

No.-4. बोलचाल की भाषा

उत्तर- No.-1.

 No.-4. इस अनुच्छेद के सार में किस भाषा को ज्यादा जोर देने की बात कही गयी है ?

No.-1. भारतीय सभी भाषाओं को

No.-2. हिन्दी भाषा को

No.-3. संविधानिक भाषा को

No.-4. दक्षिण की भाषा को

उत्तर- No.-2.

 No.-5. भारतीय किस भाषा को विश्व भाषा बनने की ज्यादा संभावना है ?

No.-1. कत्रड़

No.-2. मराठी

No.-3. गुजराती

No.-4. हिन्दी

उत्तर- No.-4.

 No.-6. धारा 344 किसे हिन्दी भाषा का प्रयोग ज्यादा शासकीय कार्य के लिए करने की बात कही गयी है ?

No.-1. मुख्यमंत्री

No.-2. प्रधानमंत्री

No.-3. राष्ट्रपति

No.-4. शासकगण

उत्तर- No.-3.

 No.-7. आजादी के बाद देश में राजभाषा के रूप में कौन-सी भाषा स्थित है ?

No.-1. कत्रड़

No.-2. पंजाबी

No.-3. हिन्दी

No.-4. अंग्रेजी

उत्तर- No.-3.

 No.-8. भारत वर्ष में हिन्दी दिवस कब मनाया जाता है ?

No.-1. 2 अक्टुबर

No.-2. 15 अगस्त

No.-3. 26 जनवरी

No.-4.14 सितंबर

उत्तर- No.-4.

 No.-9. हिन्दी भाषा के प्रचार एवं प्रसार में किसका योगदान रहा ?

No.-1. महात्मा गाँधीजी

No.-2. जवाहरलाल नेहरु

No.-3. सुभाष चंद्र बोस

No.-4. जय प्रकाश नारायण

उत्तर- No.-1.

 No.-10. संघ की राजभाषा हिन्दी तथा लिपि देवनागरी का उल्लेख किसमें है ?

No.-1. भारत में

No.-2. संविधान में

No.-3. संविधान के 343 धारा में

No.-4. सभी धारा के अंतर्गत

उत्तर- No.-3.

 No.-11. राजभाषा का अर्थ क्या है ?

No.-1. देश की भाषा

No.-2. नगर की भाषा

No.-3. राजा या राज्य की भाषा

No.-4.विदेशियों की भाषा

उत्तर- No.-3.

 No.-12.संविधान के किस धारा के अंतर्गत संसद का कार्य-कलाप हिन्दी या अंग्रेजी में करने का उल्लेख है ?

No.-1. धारा 210

No.-2. धारा 120

No.-3. धारा 343

No.-4. धारा 344

उत्तर- No.-2.

 No.-13. हिन्दी भाषा की लिपि क्या है ?

No.-1. द्राविड़

No.-2. देवनागरी

No.-3. ब्राह्मी

No.-4. खरोष्टी

उत्तर- No.-2.

 No.-14. इनमें से कौन-सी धारा हिन्दी भाषा के लिए अन्वित नहीं है ?

No.-1. धारा 100

No.-2. धारा 120

No.-3. धारा 210

No.-4. धारा 343

उत्तर- No.-1.

 No.-15. राज्य विधानमंडलों के कार्य-कलाप संबंधी भाषा का उल्लेख संविधान की कौन-सी धारा करती है ?

No.-1. धारा 210

No.-2. धारा 343

No.-3. धारा 344

No.-4. धारा 345

उत्तर- No.-1.

 

 

 

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