No.-1.किसी दिए गए पाठ को पढ़कर अध्येता द्वारा प्रतिपाद्य विषय तथा गद्यांश में निहित मूल अर्थ को हृदयंगम करना ही पाठ-बोधन कहलाता है।
इस प्रकार का अभ्यास परीक्षार्थी की योग्यता को जाँचने का सर्वाधिक मापदण्ड होता है। इससे परीक्षार्थी की सही सूझ-बूझ तथा ग्रहण करने की सही क्षमता की परख की जा सकती हैं।
पाठ-बोधन
संबंधी सामान्य बातें
पाठ-बोधन (Reading Comprehension) की परिभाषा
किसी दिए गए पाठ को पढ़कर अध्येता द्वारा प्रतिपाद्य विषय तथा गद्यांश में निहित मूल अर्थ को हृदयंगम करना ही पाठ-बोधन कहलाता है।
पाठ-बोधन
संबंधी सामान्य बातें
No.-2. पाठ का स्वरूप साहित्यिक (अधिकांशतः), वैज्ञानिक, विवरणात्मक आदि होता है।
No.-3. दिया गया पाठ अपठित (अर्थात जो पढ़ा न गया हो) होता है।
No.-4. अपठित पाठ प्रायः गद्यांश होते हैं, किसी-किसी परीक्षा में पद्यांश भी।
No.-5. पाठ से ही संबंधित कुछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न नीचे दिए गए होते है तथा प्रत्येक के चार/पाँच वैकल्पिक उत्तर सुझाए गए होते हैं। परीक्षार्थी को इनमें से सही उत्तर चुनकर उसे निर्देशानुसार चिन्हित करना होता है।
पाठ-बोधन
पर आधारित प्रश्नों को हल करने की विधि
No.-2. दूसरे चरण में पाठ को धीरे-धीरे एवं पूरे मनोयोग से नीचे दिए गए प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए पढ़ें। संभावित उत्तरों को साथ-साथ रेखांकित करें।
No.-3. तीसरे चरण में प्रश्नों के सही उत्तरों को सावधानीपूर्वक चिन्हांकित करें।
नोट
:
No.-1. उत्तर पाठ पर ही आधारित होने चाहिए। कल्पना पर आधारित उत्तर से बचना चाहिए।
No.-2. उत्तर प्रसंगानुकूल एवं सीधा होना चाहिए।
No.-3. प्रत्येक विकल्प पर विचार करके देखें कि उनमें से किसके अर्थ की संगति संबंधित वाक्य के साथ सही बैठती है।
पाठ-बोधन पर आधारित प्रश्न
नीचे कुछ पाठ-बोधन पर आधारित प्रश्न दिया जा रहा है-
अतः दुनिया का सर्वनाश या अधिकांश नाश तो अवश्य ही हो जायेगा। इसलिए निः शस्त्रीकरण की योजनाएँ बन रही हैं। शस्त्रास्त्रों के निर्माण में जो दिशा अपनाई गई, उसी के अनुसार आज इतने उत्रत शस्त्रास्त्र बन गये हैं, जिनके प्रयोग से व्यापक विनाश आसन्न दिखाई पड़ता है। अब भी परीक्षणों की रोकथाम तथा बने शस्त्रों के प्रयोग के रोकने के मार्ग खोजे जा रहे हैं। इन प्रयासों के मूल में एक भयंकर आतंक और विश्व विनाश का भय कार्य कर रहा है।
No.-1. आतंक और सर्वनाश का भय
No.-2. विश्व में शस्त्रास्त्रों की होड़
No.-3. द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका
No.-4. निःशस्त्रीकरण और विश्व शान्ति
उत्तर- No.-4.
No.-1. अमेरिका ने
No.-2. अमेरिका की विजय ने
No.-3. जापान के विनाश ने
No.-4. बड़े देशों की पारस्परिक प्रतिस्पर्धा ने
उत्तर- No.-3.
No.-1. जापान में हुई भयंकर विनाशलीला से
No.-2.जापान की अजेय शक्ति की पराजय से
No.-3. अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस की प्रतिस्पर्धा से
No.-4. अमेरिका की विजय से
उत्तर- No.-2.
No.-1. अपनी-अपनी सेनाओं में कमी करने के उद्देश्य से
No.-2. अपने संसाधनों का प्रयोग करने के उद्देश्य से
No.-3. अपना-अपना सामरिक व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से
No.-4. पारस्परिक भय के कारण
उत्तर- No.-3.
No.-1. दोनों देशों के शस्त्रास्त्र इन युद्धों में समाप्त हो जाते हैं।
No.-2. अधिकांश जनता और उसकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है।
No.-3. दोनों देशों में महामारी और भुखमरी फैल जाती है।
No.-4. दोनों देशों की सेनाएँ इन युद्धों में मारी जाती हैं।
उत्तर- No.-2.
No.-1. निःशस्त्रीकरण
No.-2.आधुनिक शस्त्रास्त्रों का विनाशकारी प्रभाव
No.-3. एटम बम की शक्ति
No.-4. आतंक और विश्व-विनाश का भय
उत्तर- No.-1.
No.-1. अवश्य घटित होने वाला
No.-2. कुछ समय बाद घटित होने वाला
No.-3. किसी क्षेत्र विशेष में घटित होने वाला
No.-4. कभी घटित नहीं होने वाला
उत्तर- No.-1.
No.-1. आधुनिक शस्त्रास्त्रों का मुक्त व्यापार
No.-2. आधुनिक शस्त्रास्त्रों के परीक्षण, प्रयोग एवं भंडारण पर प्रतिबंध
No.-3. एटम की शक्ति का रचनात्मक कार्यों में प्रयोग
No.-4. एटम बम का जनता पर प्रयोग न करने का संकल्प
उत्तर- No.-2.
No.-1. क्योंकि आतंक और विश्व के सर्वनाश का भय बढ़ता जा रहा है।
No.-2. क्योंकि बड़े देशों के संसाधन समाप्त होते जा रहे हैं।
No.-3. क्योंकि तृतीय विश्व युद्ध की अभी कोई सम्भावना नहीं है।
No.-4. क्योंकि ये योजनाएँ संयुक्त राष्ट्र संघ ने बनाई हैं।
उत्तर- No.-1.
No.-1. एटम शक्ति का नियोजन
No.-2. निःशस्त्रीकरण की योजना
No.-3.प्रत्येक देश को आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित करने की योजना
No.-4. रूस अमेरिका की मित्रता की योजना
उत्तर- No.-2.
No.-2. स्वतंत्र व्यवसाय की अर्थनीति के नये वैश्विक वातावरण ने विदेशी पूँजी निवेश को खुली छूट दे रखी है जिसके कारण दूरदर्शन में ऐसे विज्ञापनों की भरमार हो गई है जो उन्मुक्त वासना, हिंसा, अपराध, लालच और ईर्ष्या जैसी मानव की हीनतम प्रवृत्तियों को आधार मानकर चल रहे हैं। अत्यन्त खेद का विषय है कि राष्ट्रीय दूरदर्शन ने भी उनकी भोंडी नकल की ठान ली है। आधुनिकता के नाम पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, सुनाया जा रहा है, उससे भारतीय जीवन मूल्यों का दूर का भी रिश्ता नहीं है, वे सत्य से भी कोसों दूर हैं। नयी पीढ़ी जो स्वयं में रचनात्मक गुणों के विकास करने की जगह दूरदर्शन के सामने बैठकर कुछ सीखना, जानना और मनोरंजन करना चाहती है, उसका भगवान ही मालिक है।
जो असत्य है, वह सत्य नहीं हो सकता। समाज को शिव बनाने का प्रयत्न नहीं होगा तो समाज शव बनेगा ही। आज यह मजबूरी हो गई है कि दूरदर्शन पर दिखावे जाने वाले वासनायुक्त अश्लील दृश्यों से चार पीढ़ियाँ एक साथ आँखें चार कर रही हैं। नतीजा सामने है ,बलात्कार, अपहरण, छोटी बच्चियों के साथ निकट सम्बन्धियों द्वारा शर्मनाक यौनाचार की घटनाओं में वृद्धि। ठुमक कर चलते शिशु दूरदर्शन पर दिखाये और सुनाये जा रहे स्वर और भंगिमाओं पर अपनी कमर लचकाने लगे हैं। ऐसे कार्यक्रम न शिव हैं, न समाज को शिव बनाने की शक्ति है इनमें। फिर जो शिव नहीं, वह सुन्दर कैसे हो सकता है।
No.-1. पाश्चात्य उपभोक्तावाद और भरतीय दूरदर्शन
No.-2. पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का प्रचारक भारतीय दूरदर्शन
No.-3. भारतीय दूरदर्शन की अनर्थकारी भूमिका
No.-4. भारतीय जीवन-मूल्य और दूरदर्शन
उत्तर- No.-3.
No.-1. हिंसा,
यौनाचार,
बलात्कार,
अपहरण आदि मानव
की हीन वृत्तियों से सन्बन्धित कार्यक्रमों का बाहुल्य हो चला है और यह सब
पाश्चात्य मीडिया का ही असर हैं।
No.-2. पाश्चात्य मीडिया के प्रभाव के चलते भारतीय दूरदर्शन नये और स्वतन्त्र जीवन-मूल्यों की स्थापना में पूरे जोर से लग गया है।
No.-3. पाश्चात्य मीडिया के अनुकरण पर भारतीय दूरदर्शन भी स्त्री-स्वातंन्त्रय का प्रचार करने लगा है।
No.-4. भारतीय दूरदर्शन के कार्यक्रमों पर पाश्चात्य जीवन शैली का गहरा असर दिखाई देने लगा है।
उत्तर- No.-1.
No.-1. विकासशील देश अपनी राष्ट्रीय अस्मिता खोते जा रहे हैं।
No.-2. पाश्चात्य जीवन-मूल्यों का विश्व के विकासशील देशों में व्यापक प्रचार हो रहा है।
No.-3.उपभोक्तावाद को खुला प्रोत्साहन मिल रहा है।
No.-4. विकासशील देश विकसित देशों की आर्थिक गुलामी में फँसते जा रहे हैं।
उत्तर- No.-2.
No.-1. विकासशील देशों का विकसित देशों की आर्थिक गुलामी में फँसना
No.-2. अर्थव्यवस्था की दृष्टि से सारे विश्व का एक सूत्र में जुड़ जाना
No.-3. आर्थिक नीति में राष्ट्रीय प्रतिबंधों को हटाकर उसका उदारीकरण जिससे कोई देश अन्य किसी देश में व्यवसाय करने, उद्योग लगाने आदि आर्थिक कार्यक्रमों में स्वतंत्र हो
No.-4. विकसित देशों के पूँजीपतियों को विकासशील देशों में पूँजी-निवेश की स्वतन्त्रता
उत्तर- No.-3.
No.-1. भारतीय दूरदर्शन अपना दायित्व ईमानदारी से नहीं निभा रहा है।
No.-2. वह भारतीय समाज को कल्याण के मार्ग पर न चलाकर श्मशान के मार्ग पर ले जा रहा है।
No.-3. वह समाज को नए जीवन मूल्यों से अनुप्राणित करने के स्थान पर उसे मुर्दा बनाने में लगा है।
No.-4. भारतीय दूरदर्शन अपने 'सत्यम, शिवम, सुन्दरम' के आदर्श को भूल कर सामाजिक जीवन को विकृत कर रहा है।
उत्तर- No.-4.
परन्तु अंग्रेजों ने भारत का एक बहुत बड़ा हित किया। उनके नए और ह्रष्ट-पुष्ट जीवन के प्रभाव ने भारत को हिला दिया और उनमें राजनीतिक एकता और राष्ट्रीयता की भावना जागृत हो गई। शायद यह बड़ा दुःखदायी था कि हमारे प्राचीन देश और लोगों में नवजीवन लाने की आवश्यकता थी। अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य केवल क्लर्क बनाना और तत्कालीन पश्चिमी विचारों से लोगों को परिचित कराना था। एक नया वर्ग बनने लगा, अंग्रेजी शिक्षित वर्ग, संख्या में कम और लोगों से कटा हुआ, परन्तु जिसके भाग्य में नए राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व था। यह वर्ग पहले इंग्लैण्ड और अंग्रेजी स्वतंत्रता के विचारों का पूरी तरह प्रशंसक था। तब ही लोग स्वतंत्रता और प्रजातंत्र के बारे में बातें कर रहे थे। यह सब अनिश्चित था और इंग्लैण्ड भारत में अपने लाभ के लिए निरंकुशता से राज्य कर रहा था, परन्तु यह आशा की जाती थी कि इंग्लैण्ड ठीक समय पर भारत को स्वतन्त्रता दे देगा।
भारत में पश्चिमी विचारों का प्रभाव हिन्दू धर्म पर भी कुछ सीमा तक पड़ा। जनसमूह तो प्रभावित नहीं हुआ, परन्तु जैसा मैं तुम्हें बता चुका हूँ, ब्रिटिश सरकार की नीति ने रूढ़िवादी लोगों की वास्तव में सहायता की, परन्तु नया मध्यम वर्ग जो अभी बन रहा था, जिसमे सरकारी कर्मचारी और व्यावसायिक लोग थे, प्रभावित हो गए थे। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में पश्चिमी तरीकों से हिन्दू धर्म में सुधार लाने का प्रयत्न बंगाल में हुआ। हिन्दू धर्म के अनगिनत सुधारक अतीत में थे। इनमें से कुछ का उल्लेख मैं तुम्हें अपने इन पत्रों में कर चुका हूँ, परन्तु नया प्रयत्न निश्चय ही ईसाईवाद और पश्चिमी विचारों से प्रभावित था। इस प्रयत्न के निर्माता राजा राममोहन राय थे, एक महान व्यक्ति और एक महान विद्वान जिसका नाम हम पहले ही सती प्रथा की समाप्ति के सम्बन्ध में ले चुके हैं। वे संस्कृत, अरबी और दूसरी कई भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानते थे और उन्होंने ध्यान से कई धर्मों का अध्ययन किया था, वे धर्मिक समारोह और पूजा आदि के विरुद्ध थे और उन्होंने समाज सुधार और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया। जिस समाज की उन्होंने स्थापना की वह ब्रह्मो समाज कहलाया।
No.-1. भारत की समस्याओं के लिए वह विदेशी शासकों को दोषी ठहराता है।
No.-2.वह भारत पर ब्रिटिश प्रभाव का परीक्षण निष्पक्षता से करता है।
No.-3.लेखक ने बहुत से वर्ष इंग्लैण्ड में बिताये हैं और भारत की तरफ उसकी अरुचि विकसित हो गई है।
No.-4. वह हिन्दू धर्म का सच्चा अनुयायी है।
उत्तर- No.-2.
No.-1. जनसमूह में निराशा का
No.-2. भारतीयों में अधिक निरक्षता का
No.-3. मध्यम वर्ग के लोगों की ओर से विद्रोह का
No.-4. हिन्दू धर्म में सुधार का
उत्तर- No.-4.
No.-1. यह राजनीतिक एकता की भावना लाया।
No.-2. अंग्रेजी शिक्षा भारतीयों की तत्कालीन पश्चिमी विचारधारा के सम्पर्क में लायी।
No.-3. एक नए शिक्षित मध्यम वर्ग का जन्म हुआ।
No.-4. इसने रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास को बढ़ावा दिया।
उत्तर- No.-4.
No.-1. संस्कृत और अरबी की एक छात्रवृत्ति से
No.-2. विभिन्न धर्मों के समीकरण से
No.-3. पश्चिमी विचार के प्रकारों की एक निष्ठावान नकल से
No.-4. ईसाई धर्म के अधिकतम प्रभाव से
उत्तर- No.-2.
आदमी के भीतर काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मत्सर ये छः विकार प्रकृति के दिए हुए हैं। मगर ये विकार अगर बेरोक छोड़ दिए जायें, तो आदमी इतना गिर जाए कि उसमें और जानवर में कोई भेद नहीं रह जाये। इसलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है। इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू कर पाता है, उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची समझी जाती है। संस्कृति का स्वभाव है कि वह आदान-प्रदान से बढ़ती है। जब दो देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते है तब उन दोनों की संस्कृतियाँ एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। इसलिए संस्कृति की दृष्टि से वह जाति या वह देश बहुत ही धनी समझा जाता है जिसने ज्यादा-से-ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृतियाँ से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो।
No.-1. मानव को कलाकार बना देने वाली विशेषता
No.-2. मानव के भौतिक विकास का विधायक गुण
No.-3. मनुष्य के स्वाधीन चिंतन की गाथा
No.-4. युग-युग की ऐश्वर्यपूर्ण कहानी
उत्तर- No.-2.
No.-1. हर युग में प्रासंगिक विशिष्टता
No.-2. विशिष्ट जीवन-दर्शन से सन्तुलित जीवन
No.-3. आनन्द मनाने का एक विशेष विधान
No.-4. मानव की आत्मिक उन्नति का संवर्धक आन्तरिक गुण
उत्तर- No.-4.
No.-1. सभ्यता की अपेक्षा स्थूल और विशद होती है।
No.-2. एक आदर्श विधान है और सभ्यता यथार्थ होती है।
No.-3. सभ्यता की अपेक्षा अत्यन्त सूक्ष्म होती है।
No.-4. समन्वयमूलक है और सभ्यता नितान्त मौलिक होती है।
उत्तर- No.-3.
No.-1. मानव-मानव में भेदभाव नहीं रखती।
No.-2. मनुष्य की आत्मा में विश्वास रखती है।
No.-3. आदान-प्रदान से बढ़ती है।
No.-4. एक समुदाय की जीवन में ही जीवित रह सकती है।
उत्तर- No.-3.
No.-1. अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रचार करे।
No.-2. अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के लिए कटिबद्ध रहे।
No.-3. सभ्यता की ऊँचाइयों को पाने का प्रयास करे।
No.-4. अपने मन से विधमान विकारों पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करे।
उत्तर- No.-4.
No.-1. रामधारी सिंह 'दिनकर'
No.-2. रामचन्द्र शुक्ल
No.-3. गुलाब राय
No.-4. बालमुकुन्द गुप्त
उत्तर- No.-1.
No.-1. जो आराम करते है
No.-2. जो परिश्रम करते है
No.-3. जो शहर में रहते हैं
No.-4. जो पैसे वाले है
उत्तर- No.-2.
No.-1. प्रकृति
No.-2. जीवन
No.-3. श्रम
No.-4. भाग्य
उत्तर- No.-3.
No.-1. कड़ा परिश्रम करना
No.-2. धूप सेंकना
No.-3. बीमार होना
No.-4.रेगिस्तान में रहना
उत्तर- No.-1.
No.-1. जीवन का सार
No.-2. अमृत
No.-3. जीवन का रहस्य
No.-4. समुद्र से निकलता हुआ अमृत
उत्तर- No.-1.
No.-1. सभी मानवों में
No.-2. सभी प्राणियों में
No.-3. सभी पक्षियों में
No.-4. सभी पशुओं में
उत्तर- No.-2.
No.-1. वीर सपूतों की कहानियाँ सुनाता है।
No.-2. मातृभूमि का जयघोष करता है।
No.-3. परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरता है।
No.-4. अपनी भूमि देश के लिए दान कर देता है।
उत्तर- No.-3.
No.-1. देश के प्रति कोमल भावों का उदय
No.-2. अनथक प्रयत्न करके देश का निर्माण करना
No.-3. देशहित के लिए शत्रु से संघर्ष करना
No.-4. देश के प्रति व्यक्ति का स्वाभाविक ममत्व
उत्तर- No.-4.
No.-1. दिन-भर घूमकर वे थक जाते है।
No.-2. उन्हें रात को आराम करना है।
No.-3. जानवर भी अपने निवास-स्थान को चले जाते हैं।
No.-4. उन्हें अपना नीड़ प्यारा होता है।
उत्तर- No.-4.
No.-1. शिक्षित और प्रशिक्षित हैं।
No.-2. बेरोजगार तथा निरूद्यमी नहीं है।
No.-3. कृषि और व्यापार से धनार्जन करते हैं।
No.-4. त्याग और उत्सर्ग में सदा आगे रहते हैं।
उत्तर- No.-4.
No.-7. आवश्यकता इस बात की है कि हमारी शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा हो, जिससे राष्ट्र के हृदय-मन-प्राण के सूक्ष्मतम और गम्भीरतम संवेदन मुखरित हों और हमारा पाठ्यक्रम यूरोप तथा अमेरिका के पाठ्यक्रम पर आधरित न होकर हमारी अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं एवं आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करे। भारतीय भाषाओं, भारतीय इतिहास, भारतीय दर्शन, भारतीय धर्म और भारतीय समाजशास्त्र को हम सर्वोपरि स्थान दें। उन्हें अपने शिक्षाक्रम में गौण स्थान देकर या शिक्षित जन को उनसे वंचित रखकर हमने राष्ट्रीय संस्कृति में एक महान रिक्ति को जन्म दिया है, जो नयी पीढ़ी को भीतर से खोखला कर रहा है। हम राष्ट्रीय परम्परा से ही नहीं, सामयिक जीवन प्रवाह से भी दूर जा पड़े हैं। विदेशी पश्चिमी चश्मों के भीतर से देखने पर अपने घर के प्राणी भी बे-पहचाने और अजीब से लगने लगे हैं। शिक्षित जन और सामान्य जनता के बीच खाई बढ़ती गई है और विश्व संस्कृति के दावेदार होने का दम्भ करते हुए भी हम घर में वामन ही बने रह गए हैं। इस स्थिति को हास्यास्पद ही कहा जा सकता है।
No.-1. हमारा शिक्षा-माध्यम और पाठ्यक्रम
No.-2. शिक्षित जन और सामान्य जनता
No.-3.हमारी सांस्कृतिक परम्परा
No.-4. शिक्षा का माध्यम
उत्तर- No.-1.
No.-1. विदेशी पाठ्यक्रम का अभाव होता है।
No.-2. भारतीय इतिहास और भारतीय दर्शन का ज्ञान निहित होता है।
No.-3. सामयिक जीवन निरन्तर प्रवाहित होता रहता है।
No.-4. भारतीय मानस का स्पन्दन ध्वनित होता है।
उत्तर- No.-4.
No.-1. सामयिक जन-संस्कृति का समावेश हो।
No.-2. भारतीय सांस्कृतिक परम्परा का प्रतिनिधित्व हो।
No.-3. पाश्चात्य संस्कृति का पूर्ण ज्ञान कराने की क्षमता हो।
No.-4.आधुनिक वैज्ञानिक विचारधाराओं का सन्निवेश हो।
उत्तर- No.-2.
No.-1. सामयिक जीवन-प्रवाह से
No.-2. समसामयिक वैज्ञानिक विचारधारा से
No.-3. अद्यतन साहित्यिक परम्परा से
No.-4. भारतीय नव्य समाजशास्त्र से
उत्तर- No.-4.
No.-1. भारतीय समाजशास्त्र को सर्वोपरि स्थान नहीं देते।
No.-2. विदेशी चश्मे लगाकर अपने लोगों को देखते हैं।
No.-3. भारतीय भाषाओं का अध्ययन नहीं करते।
No.-4. नई पीढ़ी को भीतर से खोखला कर रहे हैं।
उत्तर- No.-2.
No.-1. वीरता संस्मरण
No.-2. सच्ची वीरता
No.-3. वीरों का उत्पन्न होना
No.-4. देवदार और वीर
उत्तर- No.-2.
No.-1. यह संकल्प कि किसी भी हालत में युद्ध जीतना है
No.-2. बुद्ध जैसे राजा की भाँति विरक्त होना
No.-3. उद्देश्य के लिए सच्चाई पर चट्टान की तरह अटल रहना
No.-4.हमेशा नया और निराला रहना
उत्तर- No.-3.
No.-1. खाना-पीना मिलने पर ही बढ़ते हैं
No.-2. का दिल उदार होता है
No.-3. सत्य का हमेशा पालन करते है
No.-4. स्वयं पैदा होते है और बिना किसी के दूध पिलाये बढ़ते हैं
उत्तर- No.-4.
No.-1. क्रोध
No.-2. युद्ध
No.-3. त्याग
No.-4. दान
उत्तर- No.-1
No.-1. नयापन
No.-2. नकल
No.-3. हास्य
No.-4. करुणा
उत्तर- No.-1.
No.-1. क्षेत्र सीमित होता है
No.-2. सामान्य जन भाषा है
No.-3.सारे देश की संपर्क भाषा है
No.-4. जनता की भावनात्मक तथा सांस्कृतिक भाषा है
उत्तर- No.-1.
No.-1. 1947
No.-2.1948
No.-3. 1949
No.-4.1950
उत्तर- No.-3.
No.-1. राजभाषा और राष्ट्रभाषा
No.-2.भावनात्मक भाषा
No.-3. जनभाषा
No.-4. बोलचाल की भाषा
उत्तर- No.-1.
No.-1. भारतीय सभी भाषाओं को
No.-2. हिन्दी भाषा को
No.-3. संविधानिक भाषा को
No.-4. दक्षिण की भाषा को
उत्तर- No.-2.
No.-1. कत्रड़
No.-2. मराठी
No.-3. गुजराती
No.-4. हिन्दी
उत्तर- No.-4.
No.-1. मुख्यमंत्री
No.-2. प्रधानमंत्री
No.-3. राष्ट्रपति
No.-4. शासकगण
उत्तर- No.-3.
No.-1. कत्रड़
No.-2. पंजाबी
No.-3. हिन्दी
No.-4. अंग्रेजी
उत्तर- No.-3.
No.-1. 2 अक्टुबर
No.-2. 15 अगस्त
No.-3. 26 जनवरी
No.-4.14 सितंबर
उत्तर- No.-4.
No.-1. महात्मा गाँधीजी
No.-2. जवाहरलाल नेहरु
No.-3. सुभाष चंद्र बोस
No.-4. जय प्रकाश नारायण
उत्तर- No.-1.
No.-1. भारत में
No.-2. संविधान में
No.-3. संविधान के 343 धारा में
No.-4. सभी धारा के अंतर्गत
उत्तर- No.-3.
No.-1. देश की भाषा
No.-2. नगर की भाषा
No.-3. राजा या राज्य की भाषा
No.-4.विदेशियों की भाषा
उत्तर- No.-3.
No.-1. धारा 210
No.-2. धारा 120
No.-3. धारा 343
No.-4. धारा 344
उत्तर- No.-2.
No.-1. द्राविड़
No.-2. देवनागरी
No.-3. ब्राह्मी
No.-4. खरोष्टी
उत्तर- No.-2.
No.-1. धारा 100
No.-2. धारा 120
No.-3. धारा 210
No.-4. धारा 343
उत्तर- No.-1.
No.-1. धारा 210
No.-2. धारा 343
No.-3. धारा 344
No.-4. धारा 345
उत्तर- No.-1.
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