भारतीय संवैधानिक इतिहास | Indian Constitutional History
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1919 व 1935 के कानून पर विशेष बल :-
ब्रिटिश शासन दो वर्गों में विभाजित किया जाता है –
1). कम्पनी का शासन – 1765 से 1858 तक
( क ) देश में सत्ता का स्त्रोत मुगल सम्राट था ।
( ख ) ईस्ट इण्डिया कम्पनी मुगल सम्राट के सूबेदार की
हैसियत से देश में शासन करती थी ।
( ग ) ब्रिटिश संसद ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की भारत में
गतिविधियों को नियंत्रित करने हेतु रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 व 20 वर्षों के अन्तराल पर
अनेक चार्टर एक्ट पारित किये ।
2). ताज का शासन – 1858 से 1947 तक
( क ) देश की सत्ता का स्त्रोत ब्रिटिश सम्राट हो गया ।
( ख ) वायसराव व गर्वनर जनरल देश में ब्रिटिश सम्राट का
प्रतिनिधि था ।
( ग ) भारत ब्रिटिश सम्राज्य व शासन का भाग हो गया ।
सम्राट > ब्रिटिश संसद > ब्रिटिश PM > ब्रिटिश मंत्रिमण्डल > भारत सचिव ( भारत सरकार )
> वायसराय व गवर्नर जनरल > गवर्नर > कलेक्टर
रेग्यूलेटिंग एक्ट 1773 :-
मुख्य प्रावधान –
No:1. बंगाल के गवर्नर का पद नाम ‘ गर्वनर जनरल ऑफ बंगाल
किया गया ।
No:2. शासन का प्राधिकार सपरिषद् – गवर्नर जनरल में निहित हो
गया । सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया । निर्णय बहुमत से होगा ।
No:3. पहले चार सदस्यों का नाम कानून में ही कर दिया गया लेकिन
आगे गवर्नर – जनरल व
सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार कोर्ट ऑफ डॉयरेक्टर्स को दिया गया ।
No:4. बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी के गवर्नर युद्ध व संधि के
विषयों में सपरिषद् गवर्नर जनरल के अधीन किये गये ।
No:5. फोर्ट विलियम कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना
की गई मुख्य न्यायाधीश + 3 न्यायाधीश का प्रावधान
तथा अपील प्रिवी कांउसिल में होगी ।
No:6. जज का कार्यकाल 5 वर्ष सदस्यों का
कार्यकाल – 5 वर्ष
लेकिन कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स की सलाह पर सम्राट हटा सकता था । (Indian
Constitutional History)
No:7. कम्पनी को 20 वर्ष शासन करने का
अधिकार दिया गया ।
Que.- – कंपनी को नियंत्रित करने
हेतु सर्वप्रथम ब्रिटिश संसद ने कदम उठाया ?
Ans – 1773
Que.- – किस अधिनियम द्वारा भारत
में केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई ?
Ans – रेग्यूरेटिंग एक्ट 1773
Que.- – प्रथम गवर्नर जनरल
Ans – वारेन हेरिन्टंगस 1994
Que.- – परिषद् के प्रथम चार
सदस्य –
Ans – फ्रांसिस, क्लैवरिंग, मानसन, बरवैल
Que.- – सर्वोच्च न्यायालय का
प्रथम मुख्य न्यायाधीश –
Ans – सर एलिजा इम्पे 1774
Que.- – कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स –
Ans – कुल – 24, कार्यकाल – 4 वर्ष, 6 सदस्य प्रति वर्ष अवकाश
ग्रहण करेंगे ।
पिट्स इण्डिया एक्ट 1784 :-
No:1. बोर्ड ऑफ कंट्रोल की
स्थापना की गई और कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स को इसके प्रति Ansदायी बनाया गया । इस प्रकार अरतीय मामलों पर ब्रिटिश
सरकार का नियंत्रण हो गया ।
No:2. बोर्ड ऑफ कंट्रोल में कुल 6 सदस्य, जिनमें से 2 ब्रिटिश मंत्रिमण्डल के
सदस्य (वित्त और विदेश सचिव) और 4 प्रिवी काउंसिल में से ब्रिटिश सम्राट द्वारा नियुक्ति
किये जाते थे ।
No:3. दौहरी सरकार की अवधि – 1784 से 1858 – अभिप्राय – भारतीय प्रशासन का कोर्ट
ऑफ डायरेक्टर्स और बोर्ड ऑफ कंट्रोल द्वारा नियंत्रित होना ।
i). – बम्बई और मदास प्रेसीडेन्सियाँ बंगाल के अधीन कर दी गई।
ii). – परिषद् के सदस्यों की संख्या 3 कर दी गई ।
iii). – कम्पनी ने भारतीय प्रदेशों को पहली बार ब्रिटिश अधिकृत
प्रदेश कहा गया ।
iv). – गवर्नर जनरल और गवर्नर की नियुक्ति का अधिकार कोर्ट ऑफ
डायरेक्टर्स को था परन्तु वापस बुलाने का अधिकार बोर्ड ऑफ कंट्रोल व सम्राट को मिल
गया ।
v). – सपरिषद गवर्नर जनरल भारतीय प्रशासन के लिए कानून बना
सकता था ।
चार्टर एक्ट 1793 :-
No:1). कम्पनी के शासनाधिकार को 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया
गया ।
No:2). भारत में लिखित कानून द्वारा शासन यानि विधि के शासन की
नींव रखी गई । इन लिखित विधियों एवं
नियमों की व्याख्या न्यायालय द्वारा किया जाना निर्धारित किया गया ।
No:3). गवर्नर जनरल और गवर्नर को परिषद् में सदस्यता हेतु 12 वर्ष तक भारत में रहने
का अनुभव आवश्यक कर दिया गया ।
No:4). बोर्ड ऑफ कंट्रोल के सदस्यों का वेतन अब भारतीय राजकोष
से दिया जायेगा ।
No:5). एक सदस्य को बोर्ड ऑफ कंट्रोल का अध्यक्ष बनाया गया।
No:6). गवर्नर जनरल को परिषद् के निर्णयों को अस्वीकृत करने का
अधिकार दिया गया ।
No:7). अब गवर्नर – जनरल , प्रातीय गवर्नरों और सेनापति
की नियुक्ति को सम्राट की अनुमति आवश्यक होगी ।
चार्टर एक्ट 1813 :-
No:1). कम्पनी के भारतीय व्यापार पर एकाधिकार समाप्त कर दिया
गया किन्तु कम्पनी का चाय व चीनी से व्यापार पर एकाधिकार बना रहा ।
No:2). एक लाख रूपया वार्षिक भारत में साहित्य तथा शिक्षा पर
व्यय करने का प्रावधान किया गया ।
No:3). कम्पनी के शासनाधिकार को ओर 20 वर्ष बढ़ा दिया गया।
No:4). ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी
गयी ।
No:5). बोर्ड ऑफ कंट्रोल की शक्ति को परिभाषित किया गया व
विस्तारित किया गया । (Indian Constitutional History)
चार्टर एक्ट 1833 :-
No:1). कंपनी की व्यापारिक गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया
। अब कम्पनी को केवल राजनीतिक कार्य ही करना था ।
No:2). ‘गवर्नर – जनरल ऑफ बंगाल’ की पदवी को बदलकर गवर्नर – जनरल ऑफ इण्डिया कर दिया
गया और सभी शक्तियां उसमें समाविष्ट कर दी गयी । अब गवर्नर जनरल द्वारा पारित
कानून ‘विनियम’ के स्थान पर ‘अधिनियम’ कहलायेंगे ।
No:3). सभी भारतीयों को सरकारी पदों पर नियुक्ति हेतु योग्य
माना गया । ‘योग्यता
का सिद्धान्त’ स्वीकार
किया गया । केवल धर्म, वंश, रंग या जन्म स्थान के आधार पर वंचित नहीं किया जायेगा ।
No:4). गवर्नर जनरल की परिषद् में विधिक सदस्य का आंशिक रूप से
समावेश किया गया । विधि आयोग के गठन का प्रावधान किया गया ।
i). – दास – प्रथा गैर – कानूनी घोषित कर दी गई ।
ii). – मद्रास – बम्बई की परिषदों की
कानून बनाने की शक्तियां समाप्त यानि पूर्ण केन्द्रीकरण कर दिया गया ।
Que.- – प्रथम गवर्नर – गवर्नर जनरल ऑफ इण्डिया –
उतर – लार्ड विलियम बैंटिंग 1835
Que.- – प्रथम विधिक सदस्य –
उतर – लार्ड मैकाले 1835
Que.- – चाय और चीन के साथ
व्यापार पर कम्पनी का एकाधिकार कब समाप्त किया गया –
Ans – 1835 ( चार्टर एक्ट 1833 )
चार्टर एक्ट 1853 :-
No:1). गवर्नर – जनरल की परिषद् के विधायी
और कार्यकारी प्रकार्यों में विभेद किया गया । विधायी कार्यों हेतु 6 अतिरिक्त सदस्यों को
जोड़ा गया । (SC का
मुख्य न्यायाधीश + एक अन्य न्यायाधीश + तीनों प्रेसीडेंसी और Ans पश्चिम सीमा प्रांत का असैनिक प्रतिनिधि शामिल किए गये)
No:2). सिविल सेवा में नियुक्ति हेतु प्रतियोगी परीक्षा का
प्रावधान किया गया । नार्थ ट्रेवलियन प्रतिवेदन – 1853 के आधार पर लार्ड मैकाले
समिति का 1854
सिफारिशों के अनुसार लागू किया गया ।
i). 1855 में लंदन में प्रथम प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन किया
गया ।
ii). 1921 में इलाहाबाद में भी परीक्षा आयोजित की गई और पश्चात्
दिल्ली में ।
No:3). गवर्नर जनरल को बंगाल के शासन के दायित्वों से मुक्त कर
दिया गया । बंगाल के प्रशासन हेतु एक लेफ्टीनेंट गवर्नर के पद का सृजन किया गया ।
No:4). कम्पनी के शासन अधिकार को ‘संसद की इच्छानुसार’ पर हो गया ।
No:5). विधि सदस्य को परिषद् का पूर्ण सदस्य बनाया गया ।
No:6). परिषद् के उपाध्यक्ष पद की व्यवस्था की गई जो गवर्नर
जनरल द्वारा नियुक्त ।
No:7). कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स में संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई 6 की नियुक्ति क्राउन
द्वारा होगी ।
भारत सरकार अधिनियम 1858 :-
No:1). भारतीय क्षेत्र और राजस्व कम्पनी से ब्रिटिश राज को
हस्तांतरित हो गया । भारतीय शासन ब्रिटिश महारानी के नाम से किया जायेगा ।
No:2). भारतीय शासन की जिम्मेदारी ‘भारत सचिव’ को सौंपी गई और उसकी
सहायता हेतु 15
सदस्यीय परिषद् बनाई गई ( 7 सम्राट + 8 कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स के
द्वारा नियुक्त ) जिसमें आधे सदस्यों को 10 वर्ष का भारतीय अनुभव हो
। भारत सचिव ही भारत सरकार या गृह सरकार कहलाया तथा वायसराय उसके प्रति जिम्मेदार
बनाया गया । भारत सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था और ब्रिटिश संसद के प्रति
Ansदायी था ।
i). ब्रिटिश PM लार्ड पामर्स्टन ने बिल
रखा परन्तु त्याग पत्र दिया । पुन : एडवार्ड हेनरी स्टेनल दुसरा बिल रखा “An Act for
the Better Govt of India” प्रथम भारत सचिव ‘एडवर्ड हेनरी स्टेनले’ बना और उसके पश्चात्
स्वतंत्र रूप से ‘ चार्ल्स वुड को 1859 में जिम्मेदारी दी गई ।
No:3). भारतीय सिविल सेवा भारत सचिव के अधीन रखी गई । महारानी
की घोषणा – 1Nov 1858 को
लार्ड कैनिंग द्वारा इलाहाबाद में आयोजित दरबार में की गई ।
भारत परिषद् अधिनियम 1861 :-
No:1). पहली बार भारत में प्रतिनिधित्व के तत्व का समावेश किया
गया । यानि विधायी कार्यों के समय गवर्नर – जनरल की कार्यकारी परिषद्
के साथ 6 – 17 अतिरिक्त सदस्य जौड़े
गये कार्यकाल – 2 वर्ष , शक्ति – सलाह देना , (1/4 गैर सरकारी)
महाराजा दिग्विजय सिंह – बलरामपुर ( U . P . } प्रथम सदस्य नियुक्त हुए
।
No:2). बॉम्बे और मद्रास को पुन : विधायी शक्तियां दी गई Pace and
good Govt के
संदर्भ में ।
No:3). पोर्टफोलियों व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता दी गई 1859 में लार्ड कैनिंग में
व्यवस्था बनाई थी । यह व्यवस्था आगे चल कर मंत्रिमण्डल व्यवस्था का आधार बनी । गृह, राजस्व, सैन्य, विधि, वित्त विभाग ।
No:4). वायसराय को परिषद् में सुचारू से कार्य संचालन हेतु नियम
बनाने की शक्ति दी गई ।
No:5). वायसराय को 6 माह के लिए अध्यादेश
जारी करने का अधिकार दिया गया ।
No:6). उच्च न्यायालयों की स्थापना, बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास 1862 ।
No:7). अन्य प्रेसीडेन्सी में भी विधायी परिषदें बनाई जाये ।
विधायी कार्य हेतु गवर्नर जनरल अन्य प्रेसिडेंसी बना सकता था ।Indian
Constitutional History
भारत परिषद अधिनियम – 1892 :-
No:1). केन्द्रीय परिषद में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 10 – 16 कर दी गई जिनमें से 10 सदस्य गैर सरकारी हो और 5 सदस्यों के लिए सिफारिश
अनिवार्य की गई । बंगाल कॉमर्स ऑफ चेम्बर्स + 4 प्रान्तीय विधान परिषदों
द्वारा हो ।
प्रांतीय परिषदों में भी सदस्य संख्या बढ़ाकर 20 कर दी गई ।
No:2). परिषद् को बजट पर वाद – विवाद और कार्यपालिका से Que.- पूछने का अधिकार दिया गया ।
भारत परिषद् अधिनियम 1909 (मार्ले – मिण्टो सुधार) :-
No:1). केन्द्रीय परिषद् की सदस्य संख्या बढ़ा दी गई ।
चार प्रकार के सदस्य थे – 69
1). पदेन सदस्य 9
2). निर्वाचित सदस्य – 27
3). सरकारी मनोनित सदस्य – 23
4). गैर सरकारी मनोनित सदस्य – 5
Q. सरकारी सदस्यों का बहुमत रखा गया लेकिन प्रांतो में गैर – सरकारी सदस्यों के बहुमत
किया गया । प्रांतों में गवर्नरों को विधायी परिषदों में सदस्य संख्या 5 सदस्य – बंगाल , मुम्बई , मद्रास , संयुक्त प्रांत ; 43 सदस्य – पूर्वी बंगाल ? आसाम : 30 – पंजाब और बर्मा ।
No:2). अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली की शुरूआत की गई
आय के आधार पर चार वर्ग बनाये गये –
1). सामान्य निर्वाचक
2). विशेष निर्वाचक
3). श्रेणी निर्वाचक
4). मुस्लिम ( धर्म आधारित निर्वाचन )
सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली
मुस्लिम – 1909
सिख – 1919
भारतीय ईसाई, आंग्ल – भारतीय, हरिजन, महिला, श्रमिक – 1935
No:3). परिषद् के सदस्यों को पूरक Que.- पूछने व सार्वजनिक विषयों पर प्रस्ताव रखने का व बजट पर
मत विभाजन का अधिकार दिया गया ।
भारत शासन अधिनियम – 1919 :-
सम्राट की अनुमति 25 दिसम्बर 1919 को मिली थी तथा इसे 1976 में समाप्त किया गया ।
An act to make further provision with respect to the
Govt of India इसका
पूर्ण नाम था।
i). – यह अधिनियम एडविन सेम्यूअल ‘ मांटेग्यू – चेम्सफोर्ड घोषणा ‘ ( प्रकाशित : 1918 में ) 20 अगस्त , 1917 के आधार पर बनाया गया
जिसमें ‘Ansदायी शासन’ का वादा किया गया ।
ii). – 1 अप्रैल , 1921 से लागू किया गया ।
iii). – इसकी पृथक ‘उद्देशिका’ थी, जो धीरे – धीरे Ansदायी सरकार लाने का वाद करती थी ।
1). द्वैध शासन प्रणाली –
द्वैध शासन प्रणाली के जन्मदाता – सर लियोनिल कॉटिश विषय
केन्द्रीय और प्रांतीय दो भागों में विभाजित किए गए । पुन : प्रांतीय विषय आरक्षित
तथा हस्तांतरित में बाँटे गये । इस प्रकार यह व्यवस्था द्वैध का द्वैध था लेकिन
प्रसिद्ध प्रांतीय द्वैध शासन प्रणाली के नाम से हुई । 9 प्रांतों में ला हुई ।
केन्द्रीय विषय : 47 – रक्षा, विदेश और राजनितिक संबंध, करेंसी संचार आयकर, लोक ऋण, वाणिज्य व जहाज रानी
मुख्य रूप से थे । (Indian Constitutional History)
50 प्रांतीय विषय – आरक्षित विषय : कानून, पुलिस व न्याय व्यवस्थ
वित्त, भू – राजस्व, सिंचाई व नहरें, खनिज संसाधन, समाचार पत्रों पर, वाहन आदि प्रांतीय
हस्तांतरित विषय : शिक्षा, स्वास्थ्य, स्थानीय प्रशासन, उद्योग, आबकारी, लोक निर्माण, स्वच्छता, व मेडिकल प्रशासन, मत्स्य पालन नकनीक शिक्षा, नाप तौल, मनोरंजन, पुस्तकालय आदि ।
i). – अपने – अपने विषयों पर केन्द्रीय और प्रांतीय विधान मण्डल कानून
बना सक थे ।
ii). – गवर्नर अब भी G. G. व भारत सचिव के माध्यम से
ब्रिटिश संसद के प्रति Ansदायी बना रहा ।
No:1. 1861 , 1892 , 1909
, 1919 के अधिनियमों में सताका
आधार / केन्द्र वायसरा ही था जो भारतीय शासन – प्रशासन के लिए भारत सचिव
के प्रति Ansदायी बन रहा ।
No:2. 1919 के अधिनियम द्वारा
प्रांतों पर भारत सचिव और गवर्नर – जनरल के नियंत्रण में छूट
दी गई । वे हस्तांतरित विषयों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे ।
No:3. प्रांतीय आरक्षित विषयों
का शासन पावर्नर को अपनी कार्यकारी परिषद् वे सहयोग से करना था जो विधानमरत के
प्रति Ansदायी नहीं थी ।
No:4. प्रांतीय हस्तांतरित
विषयों का शासन गवर्नर को मंत्रियों के सहयोग से करना, जो प्रांतीय विधानमण्डल
के प्रति Ansदायी थे ।
No:5. मंत्री की नियुक्ति
गवर्नर करता था और मंत्री उसके प्रति Ansदायी था यानि वह कभी भी
हटा सकता था ।
No:6. मंत्री प्रांतीय
विधानमण्डल का सदस्य होता था और विधानमण्डल कभी प्रस्ताव पारित करके उसे पद छोड़ने
के लिए बाध्य कर सकता था । ‘संयुक Ansदायित्व नहीं था ।’ अपवाद – 6 माह तक मंत्री पद बिना
सदस्यता के धारण कर सकता था ।
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