No.-1. उच्चारण- मुख से अक्षरों को बोलना उच्चारण कहलाता है। सभी वर्णो के लिए मुख में उच्चारण स्थान होते हैं। यदि वर्णों का उच्चारण शुद्ध न किया जाए, तो लिखने में भी अशुद्धियाँ हो जाती हैं, क्योंकि हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है। इसे जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा भी जाता है।
भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय की 'वर्तनी समिति' ने 1962 में जो उपयोगी और सर्वमान्य निर्णय किये, वे निम्रलिखित हैं-
No.-1. हिन्दी के विभक्ति-चिह्न, सर्वनामों
को छोड़ शेष सभी प्रसंगों में, शब्दों से अलग लिखे जाएँ। जैसे- मोहन ने कहा; स्त्री
को। सर्वनाम में- उसने, मुझसे, हममें, तुमसे, किसपर, आपको।
अपवाद-
No.-1. यदि सर्वनाम के साथ दो विभक्तिचिह्न हों, तो
उनमें पहला सर्वनाम से मिला हुआ हो और दूसरा अलग लिखा जाय। जैसे- उसके लिए; इनमें
से।
No.-3. 'तक', 'साथ' आदि अव्यय अलग लिखे जायँ। जैसे- आपके साथ; यहाँ
तक।
No.-4. पूर्वकालिक प्रत्यय 'कर' क्रिया
से मिलाकर लिखा जाय। जैसे- मिलाकर, रोकर, खाकर, सोकर।
No.-5. द्वन्द्वसमास में पदों के बीच हाइफ़न
(-योजकचिह्न) लगाया जाय। जैसे- राम-लक्ष्मण,
शिव-पार्वती आदि।
No.-6. 'सा', 'जैसा' आदि सारूप्यवाचकों के पूर्व हाइफ़न का प्रयोग
किया जाना चाहिए। जैसे- तुम-सा, राम-जैसा,
चाकू-से तीखे।
No.-7. तत्पुरुषसमास में हाइफ़न का प्रयोग केवल वहीं
किया जाय, जहाँ उसके बिना भ्रम होने की सम्भावना हो, अन्यथा
नहीं। जैसे- भू-तत्त्व।
No.-8. अब, प्रश्र उठता है कि 'ये' और 'ए' का
प्रयोग कहाँ होना चाहिए। यह प्रश्र न केवल विद्यार्थियों को, बल्कि
बड़े-बड़े विद्वानों को भी भ्रममें डालता है। जहाँ तक उच्चारण का प्रश्र है, दोनों
के उच्चारण-भेद इस प्रकार हैं-
ये=य्+ए। श्रुतिरूप। तालव्य अर्द्धस्वर
(अन्तःस्थ)+ए।
ए=अग्र अर्द्धसंवृत दीर्घ स्वर।
दे (दि) + ज् + इए =दीजिए
ले (लि) + ज् + इए =लीजिए
पी (पि) + ज् + इए =पीजिए
कर (कि) + ज् + इए =कीजिए
इन नियमों से यह निष्कर्ष निकलता है कि
भूतकालिक क्रियाओं में 'ये' का और अव्ययों में 'ए' का
प्रयोग होता है। विशेषण का रूप अन्तिम वर्ण के अनुरूप 'ये' या 'ए' का
प्रयोग होता है। विशेषण का रूप अन्तिम वर्ण के अनुरूप 'ये' या 'ए' होना
चाहिए। अच्छा यह होता है कि दोनों के लिए कोई एक सामान्य नियम बनता। भारत सरकार की
वर्तनी समिति 'ए' के प्रयोग का समर्थन करती है।
उच्चारण और वर्तनी की विशेष अशुद्धियाँ
और उनके निदान
व्याकरण के सामान्य नियमों की ठीक -ठीक
जानकारी न होने के कारण विद्यार्थी से बोलने और लिखने में प्रायः भद्दी भूलें हो
जाया करती हैं। शुद्ध भाषा के प्रयोग के लिए वर्णों के शुद्ध उच्चारण, शब्दों
के शुद्ध रूप और वाक्यों के शुद्ध रूप जानना आवश्यक हैं।
विद्यार्थी से प्रायः दो तरह की भूलें
होती हैं- एक शब्द-संबंधी, दूसरी वाक्य-संबंधी। शब्द-संबंधी अशुद्धियाँ
दूर करने के लिए छात्रों को श्रुतिलिपि का अभ्यास करना चाहिए। यहाँ हम उच्चारण एवं
वर्तनी (Vartani) सम्बन्धी महत्वपूर्ण त्रुटियों की ओर संकेत
करंगे।
नीचे कुछ अशुद्धियों की सूची उनके
शुद्ध रूपों के साथ यहाँ दी जा रही है-
'अ',
'आ' संबंधी
अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
अहार |
आहार |
अजमायश |
आजमाइश |
सप्ताहिक |
साप्ताहिक |
अत्याधिक |
अत्यधिक |
आधीन |
अधीन |
चहिए |
चाहिए |
अजादी |
आजादी |
अवश्यक |
आवश्यक |
नराज |
नाराज |
व्यवहारिक |
व्यावहारिक |
अलोचना |
आलोचना |
'इ', 'ई' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
तिथी |
तिथि |
दिवार |
दीवार |
बिमारी |
बीमारी |
श्रीमति |
श्रीमती |
क्योंकी |
क्योंकि |
कवियत्री |
कवयित्री |
दिवाली |
दीवाली |
अतिथी |
अतिथि |
दिपावली |
दीपावली |
पत्नि |
पत्नी |
मुनी |
मुनि |
परिक्षा |
परीक्षा |
रचियता |
रचयिता |
उन्नती |
उन्नति |
कोटी |
कोटि |
कालीदास |
कालिदास |
'उ', 'ऊ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
पुज्यनीय |
पूजनीय |
प्रभू |
प्रभु |
साधू |
साधु |
गेहुँ |
गेहूँ |
वधु |
वधू |
हिंदु |
हिंदू |
पशू |
पशु |
रुमाल |
रूमाल |
रूपया |
रुपया |
रूई |
रुई |
तुफान |
तूफान |
अशुद्ध |
शुद्ध |
रितु |
ऋतु |
व्रक्ष |
वृक्ष |
श्रृंगार/श्रंगार |
शृंगार |
श्रगाल/श्रृगाल |
शृगाल |
ग्रहस्थी |
गृहस्थी |
उरिण |
उऋण |
आदरित |
आदृत |
रिषि |
ऋषि |
प्रथक् |
पृथक् |
प्रथ्वी |
पृथ्वी |
घ्रणा |
घृणा |
ग्रहिणी |
गृहिणी |
'ए', 'ऐ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
सैना |
सेना |
एश्वर्य |
ऐश्वर्य |
एनक |
ऐनक |
नैन |
नयन |
सैना |
सेना |
चाहिये |
चाहिए |
'ओ', 'औ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
रौशनी |
रोशनी |
त्यौहार |
त्योहार |
भोगोलिक |
भौगोलिक |
बोद्धिक |
बौद्धिक |
परलोकिक |
पारलौकिक |
पोधा |
पौधा |
चुनाउ |
चुनाव |
होले |
हौले |
'र' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
आर्शीवाद |
आशीर्वाद |
कार्यकर्म |
कार्यक्रम |
आर्दश |
आदर्श |
नर्मी |
नरमी |
स्त्रोत |
स्रोत |
क्रपा |
कृपा |
गर्म |
गरम |
'श', 'ष', 'स' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
दुसाशन |
दुशासन |
प्रसंशा |
प्रशंसा |
प्रशाद |
प्रसाद |
कश्ट |
कष्ट |
सुशमा |
सुषमा |
अमावश्या |
अमावस्या |
नमश्कार |
नमस्कार |
विषेशण |
विशेषण |
अन्य अशुद्धियाँ अशुद्ध |
शुद्ध |
अकाश |
आकाश |
अतऐव |
अतएव |
रक्शा |
रक्षा |
रिक्सा |
रिक्शा |
विधालय |
विद्यालय |
व्रंदावन |
वृंदावन |
सकूल |
स्कूल |
सप्ता |
सप्ताह |
समान (वस्तु) |
सामान |
दुरदशा |
दुर्दशा |
परिच्छा |
परीक्षा |
बिमार |
बीमार |
आस्मान |
आसमान |
गयी |
गई |
ग्रहकार्य |
गृहकार्य |
छमा |
क्षमा |
जायेंगे |
जाएँगे |
जोत्सना |
ज्योत्स्ना |
सुरग |
स्वर्ग |
सेनिक |
सैनिक |
·
ण' और 'न' की अशुद्धियाँ- 'ण' और 'न' के प्रयोग में
सावधानी बरतने की आवश्यकता है। 'ण' अधिकतर संस्कृत शब्दों में आता है। जिन तत्सम शब्दों में 'ण' होता है, उनके तद्भव रूप में 'ण' के स्थान पर 'न' प्रयुक्त होता है; जैसे- रण-रन, फण-फन, कण-कन, विष्णु-बिसुन।
खड़ीबोली की प्रकृति 'न' के पक्ष में है। खड़ीबोली में 'ण' और 'न' का प्रयोग संस्कृत नियमों के आधार पर होता है। पंजाबी और
राजस्थानी भाषा में 'ण' ही बोला जाता है। 'न' का प्रयोग करते समय निम्रांकित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए-
No.-1. संस्कृत की जिन धातुओं में 'ण' होता है, उनसे बने शब्दों में भी 'ण' रहता है; जैसे- क्षण, प्रण, वरुण, निपुण, गण, गुण।
·
No.-2. किसी एक ही पद में यदि ऋ,
र् और ष् के बाद 'न्' हो तो 'न्' के स्थान पर 'ण' हो जाता है, भले ही इनके बीच कोई
स्वर, य्, व्, ह्, कवर्ग, पवर्ग का वर्ण तथा अनुस्वार आया हो।
·
जैसे-
ऋण, कृष्ण, विष्णु, भूषण, उष्ण, रामायण, श्रवण इत्यादि।
·
किन्तु, यदि इनसे कोई भित्र
वर्ण आये तो 'न' का 'ण' नहीं होता। जैसे- अर्चना,
मूर्च्छना, रचना, प्रार्थना।
·
·
No.-3. कुछ तत्सम शब्दों में स्वभावतः 'ण' होता है; जैसे- कण, कोण, गुण, गण, गणिका, चाणक्य, मणि, माणिक्य, बाण, वाणी, वणिक, वीणा, वेणु, वेणी, लवण, क्षण, क्षीण, इत्यादि।
·
·
जैसे-
शिक्षा, दीक्षा, समीक्षा, प्रतीक्षा, परीक्षा, क्षत्रिय, निरीक्षक, अधीक्षक, साक्षी, क्षमा, क्षण, अक्षय, तीक्ष्ण, क्षेत्र, क्षीण, नक्षत्र, अक्ष, समक्ष, क्षोभ इत्यादि।
·
·
·
· No.-1. 'ष' केवल संस्कृत शब्द में आता है; जैसे- कषा, सन्तोष, भाषा, गवेषणा, द्वेष, मूषक, कषाय, पौष, चषक, पीयूष, पुरुष, शुश्रूषा, भाषा, षट्।
·
No.-2. जिन संस्कृत शब्दों की मूल धातु में 'ष' होता है, उनसे बने शब्दों में
भी 'ष' रहता है, जैसे- 'शिष्' धातु से शिष्य,
शिष्ट,
शेष आदि।
·
No.-3. सन्धि करने में क,
ख,
ट,
ठ,
प,
फ के पूर्व आया हुआ विसर्ग ( : ) हमेशा 'ष' हो जाता है।
·
No.-4. यदि किसी शब्द में 'स' हो और उसके पूर्व 'अ' या 'आ' के सिवा कोई भित्र स्वर हो तो 'स' के स्थान पर 'ष' होता है।
·
No.-5. टवर्ग के पूर्व केवल 'ष' आता है ; जैसे- षोडश, षडानन, कष्ट, नष्ट।
·
No.-6. ऋ के बाद प्रायः 'ष' ही आता है ; जैसे- ऋषि, कृषि, वृष्टि, तृषा।
·
No.-7. संस्कृत शब्दों में च,
छ,
के पूर्व 'श्' ही आता है; जैसे- निश्र्चल, निश्छल।
·
No.-8. जहाँ 'श' और 'स' एक साथ प्रयुक्त होते हैं वहाँ 'श' पहले आता है; जैसे- शासन, शासक, प्रशंसा, नृशंस।
·
No.-9. जहाँ 'श' और 'ष' एक साथ आते हैं,
वहाँ 'श' के पश्र्चात् 'ष' आता है; जैसे- शोषण, शीर्षक, शेष, विशेष इत्यादि।
·
No.-10. उपसर्ग के रूप में नि:,
वि आदि आनेपर मूल शब्द का 'स' पूर्ववत् बना रहता है; जैसे- नि:संशय, निस्सन्देह, विस्तृत, विस्तार।
·
No.-11. यदि तत्सम शब्दों में 'श' हो तो उसके तद्भव में 'स' होता है; जैसे- शूली-सूली,
शाक-साग,
शूकर-सूअर, श्र्वसुर-ससुर, श्यामल-साँवला।
·
No.-12. कभी-कभी 'स्' के स्थान पर 'स' लिखकर और कभी शब्द के आरम्भ में 'स्' के साथ किसी अक्षर का
मेल होने पर अशुद्धियाँ होती हैं;
·
जैसे-
स्त्री (शुद्ध)-इस्त्री (अशुद्ध), स्नान (शुद्ध)-अस्नान (अशुद्ध),
परस्पर (शुद्ध)-परसपर (अशुद्ध)।
No.-13.
कुछ शब्दों के रूप वैकल्पिक होते हैं; जैसे- कोश-कोष, केशर-केसर,
कौशल्या-कौसल्या, केशरी-केसरी, कशा-कषा, वशिष्ठ-वसिष्ठ। ये दोनों शुद्ध हैं।
अनुस्वार', 'अनुनासिक' संबंधी अशुद्धियाँअशुद्ध |
शुद्ध |
चांदनी |
चाँदनी |
गांधी |
गाँधी |
हंसी |
हँसी |
दांत |
दाँत |
कहां |
कहाँ |
अँगुली |
अंगुली |
सांप |
साँप |
बांसुरी |
बाँसुरी |
महंगी |
महँगी |
बांस |
बाँस |
अंगना |
अँगना |
कंगना |
कँगना |
उंचा |
ऊँचा |
जाऊंगा |
जाऊँगा |
दुंगा |
दूँगा |
छटांक |
छटाँक, छटाक |
पांचवा |
पाँचवाँ |
शिघ्र |
शीघ्र |
गुंगा |
गूँगा |
पहुंचा |
पहुँचा |
गांधीजी |
गाँधीजी |
सूंड |
सूँड |
बांसुरी |
बाँसुरी |
महंगा |
महँगा |
मुंह |
मुँह |
उंगली |
ऊँगली |
जहां |
जहाँ |
डांट |
डाँट |
कांच |
काँच |
वर्ण-सम्बन्धी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
अनाधिकार |
अनधिकार |
अनुशरण |
अनुसरण |
अभ्यस्थ |
अभ्यस्त |
अस्थान |
स्थान |
अनुकुल |
अनुकूल |
अनिष्ठ |
अनिष्ट |
अध्यन |
अध्ययन |
अद्वितिय |
अद्वितीय |
अहिल्या |
अहल्या |
अगामी |
आगामी |
अन्तर्ध्यान |
अन्तर्धान |
अमावश्या |
अमावास्या |
आधीन |
अधीन |
अकांछा |
आकांक्षा |
आर्द |
आर्द्र |
इकठ्ठा |
इकट्ठा |
उपरोक्त |
उपर्युक्त |
उज्वल |
उज्ज्वल |
उपलक्ष |
उपलक्ष्य |
उन्मीलीत |
उन्मीलित |
कलस |
कलश |
कालीदास |
कालिदास |
कैलाश |
कैलास |
कंकन |
कंकण |
प्रत्यय-सम्बन्धी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
अनुसंगिक |
आनुषंगिक |
अध्यात्मक |
आध्यात्मिक |
एकत्रित |
एकत्र |
गोपित |
गुप्त |
चातुर्यता |
चातुर्य |
त्रिवार्षिक |
त्रैवार्षिक |
देहिक |
दैहिक |
दाइत्व |
दायित्व |
धैर्यता |
धैर्य |
अभ्यन्तरिक |
आभ्यन्तरिक |
असहनीय |
असह्य |
इतिहासिक |
ऐतिहासिक |
उत्तरदाई |
उत्तरदायी |
ऐक्यता |
ऐक्य |
गुणि |
गुणी |
चारुताई |
चारुता |
तत्व |
तत्त्व |
तत्कालिक |
तात्कालिक |
दारिद्रता |
दरिद्रता |
द्विवार्षिक |
द्वैवार्षिक |
नैपुण्यता |
निपुणता |
प्राप्ती |
प्राप्ति |
पूज्यास्पद |
पूजास्पद |
पुष्टी |
पुष्टि |
लिंग प्रत्यय-सम्बन्धी अशुद्धियाँ
अशुद्ध |
शुद्ध |
अनाथिनी |
अनाथा |
गायकी |
गायिका |
दिगम्बरी |
दिगम्बरा |
पिशाचिनी |
पिशाची |
भुजंगिनी |
भुजंगी |
सुलोचनी |
सुलोचना |
गोपिनी |
गोपी |
नारि |
नारी |
श्रीमान् रानी |
श्रीमती रानी |
सन्धि-सम्बन्धी अशुद्धियाँअशुद्ध |
शुद्ध |
अधगति |
अधोगति |
अत्योक्ति |
अत्युक्ति |
अत्याधिक |
अत्यधिक |
अद्यपि |
अद्यापि |
अनाधिकारी |
अनधिकारी |
अध्यन |
अध्ययन |
आर्शिवाद |
आशीर्वाद |
इतिपूर्व |
इतःपूर्व |
जगरनाथ |
जगत्राथ |
तरुछाया |
तरुच्छाया |
दुरावस्था |
दुरवस्था |
नभमंडल |
नभोमंडल |
निरवान |
निर्वाण |
निसाद |
निषाद |
निर्पेक्ष |
निरपेक्ष |
पयोपान |
पयःपान |
पुरष्कार |
पुरस्कार |
समास-सम्बन्धी अशुद्धियाँअशुद्ध |
शुद्ध |
अहोरात्रि |
अहोरात्र |
आत्मापुरुष |
आत्मपुरुष |
अष्टवक्र |
अष्टावक्र |
एकतारा |
इकतारा |
एकलौता |
इकलौता |
दुरात्मागण |
दुरात्मगण |
निर्दोषी |
निर्दोष |
निर्दयी |
निर्दय |
पिताभक्ति |
पितृभक्ति |
भ्रातागण |
भ्रातृगण |
महात्मागण |
महात्मगण |
राजापथ |
राजपथ |
वक्तागण |
वक्तृगण |
शशीभूषण |
शशिभूषण |
सतोगुण |
सत्त्वगुण |
हलन्त-सम्बन्धी अशुद्धियाँअशुद्ध |
शुद्ध |
भाग्यमान |
भाग्यवान् |
विद्वान |
विद्वान् |
धनमान |
धनवान् |
बुद्धिवान |
बुद्धिमान् |
भगमान |
भगवान् |
सतचित |
सच्चित् |
साक्षात |
साक्षात् |
श्रीमान |
श्रीमान् |
विधिवत |
विधिवत् |
बुद्धिवान |
बुद्धिमान् |
शिरोरेखा संबंधी अशुद्धियाँ- शिरोरेखा
लगाने में जल्दीबाजी करने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है; किन्तु बड़े-बड़े
साहित्यकार जान-बूझकर रोचकता लाने के लिए ऐसा करते देखे गए हैं। नीचे लिखे
उदाहरणों को देखें और भावार्थ का पता करें :
अशुद्ध |
शुद्ध |
वहाँ भी जीवन था। |
वहाँ भी जीव न था। |
मनन करना अच्छी बात है। |
मन न करना अच्छी बात है। |
सूर और तुलसी एककालीन थे। |
सूर और तुलसी एक कालीन थे। |
यह गागर खाली है। |
यह गागर खा ली है। |
उस गदहे पर लादो। |
उस गदहे पर ला दो। |
सावन के बादलो! झूम-झूमकर बरसो। |
सावन के बाद लो झूम-झूमकर बरसो। |
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