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Poetic

 

भारतीय काव्यशास्त्र संस्कृत आलोचना के प्रमुख आचार्य

No.-1. भरतमुनि

भरत मुनि को संस्कृत काव्यशास्त्र का प्रथम आचार्य माना जाता है।

आचार्य बलदेव उपाध्याय ने इनका समय द्वितीय शती माना है।

भरतमुनि की प्रसिद्ध रचना 'नाट्यशास्त्र' है जिसमें नाटक के सभी पक्षों का विस्तृत विवेचन किया गया है।

आचार्य भरत ने 'नाट्यशास्त्र' को 'पंचमवेद' भी कहा है।

'नाट्यशास्त्र' में 36 अध्याय तथा लगभग पाँच हजार श्लोक हैं।

'नाट्यशास्त्र' में काव्य की आलोचना वाचिक अभिनय के प्रसंग में की गई है।

भरत मुनि ने 'नाट्यशास्त्र' में दस गुण, दस दोष तथा चार अलंकार (यमक, उपमा, रूपक तथा दीपक) की मीमांसा की है।

नाट्य शास्त्र के षष्ठ एवं सप्तम अध्याय में रस तथा भाव का वर्णन किया गया है। भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी है।

No.-2. भामह

आचार्य बलदेव उपाध्याय ने भामह का समय षष्ठ शती का पूर्वार्द्ध निश्चित किया है।

भामह कश्मीर के निवासी थे तथा इनके पिता का नाम रक्रिल गोमी था।

सर्वप्रथम भामह ने ही अलंकार को नाट्यशास्त्र की परतन्त्रता से मुक्त कर एक स्वतंत्र शास्त्र या सम्प्रदाय के रूप में प्रस्तुत किया।

भामह ने 'काव्यालंकार' नामक ग्रन्थ की रचना की, जो छह परिच्छेदों में विभक्त है।

भामह के 'काव्यालंकार' में परिच्छेदानुसार निरूपित विषयों की तालिका इस प्रकार हैं-

परिच्छेद

विषय

प्रथम

काव्य के साधन, लक्षण तथा भेदों का निरूपण

द्वितीय-तृतीय

अलंकार निरूपण

चतुर्थ

दस दोष निरूपण

पंचम

न्याय विरोधी दोष निरूपण

षष्ठ

शब्द शुद्धि निरूपण

भामह के प्रमुख काव्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

No.-1. शब्द तथा अर्थ दोनों का काव्य होना (शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्)।

No.-2. भरत मुनि द्वारा वर्णित दस गुणों के स्थान पर तीन गुणों (माधुर्य, ओज तथा प्रसाद) का वर्णन।

No.-3. 'वक्रोक्ति' को सभी अलंकारों का प्राण मानना।

No.-4.दस विध काव्य दोषों का विवेचन।

No.-5.'रीति' को न मानकर काव्य गुणों का विवेचन।

No.-3. दण्डी

आचार्य दण्डी का समय सप्तम शती स्वीकार किया जाता है। ये दक्षिण भारत के निवासी थी।

दण्डी पल्लव नरेश सिंह विष्णु के सभा पण्डित थे।

दण्डी अलंकार सम्प्रदाय से सम्बद्ध थे तथा 'काव्यादर्श' नामक महनीय ग्रन्थ की रचना की।

'काव्यादर्श' में चार परिच्छेद तथा लगभग साढ़े छह सौ श्लोक है।

दण्डी प्रथम आचार्य थे जिन्होंने वैदर्भी तथा गौड़ी रीति के पारस्परिक अन्तर को स्पष्ट किया तथा इसका सम्बन्ध गुण से स्थापित किया।

दण्डी के 'काव्यदर्श' में परिछेच्दानुसार निरूपित विषयों की तालिका निम्न है-

परिच्छेद

विषय-निरूपण

प्रथम

काव्य लक्षण, भेद, रीति तथा गुण का विवेचन

द्वितीय

अर्थालंकार निरूपण

तृतीय

शब्दालंकार निरूपण (विशेषतः यमक का)

चतुर्थ

दशविध काव्य दोषों का विवेचन

आचार्य बलदेव उपाध्याय दण्डी को रीति सम्प्रदाय का मार्गदर्शक मानते है।

No.-4.वामन

वामन रीति सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य हैं इनका समय विद्वानों ने आठवीं शती का उत्तरार्द्ध माना है।

वामन कश्मीर नरेश जयापीड के मन्त्री थे।

आचार्य वामन ने 'काव्यालंकार सूत्र' नामक ग्रन्थ की रचना सूत्रों में की है तथा स्वयं ही इन सूत्रों पर वृत्ति भी लिखी है।

'काव्यालंकार सूत्र' में सूत्रों की संख्या 319 है तथा ग्रन्थ पाँच परिच्छेदों में विभक्त है।

वामन के प्रमुख काव्य सिद्धान्त निम्नांकित हैं-

No.-1. रीति को काव्य की आत्मा मानना (रीतिरात्मा काव्यस्य)।

No.-2. गुण तथा अलंकार का परस्पर विभेद तथा गुण को अलंकार की अपेक्षा अधिक महत्व देना।

No.-3.वैदर्भी, गौडी तथा पांचाली- इन तीन रीतियों की कल्पना।

No.-4.दस प्रकार के गुणों (शब्द तथा अर्थ) को उभयगत मानकर बीस प्रकार के गुणों की कल्पना।

No.-5. वक्रोक्ति को सादृश्य मूलक लक्षणा मानना।

No.-6. समग्र अर्थालंकारों को उपमा का प्रपंच मानना।

No.-5.उद्भट

उद्भट अलंकार से सम्बन्धित आचार्य थे। इनका समय आठवी शती का उत्तरार्द्ध माना जाता है।

आचार्य बलदेव उपाध्याय ने इन्हें कश्मीर के राजा जयापीड का सभा पण्डित माना है।

आचार्य उद्भट ने 'काव्यालंकार सार-संग्रह नामक ग्रन्थ में अलंकारों का आलोचनात्मक एवं वैज्ञानिक ढंग पर विवेचन किया है।

उद्भट के विशिष्ट सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

No.-1. अर्थ भेद से शब्द भेद की कल्पना

No.-2. श्लेष को सभी अलंकारों में श्रेष्ठ मानते हुए श्लेष के दो प्रकार- शब्द श्लेष तथा अर्थ श्लेष की कल्पना तथा दोनों को अर्थालंकारों में ही परिगणित करना।

अर्थ के दो भेदों की कल्पना-

No.-1. विचारित-सुस्थ तथा

No.-2. अविचारित रमणीय।

No.-4. काव्य गुणों को संघटना का धर्म मानना।

No.-6. रुद्रट

रुद्रट कश्मीर के निवासी थे तथा इनका समय 9 वी शती का पूर्वार्द्ध स्वीकार किया जाता है।

रुद्रट की रचना का नाम काव्यलंकार है। इस ग्रन्थ में 16 अध्याय तथा कुल 734 श्लोक है।

सम्भवतः रुद्रट ने ही सर्वप्रथम वैज्ञानिक ढंग से अलंकारों को चार वर्गों में बाँटा है-

No.-1. वास्तव 

No.-2.औपन्य 

No.-3.अतिशय और 

No.-4.श्लेष।

No.-7. आनन्दवर्धन

आनन्दवर्धन कश्मीर के राजा अवन्ति वर्मा के सभा पण्डित थे तथा इनका 9 वी शती का उत्तरार्द्ध माना जाता है।

आनन्दवर्धन ने कांव्यशास्त्र में ध्वनि सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।

आनन्दवर्धन ने 'ध्वन्यालोक' ग्रन्थ की रचना की। इसमें चार उद्योग (अध्याय) है जो मूलतः कारिकायें (सूत्र व्याख्या) है।

No.-8. अभिनवगुप्त

अभिनवगुप्त कश्मीर के निवासी थे तथा इनका समय 10वी सदी का उत्तरार्द्ध स्वीकार किया जाता है।

अभिनव गुप्त के पिता का नाम नरसिंह गुप्त था तथा वे 'चुखुलक' के नाम प्रसिद्ध थें। इनकी माता का नाम विमलका था।

अभिनव गुप्त ने व्याकरण शास्त्र, ध्वनिशास्त्र और नाट्यशास्त्र का अध्ययन क्रमशः नरसिंह गुप्त, भट्ट इन्दुराज और भट्टतौत को गुरु मानकर किया।

अभिनव गुप्त ने निम्नलिखित ग्रन्थो की टीकाएँ लिखी-

मूलग्रन्थ

लेखक

टीका

नाट्यशास्त्र

भरतमुनि

अभिनव भारती

ध्वन्यालोक

आनन्द वर्धन

लोचन

काव्य कौतुभ

भट्टतौत

काव्य कौतुभ-विवरण

अभिनव गुप्त ने 'तन्त्रालोक' नामक श्रेष्ठ दर्शनिक कृति की रचना की। यह ग्रन्थ रत्न तन्त्र-शास्त्र का विश्वकोश माना जाता है।

No.-9. कुन्तक

कुन्तक कश्मीर के निवासी थें तथा इन्हें 'वक्रोक्ति' सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है।

कुन्तक का समय 10वीं शती का उत्तरार्द्ध स्वीकार किया जाता है।

कुन्तक की प्रसिद्ध कृति 'वक्रोक्तिजीवित चार उन्मेषों में विभक्त कारिका एवं वृत्ति से संवलित ग्रन्थ है।

No.-10. धनंजय

धनंजय धारा नरेश मुंजराज के सभा पण्डित थे तथा इनका समय 10वीं शती का उत्तरार्द्ध स्वीकार किया जाता है।

धनंजय ध्वनि विरोधी आचार्य थे तथा 'दशरूपक' नामक ग्रन्थ की रचना की।

धनंजय कृत 'दशरूपक' में चार प्रकाश तथा लगभग 300 कारिकाएँ हैं।

धनंजय के भ्राता धनिक ने 'दशरूपक' की टीका 'अवलोक' नाम से लिखी।

No.-11. महिम भट्ट

महिम भट्ट कश्मीर के निवासी थे। इनके पिता का नाम श्री धैर्य तथा गुरु का नाम श्यामल था।

महिम भट्ट का समय 11 वीं शती का मध्यभाग स्वीकार किया जाता है।

महिम भट्ट ने ध्वनि मत के खण्डन के लिए 'व्यक्ति विवेक' नामक प्रौढ़ ग्रन्थ की रचना की।

'व्यक्ति विवेक' तीन विमर्शो (अध्यायों) में विभक्त है।

No.-12. भोजराज

भोजराज धारा प्रदेश के राजा थे। इनका समय 11वीं शती का पूर्वार्द्ध माना जाता है।

भोजराज ने 'सरस्वती कण्ठाभरण' तथा 'श्रृंगार प्रकाश' नामक दो ग्रन्थों की रचना की।

No.-13. मम्मट

मम्मट का जन्म कश्मीर में हुआ था तथा इनके पिता का नाम 'कैयट' था।

मम्मट का समय 11वीं शती का उत्तरार्द्ध स्वीकार किया जाता है।

मम्मट ने 'काव्य प्रकाश' नामक ध्वनि-विरोधी ग्रन्थ की रचना की। जिसमें कुल 10 उल्लास (अध्याय) है।

No.-14. क्षेमेन्द्र

कश्मीर निवासी क्षेमेन्द्र का समय 11वीं शती का उत्तरार्द्ध स्वीकार किया जाता है। इनके पिता का नाम प्रकाशेन्द्र था।

क्षेमेन्द्र को 'औचित्य सम्प्रदाय' का प्रवर्तक माना जाता है।

क्षेमेन्द्र के शिक्षा गुरु अभिनव गुप्त थे।

क्षेमेन्द्र ने निम्नलिखित ग्रन्थों की रचना की-

No.-1.कविकण्ठाभरण

No.-2. औचित्य विचार चर्चा

No.-3.सुवृत्त तिलक

No.-4.दशावतार चरित।

No.-15. रुय्यक

कश्मीर निवासी रुय्यक के पिता का नाम राजानक तिलक था। राजानक तिलक ने उद्भट के ग्रन्थ पर 'उद्भट-विवेक' नामक से टीका लिखी।

रुय्यक का समय 12वीं शती का पूर्वार्द्ध था तथा ये महाकवि मंखक के काव्य गुरु थे।

रुय्यक ने 'अलंकार-सर्वस्व' नामक एक मौलिक ग्रन्थ की रचना की।

No.-16. शोभाकार मित्र

शोभाकार मित्र का समय 12वीं शती का उत्तरार्द्ध था ये कश्मीर निवासी त्रयीश्वर मित्र के पुत्र थे।

शोभाकार मित्र ने 'अलंकार रत्नाकर' नामक ग्रन्थ की रचना की।

No.-17. हेमचन्द्र

हेमचन्द्र गुजरात के राजा कुमारपाल के गुरु थे तथा 'काव्यानुशासन' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया।

हेमचन्द्र के दो शिष्य- रामचन्द्र तथा गुणचन्द्र ने सम्मिलित रूप में 'नाट्य-दर्पण' नामक ग्रन्थ की रचना की।

रामचन्द्र को 'प्रबन्धरशतकर्ता' की उपाधि से भी मण्डित किया जाता है।

No.-18. शारदा तनय

शारदा तनय का समय 13वीं शती का मध्यभाग स्वीकार किया जाता है तथा ये कश्मीर के निवासी थे।

शारदा तनय ने 'भाव प्रकाशन' नामक ग्रन्थ की रचना की। इसमें 10 अधिकार (अध्याय) है।

No.-19. जयदेव

जयदेव मिथिला के निवासी थे तथा इनका समय 13वीं शती का उत्तरार्द्ध स्वीकार किया जाता है।

जयदेव साहित्य के क्षेत्र में 'पीयूषवर्ष' तथा न्याय के क्षेत्र में 'पक्षधर' उपाधि से प्रख्यात थे।

जयदेव ने 'चन्द्रालोक' नामक अलंकार शास्त्र की रचना 10 मयूखों तथा 35 अनुष्टुप् श्लोकों में की।

No.-20.विश्वनाथ कविराज

विश्वनाथ कविराज उत्कल (उड़िया) के राजा के 'सान्धिविग्रहिक' थे। इनके पिता का नाम चन्द्रशेखर था।

विश्वनाथ का समय 14वीं शती का पूर्वार्द्ध स्वीकार किया जाता है।

आचार्य विश्वनाथ ने 10 परिच्छेदों (अध्यायों) में 'साहित्य दर्पण' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ की रचना की।

No.-21. विद्याधर

विद्याधर ने काव्य प्रकाश की शैली में 'एकावली' नामक ग्रन्थ की रचना की।

विद्याधर का समय 14वीं शती का पूर्वार्द्ध माना जाता है।

No.-22. विद्याधर

विद्याधर ने काव्य प्रकाश की शैली में 'एकावली' नामक ग्रन्थ की रचना की।

विद्याधर का समय 14वीं शती का पूर्वार्द्ध माना जाता है।

No.-22. विद्यानाथ

विद्यानाथ दक्षिण भारत के काकतीय नरेश प्रतापरुद के दरबार में रहते थे। इनका समय 14वीं शती का पूर्वार्द्ध माना जाता है।

विद्यानाथ ने 'प्रतापरुद्र यशोभूषण' नामक ग्रन्थ की रचना 9 प्रकरणों में की।

No.-23. अप्पय दीक्षित

अप्पय दीक्षित दक्षिण भारत के प्रसिद्ध शैव दर्शनिक थे। इनका समय 16वीं शती का अन्तिम चरण माना जाता है।

अप्पय दीक्षित ने 'वृत्ति-वर्तिक, 'चित्रमीमांसा' तथा 'कुवलयानन्द' नामक ग्रन्थ की रचना की।

No.-24. पण्डित राज जगन्नाथ

पण्डितराज जगन्नाथ जात्या आन्ध्र ब्राह्मण थे तथा पेद्द भट्ट के पुत्र थे। इनका समय 17वीं शती का प्रथम चरण माना जाता है।

पण्डितराज जगन्नाथ ने 'रसगंगाधर' नामक प्रौढ़ ग्रन्थ की रचना की।

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