प्रेमचन्द्र पूर्व (प्रथम उत्थान)
ब्रजरत्न दास के अनुसार, भारतेन्दु
हरिश्चन्द्र ने 'कुछ आपबीती कुछ जग बीती' नाम
से एक उपन्यास लिखा था।
हिन्दी का प्रथम उपन्यास, उपन्यासकार
एवं प्रस्तोता-
प्रस्तोता |
उपन्यासकार |
उपन्यास |
वर्ष |
डॉ. गोपाल राय |
पं. गौरी दत्त |
देवरानी जेठानी की कहानी |
1870 ई. |
डॉ विजयशंकर मल्ल |
श्रद्धाराम फिल्लौरी |
भाग्यवती |
1877 ई. |
श्री रामचन्द्र शुक्ल |
श्रीनिवासदास |
परीक्षा-गुरु |
1882 ई. |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लाला श्रीनिवासदास कृत 'परीक्षा गुरु' को अंग्रेजी के ढंग का हिन्दी का पहला मौलिक उपन्यास माना है।
प्रेमचंद्र पूर्व उपदेश प्रधान सामाजिक
उपन्यास निम्न हैं-
उपन्यासकार |
उपन्यास |
गौरीदत्त |
देवरानी जेठानी की कहानी (1870) |
ईश्वरी प्रसाद व कल्याण राय |
वामा शिक्षक (1872) |
श्रद्धाराम फिल्लौरी |
भाग्यवती (1877) |
लाला श्रीनिवासदास |
परीक्षा गुरु (1882) |
बालकृष्ण भट्ट |
No.-1. नूतन
ब्रह्मचारी (1886), No.-2. रहस्य कथा (1879), No.-3. सौ अजान एक
सुजान (1892) |
राधाकृष्ण दास |
निस्सहाय हिन्दू (1890) |
ठाकुर जगमोहन सिंह |
श्यामा स्वप्न (1888) |
लज्जाराम मेहता |
No.-1. धूर्त रसिक
लाल (1889), No.-2. स्वतंत्र रमा और परतंत्र लक्ष्मी (1899), No.-3. आदर्श दम्पति(1904), No.-4. बिगड़े का
सुधार अथवा सती सुख देवी (1907), No.-5. आदर्श हिन्दू
(1914) |
किशोरीलाल गोस्वामी |
No.-1. लवंगलता वा
आदर्शबाला (1890), No.-2. स्वर्गीय कुसुम वा कुसुम कुमारी (1889), No.-3. लीलावती वा आदर्शसती (1901), No.-4. चपला वा नव्य
समाज (1903), No.-5. तरुण तपस्विनी वा कुटीर वासिनी (1906), No.-6. पुनर्जन्म वा सौतिया डाह (1907), No.-7. माधवी माधव वा मदनमोहिनी (1909), No.-8. अँगूठी का नगीना (1918)। |
अयोध्या सिंह उपाध्याय |
No.-1. अधखिला फूल (1907), No.-2. ठेठ हिन्दी का ठाठ (1899) |
ब्रजनन्दन सहाय |
No.-1. सौन्दर्योपासक
(1912), No.-2. राधाकांत (1918) |
मन्नन द्विवेदी |
रामलाल(1917) |
राधिकारमण प्रसाद सिंह |
वनजीवन वा प्रेमलहरी (1916) |
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध कृत 'ठेठ
हिन्दी का ठाठ' उपन्यास को 'मुहावरों का पाठ्य-पुस्तक' कहा
जाता हैं?
राधाकृष्णदास कृत 'निस्सहाय
हिन्दू' हिन्दी का पहला उपन्यास है जिसमें मुस्लिम समाज
का अंकन किया गया है। यह गोवध-निवारण के लिए लिखा गया था।
किशोरीलाल गोस्वामी का 'स्वर्गीय
कुसुम वा कुसुम कुमारी' (1889 ई.) वेश्या जीवन पर आधारित हिंदी का प्रथम
उपन्यास हैं।
किशोरीलाल गोस्वामी को हिन्दी का प्रथम
ऐतिहासिक उपन्यासकार माना जाता है।
डॉ. गोपाल राय पं. बालकृष्ण भट्ट को हिन्दी का प्रथम ऐतिहासिक उपन्यासकार मानते हैं।
प्रेमचन्द्र पूर्व हिन्दी के प्रमुख
ऐतिहासिक उपन्यासकार-
उपन्यासकार |
उपन्यास |
किशोरीलाल गोस्वामी |
No.-1. हृदयहारिणी
वा आदर्श रमणी (1890), No.-2. तारा (1902), No.-3. राजकुमारी (1902), No.-4. कनक कुसुम वा मस्तानी (1903), No.-5. लखनऊ की कब्र
वा शाही महलसरा। (1918), No.-6. सुल्ताना रजिया बेगम वा रंग महल में हलाहल (1905)। |
गंगा प्रसाद गुप्त |
No.-1. पृथ्वीराज
चौहान (1902), No.-2. कुँवर सिंह सेनापति (1903), No.-3. हम्मीर (1904) |
जयरामदास गुप्त |
No.-1. कश्मीर पतन (1907), No.-2. मायारानी (1908), No.-3. नवाबी
परिस्तान वा वाजिद अली शाह (1908), No.-4. कलावती (1909) |
रामनरेश त्रिपाठी |
वीरांगना (1911) |
मथुरा प्रसाद शर्मा |
नूरजहाँ बेगम व जहाँगीर (1905) |
ब्रजनन्दन सहाय |
लालचीन (1916) |
मिश्र बन्धु |
वीरमणि (1917) |
श्यामसुन्दर वैद्य |
पंजाब पतन |
कृष्ण प्रसाद सिंह |
वीर चूड़ामणि |
निस्सहाय हिन्दू' हिन्दी
प्रथम पूर्ण उपन्यास है जिसमें नाटकीय पद्धति पर प्रसंगों के निर्माण तथा कथाओं के
युगपत संक्रमण की प्रविधि अपनाई गई है।
देवकीनन्दन खत्री को हिन्दी में तिलस्मी-ऐयारी उपन्यासों का प्रर्वतक माना जाता है।
देवकीनन्दन खत्री के प्रमुख उपन्यास निम्नलिखित हैं-
चंद्रकांता (1888), चंद्रकांता
संतति (24 भाग-1996)
(1896), नरेन्द्र मोहिनी (1893), वीरेन्द्र
वीर (1895), कुसुम कुमारी (1899), काजर की कोठरी (1902), अनूठी
बेगम (1905), गुप्त गोदना (1913), भूतनाथ (6
भाग-अधूरा 1907)।
गोपालराम गहमरी को हिन्दी में जासूसी
उपन्यासों का प्रवर्तक माना जाता हैं।
गोपाल राम गहमरी के प्रमुख उपन्यास
हैं- 'अद्भुत लाश',
'बेकसूर की फाँसी', 'सरकारी
लाश', 'खूनी कौन',
'बेगुनाह का खून', 'जासूस
की भूल', 'अद्भुत खून'
आदि।
गोपालराम गहमरी को हिन्दी का 'कानन
डायल' कहा गया है।
प्रेमचन्द्र पूर्व हिन्दी के अन्य
महत्त्वपूर्ण औपन्यासिक रचनाएँ-
उपन्यासकार |
उपन्यास |
भुवनेश्वर मिश्र |
No.-1. घराऊ घाट (1894), No.-2. बलवंत भूमिहार (1896) |
राधाचरण गोस्वामी |
सौदामिनी (1891) |
कुँवर हनुमंत सिंह |
चन्द्रकला (1893) |
जैनेन्द्र किशोर |
गुलेनार (1907) |
गंगा प्रसाद गुप्त |
लक्ष्मी देवी (1910) |
अवधनारायण |
विमाता (1916) |
ब्रजनन्दन सहाय |
No.-1. राजेन्द्र
मालती (1897), No.-2. अद्भुत प्रायश्चित (1901), No.-3. अरण्यबाला (1915) |
कुंवर हनुमंत सिंह कृत 'चन्द्रकला' (1893) हिन्दी
का प्रथम उपन्यास है जिसमें स्त्रियों के बलात शोषण का अंकन किया गया है।
पं. बालकृष्ण भट्ट कृत 'सौ
अजान एक सुजान'(1892) हिन्दी का प्रथम चरित्र प्रधान उपन्यास हैं।
प्रेमचन्द युग
प्रेमचन्द का मूल नाम नवाब राय था।
नवाब राय की प्रथम कहानी 'इश्के दुनिया व हुब्बे वतन' शीर्षक
से अप्रैल, 1908 में 'जमाना' में प्रकाशित हुई।
नवाब राय का प्रथम कहानी संग्रह 'सोजेवतन' सन्
1908 में जमाना प्रेस, कानपुर
से प्रकाशित हुआ।
'सोजेवतन' में पाँच कहानी संकलित हैं जो निम्न है-
No.-1. इश्के दुनिया व हुब्बे वतन (सांसरिक प्रेम और
देश प्रेम)
No.-2. दुनिया का सबसे अनमोल रतन
No.-3. यह मेरा वतन है,
No.-4. शेख मखमूर
No.-5. सिल-ए-मातम (शोक का पुरस्कार)।
'सोजे वतन'
के प्रकाशन के बाद ब्रिटिश सरकार ने
नवाब राय पर 'सिडीशन'
(Sedition) का आरोप लगाकर उनके सारे संग्रह को
जब्त कर लिया। 'सोजे वतन'
उर्दू कहानियों का संग्रह है।
प्रेमचन्द नाम से उनकी पहली कहानी 'बड़े
घर की बेटी' दिसम्बर,
1910 में जमाना में प्रकाशित हुई थी।
प्रेमचन्द की प्रथम कहानी 'सौत' (हिन्दी
भाषा और देवनागरी लिपि में) सन् 1915 में 'सरस्वती में प्रकाशित हुई।
कुछ आलोचक प्रेमचन्द के 'पंचपरमेश्वर' (1916) को
इनकी प्रथम कहानी मानते हैं तथा अन्तिम 'कफ़न' को।
प्रेमचन्द के प्रमुख कहानी-संग्रह
निम्नलिखित हैं-
सप्त सरोज (1917) |
नवनिधि (1917) |
प्रेम पूर्णिमा (1918) |
प्रेम पच्चीसी (1923) |
प्रेम प्रसून (1924) |
प्रेम द्वादशी (1926) |
प्रेम प्रतिमा (1926) |
प्रेम प्रतिज्ञा (1929) |
प्रेम चतुर्थी (1929) |
प्रेम कुंज (1930) |
सप्त सुमन (1930) |
कफ़न (1936) |
प्रेमचन्द ने लगभग 300
कहानियां लिखी हैं जो अब 'मानसरोवर'
शीर्षक से आठ भागों में प्रकाशित है।
प्रेमचन्द ने लिखा है, 'सबसे
उत्तम कहानी वह होती है, जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर होता है।
प्रेमचन्द को 'कहानी सम्राट' कहा जाता है।
प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानियाँ
कालक्रमानुसार निम्न हैं-
No.-1. नमक का दरोगा
(1913) |
No.-13. अलग्योझा (1929) |
No.-2. सज्जनता का
दण्ड (1916) |
No.-14. पूस की रात (1930) |
No.-3. ईश्वरीय
न्याय (1917) |
No.-15. समर यात्रा (1930) |
No.-4. दुर्गा का
मन्दिर (1917) |
No.-16. पत्नी से पति
(1930) |
No.-5. बूढी काकी (1920) |
No.-17. सद्गति (1930) |
No.-6. शान्ति (1921) |
No.-18. दो बैलों की
कथा (1931) |
No.-7. सवा सेर
गेहूँ (1924) |
No.-19. होली का
उपहार (1931) |
No.-8. शतरंज के
खिलाड़ी (1924) |
No.-20. ठाकुर का
कुआँ (1932) |
No.-9. मुक्तिमार्ग
(1924) |
No.-21. ईदगाह (1933) |
No.-10. मुक्तिधन (1924) |
No.-22. नशा (1934) |
NO.-11. सौभाग्य के
कोड़े (1924) |
No.-23. बड़े भाई साहब
(1934) |
No.-12. दो सखियाँ (1928) |
No.-24. कफ़न (1936) |
चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने तीन कहानियाँ
लिखी हैं। डॉ० गोपाल राय ने इनका कालक्रम निम्न बताया हैं-
सुखमय जीवन |
1911 |
भारत मित्र |
बुद्ध का काँटा |
1914 |
|
उसने कहा था |
1915 |
सरस्वती |
उसने कहा था' प्रथम
विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई प्रेम-संवेदना की कहानी है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने 'उसने
कहा था' कहानी की प्रशंसा करते हुए लिखा है, ''घटना
इसकी ऐसी है जैसे बराबर हुआ करती है, पर उसमें से भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय
स्वरूप झाँक रहा है- केवल झाँक रहा है, पर उसमें से भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय
स्वरूप झाँक रहा है- केवल झाँक रहा है निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा
है। कहानी भर में कहीं प्रेम की निर्लज्जता,
प्रगल्भता, वेदना
की वीभत्स विवृत्ति नहीं है। सुरुचि के सुकुमार से सुकुमार स्वरूप पर कहीं आघात
नहीं पहुँचता। इसकी घटनाएँ ही बोल रही हैं,
पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।''
'उसने कहा था' फ्लैश बैक (पूर्वदीप्ति) पद्धति पर
लिखी हिन्दी की प्रथम कहानी है।
जयशंकर प्रसाद की प्रथम कहानी सन् 1911 ई.
में 'ग्राम' शीर्षक से 'इन्दु पत्रिका में प्रकाशित हुई।
जयशंकर प्रसाद के कहानी-संग्रह और
चर्चित कहानियाँ निम्न हैं-
कहानी संग्रह- छाया (1912), प्रतिध्वनि
(1926), आकाशदीप (1928),
आँधी (1931), इंद्रजाल (1936)।
चर्चित कहानियाँ-
No.-1. पत्थर
की पुकार,
No.-2. उस पार का योगी,
No.-3. चंदा,
No.-4. देवदासी,
No.-5. ममता,
No.-6. खण्डहर
की लिपि,
No.-7. घीसू,
No.-8. चूड़ीवाली,
No.-9. विसाती,
No.-10. सालवती,
No.-11. मधुआ,
No.-12. नूरी,
No.-13. पुरस्कार,
No.-14. गुण्डा,
No.-15. छोटा जादूगर।
'छाया' प्रसाद की प्रथम कहानी-संग्रह होने के साथ ही
हिन्दी का भी प्रथम कहानी-संग्रह है।
जयशंकर प्रसाद की अन्तिम कहानी 'सालवती' को माना जाता है।
वृन्दावन लाल वर्मा के प्रमुख कहानी-संग्रह निम्न है-
No.-1. शरणागत (1950),
No.-2. कलाकार का दण्ड (1950)।
वृन्दावनलाल वर्मा को ऐतिहासिक
कहानियों की परम्परा का जनक माना जाता है।
राधिका रमण प्रसाद की प्रथम कहानी 'कानों
में कंगना' (1913) 'इन्दु' में प्रकाशित हुई थी। इनके प्रमुख कहानी संग्रह
हैं-
No.-1. कुसुमांजलि,
No.-2. गाँधी टोपी (1938),
No.-3. सावनी समाँ (1938)।
राधिकारमण प्रसाद सिंह की एक अन्य
महत्वपूर्ण कहानी 'बिजली' हैं।
आचार्य शुक्ल के अनुसार चतुरसेन शास्त्री 1914 से ही कहानी लिखना आरम्भ कर दिये थे। इनके प्रमुख कहानी-संग्रह निम्न हैं-
No.-1. रजकण,
No.-2. अक्षत,
No.-3. बाहर भीतर,
No.-4. दुखवा मैं कासों कहूँ मोर सजनी,
No.-5. सोया हुआ शहर,
No.-6. धरती और आसमान,
No.-7. कहानी खत्म हो गई,
No.-8.स्त्रियों
का ओज,
No.-9. सिंहगढ़ विजय।
चतुरसेन शास्त्री की चर्चित कहानियाँ निम्न है-
No.-1.अंबपालिक
No.-2. प्रबुद्ध
No.-3. भिक्षुराज
No.-4. बावर्चिन
No.-5. हल्दीघाटी
में
No.-6. बाणवधू।
चतुरसेन शास्त्री कृत 'दुखवा
मैं कासों कहूँ मोर सजनी' कहानी बंगला कथाकार हरिसाधन मुखोपाध्याय की
बांग्ला कहानी 'सेलिसमा बेगम' का रूपान्तर माना जाता है।
प्रेमचन्द युग के अन्य महत्वपूर्ण कहानीकार एवं कहानियाँ निम्न हैं-
विश्वंभरनाथ शर्मा-
No.-1. गल्प
मन्दिर (1919),
No.-2. चित्रशाला,
भाग-1 (1924),
No.-3. चित्रशाला,
भाग-2 (1929),
No.-4. कल्लोल (1933),
No.-5. प्रेम
प्रतिमा,
No.-6. मणिमाला।
No.-1. अनाख्या
(1929),
No.-2. सुधांशु (1929),
No.-3. आँखों की थाह तथा अन्य कहानियाँ (1941)।
No.-1. सतमी
के बच्चे (1935),
No.-2. वोल्गो से गंगा (1944)।
No.-1. महिला
महत्व (1922),
No.-2. कहानी का प्लाट (1928)।
No.-1. अंजलि,
No.-2. झलमला (1934),
No.-3. कनक रेखा (1961)।
No.-1. सुप्रभात (1923),
No.-2. परिवर्तन (1926),
No.-3. सुदर्शन सुधा (1926),
No.-4. तीर्थयात्रा (1927),
No.-5. सुदर्शन सुमन (1933),
No.-6. पनघट (1939),
No.-7. नगीने (1947),
No.-8. झरोखे (1939)।
No.-1. नंदन निकुंज (1923),
No.-2. वनमाला।
No.-1. मधुपर्क
(1929),
No.-2. दीपमालिका (1930),
No.-3. पुष्करिणी (1936),
No.-4. हिलोर (1938),
No.-5. खाली बोतल,
No.-6. मेरे सपने,
No.-7. ज्वार भाटा (1940),
No.-8. कला की दृष्टि (1942),
No.-9. उपहार (1942),
No.-10. अंगारे (1944),
No.-11. उतार चढ़ाव (1950)।
No.-1. नवपल्लव
(1928),
No.-2. तूलिका (1928),
No.-3. भूली बात (1929),
No.-4. मणिदीप (1945),
No.-5. नक्षत्रलोक (1950), अस्सी कहानियाँ (1960)।
No.-1. किसलय (1929),
No.-2. मालिका (1930),
No.-3. मृदुदल (1932),
No.-4. मधुमयी (1937)।
No.-1. चाकलेट (1924),
No.-2. शैतान मण्डली (1924),
No.-3. चिनगारियाँ (1925),
No.-4. इन्द्रधनुष,
No.-5. घोड़े की कहानी,
No.-6. बलात्कार (1927),
No.-7. निर्लज्जा (1929),
No.-8. दोजख की आग (1929),
No.-9. क्रांतिकारी कहानियाँ (1939),
No.-10. उग्र का हास्य (1939),
No.-11. गल्पांजलि,
No.-12. रेशमी (1942),
No.-13. पंजाब की महारानी (1943),
No.-14. जब सारा आलम सोता है (1951)।
No.-1. चन्द्रकला (1929)
No.-1. लिली (1934),
No.-2. सखी (1935),
No.-3. सुकुल की बीबी (1941)।
No.-1. दो बाँके (1936),
No.-2. इंस्टालमेंट,
No.-3. मुगलों ने सल्तनत बख्श दी,
No.-4. मोर्चाबन्दी।
उग्र की 'चिनगारियाँ' बारह
कहानियों का संग्रह है, जिसे 1928 में अपने क्रान्तिकारी विचारों के कारण
ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था।
निराला कृत 'सखी
का सन् 1945 में चतुरी चमार' नाम से प्रकाशन हुआ। प्रेमचन्दोत्तर युग
जैनेन्द्र की कहानियों के माध्यम से
पहली बार हिन्दी साहित्य में 'व्यक्ति' को
महत्व मिला।
जैनेन्द्र की प्रथम कहानी 'खेल' (1928)
'विशाल भारत' में
प्रकाशित हुई। किन्तु जैनेन्द्र ने 'फोटोग्राफी' अपनी प्रथम कहानी माना है।
जैनेन्द्र के महत्वपूर्ण कहानी-संग्रह और कहानियाँ निम्न हैं-
कहानी संग्रह- फाँसी (1929), वातायन (1931), दो
चिड़ियाँ (1934),
एक रात (1935), नीलम देश की राजकन्या (1938), ध्रुवयात्रा (1944), पाजेब (1948), जय
सन्धि (1948)।
No.-1.स्पर्द्धा,
No.-2. पत्नी,
No.-3. एक कैदी,
No.-4. गदर के बाद,
No.-5.बाहुबली,
No.-6. तत्सत्,
No.-7. लाल सरोवर,
No.-8. मास्टर जी,
No.-9. जाह्नवी,
No.-10.अपना-अपना भाग्य।
अन्य महत्वपूर्ण कहानीकार और उनके संग्रह निम्नलिखित हैं-
No.-1.यशपाल- पिंजरे की उड़ान (1939),
No.-2. ज्ञानदान (1943),
No.-3. अभिसप्त (1943),
No.-4. तर्क का तूफान (1944),
No.-5. भस्मावृत चिनगारी (1946),
No.-6. वो दुनिया (1948),
No.-7. फूलों का कुर्ता (1949),
No.-8. धर्मयुद्ध (1950),
No.-9. उत्तराधिकारी (1951),
No.-10. चित्र का शीर्षक (1951),
No.-11. उत्तमी की माँ (1955),
No.-12. तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ (1954),
No.-13. सच बोलने की भूल (1962),
No.-14. खच्चर और आदमी (1965),
No.-15. भूख के तीन दिन (1968)।
No.-1. धूप रेखा (1938),
No.-2. दीवाली और होली (1942),
No.-3. रोमैंटिक छाया (1943),
No.-4. आहुति (1945),
No.-5. खण्डहर की आत्माएँ (1948),
No.-6. डायरी के नीरस पृष्ठ (1951),
No.-7. कँटीले फूल : लजीले काँटे (1957)।
No.-1. विपथगा (1937),
No.-2. परम्परा (1940),
No.-3. कोठरी की बात (1945),
No.-4. शरणार्थी (1948),
No.-5. जयदोल (1951),
No.-6. ये तेरे प्रतिरूप (1961),
No.-7. अमर वल्लरी (1945)।
No.-1. पिंजरा (1944),
No.-2. अंकुर (1945),
No.-3. छींटे (1949),
No.-4.बैंगन का पौधा (1954),
No.-5. सत्तर श्रेष्ठ कहानियाँ (1958),
No.-6. पलंग (1961),
No.-7. आकाशचारी (1966)।
No.-1. आदि और अंत (1945),
No.-2. रहमान का बेटा (1947),
No.-3. जिन्दगी के थपेड़े (1952),
No.-4. धरती अब भी घूम रही है (1970),
No.-5. साँचे और कला (1962),
No.-6. पुल टूटने से पहले (1977),
No.-7. मेरा वतन (1980),
No.-8. खिलौने (1981),
No.-9. एक और कुंती (1985),
No.-10. जिन्दगी एक रिहर्सल (1986),
No.-11. आसमान के नीचे (1989),
No.-12. कर्फ्यू और आदमी (1994),
No.-13. आखिर क्यों (1998),
No.-14. मैं नारी हूँ (2001),
No.-15. जीवन का एक (2002),
No.-16. ईश्वर का चेहरा (2003)।
No.-1. एक दिल हजार अफ़साने (1986)।
No.-1. टीला
No.-2. कच्चा धागा।
No.-1. जीवन के पहलू (1947),
No.-2. तिरंगे कफ़न (1948), (3) इतिहास।
रांगेय राघव-
No.-1. साम्राज्य का वैभव (1947),
No.-2. समुद्र के फेन (1947),
No.-3.देवदासी (1947),
No.-4. जीवन के दाने (1949),
No.-5. अधूरी मूरत (1949),
No.-6. अंगारे न बुझे (1951),
No.-7. इंसान पैदा हुआ (1951)।
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