काल के क्रूर हाथ इतने निर्दयी भी होते
हैं, विश्वास नहीं होता। समय का पहिया जब बदलता है
वह नई घटनाओं को अंजाम देता है। एक बार यह दुर्भाग्य तब जागा था जब महात्मा गाँधी
को प्रार्थना सभा में ही नाथूराम गोडसे द्वारा समाप्त कर दिया गया।
देश हिचकियाँ भर रो उठा था, लोग कहते कि अब कौन रास्ता दिखायेगा। इस समस्या भरे देश को और फिर सिर पीटने लगते। जवाहरलाल जी के समझाने-बुझाने और धैर्य देने पर जनता की हिचकियाँ रूक पायी थीं।
देश के दुर्भाग्य ने फिर करवट ली और पं. नेहरू चल बसे। विश्व अवाक् रह गया और देश
अनाथ हो गया। जनता के नेत्रों ने अपनी अजस्र अश्रुधाराओं से उन्हें अर्ध्य दिये पर
हृदय में से उठती हाय न रुक सकी। लोग कहते कि अब क्या होगा इस देश का।
प्रधानमंत्री होते ही राजीव गाँधी ने राष्ट्र के नाम प्रसारण किया-बड़े नपे तुले शब्दों में उन्होंने कहा-वह केवल मेरी माँ ही नहीं हम सबकी माँ थी, हिंसा, घृणा व द्वेष से इन्दिरा गाँधी की आत्मा को दुःख पहुँचता था-आप शान्त रहें और धैर्य से काम लें।
बिलखते हुए रोते हुए नागरिकों के आँसू थम से
गये-जादू सा हो गया पूरे राष्ट्र पर। एक ओर इन्दिराजी का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था
दूसरी ओर माँ का लाडला आंसुओं को थामे हुए भारत माँ की सेवा में जुटा था-सारी रात
स्वयं दिल में भारी तूफान रोके हुये दिल्ली की बस्तियों में घूम-घूमकर राजीवजी ने
दुःखी जनता के आँसू पोंछे।
उन्होंने पंजाब की वह विकराल समस्या जिसने उनकी प्रिय माँ और पूरे राष्ट्र की आत्मा श्रीमती इन्दिरा गाँधी के प्राण से लिये निर्भीकता और शान्तिपूर्ण ढंग से हल कर एक चमत्कारिक कार्य किया। क्या राजीव जी को कोई दैवी शक्ति प्राप्त है। या वह किसी शक्ति के अवतार है-नहीं वह भारत माँ के लाल है।
लोकसभा और विधान सभा के चुनावों का समय आ गया
था। राजीव जी ने दृढ़तापूर्वक इन चुनावों का सामना करने का निश्चय किया था। वह
चाहते तो चुनाव कुछ दिन के लिये टाल भी सकते थे, पर वह तो ऐसी माँ के लाल थे जिसने पीछे
मुड़कर देखना सीखा नहीं था। समय पर चुनाव कराने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।
राजीव जी जहाँ-जहाँ भी गये उनका अभूतपूर्व स्वागत हुआ। धन्य है भारत की जनता जिसने भारत के इस सपूत के हाथों में एक बार पुनः देश की बागडोर थमा दी। चाहे लोकसभा हो या राज्यसभा सभी में राजीव जी ने सभी पुराने रिकार्ड तोड़ दिये थे।
भगवान उन्हें चिरायु करें जिससे 21
वीं सदी के जिस भारत की कल्पना उनके मष्तिष्क में है, वह
साकार रूप धारण कर सके और भारत में ऊँच-नीच,
भ्रष्टाचार, घूसखोरी, देशद्रोह, निर्धनता, पिछड़ापन, बेरोजगारी, दहेज
प्रथा, महिलाओं पर अत्याचार जैसी कुरीतियों को दूर
करने के लिये वे सदैव प्राण से लगे रहे।
यह जनता तक स्वराज्य पहुँचाने का प्रयास था, यह एक राजनैतिक क्रान्ति थी। 5 जून 1989 को अपने निवास पर एकत्र हुए कार्यकर्ताओं से कहा था कि 80 करोड़ लोगों की शिकायतों का निस्तारण करने के लिये पाँच सौ संसद काफी नहीं है। घूम फिरकर गाँव और गलियों की समस्यायें मुख्यमन्त्रियों तथा तथा स्वयं प्रधानमंत्री के पास लाई जाती है।
शिक्षित बेरोजगारों के लिये राजीव गाँधी ने 1988 में व्यापक योजना प्रारम्भ की। इन्दिरा जी के प्रयासों के फलस्वरूप अब तक अशिक्षित बेरोजगारों के लिये ही बैंकों से ऋण दिया जाता था परन्तु राजीव गाँधी ने इस क्षेत्र को और अधिक व्यापक बनाकर शिक्षितों को भी सहारा दिया।
21 मई, 1991 को देश का दुर्भाग्य जागा और उसने एक बार फिर करवट बदली। मद्रास के पेरुम्बदूर गाँव में जनता दर्शनों के लिये उमड़ रही थी।
माल्यार्पण करने में होड़ लगी हुई थी। दुर्भाग्य
ने अन्तिम अट्टहास किया और एक आत्मघाती महिला राजीव गाँधी के चरण छूने और
माल्यार्पण करने निकट आई, उसने अपनी बैल्ट में लगा बटन दबाया, उसकी
कमर में बंधे बम का विस्फोट हुआ और देश के पूर्व एवं भावी प्रधानमन्त्री श्री
राजीव गाँधी के शरीर के चिथड़े आकाश में उड़ गये और फिर दूर-दूर धराशायी हो गये।
देश की जनता के साथ दुर्भाग्य ने एक बार फिर क्रूरतम खेल खिला दिया। सेना के विमान द्वारा श्री राजीव गाँधी का शव दिल्ली लाया गया। अपने नेता के अन्तिम दर्शनों के लिये जनता उमड़ पड़ी।
राजकीय सम्मान के साथ शक्ति स्थल पर पहुंची। शवयात्रा समाप्त हुई। आँसुओं से अर्ध्य और काँपते हाथों से फूलों की श्रद्धांजलि देते हुए अपार जनसमूह ने अपने नेता को अन्तिम प्रणाम किया। विश्व के राजनेताओं ने अपनी श्रद्धांजलियां दी। 24 मई 1991 को 5.25 सायं उनके प्रिय पुत्र राहुल ने उन्हें चिता की अग्नि को समर्पित कर दिया। भाग्य क्या नहीं कर लेता।
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