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Essay on Pranab Mukherji

 

 श्री प्रणब मुखर्जी ने भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में 25 जुलाई, 2012 को शपथ ग्रहण की। राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के प्रत्याशी पी. ए. संगमा को हराया।

 श्री मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर, 1935 को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के किरनाहर शहर के निकट स्थित मिराती गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी तथा माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था।

 प्रणब मुखर्जी का विवाह बाइस वर्ष की आयु में 13 जुलाई, 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के साथ हुआ था। उनके दो बेटे और एक बेटी है।

 प्रणब मुखर्जी के पिता एक सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए 10 वर्ष से अधिक समय कारागार में व्यतीत किया। श्री मुखर्जी रोजाना औसत 18 घंटे काम करने के आलावा किताबें पढ़ने, संगीत सुनने का शौक भी रखते हैं।

 प्रणब मुखर्जी ने सूरी (वीरभूम) के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा पाई। कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के साथ-साथ कानून की डिग्री भी हासिल की है। श्री मुखर्जी को डी. लिट उपाधि भी प्राप्त है। उन्होंने अपना कैरियर एक कॉलेज अध्यापक के रूप में शुरू किया। बाद में एक पत्रकार के रूप में भी कार्य किया।

 श्री मुखर्जी का राजनीति के क्षेत्र से करीब पाँच दशक पुराना नाता है। उनका राजनीतिक सफ़र 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में शुरू हुआ। सन् 1982 से 1984 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में शुरू हुआ। सन् 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने।

 कुछ समय के लिए उन्होंने कांग्रेस पार्टी को छोड़कर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया। सन् 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद उन्होंने अपने दल का कांग्रेस पार्टी में विलय कर दिया। सन् 1991 से लेकर सन् 1996 तक वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर आसीन रहे। वह नरसिंह राव की सरकार में पहली बार 1995 से 1996 तक विदेश मंत्री बने।

 जब कांग्रेस की गठबंधन सरकार सन् 2004 मे सत्ता में आई तो उन्हें भारत के रक्षामंत्री का प्रतिष्ठित पद प्रदान किया गया। जब सोनिया गांधी अनिच्छा के साथ राजनीति में शामिल होने के लिए राजी हुई तब उनका मार्गदर्शन प्रणव मुखर्जी ने ही किया।

 उनके द्वारा वही रास्ता सोनिया गाँधी को दिखाया गया जो श्रीमती इंदिरा गाँधी मुश्किल वक्त में अपनाया करती थी। श्री मुखर्जी हमेशा कांग्रेस पार्टी के लिए संकटमोचक साबित हुए। कई वर्षों का राजनीतिक अनुभव प्रणब तथा उनकी पार्टी को हर समस्या का समाधान ढूंढने में मदद करता रहा।

 यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में श्री मुखर्जी भारत के वित्त मंत्री बने। 6 जुलाई, 2009 को उन्होंने सरकार का वार्षिक बजट पेश किया। इस बजट में उन्होंने क्षुब्ध करने वाले फ्रिंज बेनिफिट टैक्स और कमोडिटीज ट्रांसक्शन कर को हटाने सहित कई तरह के कर सुधारों की घोषणा की।

 प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, लड़कियों की साक्षरता और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए समुचित धन का प्रावधान किया।

 इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम, बिजलीकरण का विस्तार और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन सरीखी बुनियादी सुविधाओं वाले कार्यक्रमों का भी विस्तार किया।

 सन् 1984 में न्यूयार्क से प्रकाशित यूरोमनी पत्रिका के अनुसार वह दुनिया के पाँच सर्वोत्तम वित्त मंत्रियों में से एक थे। सन् 1997 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड मिला। वित्त मंत्रालय और अन्य आर्थिक मंत्रालयों में राष्ट्रीय और आन्तरिक रूप से उनके नेतृत्व का लोहा माना गया।

 वह लम्बे समय के लिए देश की आर्थिक नीतियों को बनाने में महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उनके नेतृत्व में ही भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर की अन्तिम क़िस्त नहीं लेने का गौरव अर्जित किया। सन् 2008 के दौरान सार्वजनिक मामलों में उनके योगदान के लिए उन्हें पदम् विभूषण से भी नवाजा गया है।

 प्रणब मुखर्जी को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा 15 जून, 2012 को नामांकित किया गया। 81 उम्मीदवारों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन भरा परन्तु चुनाव आयोग ने केवल भाजपा एवं एनडीए समर्थित पी. ए. संगमा एवं यूपीए समर्थित प्रणब मुखर्जी को स्वीकृति दी।

 नामांकन भरने से पहले प्रणब मुखर्जी ने 26 जून, 2012 को केन्द्रीय वित्त मंत्री एवं कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। चुनावों में श्री मुखर्जी को 713,763 वोट तथा श्री संगमा को 315,987 वोट मिले। वह भारी मतों से विजयी हुए तथा उनका अगला कदम रायसीना हिल्स (राष्ट्रपति भवन) के लिए पक्का हुआ चुका था।

 उन्होंने अपने विजयी भाषा में कहा- ''मैं भारत के लोगों का धन्यवाद करना चाहता हूँ कि उन्होंने मुझे इतने सम्मानीय पद के लिए चुना।

'' लोगों का मेरे लिए स्नेह, लगाव सराहनीय है। मैंने भारत के लोगों से, संसद से बहुत ज्यादा पाया है जितना मैंने उनका दिया नहीं है। मुझे संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी दी गई है और मैं विश्वास दिलाता हूँ कि मैं आपका विश्वास जीतने का हमेशा प्रयत्न करूंगा।

 

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