Essay on navratri Festival
वर्षभर में नवरात्रि दो बार आते हैं। नवरात्रि में नौ देवियों की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व शक्ति साधना का पर्व कहलाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से जिस समय नवरात्र आते हैं वह काल संक्रमण काल कहलाता है। शारदीय नवरात्र के अवसर पर जहाँ शीत ऋतु का आरम्भ होता है वहीं वासंतिक नवरात्र पर ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है। दोनों ही समय वातावरण में विशेष परिवर्तन होता है। जिसमें अनेक प्रकार की बीमारियां होने की संभावना रहती है। उपवास के माध्यम से शरीर के बढ़े हुए या कम हुए तापमान को नियंत्रित कर शुद्ध आचार-विचार, आहार के द्वारा नई ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
ऐसा करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है। कहा जाता है कि नवरात्र ऋद्धि-सिद्धि लेकर आते हैं। मातृ शक्तियों की पूजा आराधना हमारे धर्म की विशेषता ही नहीं अपितु मूलाधार भी है।
भगवान श्री विष्णु के साथ लक्ष्मी जी, शिवजी के साथ पार्वती, भगवान राम के साथ सीता जी, कृष्ण के साथ राधा की पूजा तो होती ही है स्वतंत्र रूप से माँ भगवती की पूजा आराधना तथा भगवती के जागरण भी होते हैं।
भारत में प्रचलित सभी काल गणनाओं के अनुसार सभी संवतों का प्रथम दिन भी चैत्र शुक्ल प्रथमा ही है। प्रचलित मान्यताओं के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम राम का राज्याभिषेक का दिन भी चैत्र शुक्ल प्रथमा ही है। सृष्टि के निर्माण के प्रारम्भ की तिथि भी चैत्र शुक्ल प्रथमा के अनुरूप ही बैठती है। नवरात्र के तहत नौ दिन मां भगवती के नौ रूपों की पूजा अर्चना कर उपवास रखा जाता है। वर्ष में दो बार आने वाले इन नवरात्रों के तहत दुर्गा मंदिरों में विशेष उत्सव और समारोह तो होते ही हैं अधिकांश भारतीय परिवारों में देवी की विशेष पूजा व हवन भी किये जाते हैं।
इन दिनों देवी के निमित्त व्रत रखने का विधान है। कुछ लोग केवल एक लौंग का जोड़ा खाकर ही व्रत करते है जबकि कुछ लोग फलाहारी व्रत रखते हैं। यदि नौ दिन के व्रत रखना संभव न हो तो पहले और अंतिम नवरात्र का व्रत रखना चाहिए। इसका समापन कन्याओं को भोजन करवाकर उन्हें वस्त्र, पैसे आदि भेंट करने से होता है।
सिंहवाहिनी भगवती दुर्गा का चित्र पटरे पर रखा जाता है। गणेश जी की मूर्ति, मौली या फिर पीत रंग का कपड़ा लपेटकर पटरे पर रखा जाता है। कलश पर नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर रखा जाता है। इस प्रकार आठ या नौ दिन पूजा के बाद महालक्ष्मी का रामनवमी को पूजा कर कन्या का पूजन भी किया जाता है।
कन्याओं को रोली का टीका लगाकर उनके हाथ में मौली बांधी जाती है। कई लोग घर में रखे गये श्री दुर्गा सप्तशती पाठ का विधान के अनुसार पूजा के बाद हवन भी करते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार आज इसी दिन ब्रह्मा जी की पूजा आराधना का शास्त्रीय विधान भी है।
नवरात्रों में भक्तगण वैष्णव तरीके से व्रत अथवा उपवास रखकर मां भगवती की विधि-विधान पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। जनमानस में माँ भगवती से जुड़ी नवरात्रों की कई कथायें प्रचलित हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी इस त्यौहार का विशेष महत्व है। शरद ऋतु एवं वसन्त ऋतु के मिलने के कारण शारीरिक एवं मानसिक कष्ट लोगों को ज्यादा झेलने पड़ते हैं।
इस दौरान सब्जियों व फलों की उपज में भी कमी आ जाती है। साथ ही दूषित वायु एवं जल के कारण कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे मौसम में नवरात्रों में रखे गये व्रत उपवास एवं खानपान के संयम का फल चिरगामी होता है।
दिखावे के लिए किया गया पूजा-पाठ, समय-शक्ति एवं धन का अपव्यय होता है। इसलिए समय, साधन और श्रद्धा के अनुसार नवरात्रों से सम्बन्धित जप एवं मंत्र के भावार्थ को अपने जीवन में सार्थक करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
आंतरिक व बाहरी स्वच्छ्ता व शक्ति प्राप्ति का सहज मार्ग मां दुर्गा के नवरात्रों के लिए व्रत पालन का संकल्प बिना किसी दबाव, दिखावे अथवा निःस्वार्थ और श्रद्धा अनुसार किया जाना चाहिए। नवरात्रों के तहत सूर्योदय से पूर्व उठकर अपनी दोनों हथेलियों को देखते हुए
निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए-
कर मूले स्थितो ब्रह्म प्रभाते कर दर्शनम्।
इस मंत्र से अभिप्राय है कि हथेली के अग्र भाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवं मूल भाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं। इसके बाद जमीन पर पांव रखने से पूर्व धरती मां का अभिवादन करते हुए उन पर पैर रखने की मजबूरी के लिए उनसे क्षमा मांगे। तदुपरान्त स्नान आदि से
निवृत होकर निम्न मंत्र का जाप कर सूर्य नमस्कार करें-
हिरण्ययेन साविता रचेना देवो याति
भुवनानि पश्यन।।
इसके बाद फिर पूजा अर्चना की जाती है।
नवरात्रों में खेत्री बोने की प्रथा भी है। जिसके लिए मिट्टी का स्वच्छ बर्तन लेकर
उसमें मिट्टी एवं रेत के मिश्रण में जौ बोने चाहिए।
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