रमजान का महीना मुस्लिम भाइयों के लिए विशेष अहमियत का होता है। यह महीना पाक तथा रहमतों से भरा माना जाता है। इस माह जन्नत के सारे दरवाजे खोल दिए जाते हैं। जहन्नुम के सारे दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं। माह भर रोजा रखने वाले रोजेदारों के सारे गुनाह माफ कर दिये जाते हैं। यह महीना दुआओं, नेकियों और भलाइयों का महीना कहलाता है। कहा जाता है कि खुदा इस माह अपने बंदों को नाउम्मीद नहीं करता।
ईद का अर्थ ख़ुशी का होता है। यह ख़ुशी उस मुसलमान भाइयों को होती है जिन्होंने महीने भर के रमजान के रोजे रखे होते हैं। तराबीह की नमाज पढ़ी होती है। जकात अदा किया और इसी के साथ पूरे महीने अपने आपको खुदा की इबादत के लिए अर्पित कर दिया। रमजान के पूरे माह रोजा रखना प्रत्येक मुसलमान का फर्ज है।
रोजे रखने पर खाना-पीना बंद रहता है और यथासंभव लोभ एवं वासना से भी दूर रहा जाता है। रोजे के दौरान अफतारी तथा सेहरी का खास इंतजाम किया जाता है।
इन स्थानों पर इस्लाम का जन्म भारत से पहले हुआ था। ईद से पूर्व रमजान का महीना कहलाता है। इस पूरे माह मुसलमान दिन के समय उपवास रखकर अपना सारा वक्त खुदा की आराधना (इबादत) में बिताते हैं और कोई अनैतिक कार्य न करने का प्रयास करते हैं। शाम के समय वह नमाज से पूर्व अपना रोजा खोलते हैं।
यह ईद का दिन दरअसल खुदा की दरगाह में शुक्रिया अदा करने का दिन है। ईद की नमाज के पहले जकात और फितरा अदा करने का भी हुक्म है। इस दिन अपनी सालाना आमदनी और बचत का 2 1/2 एक हिस्सा गरीबों और मोहताजों को दिया जाए। यह हैसियत रखने वाले हर मुसलमान का फर्ज है।
हर संभव प्रयास किये जाते हैं कि ईदगाह, मस्जिद अथवा वह स्थान जहां नमाज अदा की जाती है वहां ज्यादा से ज्यादा लोग एकत्र हों और गरिमा के साथ नमाज पढ़ें। ईदगाह पर पंक्ति बनाकर एक इमाम के नेतृत्व में ईद की नमाज पढ़ी जाती है।
अंत में दुआ के साथ खुदा को धन्यवाद देने के बाद से ही गले मिलने औरमुबारकबाद देने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो सारे दिन बल्कि कई-कई दिन तक चलता रहता है।
यह दिन कुर्बानी का दिन कहलाता है। परम्परा के अनुसार इब्राहीम नामक एक पैगम्बर थे। अल्लाह के दूत के आदेश पर वे अपने बेटे को कुर्बानी देने को ले गये। कुर्बानी देते समय अल्लाह ने पैगम्बर का हाथ रोक दिया। इसी दौरान पैगम्बर के बेटे की जगह एक बकरा आ गया। फिर वहां पर बकरे की कुर्बानी दी गयी।
उसी दिन से इस दिन बकरे की कुर्बानी की प्रथा बन गयी है। कुर्बानी करने के भी कुछ उसूल हैं। जैसे कि उस बकरे को कुर्बान नहीं किया जाता जो किसी भी तरह अपंग हो या फिर बहुत या दुर्बल या बीमार हो।
हालांकि कहा तो यह भी जाता है कि कुर्बानी उसी बकरे की दी जानी चाहिए जिसे कुर्बान करने वाले व्यक्ति ने खुद पाला-पोसा हो, ताकि कुर्बानी का उसे सही एहसास हो सके। इस दिन भी प्रातः मस्जिदों में नमाज अदाकर मुस्लिम लोग घर लौटते हैं। घर लौटने पर परिजनों व इष्ट मित्रों को गले लग ईद की बधाई देते हैं।
ईद प्रेम और सदभाव का त्यौहार है। यह सभी के लिए ख़ुशी का संदेश लाता है। यह त्यौहार प्रेम, एकता और समानता की शिक्षा देता है। खुशियों की उमंग में बिछड़े लोग मिलते हैं। पुरानी दुश्मनियां भुला दी जाती हैं। ईद मन को पवित्र और आत्मा को शुद्धता का संदेश लेकर आती है। लोग अपने संबंधियों और प्रियजनों के घर जाते हैं।
मिठाइयां खाते हैं। सिवैंया इस पर्व का विशेष मिष्ठान होता है। छोटे बच्चों को ईद के रूप में पैसे दिये जाते हैं। ईद की नमाज से लौटकर बहुत से लोग कब्रिस्तान जाते हैं। वहां जाकर वे लोग अपने दिवंगत प्रियजनों को भी याद करते हैं और उनकी आत्मा की शान्ति के लिए दुआ करते हैं।
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