ईस्टर ईसाइयों का सबसे बड़ा पर्व है। महाप्रभु ईसा मसीह मृत्यु के तीन दिनों के बाद फिर जी उठे थे। उनके पुनरुत्थान की स्मृति में यह पर्व संपूर्ण ईसाई जगत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
उनकी मृत्यु के बाद तो अनुयायियों की उम्मीदों का महल ही भहरा उठा। उनकी जिंदगी के ऊपर खतरे की डरावनी तलवार लटक रही थी। मृत्यु के भय से उन्होंने अपने को उस ऊपर के कमरे में छिपा लिया, जिसमें उन्होंने महाप्रभु के साथ रात्रि में भोजन किया था। वे शिष्य ईसा के साथ लगातार तीन परमानंददायी वर्षों तक रहे थे।
ईसा के शब्दों के मोती उन्होंने हंस की तरह चुगे
थे। ईसा से उन्होंने आस्था और प्रेरणा की सुनहली किरणें पाई थीं। अब तो उनके प्रभु
परलोक सिधार चुके थे। अमृतवाणी बरसानेवाला मुख आज मौन था, बिलकुल
निःस्पंद। उन बेचारे मछुओं के लिए अब बचा ही क्या था। वे उदास-हताश बैठे थे, इतने
उदास-हताश कि आपस में दो-चार शब्द बोलना भी उनके लिए संभव नहीं हो रहा था।
देखा कि समाधि का पत्थर खिसका और समाधि रिक्त हो गई। ज्योहीं समाधि के भीतर झाँका, तो हमने वहाँ दो देवदूतों को देखा। उनका मुखमंडल विद्युत के सदृश था। वस्त्र हिम के समान उज्ज्वल थे।
उन्होंने विस्मयकारी
शब्दों में कहा- ''तुम नाजरेथ के ईसा को ढूँढती हो, वे
यहाँ नहीं हैं। वे तो अब जी उठे हैं। मृतकों के बीच जीवित को क्यों खोजती हो? जाओ
और यह शुभ समाचार उनके शिष्यों को सुनाओ।''
उसने भी विश्वास नहीं किया था। उसने अश्रुपूरित
नेत्रों से देखा कि कोई चरण उसकी ओर बढ़ा आ रहा है। मग्दलेना ने उनसे कहा, ''महाशय
! यदि आपने उनका शव यहाँ से निकाल लिया है,
तो कृपया बताएँ कि कहाँ रखा है।'' उत्तर
सुपरिचित शब्दों में था, 'मेरी!' कोई भी व्यक्ति मरियम मग्दलेना के विस्मय का
अनुमान कर सकता है।
सर्वप्रथम उसने ही पुनर्जीवित हुए ईसा को देखा। उसने हाँफते हुए कहा, 'प्रभु!' महाप्रभु ने कहा कि तुम मेरे अनुयायियों को संदेश दे दो कि मैं उन्हें शीघ्र मिलूँगा। वह अत्यधिक आशा का संदेश लेकर वहाँ से विदा हुई। इसी नवीन शाश्वत जीवनसंदेश के लिए ईसाई इस 'ईस्टर' पर्व को मनाते हैं।
'' ईसाई सभी पीड़ाओं को झेलने के लिए तैयार रहते
हैं, सभी अन्यायों को सहने के लिए समुद्यत रहते हैं; क्योंकि
उनका विश्वास ईसा के पुनरुज्जीवन में है। पाप और पीड़ा पर यही अंतिम विजय है। ईसा
का जी उठना उनका जीवनस्रोत है। ईसा का पुनरुज्जीवन निश्चित रूप से प्रमाणित करता
है कि मानव के पापों के लिए ईसा का दुःख कारगर (फलोत्पादक) रहा।
उस समय तक उनके शिष्य बिलकुल परिवर्तित मनुष्य थे। भय उनके हृदय से भाग चुका था। वे अब ऊपरी कमरे में दुबके रहनेवाले नहीं थे। वे निर्भय होकर बाहर निकले और लोगों को ईसा के पुनरुत्थान के बारे में कहने लगे।
इस आश्चर्यजनक परिवर्तन को स्वयं प्रभु के सिवा और कौन समझ सकता है ? उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाने का साहस दिया। ईसाइयों का विश्वास है कि महाप्रभु ईसा जीवित हैं और महिमाशाली हैं।
वे उन्हें सतत आनंद, आशा
और साहस प्रदान कर रहे हैं। जब एक ईसाई मरता है, तब उसके मित्र और संबंधी ईसा के
पुनरुज्जीवन को याद करते हैं। ईसा की प्रतिज्ञा है कि जो उनमें विश्वास रखते हैं, वे
सदा के लिए जीवित रहते है। यही कारण है कि 'ईस्टर' ईसाइयों का पुनर्जीवन मनाने का आनंददायक पर्व
है।
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