No.-1. स्वर और व्यंजन वर्ण
स्वर वर्ण |
व्यंजन वर्ण |
No.-1. स्वर वर्णों
का उच्चारण स्वतः होता है। |
No.-1. व्यंजन वर्णो
का उच्चारण स्वर वर्णों की सहायता से होता है। |
No.-2. स्वर वर्णों
का उच्चारण लगातार बिना रुके होता है। |
No.-2. व्यंजन
वर्णों का उच्चारण रुक-रुक कर होता है। |
No.-3.स्वर वर्णों
की संख्या 11 है। जैसे- अ, आ, ........ औ। |
No.-3. व्यंजन
वर्णों की संख्या 33 है। जैसे- क्, ख्
.......... ह्। |
No.-2. भाषा और व्याकरण
भाषा |
व्याकरण |
No.-1.भाषा
परिवर्तनशील होती है। |
No.-1. व्याकरण रूढ़
बन जाता है। |
No.-2.पहले भाषा
होती है। |
No.-2. व्याकरण भाषा
के पीछे बनाया जाता है। |
No.-3.भाषा
प्रवहमान होती है। यह यादृच्छिक होती है। |
No.-3.व्याकरण भाषा
के प्रवाह को यथासंभव रोकता है। |
भाषा |
बोली |
No.-1.भाषा का
क्षेत्र व्यापक होता है। |
No.-1. बोली का
क्षेत्र सीमित होता है। |
No.-2. एक भाषा में
कई बोलियाँ होती हैं। |
No.-2. बोली अकेली
हुआ करती है। |
No.-3.विश्व-साहित्य
में भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है; क्योंकि भाषा
में साहित्य-सृजन होता है। |
No.-3. बोली का
विश्व-साहित्य में कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं होता। इससे साहित्य-सृजन भी नहीं
होता। |
No.-4. भाषा को
सामाजिक, राजनैतिक, व्यापारिक
आदि मान्यताएँ प्राप्त होती हैं। |
No.-4. बोली को
मात्र सामाजिक क्षेत्रीय मान्यता प्राप्त होती है। |
No.-4.अल्पप्राण और महाप्राण
अल्पप्राण |
महाप्राण |
No.-1. अल्पप्राण
में हकार- जैसी ध्वनि नहीं निकलती है। |
No.-1. महाप्राण में
हकार- जैसी ध्वनि होती है। |
No.-2. सभी स्वर
वर्ण और प्रत्येक वर्ग का 1ला, 3रा और 5वाँ वर्ण तथा समस्त अन्तःस्थ वर्ण अल्पप्राण है। |
No.-2.प्रत्येक
वर्ग का 2रा और 4था तथा समस्त
उष्म वर्ण महाप्राण है। |
No.-3. अल्पप्राण के
उच्चारण में कम श्रम करना पड़ता है। |
No.-3.महाप्राण
वर्णों का उच्चारण अधिक श्रमपूर्वक करना पड़ता है। |
No.-5. घोष एवं अघोष वर्ण
घोष वर्ण |
अघोष वर्ण |
No.-1. घोष वर्णों
के उच्चारण में स्वरतंत्रियाँ परस्पर झंकृत होती है। |
No.-1.अघोष वर्णों
के उच्चारण में ऐसी झंकृति नहीं होती है। |
No.-2. घोष में केवल
नाद का ही उपयोग होता है। |
No.-2. अघोष में
केवल श्वास का उपयोग होता है। |
No.-3.प्रत्येक
वर्ग का 3रा, 4था और 5वाँ वर्ण, सभी स्वर वर्ण, य, र, ल, व और ह, घोष वर्ण हैं। |
No.-3.प्रत्येक
वर्ग का 1ला और 2रा तथा श, ष एवं स अघोष हैं। |
No.-6.शब्द और पद
शब्द |
पद |
No.-1. शब्द
अनेकार्थी होते हैं, जो वाक्य से स्वतंत्र होते हैं। |
No.-1. पद वाक्य में
प्रयुक्त मुख्यतः एक अर्थ का बोध कराता है। |
No.-2. शब्द कोई शाब्दिक
इकाई हो सकता है, जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, अव्यय आदि। |
No.-2.पद वाक्य में
रहने के कारण किसी एक शाब्दिक इकाई का काम करता है। |
No.-7. रूढ़ शब्द और यौगिक शब्द
रूढ़ शब्द |
यौगिक शब्द |
No.-1. रूढ़ शब्द का
खण्ड सार्थक नहीं होता है। |
No.-1. यौगिक शब्द
का खण्ड सार्थक होता है। |
No.-2.रूढ़ शब्द
मात्र वर्णों का संयोग होता है। जैसे- कल, जल, घर आदि। |
No.-2.यौगिक शब्द
दो रूढ़ शब्दों का मेल से बनता है। |
No.-3. प्रत्येक
वर्ग का 3रा, 4था और 5वाँ वर्ण, सभी स्वर वर्ण, य, र, ल, व और ह, घोष वर्ण हैं। |
No.-3. प्रत्येक
वर्ग का 1ला और 2रा तथा श, ष एवं स अघोष हैं। |
No.-8. तत्सम शब्द और तद्भव शब्द
तत्सम शब्द |
तद्भव शब्द |
तत्सम संस्कृत के मूल शब्द होते हैं, जो हिन्दी में भी प्रयुक्त होते हैं। |
तद्भव शब्द तत्सम का विकसित या परिवर्तित रूप होता है। |
No.-9. विकारी शब्द और अविकारी शब्द
विकारी शब्द |
अविकारी शब्द |
No.-1.विकारी शब्द, लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल आदि से रूपांतरित होते रहते हैं। इसके अंतर्गत
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और
क्रिया आते हैं। |
No.-1.अविकारी शब्द
कभी और किसी परिस्थिति में अपने रूप को नहीं बदलते हैं। इसके अंतर्गत
क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक, उपसर्ग, निपात आदि आते हैं। |
No.-10. संज्ञा और सर्वनाम
संज्ञा |
सर्वनाम |
No.-1. संज्ञा वस्तु, व्यक्ति, स्थान, भाव आदि के
नाम को कहते हैं। |
No.-1. सर्वनाम
संज्ञा के स्थान पर आनेवाला शब्द होता है। |
No.-2. संज्ञाएँ
अनंत होती है। |
No.-2. सर्वनाम
सीमित होते हैं। |
No.-3.संज्ञाओं का
अपना लिंग होता है। |
No.-3.सर्वनामों का
अपना कोई लिंग नहीं होता है। |
No.-11.कृदन्त और तद्धितांत
कृदन्त |
तद्धितांत |
No.-1. क्रिया या
धातु में प्रत्यय लगाने से बने शब्द कृदन्त होते हैं। |
No.-1.क्रिया-भिन्न
शब्दों में प्रत्यय लगाने से बने शब्द तद्धितांत होते हैं। |
No.-2. कृदन्त शब्द
क्रिया के अतिरिक्त विशेषण आदि भी हो सकते हैं। |
No.-2. तद्धितांतशब्द
क्रियावाचक कम और संज्ञा, विशेषण आदि ज्यादातर होते हैं। |
No.-12. विशेषण और विशेष्य
विशेषण |
विशेष्य |
No.-1.संज्ञा या
सर्वनाम की विशेषता, संख्या, परिमाण आदि
बतानेवाला विशेषण होता है। |
No.-1. विशेषण जिसकी
विशेषता, संख्या, परिमाण आदि
बताता है, वह विशेष्य होता हैं। |
No.-2. विशेषण सीमित
होते हैं। (प्रचलन में)। |
No.-2. विशेषणों की
अपेक्षा विशेष्यों की संख्या अनंत होती है। |
No.-13. अकर्मक क्रिया और सकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया |
सकर्मक क्रिया |
No.-1. अकर्मक
क्रिया वाक्य में अपने साथ कर्म नहीं लाती है। |
No.-1.सकर्मक
क्रिया वाक्य में अपने साथ कर्म निश्चित रूप से लाती है। |
No.-2. अकर्मक
क्रिया का प्रयोग कर्तृवाच्य एवं भाववाच्य में होता हैं। |
No.-2. सकर्मक
क्रिया का प्रयोग प्रायः कर्तृवाच्य एवं कर्मवाच्य में होता है; भाववाच्य में न के बराबर होता है। |
No.-14. कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य
कर्तृवाच्य |
कर्मवाच्य |
No.-1. कर्तृवाच्य
में कर्ता की प्रधानता होती है। |
No.-1. कर्मवाच्य
में कर्म प्रधान और कर्त्ता गौण रहता है। |
No.-2. कर्तृवाच्य
की क्रिया सदैव कर्त्ता के लिंग, वचन और पुरुष
के अनुसार होती है। |
No.-2.कर्मवाच्य की
क्रिया का रूप कर्म के लिंग, वचन और पुरुष
के अनुसार होता है। |
No.-3. कर्तृवाच्य
की क्रिया अकर्मक, सकर्मक दोनों होती हैं। |
No.-3.कर्मवाच्य की
क्रिया सिर्फ सकर्मक होती है। |
No.-15. संधि और संयोग
संधि |
संयोग |
No.-1. संधि में उच्चारण
के नियमानुसार एक या दोनों वर्णो में परिवर्तन हो जाता है और कभी-कभी उनकी जगह
उनसे भिन्न कोई अन्य वर्ण आ जाता है। |
No.-1. संयोग में
हलन्त क् से ह् तक के वर्ण अगले स्वर या व्यंजन में बिना बदले केवल मिल जाते
हैं। |
No.-2. संधि स्वर
व्यंजन दोनों में होती है। |
No.-2. संयोग केवल
स्वर-रहित व्यंजन वर्णों के परे वर्ण से होता है। |
No.-3. संधि में
केवल दो ही वर्ण मिलते हैं। |
No.-3. संयोग में
सभी वर्णों का संयोजन होता है। |
No.-16. संधि और समास
संधि |
समास |
No.-1. संधि में दो
वर्ण मिलते है। |
No.-1. समास में दो
पद मिलते है। |
No.-2. संधि विच्छेद
में '+' चिह्न दिया जाता है। |
No.-2.समास-विग्रह
में '+'चिह्न नहीं होता है। |
No.-3. संधि में
मुख्यतः तीन भेद हैं। |
No.-3. समास के
मुख्यतः चार भेद हैं। |
No.-4. संधि का
शाब्दिक अर्थ जोड़, मिलन या समझौता होता है। |
No.-4.समास का
शाब्दिक अर्थ संक्षेप होता है। |
No.-17. कर्मधारय और बहुव्रीहि समास
कर्मधारय समास |
बहुव्रीहि समास |
No.-1. कर्मधारय
समास का पहला या दूसरा खंड विशेषण या विशेष्य अथवा दोनों होता है। |
No.-1. बहुव्रीहि
समास में दोनों खंडों में परस्पर विशेषण-विशेष्य का भाव नहीं होता। |
No.-2.इसमें उत्तर
पद की प्रधानता होती है। |
No.-2.इसका अन्य
तीसरा पद प्रधान होता है। |
No.-3.इसका विग्रह
पदात्मक होता है। |
No.-3.बहुव्रीहि
समास का विग्रह वाक्यात्मक होता है। |
No.-4.यह तत्पुरुष
समास का ही भेद है। |
No.-4. यह तत्पुरुष
समास का ही भेद है। |
No.-18.पदबंध और उपवाक्य
पदबंध |
उपवाक्य |
No.-1.पदबंध में पूरा
भाव प्रकट नहीं होता हैं। |
No.-1. उपवाक्य में
आंशिक भाव प्रकट होता है। |
No.-2. इसमें
उद्देश्य-विधेय आदि नहीं होते यानी वाक्य के सभी अंग नहीं होते हैं। |
No.-2.इसमें
उद्देश्य एवं विधेय दोनों होते हैं। |
No.-19. उपसर्ग और प्रत्यय
उपसर्ग |
प्रत्यय |
No.-1. उपसर्ग
शब्दारंभ में जुड़ता है। |
No.-1.प्रत्यय
शब्दांत में जुड़ता है। |
No.-2. उपसर्ग जुड़ने
पर मूल शब्द का अर्थ बदल सकता है। |
No.-2. प्रत्यय
जुड़ने पर अर्थ मूल शब्द के इर्द-गिर्द ही रहता है। |
No.-20. मुहावरा और लोकोक्ति
मुहावरा |
लोकोक्ति |
No.-1. मुहावरे
वाक्यांश होते हैं। ( |
No.-1. लोकोक्ति
पूर्णवाक्य होती हैं। |
No.-2. मुहावरे लिंग, वचन और क्रिया के अनुसार परिवर्तित होते हैं। |
No.-2. लोकोक्ति का
प्रयोग पूरे के रूप में किया जाता है। |
No.-3. मुहावरे
लाक्षणिक अर्थ प्रदान करते हैं। उदाहरण- दारोगा को देखते ही चोरों की नानी मर
गई। इस वाक्य में 'नानी मरना' मुहावरा है। |
No.-3. लोकोक्ति
अभिधेयार्थ प्रकट करती है। उदाहरण- दीपेश ने राकेश के रुपये गबन कर लिए। दूसरे
सप्ताह ही मानहानि केस में अदालत ने उसे पाँच लाख का जुर्माना कर दिया। इसे ही
कहते हैं, 'सौ सोनार के एक लोहार के'। इस वाक्य
में 'सौ सोनार एक लोहार के' लोकोक्ति है। |
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