No.-1.प्रेमचन्द्र पूर्व (प्रथम उत्थान)
हिन्दी में 'नावेल' के
अर्थ में 'उपन्यास'
शब्द का प्रथम प्रयोग भारतेन्दु
हरिश्चन्द्र ने 1875 ई. में 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' में
प्रकाशित अपने अपूर्ण रचना 'मालती' के लिए किया था।
ब्रजरत्न दास के अनुसार, भारतेन्दु
हरिश्चन्द्र ने 'कुछ आपबीती कुछ जग बीती' नाम
से एक उपन्यास लिखा था।
हिन्दी का प्रथम उपन्यास, उपन्यासकार
एवं प्रस्तोता-
प्रस्तोता |
उपन्यासकार |
उपन्यास |
वर्ष |
डॉ. गोपाल राय |
पं. गौरी दत्त |
देवरानी जेठानी की कहानी |
1870 ई. |
डॉ विजयशंकर मल्ल |
श्रद्धाराम फिल्लौरी |
भाग्यवती |
1877 ई. |
श्री रामचन्द्र शुक्ल |
श्रीनिवासदास |
परीक्षा-गुरु |
1882 ई. |
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लाला श्रीनिवासदास कृत 'परीक्षा गुरु' को अंग्रेजी के ढंग का हिन्दी का पहला मौलिक उपन्यास माना है।
प्रेमचंद्र पूर्व उपदेश प्रधान सामाजिक
उपन्यास निम्न हैं-
उपन्यासकार |
उपन्यास |
गौरीदत्त |
देवरानी जेठानी की कहानी (1870) |
ईश्वरी प्रसाद व कल्याण राय |
वामा शिक्षक (1872) |
श्रद्धाराम फिल्लौरी |
भाग्यवती (1877) |
लाला श्रीनिवासदास |
परीक्षा गुरु (1882) |
बालकृष्ण भट्ट |
1. नूतन
ब्रह्मचारी (1886), 2. रहस्य कथा (1879), 3. सौ अजान एक
सुजान (1892) |
राधाकृष्ण दास |
निस्सहाय हिन्दू (1890) |
ठाकुर जगमोहन सिंह |
श्यामा स्वप्न (1888) |
लज्जाराम मेहता |
1. धूर्त रसिक
लाल (1889), 2. स्वतंत्र रमा और परतंत्र लक्ष्मी (1899), 3. आदर्श दम्पति(1904), 4. बिगड़े का
सुधार अथवा सती सुख देवी (1907), 5. आदर्श हिन्दू
(1914) |
किशोरीलाल गोस्वामी |
1. लवंगलता वा
आदर्शबाला (1890), 2. स्वर्गीय कुसुम वा कुसुम कुमारी (1889), 3. लीलावती वा आदर्शसती (1901), 4. चपला वा नव्य
समाज (1903), 5. तरुण तपस्विनी वा कुटीर वासिनी (1906), 6. पुनर्जन्म वा सौतिया डाह (1907), 7. माधवी माधव वा मदनमोहिनी (1909), 8. अँगूठी का नगीना (1918)। |
अयोध्या सिंह उपाध्याय |
1. अधखिला फूल (1907), 2. ठेठ हिन्दी का ठाठ (1899) |
ब्रजनन्दन सहाय |
1. सौन्दर्योपासक
(1912), 2. राधाकांत (1918) |
मन्नन द्विवेदी |
रामलाल(1917) |
राधिकारमण प्रसाद सिंह |
वनजीवन वा प्रेमलहरी (1916) |
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध कृत 'ठेठ
हिन्दी का ठाठ' उपन्यास को 'मुहावरों का पाठ्य-पुस्तक' कहा
जाता हैं?
राधाकृष्णदास कृत 'निस्सहाय
हिन्दू' हिन्दी का पहला उपन्यास है जिसमें मुस्लिम समाज
का अंकन किया गया है। यह गोवध-निवारण के लिए लिखा गया था।
किशोरीलाल गोस्वामी का 'स्वर्गीय
कुसुम वा कुसुम कुमारी' (1889 ई.) वेश्या जीवन पर आधारित हिंदी का प्रथम
उपन्यास हैं।
किशोरीलाल गोस्वामी को हिन्दी का प्रथम
ऐतिहासिक उपन्यासकार माना जाता है।
डॉ. गोपाल राय पं. बालकृष्ण भट्ट को हिन्दी का प्रथम ऐतिहासिक उपन्यासकार मानते हैं।
प्रेमचन्द्र पूर्व हिन्दी के प्रमुख
ऐतिहासिक उपन्यासकार-
उपन्यासकार |
उपन्यास |
किशोरीलाल गोस्वामी |
1. हृदयहारिणी
वा आदर्श रमणी (1890), 2. तारा (1902), 3. राजकुमारी (1902), 4. कनक कुसुम वा मस्तानी (1903), 5. लखनऊ की कब्र
वा शाही महलसरा। (1918), 6. सुल्ताना रजिया बेगम वा रंग महल में हलाहल (1905)। |
गंगा प्रसाद गुप्त |
1. पृथ्वीराज
चौहान (1902), 2. कुँवर सिंह सेनापति (1903), 3. हम्मीर (1904) |
जयरामदास गुप्त |
1. कश्मीर पतन (1907), 2. मायारानी (1908), 3. नवाबी
परिस्तान वा वाजिद अली शाह (1908), 4. कलावती (1909) |
रामनरेश त्रिपाठी |
वीरांगना (1911) |
मथुरा प्रसाद शर्मा |
नूरजहाँ बेगम व जहाँगीर (1905) |
ब्रजनन्दन सहाय |
लालचीन (1916) |
मिश्र बन्धु |
वीरमणि (1917) |
श्यामसुन्दर वैद्य |
पंजाब पतन |
कृष्ण प्रसाद सिंह |
वीर चूड़ामणि |
निस्सहाय हिन्दू' हिन्दी
प्रथम पूर्ण उपन्यास है जिसमें नाटकीय पद्धति पर प्रसंगों के निर्माण तथा कथाओं के
युगपत संक्रमण की प्रविधि अपनाई गई है।
देवकीनन्दन खत्री को हिन्दी में
तिलस्मी-ऐयारी उपन्यासों का प्रर्वतक माना जाता है।
देवकीनन्दन खत्री के प्रमुख उपन्यास निम्नलिखित हैं-
चंद्रकांता (1888), चंद्रकांता
संतति (24 भाग-1996)
(1896), नरेन्द्र मोहिनी (1893), वीरेन्द्र
वीर (1895), कुसुम कुमारी (1899), काजर की कोठरी (1902), अनूठी
बेगम (1905), गुप्त गोदना (1913), भूतनाथ (6
भाग-अधूरा 1907)।
गोपालराम गहमरी को हिन्दी में जासूसी
उपन्यासों का प्रवर्तक माना जाता हैं।
गोपाल राम गहमरी के प्रमुख उपन्यास
हैं- 'अद्भुत लाश',
'बेकसूर की फाँसी', 'सरकारी
लाश', 'खूनी कौन',
'बेगुनाह का खून', 'जासूस
की भूल', 'अद्भुत खून'
आदि।
गोपालराम गहमरी को हिन्दी का 'कानन डायल' कहा गया है।
प्रेमचन्द्र पूर्व हिन्दी के अन्य
महत्त्वपूर्ण औपन्यासिक रचनाएँ-
उपन्यासकार |
उपन्यास |
भुवनेश्वर मिश्र |
1. घराऊ घाट (1894), 2. बलवंत भूमिहार (1896) |
राधाचरण गोस्वामी |
सौदामिनी (1891) |
कुँवर हनुमंत सिंह |
चन्द्रकला (1893) |
जैनेन्द्र किशोर |
गुलेनार (1907) |
गंगा प्रसाद गुप्त |
लक्ष्मी देवी (1910) |
अवधनारायण |
विमाता (1916) |
ब्रजनन्दन सहाय |
1. राजेन्द्र
मालती (1897), 2. अद्भुत प्रायश्चित (1901), 3. अरण्यबाला (1915) |
No.-1.कुंवर हनुमंत सिंह कृत 'चन्द्रकला' (1893) हिन्दी
का प्रथम उपन्यास है जिसमें स्त्रियों के बलात शोषण का अंकन किया गया है।
No.-2.पं. बालकृष्ण भट्ट कृत 'सौ
अजान एक सुजान'(1892) हिन्दी का प्रथम चरित्र प्रधान उपन्यास हैं।
द्वितीय उत्थान : प्रेमचन्द्र युग
No.-3.मुंशी प्रेमचन्द्र (1880-1936
ई.) का मूलनाम धनपत राय था। किन्तु वे नाम बदलकर 'नवाब राय' बनारसी
के नाम से लिखते थे।
No.-4.धनपतराय को 'प्रेमचन्द्र' नाम
उर्दू के लेखक दयानारायण निगम ने दिया था।
No.-5.प्रेमचन्द्र को 'उपन्यास-सम्राट' की
संज्ञा बंगला कथाकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने दिया था।
प्रेमचन्द्र द्वारा लिखे मूल उर्दू में
उपन्यास का उनके द्वारा किया गया हिन्दी रूपान्तर निम्नलिखित हैं-
मूल उर्दू उपन्यास |
वर्ष |
हिन्दी रूपान्तर |
वर्ष |
असरारे मआविद |
1903-1905 |
देवस्थान रहस्य |
1905 |
हमखुर्मा व हमसवाब |
1906 |
प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह |
1907 |
किशना |
1907 |
गबन |
1931 |
जलवाए ईसार |
1912 |
वरदान |
1921 |
बाजारे हुस्न |
1917 |
सेवासदन |
1918 |
गोशाएँ आफियत |
प्रेमाश्रय |
गोशाएँ आफियत |
1922 |
चौगाने हस्ती |
रंगभूमि |
1925 |
No.-6.'असरारे मआविद' प्रेमचन्द्र का प्रथम उपन्यास है।
No.-7.'सेवा सदन'
प्रेमचन्द्र का पहला प्रौढ़ हिन्दी
उपन्यास है।
No.-8.प्रेमचन्द्र का हिन्दी में मूल रूप से लिखा
प्रथम उपन्यास 'कायाकल्प'
(1926) है।
No.-9.सन् 1907 ई. में प्रेमचन्द्र ने 'रूठी
रानी' नामक ऐतिहासिक उपन्यास की रचना की।
प्रेमचन्द्र के हिन्दी उपन्यास रचना
क्रम के अनुसार निम्नांकित हैं-
देवस्थान रहस्य (1905) |
मन्दिरों और तीर्थ स्थानों में फैले भ्रष्टाचार, पाखण्ड की आलोचना |
प्रेमा (1907) |
हिन्दुओं में विधवा-विवाह की समस्या का चित्रण |
सेवा सदन (1918) |
वेश्या जीवन से सम्बद्ध समस्या का चित्रण |
वरदान (1921) |
प्रेम एवं विवाह की समस्या का चिण |
प्रेमाश्रम (1922) |
औपनिवेशक शासन में जमींदार एवं किसानों के सम्बन्ध का
चित्रण |
रंगभूमि 1925 |
औद्योगीकरण के दोष, पूँजीवादियों
की शोषण नीति, अंग्रेजों के अत्याचार एवं भारतीय शिक्षितों की
चरित्र-हीनता का विश्लेषण व चित्रण |
कायाकल्प (1926) |
पुनर्जन्म की धारणा पर समाज-सेवा, राजा के अत्याचार विलास एवं सच्चे प्रेम का चित्रण |
निर्मला (1927) |
दहेज एवं अनमोल विवाह की समस्या का चित्रण |
गबन (1931) |
मध्यवर्गीय जीवन की असंगति का यथार्थ मनोवैज्ञानिक
चित्रण |
कर्मभूमि (1933) |
हिन्दू-मुस्लिम एकता, अछूतोद्धार एवं
दलित किसानों के उत्थान की कथा |
गोदान 1936 |
किसान जीवन की महागाथा एवं ऋण की समस्या का अंकन |
मंगलसूत्र 1948 |
अधूरा |
No.-10.प्रेमचन्द्र ने सन् 1929 ई.
में 'प्रेमा'
उपन्यास को संशोधित करके 'प्रतिज्ञा' शीर्षक
से प्रकाशित करवाया।
No.-11.प्रेमचन्द्र ने 'आदर्शोन्मुख यथार्थवादी' उपन्यास लेखन की परम्परा का प्रवर्तन किया।
विश्वम्भरनाथ शर्मा 'कौशिक' ने
तीन उपन्यासों की रचना की-
उपन्यास |
वर्ष |
विषय |
माँ |
1929 |
माँ की महिमा एवं आदर्श का प्रतिपादन |
भिखारिणी |
1929 |
अन्तर्जातीय विवाह की समस्या एवं प्रेम की त्रासदी का
चित्रण |
संघर्ष |
1945 |
आर्थिक विषमता के कारण प्रेम की निष्फलता का चित्रण |
No.-12.शिवपूजन सहाय ने सन् 1926 ई.
में 'देहाती दुनिया' शीर्षक से एक उपन्यास की रचना की।
No.-13.डॉ. गोपाल राय के अनुसार 'देहाती
दुनिया' एक आंचलिक उपन्यास है।
No.-14.चंडी प्रसाद 'हृदयेश' ने भावपूर्ण आदर्शवादी शैली में 'मनोरमा
(1924) और 'मंगल प्रभात' (1926) उपन्यास की रचना की।
No.-15.पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र ने सर्वप्रथम हिन्दी
उपन्यास में पत्रात्मक प्रविधि का प्रवर्तन किया।
No.-16.पत्रात्मक प्रविधि में प्रथम उपन्यास बेचन
शर्मा 'उग्र' ने 'चंद हसीनों के खतूत' (1927) शीर्षक
से लिखा।
No.-17.'विशाल भारत'
पत्रिका के सम्पादक बनारसीदास
चतुर्वेदी ने बेचन शर्मा 'उग्र' के उपन्यासों को 'घासलेटी
साहित्य' कहा था।
बेचन शर्मा 'उग्र' ने
निम्न उपन्यासों की रचना की है-
उपन्यास |
वर्ष |
विषय |
चंद हसीनों के खतूत |
1927 |
हिन्दू-मुस्लिम के प्रेम एवं विवाह का चित्रण |
दिल्ली का दलाल |
1927 |
युवतियों का क्रय-विक्रय करने वाली संस्थाओं का
पर्दाफाश |
बुधुआ की बेटी |
1928 |
अछूतोद्धार की समस्या ('मनुष्यानंद' नाम से रूपांतरण) |
शराबी |
1930 |
वेश्याओं और शराब घरों का नग्न यथार्थ चित्रण |
सरकारी तुम्हारी आँखों में |
1937 |
शासन तंत्र की अव्यवस्था एवं प्रजा की पीड़ा का चित्रण |
चाकलेट |
1927 |
|
जी जी जी |
1937 |
हिन्दू समाज की स्त्री की पीड़ा का चित्रण |
फागुन के दिन चार |
1960 |
|
जुहू |
1963 |
No.-18.प्रकृतिवादी उपन्यासों का जनक जोला को माना
जाता है।
No.-19.हिन्दी में प्रकृतिवादी उपन्यासों के जनक पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' को स्वीकार किया जाता है।
ऋषभचरण जैन प्रकृतिवादी शैली के
उपन्यासकार हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ अग्रांकित हैं-
उपन्यास |
वर्ष |
उपन्यास |
वर्ष |
पैसे का साथी |
1928 |
दिल्ली का कलंक |
1936 |
दिल्ली का व्यभिचार |
1928 |
चम्पाकली |
1937 |
दिल्ली का व्यभिचार |
1928 |
चम्पाकली |
1937 |
वेश्या पुत्र |
1929 |
हिज हाइनेस |
1938 |
वेश्या पुत्र |
1929 |
हिज हाइनेस |
1938 |
मास्टर साहब |
1927 |
मयखाना |
1938 |
सत्याग्रह |
1930 |
तीन इक्के |
1940 |
रहस्यमयी |
1931 |
दुराचार के अड्डे |
1930 |
No.-20.कुछ आलोचकों ने हिन्दी में प्रकृतिवादी या
यथार्थवादी उपन्यास का जनक जयशंकर प्रसाद को माना है।
प्रसाद के महत्वपूर्ण उपन्यास निम्न
हैं-
कंकाल 1929 |
तत्कालीन समाज का यथार्थ नग्न चित्रण |
तितली 1934 |
पूँजीपतियों द्वारा निम्नवर्ग का शोषण |
इरावती 1936 |
अपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास |
आचार्य चतुरसेन शास्त्री को कुछ
औपन्यासिक कृतियों के लिए प्रकृतिवादी उपन्यासकार माना जाता है, जो
निम्न हैं-
उपन्यास |
वर्ष |
विषय |
हृदय की परख |
1918 |
विवाह पूर्व प्रेम एवं अवैध सन्तान की समस्या चित्रण |
हृदय की प्यास |
1931 |
|
अमर अभिलाषा |
1933 |
विधवाओं पर होने वाले अत्याचार का चित्रण |
व्यभिचार |
1924 |
प्रेम के अमर्यादित एवं अश्लील रूप का अंकन |
आत्मदाह |
1937 |
आजादी के लिए आन्दोलन एवं देश प्रेम का चित्रण |
No.-21.अनूपलाल मण्डल ने 'निर्वासिता' (1929), 'समाज
की वेदी पर' (1931), 'साकी'
(1932), 'रुपरेखा' (1934), 'ज्योतिर्मयी' (1934) उपन्यासों
की रचना की।
No.-22.अनूपलाल ने 'समाज की वेदी पर' एवं
'रुपरेखा' उपन्यास
की रचना पत्रात्मक प्रविधि पर की।
No.-23.अनूपलाल मण्डल के अन्य उपन्यास हैं- 1 मीमांसा (1937), 2. आवारों की दुनिया (1945), 3. दर्द की तस्वीरें (1945) और 4. बुझने न पाये।
सियारामशरण गुप्त गाँधीवादी विचारधारा
के उपन्यासकार हैं। इनकी प्रमुख रचना हैं-
उपन्यास |
वर्ष |
विषय |
गोद |
1932 |
संदेह एवं अविश्वास के कारण स्त्री की समस्या एवं दर्द
का चित्रण |
अन्तिम आकांक्षा |
1934 |
सामाजिक एवं धार्मिक विसंगति का चित्रण |
नारी |
1937 |
समकालीन हिन्दू स्त्री की असहायता एवं विवशता का
चित्रण |
प्रतापनारायण श्रीवास्तव भी गाँधीवादी
(मानवतावादी) उपन्यासकार हैं। इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं-
विदा 1927 |
भारतीय एवं पाश्चात्य सभ्यता का समन्वय |
विजय 1937 |
बाल विधवा समस्या का चित्रण |
विकास 1938 |
उच्च वर्ग के विलासिता का चित्रण |
राधिकारमण प्रसाद सिंह के महत्वपूर्ण उपन्यास हैं-
No.-1. रामरहीम
(1936),
No.-2. पुरुष और नारी,
No.-3. संस्कार (1942)
और
No.-4. चुम्बन और चाटा (1956)।
प्रेमचंद्र युग के अन्य महत्वपूर्ण रचनाकार एवं रचनाएँ-
जी. पी. श्रीवास्तव-
No.-1. महाशय
भड़ाम सिंह शर्मा (1919),
No.-2. लतखोरीलाल (1931),
No.-3. विलायती उल्लू (1932),
No.-4. स्वामी चौखटानंद (1936),
No.-5. प्राणनाथ (1925),
No.-6. गंगा जमुनी (1927),
No.-7. दिल की आग उर्फ दिल जले की आग (1932)।
No.-1. गौरीशंकर (1923),
No.-2. सखाराम (1924),
No.-3. मानिक मंदिर (1926)।
No.-1. सन्देह (1925),
No.-2. प्रेम की पीड़ा (1930),
No.-3. अरुणोदय (1930),
No.-4. पाप की पहेली,
No.-5. बाबू साहब (1932)।
प्रफुल्लचंद्र ओझा-
No.-1. संन्यासिनी (1926),
No.-2. पतझड़ (1930),
No.-3. पाप और पुण्य (1930) ,
No.-4. जेलयात्रा (1931),
No.-5. तलाक (1932)।
No.-1. अप्सरा (1931),
No.-2. अलका (1933),
No.-3. निरुपमा (1936),
No.-4. प्रभावती (1936),
No.-5. चोटी की पकड़,
No.-6. काले कारनामे (1950)।
No.-1. उलझन (1922),
No.-2. क्षमा (1925),
No.- 3. एकाकिनी (1927),
No.-4. प्रेम परीक्षा (1927),
No.-5. जागरण (1937),
No.-6. प्रजामंडल (1941),
No.-7. एक और अनेक (1951),
No.- 8. अपह्रता (1952)।
No.-1. प्रेमपथ (1926),
No.-2. अनाथ पत्नी (1928),
No.-3. मुस्कान (1929),
No.- 4. प्रेम निर्वाह (1934),
No.-5. पतिता की साधना (1936),
No.- 6. चलते-चलते (1951),
No.- 7. टूटते-बंधन (1963)।
हिन्दी में सहयोगी उपन्यास लेखन की
शुरुआत सन् 1927 ई. में प्रकाशित भगवती प्रसाद वायपेयी, वृन्दावनलाल
वर्मा और शम्भू दयाल सक्सेना के उपन्यास 'त्रिमूर्ति'
से माना जाता है।
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