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Defination of Essay-writing

 

No.-1. निबन्ध- अपने मानसिक भावों या विचारों को संक्षिप्त रूप से तथा नियन्त्रित ढंग से लिखना 'निबन्ध' कहलाता है।

दूसरे शब्दों में- किसी विषय पर अपने भावों को पूर्ण रूप से क्रमानुसार लिपिबद्ध करना ही 'निबंध' कहलाता है।

निबन्ध लिखना भी एक कला हैं। इसे विषय के अनुसार छोटा या बड़ा लिखा जा सकता है। निबंध को प्रबंध, लेख आदि नामों से पुकारा जाता है।

निबंध का अर्थ है- बँधा हुआ अर्थात एक सूत्र में बँधी हुई रचना। निबंध किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। साधारण रूप से निबंध के विषय परिचित विषय होते हैं यानी जिनके बारे में हम सुनते, देखते व पढ़ते रहते हैं; जैसे- धार्मिक त्योहार, राष्ट्रीय त्योहार, विभिन्न प्रकार की समस्याएँ, मौसम आदि।

हिन्दी का 'निबन्ध' शब्द अँगरेजी के 'Essay' शब्द का अनुवाद है। अँगरेजी का 'Essay' शब्द फ्रेंच 'Essai' से बना है। Essai का अर्थ होता है- To attempt', अर्थात 'प्रयास करना' 'Essay' में 'Essayist' अपने व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करता है, अर्थात 'निबन्ध' में 'निबन्धकार' अपने सहज, स्वाभाविक रूप को पाठक के सामने प्रकट करता है। आत्मप्रकाशन ही निबन्ध का प्रथम और अन्तिम लक्ष्य है।

आधुनिक निबन्धों के जन्मदाता फ्रान्स के मौन्तेन माने गये है। उनके अनुसार 'निबन्ध विचारों, उद्धरणों एवं कथाओं का सम्मिश्रण है। '' अपनी बात को स्पष्ट करते हुए वे आगे लिखते है: ;अपने निबन्धों का विषय स्वयं मैं हूँ। ये निबन्ध अपनी आत्मा को दूसरों तक पहुँचाने के पर्यत्नमात्र हैं। इनमें मेरे निजी विचार और कल्पनाओं के अतिरिक्त कोई नूतन खोज नहीं है।

यह परिभाषा निबन्ध की दो विशेषताओं की ओर संकेत करती है-

No.-1. निबन्ध में निबन्धकार स्वयं को अभिव्यक्त करता है तथा

No.-2. यह पाठक से आत्मीयता स्थापित करता है, उसे शिक्षा या उपदेश नहीं देता।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल भी इस सत्य को स्वीकार करते हैं कि निबन्धकार की आत्माभिव्यक्ति ही निबन्ध की प्रमुख विशेषता है।

उनके शब्दों में- ''आधुनिक पाश्र्चात्य लक्षणों के अनुसार निबन्ध उसी को कहना चाहिए, जिसमें व्यक्तित्व अर्थात व्यक्तिगत विशेषता हो।''

मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि निबन्ध में निबन्धकार खुलकर पाठक के सामने आता है। कोई दुराव नहीं,किसी प्रकार का संकोच अथवा भय नहीं- वह जो कुछ अनुभव करता है, उसे अभिव्यक्ति कर देता है। भाव आकुल-व्याकुल होकर सहज ही फूट पड़ते हैं। कहीं रुकावट नहीं, कहीं ठहराव नहीं। ''मानो हरिद्वार से गंगा की धारा फूटती हो तो सीधे उछलती-कूदती, अनेक विचार-पत्थरों, चिन्तन-कगारों से टकराती प्रयाग में आकर सरस्वती और यमुना के साथ मिलती हो। '' ''यही कारण है कि निबन्ध के विषय की कोई सीमारेखा नहीं है।

निबंध के अंग
No.-3.मुख्य रूप से निबंध के निम्नलिखित तीन अंग होते हैं :

No.-1. भूमिका- यह निबंध के आरंभ में एक अनुच्छेद में लिखी जाती है। इसमें विषय का परिचय दिया जाता है। यह प्रभावशाली होनी आवश्यक है, जो कि पाठक को निबंध पढ़ने के लिए प्रेरित कर सके।

No.-2. विषय-विस्तार- इसमें तीन से चार अनुच्छेदों में विषय के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किए जाते हैं। प्रत्येक अनुच्छेद में एक-एक पहलू पर विचार लिखा जाते है।

No.-3. उपसंहार- यह निबंध के अंत में लिखा जाता है। इस अंग में निबंध में लिखी गई बातों को सार के रूप में एक अनुच्छेद में लिखा जाता है। इसमें संदेश भी लिखा जा सकता है।

निबंध के प्रकार
No.-4. विषय के अनुसार प्रायः सभी निबंध तीन प्रकार के होते हैं :

No.-1. वर्णनात्मक

No.-2. विवरणात्मक

No.-3. विचारात्मक

 No.-1. वर्णनात्मक- किसी सजीव या निर्जीव पदार्थ का वर्णन वर्णनात्मक निबंध कहलाता है।

स्थान, दृश्य, परिस्थिति, व्यक्ति, वस्तु आदि को आधार बनाकर लिखे जाते हैं। वर्णनात्मक निबंध के लिए अपने

विषय को निम्नलिखित विभागों में बाँटना चाहिए-

No.-1. यदि विषय कोई 'प्राणी' हो

No.-1. श्रेणी

No.-2. प्राप्तिस्थान

No.-3. आकार-प्रकार

No.-4. स्वभाव

No.-5. उपकार

No.-6. विचित्रता एवं उपसंहार

 No.-2. यदि विषय कोई 'मनुष्य' हो

No.-1. परिचय

No.-2. प्राचीन इतिहास

No.-3. वंश-परंपरा

No.-4. भाषा और धर्म

No.-5. सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन

 No.-3. यदि विषय कोई 'उद्भिद्' हो

No.-1.परिचय एवं श्रेणी

No.-2. स्वाभाविक जन्मस्थान

No.-3. प्राप्तिस्थान

No.-4. उपज

No.-5. पौधे का स्वभाव

No.-6. तैयार करना

No.-7. व्यवहार और लाभ

No.-8.  उपसंहार

 No.-4. यदि विषय कोई 'स्थान' हो

No.-1. अवस्थिति

No.-2. नामकरण (

No.-3. इतिहास

No.-4. जलवायु

No.-5. शिल्प

No.-6. व्यापार

No.-7. जाति-धर्म

No.-8. दर्शनीय स्थान

No.-1. उपसंहार (उत्थान और पतन, शासन)

 No.-5. यदि विषय कोई 'वस्तु' हो

No.-1. उत्पत्ति

No.-2. प्राकृतिक या कृत्रिम

No.-3. प्राप्तिस्थान

No.-4. किस अवस्था में पाई जाती है

No.-5.कृत्रिमता का इतिहास

No.-6.उपसंहार

 No.-6. यदि विषय 'पहाड़' हो

No.-1. परिचय

No.-2. पौधे, जीव, वन आदि

No.-3. गुफाएँ, नदियाँ, झीलें आदि

No.-4. देश, नगर, तीर्थ आदि

No.-5. उपकरण एवं शोभा

No.-6. वहाँ बसनेवाले मानव और उनका जीवन

 No.-2. विवरणात्मक- किसी ऐतिहासिक, पौराणिक या आकस्मिक घटना का वर्णन विवरणात्मक निबंध कहलाता है।

यात्रा, घटना, मैच, मेला, ऋतु, संस्मरण आदि का विवरण लिखा जाता है। विवरणात्मक निबंध लिखने के लिए दिए गए विषय को निम्नलिखित विभागों में बाँटना चाहिए-

No.-1. यदि विषय 'ऐतिहासिक' हो

No.-1. घटना का समय एवं स्थान

No.-2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

No.-3. कारण, वर्णन एवं फलाफल

No.-4. इष्ट-अनिष्ट की समालोचना एवं आपका मंतव्य

No.-2. यदि विषय 'जीवन-चरित्र' हो

No.-1. परिचय, जन्म, वंश, माता-पिता, बचपन

No.-2. विद्या, कार्यकाल, यश, पेशा आदि

No.-3. देश के लिए योगदान

No.-4. गुण-दोष

No.-5. मृत्यु, उपसंहार

No.-6. भावी पीढ़ी के लिए उनका आदर्श

No.-3. यदि विषय 'भ्रमण-वृत्तांत' हो

No.-1. परिचय, उद्देश्य, समय, आरंभ

No.-2. यात्रा का विवरण

No.-3. हानि-लाभ

No.-4. सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, व्यापारिक एवं कला-संस्कृति का विवरण

No.-5. समालोचना एवं उपसंहार

 No.-4. यदि विषय 'आकस्मिक घटना' हो

No.-1. परिचय

No.-2. तारीख स्थान एवं कारण

No.-3. विवरण एवं अन्त

No.-4. फलाफल

No.-5. समालोचना (व्यक्ति एवं समाज आदि पर कैसा प्रभाव ?)

No.-3. विचारात्मक- किसी गुण, दोष, धर्म या फलाफल का वर्णन विचारात्मक निबंध कहलाता है।

इस निबंध में किसी देखी या सुनी हुई बात का वर्णन नहीं होता; इसमें केवल कल्पना और चिंतनशक्ति से काम लिया जाता है। विचारात्मक निबंध उक्त दोनों प्रकारों से अधिक श्रमसाध्य होता है। अतएव, इसके लिए विशेष रूप से अभ्यास की आवश्यकता होती है। इस तरह के निबंध-लेखन के लिए छात्रों को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, श्यामसुन्दर दास, श्रीहरि दामोदर आदि प्रबुद्ध लेखकों की रचनाएँ पढ़नी चाहिए।

विचारात्मक निबंध लिखने के लिए दिए गए विषय को निम्नलखित विभागों में बाँटना चाहिए-

No.-1. अर्थ, परिभाषा, भूमिका और परिचय

No.-2. सार्वजनिक या सामाजिक, स्वाभाविक या अभ्यासलभ्य कारण

No.-3. संचय, तुलना, गुण एवं दोष (d) हानि-लाभ

No.-4. दृष्टांत, प्रमाण आदि (f) उपसंहार

निबन्ध, प्रबन्ध और लेख

No.-5. कुछ लोग निबन्ध, प्रबन्ध और लेख- इन तीनों में कोई अन्तर नहीं मानते। मेरे विचारानुसार निबन्ध, प्रबन्ध और लेख में स्पष्ट अन्तर हैं।

''प्रबन्ध में व्यक्तित्व उभरकर नहीं आता। लेखक परोक्ष रूप में रहकर अपनी ज्ञानचातुरी, दृष्टिसूक्ष्मता, प्रकाशन-पद्धति और भाषाशैली उपस्थित करता हैं। प्रबन्ध आकार में निबन्ध से दस-बीसगुना बड़ा भी हो सकता हैं। उसमें निबन्ध की अपेक्षा विद्वत्ता अधिक रहती हैं। निबन्ध में निजी अनुभूति और विचार का प्राधान्य रहता हैं और प्रबन्ध में समाजशास्त्र, लोकसंग्रह और पुस्तकीय ज्ञान का।''

मराठी के प्रसिद्ध लेखक ह्री० गो० देशपाण्डे के शब्दों में, ''प्रबन्ध में लेखक पाठकों को उपदेशरूपी कड़वी कुनैन की गोली चबाने का आदेश देता हैं।

किन्तु, 'निबन्ध' में लेखक उन्हें शुगरकोटेड कुनैन की गोली निगलने को कहता हैं और पाठक हँसते-हँसते वैसा करते हैं। प्रबन्धकार अपने बारे में कुछ नहीं कहता, किन्तु निबन्धकार अपनी पसन्दगी-नापसन्दगी, आचार-विचार के सम्बन्ध में खुलकर पाठकों से विचारविमर्श करता हैं। प्रबन्ध की भाषा और शैली प्रौढ़, गम्भीर और नपी-तुली होती हैं, किन्तु निबन्ध की लेखनशैली रमणीक और स्वच्छ्न्द होती हैं। प्रसादगुण निबन्ध की आत्मा हैं। भावगीतों की तरह निबन्ध भी सुगम और सरस होता हैं। प्रबन्ध के विषय गम्भीर और ज्ञानपूर्ण होते हैं, किन्तु निबन्ध का विषय कोई प्रसंग, भावना या कोई क्षुद्र वस्तु या स्थल बनता हैं; क्योंकि यहाँ विषय की अपेक्षा विषयी (निबन्धकार) अधिक महत्त्वपूर्ण होती हैं।

 'निबन्ध' और 'प्रबन्ध' की तरह 'निबन्ध' और 'लेख' में भी अन्तर हैं।

No.-6.'लेख'को अँगरेजी में 'Article' कहते है और पत्र, समाचारपत्र, विश्र्वकोश इत्यादि में पायी जानेवाली वह रचना, जो विषय का स्पष्ट और स्वतंत्र निरूपण करती हैं, 'लेख' कहलाती हैं। प्रबन्ध की तरह लेख भी विषयगत होता हैं। इसमें 'लेखक' की आत्माभिव्यक्ति का आभाव नहीं रहता, पर उसकी प्रधानता भी नहीं रहती, जबकि आत्माभिव्यक्ति निबन्ध का लक्ष्य हैं। अतः निबन्ध और लेख दोनों दो भित्र साहित्यक विधाएँ हैं।

 निबन्ध की विशेषताएँ
No.-7.निबन्ध की चार प्रमुख विशेषताएँ हैं।-

No.-1. व्यक्तित्व का प्रकाशन

No.-2.संक्षिप्तता

No.-3.एकसूत्रता

No.-4.अन्विति का प्रभाव

No.-1.व्यक्तित्व का प्रकाशन :- निबन्धरचना का प्रथम लक्ष्य हैं- व्यक्तित्व का प्रकाशन। निबन्ध में निबन्धकार अपने सहज स्वाभाविक रूप से पाठक के सामने प्रकट होता है। वह पाठकों से मित्र की तरह खुलकर सहज संलाप करता है। यही कारण है कि मैदान की स्वच्छ हवा में कुछ देर टहलने से चित्त को जिस प्रसत्रता और उत्साह की प्राप्ति होती है, निबन्ध पढ़ने पर मन को वैसा ही आह्यद होता है। अतः निबन्ध की सर्वप्रथम विशेषता है- व्यक्तित्व का प्रकाशन।

No.-2.संक्षिप्तता :- निबन्ध की दूसरी विशेषता है- संक्षिप्तता। निबन्ध जितना छोटा होता है, जितना अधिक गठा होता है, उसमें उतनी ही सघन अनुभूतियाँ होती है और अनुभूतियों में गठाव-कसाव के कारण तीव्रता रहती है। फलतः निबन्ध का प्रभाव पाठक पर सर्वाधिक पड़ता है। निबन्ध की सफलता-श्रेष्ठता उसकी संक्षिप्तता है। शब्दों का व्यर्थ प्रयोग निबन्ध को निकृष्ट बनाता है।

No.-3.एकसूत्रता :-श्रेष्ठ और सरल निबन्ध की तीसरी विशेषता है- एकसूत्रता। कुछ लोगों के विचारानुसार निबन्ध में क्रम अथवा व्यवस्था की आवश्यकता नहीं। ऐसा कहना ठीक नहीं। निबन्ध में निबन्धकार स्वयं को अभिव्यक्त करता है; साथ ही उसमें भावों का आवेग भी रहता है। फिर भी, निबन्ध में वैयक्तिक विशेषता का यह अर्थ कदापि नहीं होता कि निबन्धकार पागलों की तरह अर्थहीन, भावहीन प्रलाप करें, बल्कि सफल निबन्धकार में चिन्तन का प्रकाश रहता है।

आचार्य शुक्ल के शब्दों में, व्यक्तिगत विशेषता का मतलब यह नहीं कि उसके प्रदर्शन के लिए विचारों की श्रृंखला रखी ही न जाय या जानबूझकर उसे जगह-जगह से तोड़ दिया जाय; भावों की विचित्रता दिखाने के लिए अर्थयोजना की जाय, जो अनुभूति के प्रकृत या लोकसामान्य स्वरूप से कोई सम्बन्ध ही न रखे, अथवा भाषा से सरकसवालों की-सी कसरतें या हठयोगियों के-से आसन कराये जायँ, जिनका लक्ष्य तमाशा दिखाने के सिवा और कुछ न हो।''

No.-4.अन्विति का प्रभाव :--निबन्ध की अन्तिम विशेषता है- अन्विति का प्रभाव (Effect of Totality) ‘’जिस प्रकार एक चित्र की अनेक असम्बद्ध रेखाएँ आपस में मिलकर एक सम्पूर्ण चित्र बना पाती है अथवा एक माला के अनेक पुष्प एकसूत्रता में ग्रथित होकर ही माला का सौन्दर्य ग्रहन करते हैं, उसी प्रकार निबन्ध के प्रत्येक विचारचिन्तन, प्रत्येक भाव तथा प्रत्येक आवेग आपस में अन्वित होकर सम्पूर्णता के प्रभाव की सृष्टि करते हैं।‘’

 निबन्ध की शैली

No.-8.लिखने के लिए दो बातों की आवश्यकता है- भाव और भाषा। दोनों समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। बिना संयत भाषा के अभिप्रेत भाव व्यक्त नहीं होता। लिखने के लिये जिस तरह परिमार्जित भाव की आवश्यकता है, उसी तरह परिमार्जित भाषा की भी। एक के अभाव में दूसरे का महत्त्व नहीं है। भाव और भाषा को समन्वित करने के ढंग को 'शैली' कहते है।

 वस्तुतः जहाँ परिमार्जित भाव और परिमार्जित भाषा का मेल होता है, वहीं शैली बनती है। जहाँ दोनों में से किसी एक का अभाव हो, वहाँ शैली का कोई प्रश्र नहीं होता।

अच्छी शैली वह है, जो पाठक को प्रभावित करे। यह पाठक को शब्दों की उलझन में नहीं डालती।

बुरी शैली वह है, जो पाठक को शब्दों की भूलभुलैया में फँसाये रखती है। यहाँ पाठकों के लिए लेखक का अभिप्राय गौण हो जाता है और शब्दों की उलझन से निकलने के उद्योग में उसकी शक्ति का अपव्यय होता है।

 निबन्ध लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-

No.-1. निबन्ध लिखने से पूर्व सम्बन्धित विषय का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।

No.-2. क्रमबद्ध रूप से विचारों को लिखा जाये।

No.-3. निबन्ध की भाषा रोचक एवं सरल होनी चाहिए।

No.-4. निबन्ध के वाक्य छोटे-छोटे तथा प्रभावशाली होने चाहिए।

No.-5. निबन्ध संक्षिप्त होना चाहिए। अनावश्यक बातें नहीं लिखनी चाहिए।

No.-6. व्याकरण के नियमों और विरामादि चिह्नों का उचित प्रयोग होना चाहिए।

No.-7. विषय के अनुसार निबन्ध में मुहावरों का भी प्रयोग करना चाहिए। मुहावरों के प्रयोग से निबन्ध सशक्त बनता है।

No.-8. निबंध के विषय पर अतिरिक्त जानकारी प्राप्त करें।

No.-9. आरंभ, मध्य अथवा अंत में किसी उक्ति अथवा विषय से संबंधित कविता की पंक्तियों का उल्लेख करें।

No.-10. निबंध की शब्द-सीमा का ध्यान रखें और व्यर्थ की बातें न लिखें अर्थात विषय से न हटें।

No.-11. विषय से संबंधित सभी पहलुओं पर अपने विचार प्रकट करें।

No.-12. सभी अनुच्छेद एक दूसरे से जुड़े हों।

No.-13. वर्तनी व भाषा की शुद्धता, लेख की स्वच्छ्ता एवं विराम-चिह्नों पर ध्यान दें।

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