बिहार की लोकगीत & लोकनृत्य
Bihar Folk Songs – बिहार की लोकगीत संस्कृति
को निम्न वर्गों में बांटा गया है:
संस्कार गीत
No:1. संस्कार गीतों का सम्बन्ध
लौकिक अनुष्ठानो से है।
No:2. ये गीत सभी
जातियों-जनजातियों में मनुष्य के जन्म से लेकर मरण तक सभी प्रमुख अवसरों पर गाये
जाते हैं।
No:3. जन्म, मुंडन, विवाह, गौना, द्विरागमन जैसे अवसरों पर
गाये जाने वाले गीत उल्लास और हर्ष से भरे होते हैं।
No:4. बिहार में मगही क्षेत्र
के अंतर्गत कुछ मुस्लिम संस्कार गीत गाये जाते हैं।
1). बिहार में पुत्र
जन्मोत्सव के अवसर पर ‘सोहर’ गाये जाते हैं।
2). मिथिलांचल में राम विवाह
के अवसर पर ‘सम्मरी’ गीत गाने की प्रथा है।
3). बिहार में “डोमकछ” एक नाट्य लोकसंगीत है, जिसका गायन विवाह के अवसरों
पर वर पक्ष की स्त्रियों के सम्मिलित सहयोग से होता है।
4). मिथिला में बेटी की विदाई
के समय एक विशिष्ट शैली का गीत गाया जाता है, जो ‘समदाउनि’ के नाम से जाना जाता है।
भोजपुर प्रदेश में इसे ‘समदावन’ एवं मगध क्षेत्र में ‘समदन’ कहते हैं।
ऋतुगीत
फगुआ, चैता, कजरी, हिंडोला, चतुर्मासा और बारहमासा
आदि गीत इस गीत-परंपरा में गाए जाते हैं।
No:1. कहरवा और दादरा की लय में
ठुमरी शैली में कजरी को गाया जाता है। कजरी का ही एक रूप मिथिला में मलार नाम से
प्रसिद्द है।
No:2. फाग या होली बसंत ऋतु का
गीत है। यह मुख्यतया समूह में गाया जाता है।
No:3. बिहार में ‘होरी’ या ‘जोगीड़ा’ गाने की प्रथा है। होरी
गाने में प्रायः पुरुषों की भागीदारी रहती है।
No:4. चैत्र मास में गाय जाने
वाला ‘चैता’ बिहार की विशिष्ट पहचान
है। इसका गायन एकल एवं सामूहिक दोनों रूपों में होता है।
No:5. चैता गायन का चलन मुख्यतः
बिहार के माघी एवं भोजपुरी-भाषी क्षेत्र में पुरुषों में पाया जाता है।
No:6. ढोलक एवं झांझ पर गाय
जाने वाला चैता ‘घाटों’ कहलाता है जो मुख्यतः भोजपुर प्रदेश में गाया जाता है।
No: 7. ‘बारहमासा’ में बारहों महीने का
वर्णन रहता है। यह वस्तुतः वियोग का गीत है।
No:8. बारहमासा गीतों का लघु
रूप चौमासा तथा छहमासा गीत भी बिहार में गाये जाते हैं।
पर्वगीत
दीपावली, छठ, तीज, नागपंचमी, गोधन, निहुरा, मधुश्रावणी, रामनवमी, कृष्णाष्टमी आदि सभी
त्योहारों पर पर्व गीत गाये जाते हैं।
No:1. छठ पर्व में छठ पर्व के
लोकगीत गाये जाते हैं।
No:2. छठ की समाप्ति के बाद
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में मिथिलांचल क्षेत्र में स्त्रीप्रधान नाट्यगीत ‘सामा-चकेवा’ विशेष रूप से गाये जाते
हैं।
जाति सम्बन्धी गीत
गाँव में रहने वाले प्रत्येक जातियों के लोकदेव हैं, जिनकी वीरतापूर्ण गाथाओं
से युक्त लोकगीत जाति गीतों की श्रेणी में आते हैं।
No:1. अहीर, दुसाध, चमार, कहार, धोबी और लुहार सबके
अपने-अपने गीत होते हैं।
No:2. अहीरों द्वारा गाये जाने
वाले गीत को बिरहा गीत के नाम से जाना जाता है।
No:3. इसके साथ ही ‘लोरिकी’ भी इसी जाति का गीत है।
पेशागीत
किसी भी कार्य के सम्पादन के समय जो गीत गाये जाते हैं, वे श्रम गीत, व्यवसाय गीत या क्रिया
गीत की कोटि में आते ह
No:1. बिहार में चक्की चलाकर
आता पीसने के समय स्त्रियों के द्वारा ‘लगनी’ गाई जातीं है। इस गीत को
जँतसार भी कहा जाता है।
No:2. ग्रामीण नारियों में खोदा
या गोदना पड़ाने का प्रचलन है। खोदा पड़ाने वाली स्त्री गोदना जोड़ने के साथ गीत भी
जाती है जिसे ‘खोदा
पाड़ने की गीत’ कहते
हैं।
No:3. खेतों में धान रोपते समय
कृषक मजदूरों द्वारा गाया जाने वाला गीत ‘चोंचर’ कहलाता है। इसका नाम ‘रोपनी’ गीत भी है।
बालक्रीड़ा गीत
बाल-जीवन से सम्बन्ध गीतों को बाल गीत या शिशु गीत कहते
हैं जैसे अटकन-मटकन, छोरा-मुक्की, अट्टा-पट्टा, कबड्डी गीत।
No:1. सुलाने वाले शिशु गीत में
लोरी तथा बच्चों के उबटन लगाने के गीत ‘अपटोनी गीत’ हैं।
No:2. समूह में बच्चों के खेलते
समय स्त्रियों द्वारा गाये जाने वाले गीतों में ‘ओका-बोका तीन तड़ोका’ पहाड़ी आदि गीत गाये जाते
हैं।
भजन या श्रुति गीत
देवी-देवताओं के आराधना से सम्बन्ध गीत भजन या श्रुति
गीत की श्रेणी में आते हैं। इसमें इश्वर के सगुण एवं निर्गुण दोनों रूपों का वर्णन
मिलता है।
No:1. सगुण गीतों में गोसाउनि
गीत, नचारी, महेशवाणी, कीर्तन, विष्णुपद, पराती, साझ, गंगा के गीत, शीतला के गीत, देवी के गीत प्रमुख हैं।
No:2. निर्गुण गीतों का अलग से
कोई गीत कोटि निर्धारित नहीं है लेकिन कुछ भजनो के अंदर निर्गुण उपमानो को
निर्देशित किया जाता है।
गाथा गीत
ये गीत भारतीय जनमानस के वीरता से सहज लगाव के कारण गाए
जाने वाले गीत हैं। यह लोककथाओं के वीर नायकों की स्मृति में ओज, जोश और आक्रामक भावभंगिमा
से गाये जाने वाले गीत हैं। बिहार के गाथा गीत-
No:1. नयका बंजारा
No:2. मीरायण
No:3. राजा हरिचन
No:4. लोरिकायन
No:5. दीना भदरी
No:6. नूनाचार
No:7. छतरी चौहान
No:8. धुधली-घटमा
No:9. विजयमल
No:10. सहलेस
No:11. हिरनी-बिरनी
No:12. कुंवर ब्रजभार
No:13. राजा विक्रमादित्य
No:14. अमर सिंह बरिया
विशिष्ट गीत
No:1. इसमें पीड़िया के गीत, पानी मांगने के गीत, झूमर-झूले के गीत, बिरहा, जोगा, सांपरानी आदि गीत गाये
जाते हैं।
No:2. विविध गीतों में झिंझिया
के गीत, झरनी के गीत, नारी स्वतन्त्रता का गीत, समाज-सुधार के गीत आदि
आते हैं।
No:3. भोजपुर अंचल के पूर्वी
गीत, झूमर, विदेशिया, बढोहिया, मेलों का गीत एवं
मिथिलांचल का तिरहुति, बटगमनी, नचारी, महेशवाणी, सन्देश गीत, मंत्र गीत, आंदोलन गीत इस श्रेणी के
गीत हैं।
बिहार के लोकनृत्य – Bihar Folk Dance
Bihar Folk Dance – बिहार में लोकनृत्य का
बहुत महत्त्व है। यहां सभी प्रमुख अवसरों जैसे – संस्कार, पर्व और मनोरंजन आदि पर
लोकनृत्यों का विहंगम दृश्य नजर आता है। बिहार के लोकनृत्य निम्नलिखित हैं:
कर्मा नृत्य
No:1. यह राज्य की आदिवासी
जनजातियों में मुख्य रूप से प्रचलित है।
No:2. फसलों की कटाई और बुआई के
साथ ‘करम देवता’ को प्रसन्न करने के लिए
गीतों को नृत्य सहित गाय जाता है।
No:3. यह स्त्री-पुरुष का
सामूहिक नृत्य होता है।
No:4. इसका मुख्य स्रोत झारखण्ड
है।
छउ नृत्य
No:1. यह मुख्य रूप से पुरुष
नृत्यकों द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जो युद्ध से सम्बंधित है।
No:2. यह नृत्य बिहार और झारखंड
दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय है।
झिंझिया नृत्य
No:1. यह प्रायः दुर्गा पूजा के
अवसर पर किया जाने वाला नृत्य है, जिसे स्त्रियों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।
No:2. इसमें स्त्रियां गोल घेरे
में खड़ी होकर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नृत्य करती हैं।
No:3. मुख्य नर्तकी अपने सिर पर
एक घड़ा रखती है, जिसके
ढक्कन पर एक दीपक जल रहा होता है।
विद्यापत नृत्य
No:1. इस नृत्य में मिथिला के
प्रसिद्द कवि विद्यापति के पदों को गाते हुए नर्तकों द्वारा सामूहिक नृत्य किया
जाता है।
No:2. यह बिहार में मिथिला और
पूर्णिया में अधिक प्रचलित है।
कठघोड़वा नृत्य
No:1. इस नृत्य में नर्तक अपनी
पीठ से बांस की खपच्चियों से बने घोड़े के आकर का ढांचा बाँध लेता है और वाद्ययंत्र
की ले में कठघोड़वा नृत्य करता है।
धोबिया नृत्य
No:1. यह बिहार के धोबी समाज का
जातिगत नृत्य है जो की मांगलिक अवसरों पर किया जाता है।
No:2. इसका सबसे अधिक प्रचलन
भोजपुर जिले में है।
पवड़िया नृत्य
No:1. यह नृत्य पुरुषों द्वारा स्त्रियों
की वेशभूषा में किया जाता है।
No:2. यह नृत्य बच्चों के होने
के अवसर पर किया जाता है।
जोगीड़ा नृत्य
No:1. यह ग्रामीण क्षेत्रों में
होली के पर्व पर किया जाने वाला नृत्य है।
No:2. इसमें ग्रामीण
युवक-युवतियां एक-दूसरे को रंग-अबीर लगाकर फाग गाते हुए नृत्य करते हैं ।
झरनी नृत्य
No:1. यह बिहार के मुस्लिम समाज
का प्रसिद्द लोकनृत्य है, जिसे मुहर्रम के अवसर पर सामूहिक रूप से किया जाता है।
करिया झूमर नृत्य
No:1. यह महिलाओं द्वारा किया
जाने वाला नृत्य है, जो त्योहारों और मांगलिक अवसरों पर सामूहिक रूप से किया
जाता है।
खीलडीन नृत्य
No:1. यह आतिथ्य नृत्य है, जो मांगलिक अवसरों पर
अतिथियों के मनोरंजन के लिए किया जाता है।
No:2. प्रायः इस नृत्य को दक्ष
और व्यावसायिक महिलाओं द्वारा किया जाता है।
गंगिया
No:1. महिलाओं द्वारा जिस नृत्य
के माध्यम से गंगा स्तुति की जाती है, उसे गंगिया नृत्य कहा
जाता है।
मांझी
No:1. नदियों में नाविकों
द्वारा यह गीत नृत्य मुद्रा में गाय जाता है।
धो-धो रानी
No:1. छोटे-छोटे बच्चों का
नृत्य, जिसमे एक लड़की बीच में
रहती है तथा चारों तरफ से लडकियां गोल घेरा बनाकर घूमते हुए गीत जाती हैं।
गोंडिन
No:1. इसमें मछली बेचने वाली
तथा ग्राहकों का स्वांग किया जाता है।
लौढ़ियारी
No:1. इसमें कृषक अपने घर पर
पशुओं के साथ भाव-भंगिमाओं के साथ जाता और नाचता है।
धन-कटनी
No:1. फसल काट जाने के बाद
किसान सपरिवार खुशियां मनाता हुआ जाता और नृत्य करता है।
बोलबै
No:1. यह भागलपुर और उसके आसपास
के क्षेत्र का नृत्य है, जिसमे महिलाये पति के प्रदेश जाते समय का चित्रण करती
हैं।
घांटो
No:1. ससुराल में गरीब बहन के
घर भाई के आने की सूचना मिलने पर गाय जाने वाला यह विरह गीत नृत्य के साथ किया
जाता है।
इन्नी-बिन्नी
No:1. अंगिका क्षेत्र का प्रमुख
नृत्य, जिसमे पति-पत्नी प्रसंग
पर महिलाएं नृत्य करती हैं।
देवहर
No:1. इसे भगता नृत्य भी कहा
जाता है। इसमें नृत्य करने वाला देवी-देवताओं के प्रतिनिधि के रूप में नृत्य करता
है।
बगुलो
No:1. यह उत्तर बिहार का नृत्य
है, जिसमे ससुराल से रूठकर
जाने वाली स्त्री के रास्ते में दूसरी स्त्री के साथ नोक-झोक का चित्रण होता है।
कजरी
No:1. सावन महीने में गाई और
खेली जाने वाली नृत्य नाटिका है।
बसंती
No:1. बसंत ऋतु के आगमन पर
प्रायः महिलाओं द्वारा गीत के साथ किया जाने वाला नृत्य है।
No:2. इसके अलावा बिहार की
लोक-संस्कृति में लगुई नृत्य शैली भी अभिन्न रूप से जुडी हुई है।
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