Terrestrial Biomes of the World / विश्व के स्थलीय बायोम क्षेत्र
विश्व के स्थलीय बायोम क्षेत्र कौन से हैं
बायोम (जीवोम / जैवक्षेत्र) स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र का ही एक प्रमुख भाग है। इसके अंतर्गत वनस्पति एवं जीवों के समस्त क्रियाशील समूह शामिल किये जाते हैं। किसी प्रदेश विशेष की जलवायु, मिट्टी आदि कारकों से सामंजस्य स्थापित कर जो जटिल जैव-समुदाय विकसित होता है उसे ही ‘बायोम’ कहते हैं।
बायोम क्षेत्र किसे कहते हैं?
No:1. जैवक्षेत्र या जीवोम (Biome: बायोम) धरती या समुद्र के
किसी ऐसे बड़े क्षेत्र को बोलते हैं जिसके सभी भागों में मौसम, भूगोल और निवासी जीवों
(विशेषकर पौधों और प्राणी) की समानता हो।
No:2. किसी बायोम में एक ही तरह
का परितंत्र (ईकोसिस्टम) होता है, जिसके पौधे एक ही प्रकार की परिस्थितियों में पनपने के
लिए एक जैसे तरीक़े अपनाते हैं।
No:3. जैवक्षेत्र के अन्तर्गत
प्रायः स्थलीय भाग के समग्र वनस्पति और जन्तु समुदायों को ही सम्मिलित करते हैं
क्योंकि सागरीय जैवक्षेत्र का निर्धारण कठिन होता है। यद्यपि जैवक्षेत्र में
वनस्पति तथा जन्तु दोनों को सम्मिलित करते हैं, तथापि हरे पौधों का ही
प्रभुत्व होता है क्योंकि इनका कुल जीवभार जन्तुओं की तुलना में बहुत अधिक होता
है।
Terrestrial Biomes of the World
विश्व में पांच स्थलीय बायोम क्षेत्र हैं जिसको भू-गर्भ
जल की उपलब्धता और तापमान के आधार पर विभाजित किया गया हैं जिसकी चर्चा नीचे की गई
है:
1). वन बायोम
ऐसा क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व अत्यधिक रहता है उसे
वन कहते हैं। जंगल या वन को विभिन्न मानदंडों पर परिभाषित किया जाता है। वन बायोम
क्षेत्र को पांच उप-भागों में वर्गीकृत किया गया है जिसकी चर्चा नीचे की गई है:
A). सदाहरित वन
No:1. इस प्रकार के वन के पेड़
हमेशा हरे-भरे रहते है चाहे कोई भी मौसम हो, मतलब सदाबहार।
No:2. इस वन क्षेत्र में
न्यूनतम सामान्य वार्षिक वर्षा 175 cm (69 इंच) और 200 cm (79 इंच) के बीच होती है।
No:3. औसत मासिक तापमान वर्ष के
सभी महीनों के दौरान 18 ° से ऊपर होता है। धरती पर रहने वाले सभी पशुओं और पौधों
की प्रजातियों की आधी संख्या इन सदाबहार वन में रहती है।
No:4. इस तरह के वन क्षेत्रो को
उप-समूहों में बांटा गया है जिसकी चर्चा नीचे की गयी है:
(a). उष्णकटिबंधीय सदाबहार वर्षावन:
No:1. इस प्रकार के वन क्षेत्र
भूमध्य रेखा और उष्णकटिबंधीय तटीय प्रदेशों में पाए जाते है। पृथ्वी का 12% भाग इसी प्रकार के वनों
से ढँका हुआ हैं।
No:2. इस प्रकार के वन में
विश्व के सर्वाधिक विविधतापूर्ण जैव-सम्पदा वाले कठोर लकड़ियों वाले यथा महोगनी, आबनूस, रोजवुड और डेल्टाई भागों
में मैंग्रोव के वन पाये जाते हैं।
No:3. यहाँ हाथी, गैंडा, जंगली सुअर, शेर, घड़ियाल तथा बंदर व
सांपों की अनेक प्रजातियां मिलती हैं।
No:4. आमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, अफ्रीका का गिनी तट, जावा-सुमात्रा आदि इन
वनों के प्रमुख क्षेत्र हैं । ब्राजील में इन वनों को सेलवास कहा जाता है।
(b). मध्य अक्षांशीय सदाबहार वन:
No:1. इस प्रकार के वन क्षेत्र
उपोष्ण प्रदेशों में महाद्वीपों के पूर्वी तटीय भागों में मिलती हैं। यहाँ प्रायः
एक ही जाति वाले वृक्षों की प्रधानता पायी जाती है।
No:2. चौड़ी पत्तीवाले कठोर
लकड़ी ओक, लॉरेल, मैग्नेलिया, यूकेलिप्टस आदि के वन
यहाँ प्रमुख हैं। दक्षिणी चीन, जापान, दक्षिण-पूर्व यूएसए और दक्षिणी ब्राजील आदि इसके प्रमुख
क्षेत्र हैं।
(c). भूमध्यसागरीय वन:
No:1. इस प्रकार के वन मध्य
अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी सीमांतों पर शीतकालीन वर्षा प्रदेशों में
मिलते हैं। कार्क, ओक, जैतून, चेस्टनट, पाइन जैसे प्रमुख वृक्ष
पाए जाते हैं।
No:2. इस बायोम में अग्नि से
नष्ट न होने वाले पौधे और सूखे में रहने योग्य जंतु पाए जाते हैं।
No:3. भूमध्य सागरीय प्रदेश ‘सिट्रस फलों’ के लिए प्रसिद्ध इनमें
अंगूर, नींबू, नारंगी, शहतूत, नाशपाती व अनार प्रमुख
है।
No:4. चैपेरल, लैवेन्डर, लॉरेल तथा अन्य सुगन्धित
जड़ी-बूटियाँ (मैक्वीस) का भी यहां उत्पादन होता है।
(d). शंकुधारी वन:
No:1. इस प्रकार के वन उत्तरी
ध्रुव के आसपास यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका के पहाड़ी क्षेत्रों में पाए
जाते हैं। फर, हैमलॉक, स्पुस, देवदार और पाइन जैसे
प्रमुख वृक्ष पाए जाते हैं ।
B). पर्णपाती वन
No:1. इस वन क्षेत्र में 100 से 200 से.मी वर्षा होती है।
No:2. इस वन के पेड़ की हर साल
अपनी पत्तियां झड़ जाती हैं और फिर नमी गर्मियों में तथा ठंडी सर्दियों में इस
क्षेत्र के पेड़ –पौधे फिर से पत्तो से लह-लाहा जाते हैं।
No:3. इसे के दो प्रकार हैं
जिनकी चर्चा नीचे की गई है:
(a). मध्य अक्षांशीय पर्णपाती वन:
No:1. इस प्रकार के बायोम
क्षेत्र शीतल जलवायु के तटीय प्रदेशों में पाए जाते हैं । उत्तर-पूर्वी अमेरिका, दक्षिणी चिली आदि इसी वन
के प्रकार से घीरा हुआ है।
No:2. इन वनों के प्रमुख वृक्ष
ओक, बीच, वालनट, मैपल, ऐश, चेस्टनट आदि हैं ।
No:3. शीत ऋतु में ठंड से बचाव
के लिए इनकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं।
(b). उष्णकटिबंधीय पर्णपाती या मानसून वन:
No:1. इस प्रकार के वन एशिया, ब्राजील, मध्य अमेरिका और उत्तरी
ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। यहाँ सागवान, शीशम, साल, बाँस आदि प्रमुख वृक्ष
पाए जाते हैं ।
2). सवाना बायोम
No:1. इस क्षेत्र में
आर्द्र-शुष्क उष्णकटिबंधीय जलवायु पायी जाती है ।
No:2. यह पार्कलैंड भूमि है
जहाँ घासभूमियों के क्षेत्र में यत्र-तत्र कुछ वृक्ष रहते हैं। अफ्रीका, भारत, ब्राजील, पूर्वी आस्ट्रेलिया आदि
इसके प्रमुख क्षेत्र हैं ।
No:3. वेनेजुएला में इस बायोम
को लानोस कहा जाता है।
No:4. इस बायोम क्षेत्र के
पेड़-पौधो और जन्तुओं को सूखे को सहन करने की क्षमता होती है तथा वृक्षों में अधिक
विविधता नहीं होती ।
No:5. यहाँ हाथी, दरियाई घोड़ा, जंगली भैंस, हिरण, जेब्रा, सिंह, चीता, तेंदुआ, गीदड़, घड़ियाल, हिप्पोपोटैमस, सांप, ऐमू व शुतुरमुर्ग मिलते
है।
No:6. यह प्रदेश ‘बड़े-बड़े शिकारों की
भूमि’ के नाम से प्रसिद्ध है
तथा विश्व प्रसिद्ध ‘जू’ है । मानवीय हस्तक्षेप के कारण इस क्षेत्र के
पारिस्थितिक संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
No: 7. (घास का मैदान) सवाना
बायोम से आशय उस वनस्पति समुदाय से है जिसमें धरातल पर आंशिक रूप से
शु्ष्कानुकूलित शाकीय पौधों (partially xeromorphic herbaceous plants) का (मुख्यतः घासें)
प्राधान्य होता है, साथ ही विरल से लेकर सघन वृक्षों का ऊपरी आवरण होता तथा
मध्य स्तर में झाड़ियाँ होती हैं।
No:8. इस बायोम का विस्तार
भूमध्यरेखा के दोनों ओर १०° से २०° अक्षांशों के मध्य (कोलम्बिया तथा वेनेजुएला के लानोज, दक्षिण मध्य ब्राजील, गयाना, परागुवे, अफ्रीका में विषुवतरेखीय
जलवायु प्रदेश के उत्तर तथा दक्षिण मुख्य रूप से मध्य तथा पूर्वी अफ्रीका-
सर्वाधिक विस्तार सूडान में, मध्य अमेरिका के पहाड़ी क्षेत्रों, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया और
भारत में) पाया जाता है।
No:9. सवाना की उत्पति तथा
विकास के संबंध में अधिकांश मतों के अनुसार इसका प्रादुर्भाव प्राकृतिक पर्यावरण
में मानव द्वारा अत्यधिक हस्तक्षेप के फलस्वरूप हुआ है।
No:10. भारत में पर्णपाती वनों
के चतुर्दिक तथा उनके बीच में विस्तृत सवाना क्षेत्र का विकास हुआ है, परन्तु भारतीय सवाना में
घासों की अपेक्षा झाड़ियों का प्राधान्य अधिक है।
3). घास भूमि बायोम
No:1. इस प्रकार के बायोम में
घास, फूल और जड़ी बूटी मिलती
हैं।
No:2. इसे दो उप-समूहों में
विभाजित किया गया है जिन पर नीचे चर्चा की गई है:
(a). अर्द्धशुष्क महाद्वीपीय घास भूमि:
No:1. इस प्रकार के घास के
मैदान को दक्षिण अफ्रीका में वेल्ड कहा जाता है, ब्राजील में कैम्पोस, और उत्तरी अमेरिका, यूरोप और रूस में स्टेपी
कहा जाता है।
(b). मध्य अक्षांश आद्र घास भूमि:
No:1. इस प्रकार का बायोम, उपोष्ण आर्द्र जलवायु
प्रदेशों में पाए जाते हैं जहा लंबी एवं सघन घास के मैदान होते हैं।
No:2. उत्तरी अमेरिका में
इन्हें प्रेयरी, दक्षिणी
अमेरिका में पम्पास, आस्ट्रेलिया में डाउन्स, न्यूजीलैंड में कैंटरबरी
और हंगरी में पुस्टाज कहते हैं।
4). मरुस्थलीय बायोम
No:1. यहाँ वनस्पतियों का
प्राय: अभाव होता है।
No:2. केवल छोटी झाड़ीयां, नागफनी, बबूल, ख़जूर, खेजड़ी आदि वनस्पतियाँ
मिलती हैं।
No:3. किसी रेगिस्तानी बायोम
में पौधों में अक्सर मोटे पत्ते होते हैं (ताकि उनका जल अन्दर ही बंद रहे) और उनके
ऊपर कांटे होते हैं (ताकि जानवर उन्हें आसानी से खा न पाएँ)। उनकी जड़ें भी रेत
में उगने और पानी बटोरने के लिए विस्तृत होती हैं।
No:4. बहुत से रेगिस्तानी पौधे
धरती में ऐसे रसायन छोड़ते हैं जिनसे नए पौधे उनके समीप जड़ नहीं पकड़ पाते।
No:5. इस से उस पूरे क्षेत्र
में पड़ने वाला हल्का पानी या पिघलती बर्फ़ उन्ही को मिलती है और यह एक वजह है कि रेगिस्तान
में झाड़-पौधे एक-दूसरे से दूर-दूर उगते दिखाई देते हैं। यह सभी लक्षण रेगिस्तानी
पौधे में एक-समान होने से जीव-वैज्ञानिक इस परितंत्र को एक ‘बायोम’ का ख़िताब देते हैं।
5). टुन्ड्रा बायोम
No:1. 600 उत्तर अक्षांश से ऊपर के
एशियाई, यूरोपीय तथा उत्तर
अमेरिकी भागों में वनस्पतियाँ अत्यंत वियरल हैं।
No:2. इस बायोम क्षेत्र में
वृक्षों की वृद्धि कम तापमान और बढ़ने के अपेक्षाकृत छोटे मौसम के कारण प्रभावित
होती है।
No:3. टुंड्रा शब्द फिनिश भाषा
से आया है जिसका अर्थ “ऊँची भूमि”, “वृक्षविहीन पर्वतीय
रास्ता” होता है।
No:4. टुंड्रा प्रदेशों के तीन
प्रकार हैं: आर्कटिक टुंड्रा, अल्पाइन टुंड्रा और अंटार्कटिक टुंड्रा।
No:5. टुंड्रा प्रदेशों की
वनस्पति मुख्यत: बौनी झाड़ियां, दलदली पौधे, घास, काई और लाइकेन से मिलकर
बनती है।
No:6. टुण्ड्रा वे मैदान हैं, जो हिम तथा बर्फ़ से ढँके
रहते हैं तथा जहाँ मिट्टी वर्ष भर हिमशीतित रहती है। अत्यधिक कम तापमान और प्रकाश, इस बायोम में जीवन को
सीमित करने वाले कारक हैं।
No:7. वनस्पतियाँ इतनी बिखरी
हुईं होती हैं कि इसे आर्कटिक मरूस्थल भी कहते हैं।
No:8. यह बायोम वास्तव में वृक्षविहीन
है। इसमें मुख्यतः लाइकेन, काई, हीथ, घास तथा बौने विलो-वृक्ष शामिल हैं।
No:9. हिमशीतित मृदा का मौसमी
पिघलाव भूमि की कुछ सेंटीमीटर गहराई तक कारगर रहता है, जिससे यहाँ केवल उथली
जड़ों वाले पौधे ही उग सकते हैं।
No:10. इस क्षेत्र में कैरीबू, आर्कटिक खरगोश, आर्कटिक लोमड़ी, रेंडियर, हिमउल्लू तथा प्रवासी
पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं।
सागरीय बायोम
No:1. सागरीय बायोम अन्य बायोम
से इस दृष्टि से विशिष्ट है कि इसकी परिस्थितियाँ (जो प्रायः स्थलीय बायोम में
नहीं होती हैं) पादप और जन्तु दोनों समुदायों को समान रूप से प्रभावित करती हैं।
No:2. महासागरीय जल का तापमान
प्रायः 0° से ३0° सेण्टीग्रेट के बीच रहता
है, जिसमें घुले लवण तत्वों
की अधिकता होती है।
No:3. इस बायोम में जीवन और
आहार श्रृंखला का चक्र सूर्य का प्रकाश, जल, कार्बन डाई ऑक्साइड, ऑक्सीजन की सुलभता पर
आधारित होता है।
No:4. ये समस्त कारक मुख्य रूप
से सागर की ऊपरी सतह में ही आदर्श अवस्था में सुलभ होते हैं, क्योंकि प्रकाश नीचे जाने
पर कम होता जाता है तथा २०० मीटर से अधिक गहरायी तक जाने पर पूर्णतया समाप्त हो
जाता है।
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