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International monetary fund

 

International monetary fund

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष International monetary fund in hindi

International monetary fund in hindi, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का उद्देश्य, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्य, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और भारत, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का इतिहास

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष International monetary fund in hindi

No:1. International Monetary Fund in Hindi: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष 189 सदस्य देशों का एक प्रमुख संगठन है जिनमें से सभी देश इसके आर्थिक महत्त्व में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यकारी बोर्ड में प्रतिनिधित्व हैं।

No:2. वैश्विक अर्थव्यवस्था में जो देश अधिक शक्तिशाली है उस देश के पास अधिक मताधिकार है। और अधिक शक्ति है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का उद्देश्य

No:1. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का उद्देश्य वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना तथा स्थिरता को बनाए रखना एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देना है।

No:2. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का उद्देश्य दुनिया भर में गरीबी को कम करना भी है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का इतिहास

No:1. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का इतिहास: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना जुलाई 1944 में संयुक्त राज्य के न्यू हैम्पशायरमें संयुक्त राष्ट्र के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में की गई थी।

No:2. उक्त सम्मेलन में 44 देशों नें साथ मिलकर आर्थिक-सहयोग के लिए एक फ्रेमवर्क के निर्माण की बात की ताकि प्रतिस्पर्द्धा अवमूल्यन की पुनरावृत्ति से बचा जा सके जिसके कारण वर्ष 1930 के दशक में आए विश्वव्यापी महामंदी जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई थी।

No:3. जब तक कोई देश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का सदस्य नहीं बनता, तब तक उसे विश्व बैंक की शाखा अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक IBRD में सदस्यता नहीं मिलती है।

No:4. ब्रेटन IBRD के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिये IMF ने निश्चित विनिमय दरों पर मुद्रा परिवर्तन की एक प्रणाली स्थापित की और आधिकारिक भंडार के लिये सोने को यू.एस. डॉलर (प्रति औंस गोल्ड पर 35 यूएस डॉलर) से स्थापित किया।

No:5. वर्ष 1971 में ब्रेटन वुड्स प्रणाली (स्थायी विनिमय दरों की प्रणाली) के समाप्त हो जाने के पश्चात् IMF ने अस्थायी विनिमय दरों की प्रणाली को प्रोत्साहित किया है।

No:6. देश अपनी विनिमय व्यवस्था को चुनने के लिये स्वतंत्र हैं जिसका अर्थ है कि बाज़ार की शक्तियाँ एक दूसरे के सापेक्ष मुद्रा के मूल्यों को निर्धारित करती है।

No:7. यह प्रणाली आज भी जारी है।वर्ष 1973 के तेल संकट के दौरान वर्ष 1973 और 1977 के बीच तेल-आयात करने में 100 विकासशील देशों के विदेशी ऋण में 150 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई जिसने आगे दुनिया भर में अस्थायी विनिमय दरों को लागू करना कठिन बना दिया।

No:8. IMF ने वर्ष 1974-1976 के दौरान एक न्यू लेंडिंग प्रोग्राम  की शुरुआत की जिसे तेल सुविधाकहते हैं।

No:9. तेल आयातक राष्ट्रों एवं अन्य उधारदाताओं द्वारा वित्तपोषित यह राष्ट्रों के लिये उपलब्ध है IMF, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली के प्रमुख संगठनों में से एक है। IMF की संरचना अंतर्राष्ट्रीय पूंजीवाद के पुनर्निर्माण को राष्ट्रीय आर्थिक संप्रभुता एवं मानव कल्याण के उच्चतम मूल्यांकन के साथ संतुलित करने में सुविधा प्रदान करती है।

No:10. इस प्रक्रिया को  उदारवाद कहते हैं।वर्ष 1997 के दौरान पूर्व एशिया में थाइलैंड से लेकर इंडोनेशिया और कोरिया तक एक वित्तीय संकट ने दस्तक दी थी तब IMF ने इस संकट से प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक राहत पैकेज़ की शुरुआत की ताकि उन्हें समस्याओं से बचने, बैंकिंग एवं वित्तीय व्यवस्था में सुधार के लिये सक्षम बनाया जा सके।

No:11. वैश्विक आर्थिक संकट (2008) IMF ने वैश्वीकरण एवं पूरी दुनिया को आर्थिक तौर पर जोड़ने तथा निगरानी तंत्र को मज़बूत करने हेतु प्रमुख पहलें की हैं।

No:12. वित्तीय प्रणाली एवं जोखिमों के विश्लेषण की निगरानी हेतु कानूनी ढाँचे का पुनर्निर्माण करना,

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्य

No:1. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्य: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष वित्तीय सहयोग प्रदान करता है एवं  भुगतान संतुलन की समस्याओं से सामना कर रहे सदस्य देशों को वित्तीय सहयोग प्रदान करता है।

No:2. अंतर्राष्ट्रीय भंडार की भरपाई करने, मुद्रा विनिमय और आर्थिक विकास के लिये ऋण वितरण करना।

No:3. यह अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली का निरीक्षण करता है एवं अपने 189 सदस्य देशों की आर्थिक और वित्तीय नीतियों की निगरानी करता है।

No:4. इस प्रक्रिया के एक भाग के रूप में यह निगरानी किसी एक देश के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी की जाती है।

No:5. IMF आर्थिक स्थिरता के संबंध में संभावित जोखिमों पर प्रकाश डालने के साथ ही आवश्यक नीति समायोजन पर भी सलाह देता है।

No:6. यह केंद्रीय बैंकों, वित्त मंत्रालयो, कर अधिकारियों एवं अन्य आर्थिक संस्थानों को प्रौद्योगिकी सहयोग और प्रशिक्षण प्रदान करता है। (International monetary fund in hindi)

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और भारत

No:1. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विनियमन ने भारतीय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार में निश्चित रूप से सहयोग किया है।

No:2. भारत इन लाभदायक परिणामों से लाभान्वित हुआ है।स्वतंत्रता और विभाजन के बाद की अवधि में भारत में अत्यधिक संकटपूर्ण आर्थिक स्थिति थी जिससे भारत में गंभीर भुगतान संतुलन घाटे की स्थिति उत्पन्न हुई।

No:3. भारत का भुगतान घाटा विशेष तौर कठोर विनिमय दर वाले देशों के साथ अधिक गंभीर स्थिति में था।

No:4. इसके अतिरिक्त वर्ष 1965 एवं 1971 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद ही वित्तीय कठिनाइयों से निपटने में IMF ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।इन परिस्थितियों में भारत को अपने आयात, खाद्य, तेल एवं उर्वरक के कीमतों में तेज़ी से वृद्धि के मद्देनज़र IMF से कर्ज लेना पड़ा था।

No:5. उदाहरण IMF की स्थापना से 31 मार्च 1971 तक भारत ने 817.5 करोड़ रुपए के मूल्यों की विदेशी मुद्रा का सहयोग कर्ज के रूप में प्राप्त कर उसका भुगतान किया गया।स्वतंत्रता के पश्चात् तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये भारत को संचार विकास, भूमि सुधार योजनाओं एवं अपने विभिन्न नदी परियोजनाओं के लिये अधिक विदेशी पूंजी की ज़रूरत थी।

No:6. बड़े पैमाने पर आवश्यक पूंजी की प्राप्ति निजी विदेशी निवेशकों से संभव नहीं थी ऐसी परिस्थितियों में भारत द्वारा आवश्यक पूंजी की प्राप्ति अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक से कर्ज के रूप में की गई थी।

No:7. जिसका उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था का समावेशी आर्थिक विकास था जिससे आर्थिक विकास के साथ ही साथ लोगों के सामाजिक स्तर में सुधार कर मानव विकास की स्थिति प्राप्त करना था।

No:8. अक्तूबर 1973 से तेल कीमतों में वृद्धि के कारण भारत के भुगतान-संतुलन की स्थिति असंतुलित हो गई तब इस समस्या से निपटने हेतु IMF द्वारा गठित एक विशेष कोष के माध्यम से तेल की सुविधा का प्रयोग किया गया था।

No:9. वर्ष 1990 के दशक के प्रारंभ में जब भारत में मात्र दो सप्ताह का सुरक्षित विदेशी मुद्रा कोष बचा (आम तौर पर विदेशी मुद्रा कोष का सुरक्षित न्यूनतम भंडारतीन महीने के बराबर होता है), भारत सरकार ने तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए जमानत (सुरक्षा) के रूप में भारतीय गोल्ड रिज़र्व से 67 टन सोने के प्रयोग से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से 2.2 बिलियन डॉलर का आपातकालीन ऋण प्राप्त किया।

No:10. भारत ने IMF से आने वाले वर्षों में विभिन्न संरचनात्मक सुधार का वादा किया जैसे- भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन, बजट और राजकोषीय घाटे को कम करना, सरकारी खर्च एवं सब्सिडी में कमी करना, आयात उदारीकरण, औद्योगिक नीति में सुधार, व्यापार नीति में सुधार, बैंकिंग सुधार, वित्तीय क्षेत्र में सुधार, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का निजीकरण, आदि।

No:11. वर्तमान में भारत ने कोष के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में एक विशेष स्थान प्राप्त कर लिया है। इस प्रकार भारत ने कोष के नीतियों के निर्धारण में एक विश्वसनीय भूमिका निभाई थी। इसने अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ावा मिला है।

IMF की आलोचना

No:1. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की संरचना एक विवाद का क्षेत्र हैं क्योंकि इसमें यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के पास असंतुलित मतदान और कोटा अधिकार है। मानक से अभिप्राय अधिक सशक्त शर्तों से हैं जो अक्सर ऋण को पॉलिसी टूल में बदल देते है।

No:2. वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ऋण सेवा निलंबन को वर्ष 2021 तक बढ़ाया जाना चाहिये ताकि अनिश्चित ऋण समस्याओं से निपटने के लिये प्रोत्साहन मिल सके।

No:3. ऋण सेवा निलंबन पहल में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक को भी शामिल करना चाहिये जिससे ऋण सुभेद्यताओं को कम किया जा सके ।

No:4. जिन देशों में ऋण प्रबंधन की व्यवस्था अस्थिर है उनका पुनर्गठन किया जाना चाहिये।

No:5. ऋण प्रबंधन के लिये निजी क्षेत्र के दावों को भी शामिल किया जाना चाहिये।

No:6. ऋण का मुद्रीकरण: सभी देशों की सरकारों को प्रत्यक्ष रूप से ऋण का मुद्रीकरण करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से व्यय और वृद्धि की लागत कम करने में मदद मिलेगी।

No:7. अर्थात् माँग में कमी बनी हुई है इसलिये इससे मुद्रास्फीति में वृद्धि नहीं होगी!)  विकासशील देशों पर कर्ज का भुगतान बढ़ रहा है, क्योंकि इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को कोविड-19 महामारी से उत्पन्न आर्थिक कठिनाइयों के कारण भारी नुकसान हुआ है, ऐसे में इस बढ़ते वित्तीय दबाव को दूर करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तुरंत और कदम उठाने चाहिये।

No:8. के माध्यम से तत्काल प्रयास करने होंगे। जिन देशों में ऋण प्रबंधन की व्यवस्था अस्थिर है उनका पुनर्गठन किया जाना चाहिये।

No:9. ऋण प्रबंधन के लिये निजी क्षेत्र के दावों को भी शामिल किया जाना चाहिये।ऋण का मुद्रीकरण: सभी देशों की सरकारों को प्रत्यक्ष रूप से ऋण का मुद्रीकरण करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से व्यय और वृद्धि की लागत कम करने में मदद मिलेगी।

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