मानवाधिकार का अर्थ और प्रकृति Human rights
in Hindi
मानवाधिकार का अर्थ, मानवाधिकारों की प्रकृति, मानवाधिकारों की विशेषताएं, Human rights in Hindi, मानवाधिकार के संरक्षण में अंबेडकर का योगदान
मानवाधिकार का अर्थ
No:1. Human rights in Hindi: वर्तमान विश्व में
आतंकवादी और विनाशकारी गतिविधियाँ एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुयी है जिसके कारण
मानवाधिकार को संरक्षण दिये जाने की आवश्यकता अनुभव होती है।
No:2. संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1995 से 2004 के दशक को मानवाधिकार दशक घोषित किया। समाज में एक व्यक्ति
दूसरे के अधिकारों का हनन में बिल्कुल संकोच नहीं करता अतः मानवाधिकारों की समस्या
भयावह हो गयी है, प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकार को प्राप्त करना चाहता है
परन्तु कर्तव्यों पर बल नहीं देता अत: यह आवश्यक है कि मानव अधिकारों के साथ
कर्तव्यों का ज्ञान कराना आवश्यक है कि मानव समाज मनुष्य को अपने व्यक्तित्व के
विकास के लिये कुछ अधिकारों की आवश्यकता होती है इन्हीं मानव अधिकार कहते हैं।
No:3. वर्तमान में व्यक्ति और मानवाधिकार को अन्तर्राष्ट्रीय
विधि के विषय में राज्य से अधिक महत्व दिया जाता है। यथार्थ में राज्य के साथ साथ
व्यक्ति भी अन्तर्राष्ट्रीय नीति क विषय बन गया है।
No:4. वे अधिकार जो
मानव गरिमा को बनाये रखने के लिये आवश्यक है वे मानवाधिकार कहलाते हैं। मानव
अधिकार का सम्बन्ध मानव की गरिमा स्वतन्त्रता, समानता, के साथ जीने के लिये
स्थितियाँ उत्पन्न करने से होता है।
No:5. लॉस्की के अनुसार – मानव अधिकार जीवन की के
परिस्थितियां हैं जिनके बिना सामान्यत: कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण
विकास नहीं कर सकता ।” सर्वप्रथम जनवरी 1941 में रुजवेल्ट ने
कांग्रेस को सम्बोधित करते हुये मानवाधिकार शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने 4 मूलभूत स्वतंत्रता पर
आधारित विश्व की घोषण की है।
i). वाक स्वतंत्रता
ii). धार्मिक स्वतन्त्रता
iii). भय से स्वतंत्रता
iv). गरीबी से मुक्ति
No:6. रुजवेल्ट ने घोषणा की कि हमारा समर्थन उन्हीं को है जो
कि इन अधिकारों को पाने के लिये संघर्ष करते रूसो ने Social
Contract में
कहा कि मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है
किन्तु हर जगह जंजीरों से जकड़ा है
इन्होंने इस माध्यम से समाज में अव्यवस्था, शोषण, असमानता जैसे बन्धनों से
जकड़े हुये मनुष्य को स्वतंत्र होने की प्रेरणा दी । द्वितीय महायुद्ध के बाद
मानव को अंतरराष्ट्रीय नीति का
विषयवस्तु माना जाने लगा।
मानवाधिकारों की विशेषताएं
मैकफर्ले ने ‘The theory of Practice of Human
Right“ में
मानवाधिकारों की निम्न विशेषताओं उल्लेख किया ।
No:1. सार्वभौमिकता – मानव अधिकार सार्वभौमिक
इसलिये है क्योक यह अधिकार सभी व्यक्तियों को सही समय पर सभी समयों पर प्राप्त
होते हैं। संयुक्त राहुत संघ के चार्टर में भी कहा गया है कि मानव अधिकार ऐसा
अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होते है अर्थात ये अधिकार किसी एक विशेष
राजनीतिज्ञ और सामाजिक स्थिति से प्रतिबद्ध नहीं होते।
No:2. व्यक्तिगतता – व्यक्ति एक इसके अन्तर्गत
यह माना जाता है कि बौद्धिक प्राणी है। व्यक्ति में सोचने व समझने की शक्ति है। इस
बौद्धिकता के कारण व्यक्ति स्वयं अपना भला बुरा सोचने में समर्थ है अत: उसे अपने
कार्य निर्धारण की स्वतन्त्रता होनी चाहिये ।
No:3. सर्वोच्चता – मानव अधिकार को इसलिये
सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि राज्य द्वारा जनहित के आधार पर इन अधिकारों का
अतिक्रमण नहीं किया जा सकता । विश्व के प्रत्येक देश में इन अधिकारों को संवैधानिक
और कानूनी आधार पर संरक्षण प्रदान किया जाना अनिवार्य होता है।
No:4. क्रियान्वयन योग्य – मानव अधिकार से तात्पर्य
ऐसे अधिकारों से है जो कि वास्तविक रूप से क्रियान्वय योग्य होगे । मानव अधिकार
ऐसे अधिकार होते हैं जिन्हें कि राष्ट्रीय
व अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण व एजेंस द्वारा क्रियान्वित किया जाना
असम्भव है।
मानवाधिकारों की प्रकृति
मानव अधिकार ऐसे अधिकार है जिनका राज्यों द्वारा आदर
किया जाना चाहिये । साथ ही ये अधिकार ऐसे मानदंड है जिनके माध्यम से राज्य के
कार्यों का मूल्यांकान किया जाना सम्भव हो पाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध मानव
अधिकार को उनकी प्रकृति के आधार पर दो रूपों में विभाजित किया जा सकता है। (Human rights
in Hindi)
No:1. मानव अधिकार के संरक्षण में राज्य का नकारात्मक रूप
i). मानव अधिकार के नकारात्मक
रूप से तात्पर्य ऐसे अधिकारों से है जिनके राज्यों को कुछ करने से रोका जाता है | जिनके अन्तर्गत किसी भी
व्यक्ति को कानूनों के उल्लंघन के बिना बन्दी नहीं बनाया जा सकता किसी भी व्यक्ति
को अनावश्यक ही अपने विचार व्यक्त करने से रोका नहीं जा सकता है। व्यक्तियों को
किसी भी धर्म सम्प्रदाय के प्रति आचरण करने से रोका नहीं जा सकता।
ii). इन नकारात्मक अधिकारों की
सीमाएं किसी भी देश की आर्थिक व राजनीतिक दशाओं के अनुसार अलग अलग होगी।
No:2. मानव अधिकार के संरक्षण में राज्य का सकात्मक रूप
मानव अधिकार के सकारात्मक रूप से तात्पर्य से अधिकार से
है जिसके अन्तर्गत राज्य द्वारा अपने नागरिकों के लिये कुछ दुविधाएँ या स्वतंत्रता
प्रदान करने का प्रयास होता है अर्थात राज्य अपने यहाँ इस प्रकार की दशाओं का
निर्माण करेगा । जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता और गरिमा के साथ अपना जीवन
यापन कर सके उदाहरण के लिये सरकारों द्वारा गरीबों को खाने व रहने की व्यवस्था
करना । महिलाओं के लिये समानता और सम्पूर्ण विकास अवसर प्रदान करना, गरीब और असहायों के लिये
निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान प्रदान करना।
मानवाधिकार के संरक्षण में अंबेडकर का योगदान
No:1. अंबेडकर का सम्पूर्ण जीवन मानवाधिकार के संरक्षण से
संबंधित था। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में जो संघर्ष किया वह मानव अधिकार को
संरक्षण प्रदान किया उल्लेखनीय है।
No:2. मानव अधिकार की स्थापना के लिए संविधान निर्माता आधुनिक
मनु की संज्ञा के रूप में आरक्षण के माध्यम से उन्होंने मानव अधिकार को मौलिक
अधिकार में परिवर्तित किया।
No:3. संविधान निर्माता के रूप में वे मानव अधिकार के संरक्षक
थे अंबेडकर ने दलितों के उद्धार के लिए प्रत्येक कार्य किए। उन्होंने कहा कि वर्ण
व्यवस्था जन्म पर आधारित है इसलिए इसका
विरोध करते हैं यह धर्म एक व्यक्ति
के मानवाधिकार के विरुद्ध है।
No:4. उन्होंने मानवाधिकार के संबंध में ही धर्म परिवर्तन के
विचार दिए और कहा कि ऐसा धर्म जो एक
व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति शोषण करें व मतभेद करें वह धर्म व्यवस्था ठीक नहीं है
उन्होंने बुद्ध का अनुसरण किया हुआ 6 लाख बुध्दों के साथ धर्म
परिवर्तन किया।
No:5. अंबेडकर ने अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों के लिए
आरक्षण की व्यवस्था ,मानवाधिकार के संरक्षण में की है।
No:6. मानव अधिकार के संरक्षण में बीसवीं सदी के अंतिम चरण से
न्यायपालिका की भूमिका में वृद्धि हुई एवं मानवाधिकार के संरक्षण में लोकहित वाद
भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
No:7. न्यायालय का अधिकार है कि वह जेलों के भीतर भी मानव
अधिकार के हनन की प्रक्रिया की जांच करें ,यदि अभियुक्त को अपने
अधिकारों का ज्ञान नहीं है तो न्यायालय का दायित्व है कि वह व्यक्ति को इस विषय
में जागृत करें।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में मानवाधिकार आंदोलन
No:1. नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने भारतीय संविधान
के माध्यम से स्वतंत्र भारत के नागरिकों को पूर्ण मौलिक अधिकार प्रदान किए। संविधान
लगभग उसी समय रचित मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा पत्र से प्रभावित था।
No:2. सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मौजूद अधिकारों पर आधारित कई प्रावधान ग्रहण किए गए।
No:3. गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय संविधान के समाज में
रचनात्मक ऊर्जा को जागृत किया इसी ऊर्जा ने भारतीय समाज में गांधीवादी आंदोलन के
अंतर्गत अध्यात्मिक आत्म कल्याण के लक्ष्य को नया रूप दिया।
No:4. संयुक्त राष्ट्र अधिकार पत्र का बुनियादी लक्ष्य लिंग, नस्ल ,भाषा या धर्म का कोई भी
भेद किए बिना सबके लिए मानवाधिकार और मूल स्वतंत्रताओं को आगे बढ़ाना व प्रोत्साहन
देना है ।
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