दिल्ली का प्राचीन और पौराणिक इतिहास, 17 खास बातें
दिल्ली का इतिहास | History Of Delhi
No:1. दिल्ली का इतिहास बहुत ही
पुराना है जितना महाभारत हैं।
No:2. दिल्ली का उल्लेख महाभारत
काल के समय से ही मिलता हैं महाभारत काल में दिल्ली को इन्द्रप्रस्थ के नाम से
जाना जाता था।
No:3. इन्द्रप्रस्थ उस काल में
पांडवों की यह राजधानी थी।
No:4. प्राचीन काल से ही दिल्ली
पर अनेक हिन्दू राजाओं से लेकर मुस्लिम सुल्तानों तक ने राज्य किया, मौर्य काल से होता हुआ
गुप्त काल, अफगान
वंश, खिलज़ी वंश, तुगलक वंश, मुगल वंश के साथ अनेक
वंशों ने शासन किया।
No:5. दिल्ली को भारतीय
महाकाव्य महाभारत में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में
जाना जाता है।
No:6. उन्नीसवीं शताब्दी के
आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक गाँव हुआ करता था।
No:7. अभी भारतीय पुरातत्व
सर्वेक्षण की देखरेख में कराये गये खुदाई में जो भित्तिचित्र मिले हैं उनसे इसकी
आयु ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व का लगाया जा रहा है, जिसे महाभारत के समय से
जोड़ा जाता है, लेकिन
उस समय के जनसंख्या के कोई प्रमाण अभी नहीं मिले हैं।
No:8. कुछ इतिहासकार
इन्द्रप्रस्थ को पुराने दुर्ग के आस-पास मानते हैं।
No:9. पुरातात्विक रूप से जो
पहले प्रमाण मिलते हैं उन्हें मौर्य-काल (ईसा पूर्व 300) से जोड़ा जाता है। तब से
निरन्तर यहाँ जनसंख्या के होने के प्रमाण उपलब्ध हैं।
No:10. 1966 में प्राप्त अशोक का एक
शिलालेख(273 – 300 ई पू) दिल्ली में
श्रीनिवासपुरी में पाया गया। यह शिलालेख जो प्रसिद्ध लौह-स्तम्भ के रूप में जाना
जाता है अब क़ुतुब-मीनार में देखा जा सकता है।
No:11. इस स्तंभ को अनुमानत:
गुप्तकाल (सन ४००-६००) में बनाया गया था और बाद में दसवीं सदी में दिल्ली लाया गया।लौह
स्तम्भ यद्यपि मूलतः कुतुब परिसर का नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह
किसी अन्य स्थान से यहां लाया गया था, संभवतः तोमर राजा, अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) इसे मध्य भारत के उदयगिरि
नामक स्थान से लाए थे।
No:12. इतिहास कहता है कि 10वीं-11वीं शताब्दी के बीच लोह
स्तंभ को दिल्ली में स्थापित किया गया था और उस समय दिल्ली में तोमर राजा अनंगपाल
द्वितीय (1051-1081) था।
No:13. वही लोह स्तंभ को दिल्ली
में लाया था जिसका उल्लेख पृथ्वीराज रासो में भी किया है। जबकि फिरोजशाह तुगलक 13 शताब्दी में दिल्ली का
राजा था वो केसे 10 शताब्दी में इसे ला सकता है।
No:14. चंदरबरदाई की रचना
पृथवीराज रासो में तोमर वंश राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है।
No:15. ऐसा माना जाता है कि उसने
ही ‘लाल-कोट’ का निर्माण करवाया था और
लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। दिल्ली में तोमर वंश का शासनकाल 900-1200 इसवी तक माना जाता है।
No: 16. ‘दिल्ली’ या ‘दिल्लिका’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम
उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ईसवी निर्धारित किया
गया। शायद 1316 ईसवी
तक यह हरियाणा की राजधानी बन चुकी थी।
No:17. 1206 इसवी के बाद दिल्ली
सल्तनत की राजधानी बनी जिसमें खिलज़ी वंश, तुग़लक़ वंश, सैयद वंश और लोदी वंश
समते कुछ अन्य वंशों ने शासन किया।
No:18. 18वीं व 19वीं शताब्दी में पूरी तरह
से भारत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथों में चला गया।
No:19. ब्रिटिश शासन की पहले
कलकत्ता राजधानी थी कलकत्ता भारत के पूरब में था वहा से पूरे भारत में नियंत्रण
करना कठिन था जिसकी वजह से 1911 में कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया और
आधुनिक तरिके से निर्माण कराया गया। आज का राष्ट्रपति भवन, संसद और सेंट्रल सचिवालय
आदि तभी का बना हुआ हैं। 1947 में भारत के आज़ाद के बाद इसे अधिकारिक रूप से राजधानी
बना दिया गया और 1956 में इसे केन्द्र-शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया।
No:20. आज की दिल्ली भारत का एक
प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र बन गया है।
1). खांडवप्रस्थ :
No:1. आज का दिल्ली प्राचीनकाल
का इंद्रप्रस्थ था। इंद्रप्रस्थ से पहले यह खांडवप्रस्थ था, जहां एक भव्य नगर बसा हुआ
था।
No:2. नगर के बीचोबीच एक महल था
और नगर के चारों और वन था जिसे खांडव वन कहते थे।
No:3. यमुना नदी के किनारे बसे
खांडवप्रस्थ को एक प्राचीन राजा ने बसाया था। प्राकृतिक आपदा के कारण यह क्षेत्र
उजाड़ हो गया था।
2). खांडवन में आग :
No:1. इस उजाड़ क्षेत्र में
दानव राज मय और उसके कुल के लोग रहते थे।
No:2. यहां नागकुल के लोग भी
रहते थे। एक तक्षक नाग भी यहीं रहता था। यह क्षेत्र हस्तिनापुर (मेरठ) के अंतर्गत
आता था।
No:3. धृतराष्ट्र ने इस
वनक्षेत्र को पांडवों को सौंप दिया।
No:4. पांडवों ने यहां
इंद्रप्रस्थ नामक नगर बसाने की योजना के तहत भयंकर आग लगा दी जिसके चलते वन में रह
रहे सिंह, पशु, मृग, हाथी, भैंसे, सर्प और अन्य पशु-पक्षी
अन्यान्य वन में भागने लगते हैं।
No:5. इस आग से बड़ी मुश्किल
से तक्षक नाग और यमदानव बच कर भागे।
No:6. कहते हैं कि खांडववन को
अग्नि 15 दिन तक जलाती रही। इस
अग्निकाण्ड में केवल छह प्राणी ही बच पाए थे।
No:7. अश्वसेन सर्प, मय दानव और चार शार्ड्ग
पक्षी। बाद में मय दानव के माध्यम से ही यहां इंद्रप्रस्थ नामक नगर बसाया गया।
No:8. आज हम जिसे ‘दिल्ली’ कहते हैं, वही प्राचीनकाल में
इंद्रप्रस्थ था।
No:9. दिल्ली में पुराना किला
इस बात का सबूत है।
No:10. खुदाई में मिले अवशेषों
के आधार पर पुरातत्वविदों का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि पांडवों की राजधानी इसी
स्थल पर रही होगी।
No:11. यहां खुदाई में ऐसे
बर्तनों के अवशेष मिले हैं, जो महाभारत से जुड़े अन्य स्थानों पर भी मिले हैं।
No:12. दिल्ली में स्थित सारवल
गांव से 1328 ईस्वी का संस्कृत का एक
अभिलेख प्राप्त हुआ है। यह अभिलेख लाल किले के संग्रहालय में मौजूद है। इस अभिलेख
में इस गांव के इंद्रप्रस्थ जिले में स्थित होने का उल्लेख है।
No:13. इंद्रप्रस्थ का नाम भगवान
इंद्र पर रखा गया, क्योंकि इस नगर को इंद्र के स्वर्ग की तरह बसाया गया था।
No:14. भगवान कृष्ण ने
विश्वकर्मा से भगवान इंद्र के स्वर्ग के समान एक महान शहर का निर्माण करने के लिए
कहा था।
No:15. विश्वकर्मा ने इस नगर में
दिव्य और सुन्दर उद्यान और मार्गों का निर्माण किया था, तो मयासुर ने इस राज्य
में मयसभा नामक भ्रमित करने वाला एक भव्य महल बनाया था।
No:16. धृतराष्ट्र के कथनानुसार, पांडवों ने हस्तिनापुर से
प्रस्थान किया। आधे राज्य के आश्वासन के साथ उन्होंने खांडवप्रस्थ के वनों को हटा
दिया।
No:17. उसके उपरांत पांडवों ने
श्रीकृष्ण के साथ मय दानव की सहायता से उस शहर का सौन्दर्यीकरण किया।
No:18. वह शहर एक द्वितीय स्वर्ग
के समान हो गया। यहां से दुर्योधन की राजधानी लगभग 45 मील दूर हस्तिनापुर में
ही रही।
3). इंद्रप्रस्थ को उजाड़ दिया गया :
No:1. जब पांडवों को वनवास हुआ
तो उन्हें इंद्रप्रस्थ छोड़कर जाना पड़ा इस दौरान इंद्रप्रस्थ उजाड़ सा हो गया था।
No:2. युद्ध के बाद पांडवों ने
इस क्षेत्र में रुचि नहीं ली लेकिन कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के अपने धाम चले
जाने के बाद अर्जुन उनके कुल के बचे एक मात्र व्यक्ति बृज को इन्द्रप्रस्थ का राजा
बना दिया था।
No:3. बृज वहां कुछ समय तक रहने
के बाद मथुरा आ गए और वहीं उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया।
No:4. बृज के कारण ही मथुरा, वृंदावन आदि क्षेत्र को
बृजमंडल कहा जाता है।
No:5. पांडवों के वंशजों राजा
परीक्षित और जनमेजय ने जब हस्तिनापुर पर राज क्या तब तक इंद्रप्रस्थ एक नगर बना
रहा लेकिन इसके बाद उसका क्या हुआ इसको निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता।
No:6. कहते हैं कि उसके बाद कई
काल तक यह क्षेत्र महत्वहीन बना रहा।
4). मौर्य काल में दिल्ली :
No:1. मौर्य काल में दिल्ली या
इंद्रप्रस्थ का कोई विशेष महत्त्व न था क्योंकि राजनीतिक शक्ति का केंद्र इस समय
मगध में था।
No:2. मौर्यकाल के पश्चात् लगभग
13 सौ वर्ष तक दिल्ली और
उसके आसपास का प्रदेश अपेक्षाकृत महत्त्वहीन बना रहा।
No:3. लेकिन यहां नगर आबाद जरूर
था।
5). तोमर राजा काल में दिल्ली :
No:1. दिल्ली के इतिहास के
अनुसार मौर्य और गुप्त साम्राज्य के बाद दिलई का जिक्र 737 ईस्वी में मिलता है।
No:2. इस दौर में राजा अनंगपाल
तोमर ने पुरानी दिल्ली (इंद्रप्रस्थ) से 10 मील दक्षिण में अनंगपुर
बसाया। यहां ढिल्लिका गांव था।
No:3. कुछ वर्षों के पश्चात्य
उसने लालकोट नगरी बसाई। फिर 1180 में चौहान राजा पृथ्वीराज तृतीय ने किला राय पिथौरा
बनाया। इस किले के अंदर ही कस्बा बसता था।
6). पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य की राजधानी :
No:1. महान सम्राट हर्ष के
साम्राज्य के बिखराव के बाद उत्तर भारत में अनेक छोटी-मोटी राजपूत रियासतें उभरने
लगी।
No:2. इन्हीं में 12वीं शती में पृथ्वीराज
चौहान की भी एक रियासत थी जिसकी राजधानी दिल्ली भी बनाई गई थी।
No:3. कहते हैं कि दिल्ली के
कुतुब मीनार और महरौली का निकटवर्ती प्रदेश ही पृथ्वीराज के समय की दिल्ली था।
No:4. यहां पृथ्वीराज चौहान के
कई निर्माण कार्य किए थे।
7). गोरी के काल में उजाड़ी थी दिल्ली :
No:1. मुहम्मद बिन कासिम के बाद
महमूद गजनवी और उसके बाद मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण कर अंधाधुंध कत्लेआम और
लूटपाट मचाई।
No:2. गोरी ने भारत पर आक्रमण
के कई अभियान चलाए। 1191 ईस्वी में उसका प्रथम युद्ध पृथ्वीराज चौहान से हुआ।
No:3. इसके बाद मुहम्मद गोरी ने
अधिक ताकत के साथ पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। तराइन का यह द्वितीय युद्ध 1192 ईस्वी में हुआ था।
No:4. इस दौरान उसने दिल्ली पर
भयानक आक्रमण जिसके चलते लोगों को पलायन करना पड़ा।
No:5. गोरी ने भारत से लौटते
वक्त अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली की सल्तनत सौंप दी।
No:6. मोहम्मद गोरी के बेटे
शहाबुद्दीन ने गद्दी संभालने के बाद अपने भरोसेमंद सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को
कमान सौंप दी।
8). महरौली में कुतुबुद्दीन काल में दिल्ली :
No:1. कहते हैं कि महरौली को
कुतुबुद्दीन ने बसाया था।
No:2. ऐबक ने 1206 में दिल्ली से तख्त शुरू
किया। उसने कुतुब महरौली बसाई। यह दिल्ली का नया शहर था।
No:3. इसके बाद ऐबक का दामाद
इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बन गया। बाद में उसकी बेटी रजिया सुल्तान दिल्ली की
शासक बनी।
No:4. इसके बाद दिल्ली का शासन
खिलजी वंश के अंतर्गत आ गया।
No:5. खिलजी के बाद तुगलक वंश
के लोगों ने इस पर अधिकार कर लिया।
9). खिलजी काल में दिल्ली :
No:1. 1296 में अलाउद्दीन खिलजी ने
मारकाट मचाते हुए दिल्ली को बरबाद कर दिया। बाद में उसने नए सिरे से दिल्ली को
बसाया।
10). तुगलक ने काल में दिल्ली :
No:1. खिलजी कमजोर हुए तो 1320 में तुगलक दिल्ली आ धमके
और उन्होंने भी यहां खूब रक्तपात किया।
No:2. गयासुद्दीन तुगलक ने
बर्बाद दिल्ली को फिर से बसाया और दिल्ली का एक नया दौर प्रारंभ हुआ।
No:3. यह दौर तुगलक से ज्यादा
मशहूर सूफी निजामुद्दीन औलिया और उनके शागिर्द अमीर खुसरो की वजह से जाना गया।
11). तैमूर ने उजाड़ दी थी दिल्ली :
No:1. चंगेज खान के बाद तैमूर
लंग 1369 ई. में समरकंद का शासक
बना।
No:2. लगभग 1398 ई. में तैमूर भारत में
मार-काट और बरबादी लेकर आया।
No:3. तैमूर मंगोलों की फौज
लेकर आया तो उसका कोई कड़ा मुकाबला नहीं हुआ।
No:4. तुगलक बादशाह के समय
दिल्ली में वह 15 दिन
रहा और हिन्दू और मुसलमान दोनों ही कत्ल किए गए और हर तरफ लूटमार और मारकाट होने
के कारण दिल्ली से लोग भाग गए और दिल्ली किसी मरघट के समान उजाड़ हो गई।
12). लोधियों के काल में दिल्ली :
No:1. लोधियों ने तैमूर को
खदेड़ दिया और बहलोल और सिकंदर के बाद इब्राहिम लोदी ने दिल्ली को फिर से बसाया
लेकिन शहर फिरोजशाह के आसपास ही आबाद रहा, बाकी शहर उजाड़ था।
13). हुमायूं काल में दिल्ली :
No:1. इसके बाद इब्राहिम लोदी
को क्रूर बाबर ने हरा दिया और दिल्ली एक बार फिर से उजाड़ हो गई।
No:2. लोगों को बसने में बहुत
समय लगता है लेकिन दिल्ली को कई बार आक्रमणों ने उजाड़ा।
No:3. वैसे बाबर ने आगरा को
अपनी राजधानी बनाया लेकिन उसकी मौत के बाद उसका बेटा हुमायूं दिल्ली आया और उसे नए
सिरे से इस शहर में बसाहट की।
No:4. 1539 में शेर शाह सूरी ने
हुमायूं को जंग में खदेड़ दिया और दीनपनाह को शेरगढ़ बना दिया।
14). दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट थे हेमचंद्र विक्रमादित्य :
No:1. हेमचंद्र ने पंजाब से
बंगाल तक (1553-1556) अफगान
विद्रोहियों के खिलाफ 22 युद्धों को जीता था और 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली में पुराना
किला में अपना राज्याभिषेक कराया था और उसने पानीपत की दूसरी लड़ाई से पहले उत्तर
भारत में विदेशियों के खिलाफ ‘हिन्दू राज’ की स्थापना की थी।
No:2. हेमचंद्र ने लड़ाई से
करीब एक महीने पहले अकबर के सेनापति तारदी बेग खान को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर
लिया था।
No:3. पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को अकबर और सम्राट
हेमचंद्र विक्रमादित्य के बीच हुई।
No:4. इस लड़ाई में हेमचंद्र
जीत ही रहे थे कि अचानकर उनकी आंखों में एक तीर लग गया और वे घोड़े से नीचे गिर
पड़े।
No:5. इस दृश्य को देखकर हेमू
की सेना भाग गई जिसके चलते अकबर या बैरमखां ने हेमचंद्र का सिर काट दिया।
No:6. इसके बाद अकबर का दिल्ली
और आगरा पर कब्जा हो गया।
15). शांहजहां काल में दिल्ली :
No:1. अकबर के बेटे शांहजहां ने
दिल्ली का रुख किया और यमुना किनारे शाहजहानाबाद की नींव रखी।
No:2. 46 लाख रुपए में अपना
तख्त-ए-ताऊस बनवाया। जामा मस्जिद बनवाई।
No:3. चांदनी चौक बसा। मीना
बाजार बना। उल्लेखनीय है कि 1662 में दिल्ली में हुए एक भीषण अग्निकांड में 60 हजार और 1716 में भारी वर्षा के कारण
मकान ध्वस्त होने से 23 हजार लोग मारे गए थे।
No:4. उस दौरान भी दिल्ली लगभग
उजाड़ हो गई थी।
16). नादिर शाह ने उजाड़ दी दिल्ली :
No:1. तैमूर लंग की दौर की तरह 1739 में दिल्ली में एक बार
फिर हुआ कत्ल-ए-आम।
No:2. मुगल शासक मोहम्मद शाह के
वक्त ईरान से आए नादिर शाह ने मचाई मारकाट में दिल्ली के 30 हजार लोग मारे गए थे।
No:3. कहते हैं कि वह जाते वक्त
लूट के माल के साथ तख्त-ए-ताऊस भी अपने साथ ले गया था।
17). अंग्रेजों के काल में दिल्ली :
No:1. नादिर के बाद ईस्ट इंडिया
कंपनी की दिल्ली में एंट्री हुई।
No:2. फिर 1803 में दिल्ली भी अंग्रेजों
के नियंत्रण में आ गई।
No:3. अंग्रेजों ने भी वहीं
किया जो तैमूर लंग और नादिर शाह ने किया। इसके बाद भारत की राजधानी 1911 में कलकत्ता से दिल्ली
स्थानांतरित हुई।
No:4. 13 फरवरी, 1931 को दिल्ली 20 सालों के इंतजार के बाद
अविभाजित भारत की राजधानी बनी।
No:5. 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के बाद
भी नई दिल्ली को ही राजधानी बनाने का फैसला लिया गया।
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